April 7, 2019

भ्रष्टाचार पर उतारू अधिकारी, किंकर्तव्यविमूढ़ रेल प्रशासन

द.पू.म.रे. के भ्रष्ट अधिकारियों को आखिर कौन करेगा काबू?

भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करने में रेलवे विजिलेंस असफल

‘सुशासन बाबू’ ने रेलवे विजिलेंस को बनाया नख-दंत विहीन

बिलासपुर ब्यूरो : एक तरफ भारतीय रेल के तेजी से विद्युतीकरण का शगूफा बनाकर मेंबर ट्रैक्शन, रेलवे बोर्ड, सरकार और रेलमंत्री को दिग्भ्रमित कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ मंडलों एवं जोनों में बैठे कुछ सीनियर/जूनियर विद्युत् अधिकारी फर्जी टेंडर/कोटेशन करके न सिर्फ रेलवे को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि कुछ फर्जी अथवा चहेते ठेकेदारों के साथ मिलकर रेलवे को जमकर लूट भी रहे हैं. तमाम शिकायतों के बावजूद ऐसा लगता है कि दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे सहित कुछ अन्य जोनल रेलों के विद्युत विभाग, कदाचारी अधिकारियों की चारागाह बन गए हैं. इस पर ‘सुशासन बाबू’ ने वित्तीय अधिकार बढ़ाकर और रेलवे विजिलेंस को अकर्मण्य बनाकर भ्रष्ट अधिकारियों को अपनी मनमानी करने के लिए खुला छोड़ दिया है.

बिलासपुर मंडल, द.पू.म.रे. के विद्युत विभाग के एक अधिकारी का ऐसा हाल सामने आया है कि जिसके भ्रष्टाचार का तांडव विभागीय कर्मचारियों ने न सिर्फ प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया है, बल्कि सहा भी है. इस अधिकारी की नागपुर मंडल, द.पू.म.रे. में पोस्टिंग के दौरान पूर्व प्रिंसिपल सीईई के साथ कुछ ऐसी सांठ-गांठ थी कि इसने जिसे चाहा उसे क्लास-2 अधिकारी बनवा दिया था. ट्रांसफर, पोस्टिंग, आरोप पत्र आदि में प्रिंसिपल सीईई की ओर से इसके द्वारा खुलकर सौदेबाजी होती थी. बताते हैं कि इसके चैम्बर में जाने से पहले कर्मचारीगण अपना पर्स जेब से निकालकर किसी अन्य साथी को थमा जाते हैं, क्योंकि कई बार जेब की तलासी लेकर पैसा उगाही करने का आरोप भी कर्मचारियों द्वारा इस अधिकारी पर लगाया जा चुका है.

सीबीआई और रेलवे विजिलेंस को इसके खिलाफ हुई तमाम शिकायतों के कारण पहले तो इस अधिकारी को नागपुर में ही ‘ऑपरेशन’ से हटाकर ‘सामन्य’ में रखा गया. लेकिन चोरी करने से बाज नहीं आने के कारण इसके द्वारा ‘सामान्य’ में भी बड़ी ‘असामान्य’ हेराफेरी की गई. परिणामस्वरूप वहां भी कई घपले प्रकाश में आए, जिसमें एक शिकायत मिली कि नागपुर मंडल में एलईडी लाइट्स लगाने के नाम पर 2016-17 के दौरान बाजार में 250 रुपये में आमतौर पर बिकने वाली ट्यूब लाइट्स को 1175 रु. प्रति नग के हिसाब से स्टेशनों पर लगवाया, जिसकी लागत कुल 24,25,200 रु. आई. इसी तरह कम्प्लीट पट्टी के साथ 3,645 रु. प्रति नग के हिसाब से तमाम ट्यूब लाइट्स खरीदकर लगवा दिए गए.

इस पूरे मामले की लिखित शिकायत सीबीआई, नागपुर को की गई, जिसे पिछले साल दि. 10.08.2017 को सीबीआई द्वारा यह कहते हुए द.पू.म.रे. सतर्कता विभाग को सुपुर्द कर दिया गया कि इस मामले में की गई अंतिम कार्यवाही से शिकायकर्ता सहित उसको भी अवगत कराया जाए. अब किसके प्रभाव या दबाव में द.पू.म.रे. सतर्कता विभाग द्वारा अब तक यह कार्यवाही नहीं की गई, इस बारे में फिलहाल किसी को कुछ पता नहीं है. लेकिन तब इसका असर सिर्फ इतना हुआ था कि संबंधित अधिकारी को नागपुर से हटाकर द.पू.म.रे. मुख्यालय, बिलासपुर शिफ्ट कर दिया गया था. इसके बाद घटनाक्रम कुछ ऐसा घटा कि बिल्ली के भाग्य से छींका ही टूट पड़ा और इस अधिकारी को कुछ ही समय बाद इलेक्ट्रिकल ऑपरेशन ब्रांच के मुखिया के तौर पर पुनः भ्रष्टाचार का सरदार बनाकर बिलासपुर मंडल में बैठा दिया गया.

हालांकि सूत्र बताते हैं कि भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात होने के चलते इस अधिकारी को पर्याप्त हिदायत देकर बिलासपुर मंडल में भेजा गया था, लेकिन जिसके मुंह में एक बार भ्रष्टाचार का खून लग जाता है, वह फिर कभी नहीं छूटता है. और हुआ भी यही. प्राप्त जानकारी के अनुसार हाल ही में इस अधिकारी द्वारा बिलासपुर रनिंग रूम के रख-रखाव का टेंडर निकला गया. धूर्त अधिकारी ने इस टेंडर को दो भाग में बांट दिया. एक भाग में लेबर, तो दूसरे में रख-रखाव को रखा. पहले हिस्से में लेबर की विज्ञापित लागत में मिनिमम वेजेज के चलते 10485211.68 रु. से कम रेट कोई नहीं भर सकता था. इसके लिए संबंधित ठेकेदार ने पूरी चालाकी से मात्र 0.36% अधिक यानि कुल 10522958.44 रु. रेट कोट किया. इसे ‘ऐट पार’ मान लिया गया.

टेंडर का दूसरा हिस्सा 1429741 रु. का था. इसमें दो वर्ष तक रोजाना 492 बेड शीट, 246 तकिया कवर, 140 मच्छरदानी, पर्दे, कंबल, इत्यादि की धुलाई सहित अखबार/मैगजीन एवं अन्य बहुत सारे कार्य करना शामिल है. इसमें सांठ-गांठ करके दो वर्षों के लिए यह ठेका कुल मात्र 142.97 रु. यानि 99.99% कम रेट पर दे दिया गया. जबकि इस हिस्से की शर्त में टेंडर डॉक्यूमेंट के पैरा नं. 45, पेज नं. 17 पर स्पष्ट लिखा गया है कि- ‘Schedule-B: The quoted rate should be reasonable. Rates much below departmental rate may be considered unworkable and such offers may be liable for rejection.’ दोनों हिस्सों की शर्तों का सीधा अर्थ यह है कि यदि रेट कार्य करने योग्य नहीं पाए जाएंगे, तो टेंडर निरस्त कर दिया जाएगा.

हालांकि जानकारों का मानना है कि इस पूरे के पूरे टेंडर में ही फर्जीवाड़े का गोलमाल खेल हो रहा है. इसके लेबर वाले हिस्से में करीब 70 लाख का गोलमाल करने का रास्ता है. यह तो सर्वज्ञात है कि निर्धारित लेबर कभी कोई ठेकेदार लगाता नहीं है, और न ही उन्हें निर्धारित न्यूनतम वेतन देता है. इसी प्रकार धुलाई, साफ-सफाई, अखबार/मैगजीन इत्यादि में भी ठेकदार को कुछ करना ही नहीं है. वरना कोई 143 रु. में, लगभग मुफ्त, टेंडर कार्य क्यों करना चाह रहा है? तथापि, तमाम नियम-कायदे ताक पर रखकर दि. 04.09.2018 को यह टेंडर आवंटित कर दिया गया. इसकी भी लिखित शिकायत केंद्रीय सतर्कता आयोग में दर्ज हो चुकी है.

जानकारों का कहना है कि इसी बीच मुख्य कर्मीदल नियंत्रक (चीफ क्रू-कंट्रोलर) और लोको निरीक्षक के चयन का भी दौर आ गया. उनका कहना है कि जिस कर्मचारी पर पहले से ही फर्जी नाईट ड्यूटी अलाउंस क्लेम करने पर भ्रष्टाचार की शिकायत की विजिलेंस जांच चल रही है, उसी कर्मचारी से सांठ-गांठ करके उसको ही चीफ क्रू-कंट्रोलर के लिए उपयुक्त कर दिया गया है, जबकि इस कर्मचारी के विरुद्ध चल रही विजिलेंस जांच और संदिग्ध कार्य-प्रणाली के बारे में समस्त स्टाफ सहित सभी अधिकारियों को इसकी पर्याप्त जानकारी है. उनका कहना है कि अब इसके चीफ क्रू-कंट्रोलर बनने से कर्मचारियों के सभी भावी प्रमोशन, पोस्टिंग विवादास्पद होने की आशंका बन गई है.

इतना ही नहीं, जानकारों का कहना है कि भ्रष्टाचार के मामले में उक्त अधिकारी इतना ज्यादा ढीठ हो गया है कि अब उसे सीबीआई, सीवीसी, विजिलेंस आदि किसी की भी परवाह ही नहीं रह गई है. बताते हैं कि इससे पहले पिछले सेलेक्शन में इसके द्वारा तीन लोको निरीक्षकों को आउट ऑफ टर्न बिलासपुर में ही पोस्टिंग दे दी गई, जबकि पूर्व डीआरएम ने इसका अप्रूवल नहीं दिया था. जब इसकी शिकायत वर्तमान डीआरएम से की गई, तो उन्होंने उक्त पोस्टिंग को मॉडिफाई करने का आदेश दिया. लेकिन इस अधिकारी का अनैतिक आचरण इतना ढीठ है कि उक्त फाइल को दबाकर बैठ गया और डीआरएम के आदेश का पालन अब नहीं किया है. डीआरएम को ठेंगा दिखाने के अलावा आरटीआई में भी बिना सिर-पैर का जवाब दिया गया है.

इस संदर्भ में ‘रेल समाचार’ ने जब संबंधित अधिकारी को मोबाइल पर संपर्क करके उसका पक्ष जानने की कोशिश की और यह पूछा कि जिस कर्मचारी के खिलाफ पहले से विजिलेंस जांच चल रही है, उसे वह मुख्य कर्मीदल नियंत्रक कैसे नियुक्त करने जा रहा है? इस पर उसका कहना था कि अभी ऐसा कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, इसकी चयन प्रक्रिया अभी चल रही है.

इसी संदर्भ में ‘रेल समाचार’ ने एसडीजीएम/द.पू.म.रे. से भी संपर्क करके उनसे जब यह पूछा कि जिस अधिकारी के विरुद्ध पहले से ही सीवीसी को हुई शिकायत के संदर्भ में विजिलेंस जांच चल रही है, उसे मंडल में नियुक्त करने से पहले नियमानुसार उसको टेंडर इत्यादि संवेदनशील कार्यों से अलग रखने की सावधानी क्यों नहीं बरती गई? इस पर उनका कहना था कि जो भी शिकायत हो, वह उन्हें लिखकर भेज दी जाए. इस पर जब उनसे यह कहा गया कि जब पहले से ही शिकायत की जांच उनके मातहत चल रही है, तब नई शिकायत का क्या औचित्य है? इस पर उन्होंने अपना ज्ञान बघारना शुरू कर दिया. इस पर जानकारों का कहना है कि एसडीजीएम जैसे पदों पर जब कुछ कथित कदाचारी और चरित्रहीन अधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा, तब उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है?

जानकारों का कहना है कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारी रेलवे पर बोझ हैं. उनका यह भी कहना है कि जिस रेलवे का जीएम खुद खुलेआम कदाचार और स्वैच्छाचारिता के लिए कुख्यात हो, वह अपने मातहत अधिकारियों को कैसे काबू में रख सकता है. उन्होंने कहा कि यदि ऐसे अधिकारियों को जल्दी ही काबू में नहीं किया गया, तो यह रेलवे को बेच खाने में भी देर नहीं लगाएंगे. यदि रेलवे बोर्ड अभी भी ऐसे अधिकारियों, जिनके खिलाफ तमाम शिकायतें लंबित हों, के विरुद्ध उचित कार्यवाही नहीं करता है, और उनके द्वारा किए ट्रांसफर, पोस्टिंग, नियुक्तियों को निरस्त करके विजिलेंस जांच को प्रभावी नहीं बनाता है, तो रेलवे का भगवान ही मालिक है.

क्रमशः – मध्य रेलवे, मुंबई मंडल में चल रही आरएमपीयू और पॉवर कार मेंटीनेंस में भारी भ्रष्टाचार की कहानी !