आरपीएफ एसोसिएशन को ‘प्रेम’ मीटिंग में सहभागी होने से रोका

आरपीएफ अधिकारियों के खौफ से मंडल अधिकारी हुए विवेकहीन

मीडिया के सवालों का जवाब देने को भी तैयार नहीं डीजी/आरपीएफ

आरपीएफ अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किए जा रहे हैं आरपीएफ कर्मी

कहां विलुप्त हो गया ‘मिनिमम गवर्नमेंट-मैक्सिमम गवर्नेंस’ का नारा

सुरेश त्रिपाठी

ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन, मध्य रेलवे, सोलापुर मंडल के पदाधिकारियों को मंगलवार, 18 दिसंबर को सोलापुर मंडल कार्यालय में हुई ‘प्रबंधन में रेलकर्मियों की भागीदारी’ (प्रेम) की बैठक में भाग लेने से मना कर दिया गया. आरपीएफ अधिकारियों के खौफ से सोलापुर मंडल के डीआरएम और एडीआरएम जैसे सक्षम मंडल अधिकारी अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर पाए और वह इस मौके पर एसोसिएशन के पदाधिकारियों को बैठक में शामिल करने का विवेकपूर्ण निर्णय लेने में अक्षम साबित हुए. जबकि रेलवे बोर्ड के आदेशों अथवा दिशा-निर्देशों की विवेचना और उनका निहितार्थ निकालने की जिम्मेदारी मंडल के उक्त दोनों सक्षम अधिकारियों की ही मानी जाती है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘प्रेम’ की उक्त बैठक से पहले एसोसिएशन के मंडल पदाधिकारियों को बैठक से बाहर कर दिए जाने और उसके लिए अयोग्य ठहरा दिए जाने की सूचना पहले से नहीं दी गई. यह सूचना बैठक के दिन 18 दिसंबर को बैठक शुरू होने से कुछ समय पहले उन्हें दी गई, जिसमें उनकी विशेष आकस्मिक छुट्टी भी निरस्त करने की जानकारी दी गई थी. इस प्रकार बैठक में शामिल होने की उनकी पात्रता को यह कहकर नकार दिया गया कि रेलवे बोर्ड द्वारा 19 नवंबर 2018 को निर्गत आदेश (पत्र सं. 2010/सेक्रेटरी/6/1) के पैरा-4 में आरपीएफ एसोसिएशन को किसी भी स्तर पर कोई मीटिंग करने की अनुमति नहीं है.

इस संदर्भ में जब ‘रेल समाचार’ द्वारा सोलापुर मंडल के एडीआरएम नागर से संपर्क किया गया तो उनका कहना था कि रेलवे बोर्ड ने आरपीएफ एसोसिएशन को किसी भी मीटिंग में शामिल नहीं करने का पत्र जारी किया है. इस पर जब उनसे यह कहा गया कि रेलवे बोर्ड का उक्त पत्र एसोसिएशन को केंद्रीय, जोनल एवं मंडल स्तरीय कार्य-समितियों की वार्षिक सर्वसाधारण बैठकों (एजीएम) के संदर्भ में जारी किया गया है. जिसका अर्थ यह है कि अगले आदेश तक एसोसिएशन को उक्त तीनों स्तरों पर ऐसी कोई भी बैठक आयोजित करने से रोका गया है. उक्त पत्र में प्रेम या पीएनएम जैसी आतंरिक या विभागीय बैठकों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. तब एसोसिएशन को प्रेम मीटिंग से बाहर क्यों किया गया? इस पर एडीआरएम नागर का कहना था कि डीएससी ने रेलवे बोर्ड के उक्त पत्र का हवाला देते हुए ऐसा लिखा था कि डीजी/आरपीएफ ने एसोसिएशन को किसी भी मीटिंग में शामिल नहीं करने का आदेश दिया है.

हालांकि, एडीआरएम नागर के उपरोक्त कथन पर जब ‘रेल समाचार’ ने उनसे तर्क किया कि रेलवे बोर्ड के पत्र का निहितार्थ निकालने और निर्णय लेने का सक्षम प्राधिकार मंडल स्तर पर डीआरएम और एडीआरएम का है, या किसी ब्रांच अधिकारी (डीएससी) का? इस पर उनका कहना था कि उक्त पत्र के संदर्भ में डीएससी ने प्रिंसिपल सीएससी से बात करके पत्र लिखा था, जिसके आधार पर एसोसिएशन को बैठक में शामिल नहीं करने का निर्णय लिया गया. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि मंडल द्वारा उक्त पत्र पर मुख्यालय से स्पष्टीकरण मंगाया जाएगा. तथापि इस पर जब उनसे यह कहा गया कि अब उससे क्या हो जाएगा, मौका तो निकल गया और एसोसिएशन को नीचा दिखाने का आरपीएफ अधिकारी का मकसद तो पूरा हो गया, अब उनके स्पष्टीकरण मांगने से नया क्या होगा? इस पर उन्होंने अपनी किंकर्तव्यविमूढ़ता दर्शा दी.

आरपीएफ स्टाफ पर रंगबाजी झाड़ने और रंगरेलियां मानने में मस्तडीएससी/सोलापुर से इस विषय पर जवाब-तलब करने का कोई औचित्य नहीं था. अतः ‘रेल समाचार’ ने प्रिंसिपल सीएससी, मध्य रेलवे अतुल श्रीवास्तव से उनके मोबाइल पर संपर्क करके उन्हें विषय की जानकारी देते हुए उनसे जब यह पूछा कि ऐसा क्यों किया गया, जबकि रेलवे बोर्ड का उपरोक्त संदर्भित पत्र प्रेम/पीएनएम जैसी मीटिंग्स के लिए जारी नहीं किया गया है? इस पर उनका कहना था कि वह मुख्यालय से बाहर हैं और इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि ऑफिस पहुंचकर विषय की जानकारी करने के बाद ही कुछ कह पाएंगे. तत्पश्चात ‘रेल समाचार’ ने तत्कालडीजी/आरपीएफ अरुण कुमार को उनके मोबाइल पर संपर्क किया और यही बात उनसे भी पूछी, मगर उन्होंने कोई जवाब देने के बजाय तुरंत संबंध विच्छेद कर दिया.

विषय के जानकारों का कहना है कि डीजी/आरपीएफ और प्रिंसिपल सीएससी/म.रे. की यह मनमानी जायज नहीं है? उनका यह भी कहना है कि प्रेम और पीएनएम जैसी आतंरिक बैठकों में एसोसिएशन को प्रतिबंधित करने का अधिकार प्रिंसिपल सीएससी तो क्या, डीजी/आरपीएफ को भी नहीं है. यह अधिकार सिर्फ भारत सरकार (रेलमंत्री) को ही है. यहां यह सवाल पैदा होता है कि ऐसी स्थिति में करीब 70 हजार आरपीएफ कर्मियों को डराने, धमकाने और उनकी समस्याओं का उचित समाधान न करके उन्हें प्रताड़ित करने की डीजी/आरपीएफ अथवा अन्य आरपीएफ अधिकारियों की यह मनमानी आखिर क्यों और किसकी शह पर चल रही है? ज्ञातव्य है कि 19 नवंबर 2018 के पत्र का वाजिब जवाब एसोसिएशन द्वारा 28 नवंबर 2018 को ही दिया जा चुका है, जिसके प्रत्युत्तर में डीजी/आरपीएफ ने अब तक कुछ नहीं किया है.

पूरी तानाशाही पर उतारू डीजी/आरपीएफ को स्टाफ समस्याओं पर मीडिया के सवालों का जवाब नहीं देना है. ‘क्या डीजी/आरपीएफ की यह मनमानी और तानाशाही इसलिए चल रही है, क्योंकि सरकार और रेलमंत्री उनसे तथा उनके कैडर से खौफ खाते हैं?’ यह एक अत्यंत सामयिक सवाल पिछले डेढ़ साल से तमाम आरपीएफ कर्मी आपस में एक-दूसरे से पूछ रहे हैं. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सभी प्रिंसिपल सीएससी और अन्य वरिष्ठ आरपीएफ अधिकारियों की तथाकथित बैठक ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ के प्रांगण में आयोजित करके और उसका उदघाटन प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री से करवाकर उनकी चापलूसी में लगे डीजी/आरपीएफ द्वारा जीआरपी (आईपीसी) के अधिकार क्षेत्र में आने वाले अपराधिक मामलों की जांच-छानबीन भी बिना किसी अधिकार के आरपीएफ से करवाने का दबाव बनाया जा रहा है.

जहां तक रेलवे बोर्ड की बात है, तो उसके द्वारा जारी ऐसे लगभग सभी आदेश एवं दिशा-निर्देश ऐसी अंतर्निहित भाषा और शब्दावली में होते हैं कि उनका निहितार्थ समझने और उन्हें अमल में लाने के लिए अच्छे-अच्छे विद्वान रेल अधिकारियों का दिमाग चकरा जाता है. सुरक्षा निदेशालय, रेलवे बोर्ड द्वारा 19 नवंबर 2018 को जारी किया गया पत्र भी इसी श्रेणी में आता है. जानकारों का कहना है कि उक्त पत्र जारी करने का संदर्भ ही आरपीएफ एसोसिएशन की अखिल भारतीय एजीएम (जीसी/सीईसी) सहित जोनल एवं मंडल स्तरीय एजीएम इत्यादि के आयोजन से था और उसमें लिखे गए शब्दों ‘ऐट एनी लेवल’ का भी यही निहितार्थ है. परंतु इन तीन शब्दों की आड़ में डीजी/आरपीएफ ने मान्यताप्राप्त ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन को संपूर्ण भारतीय रेल स्तर पर पंगु कर दिया है. जानकारों का यह भी कहना है कि इस जबरन अन्याय/अत्याचार पर सरकार, रेलमंत्री, रेल प्रशासन (रेलवे बोर्ड) और खासतौर पर सीआरबी, जिनके मातहत आरपीएफ का विषय है, इन सभी को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए, जो ‘मिनिमम गवर्नमेंट – मैक्सिमम गवर्नेंस’ का ढिंढोरा पीट रहे हैं.