गार्ड को इनाम देना सीनियर डीएसओ को भारी पड़ा

दिल्ली मंडल के अधिकारियों की अमानवीयता का उदाहरण

दिल्ली कैट से जीतने पर भी अनुकंपा नियुक्ति देने से इंकार

कैट के निर्णय पर अमल के बजाय देने जा रहे हाई कोर्ट में चुनौती

नई दिल्ली : किसी अधिकारी द्वारा किसी रेलकर्मी को कोई अवार्ड देने से पहले अब शायद कई बार सोचना पड़ेगा. प्रस्तुत मामले को देखते हुए कम से कम यही कहा जा सकता है. वर्ष 2003 में उत्तर रेलवे, दिल्ली मंडल के तत्कालीन सीनियर डीएसओ एम. एस. चालिया ने जींद मुख्यालय में उस समय के गार्ड बनी सिंह 500 रुपये का सेफ्टी अवार्ड और तत्संबंधी प्रमाण पत्र दिया था, जिसे गार्ड बनी सिंह ने फ्रेम करवाकर अपने घर में लगा दिया.

11 साल बाद, लंबी बीमारी के कारण अनुपस्थित रहने से उसे दिल्ली मंडल के डीओएम ने नौकरी से निकाल दिया. परंतु उसकी अपील पर सीनियर डीओएम ने 31 साल की बेदाग सेवा को देखते हुए उसे नौकरी करने का एक मौका और दिया तथा मेडिकल फिटनेस के लिए मेमो देकर रेलवे अस्पताल भेज दिया. मेडिकल फिटनेस के लिए जब तक वह पहुंचता, कि इसी बीच एक हादसे के कारण उसकी मृत्यु हो गई.

फोटो परिचय : दर-दर भटकता और दो जून की रोटी के लिए भी मोहताज मृतक गार्ड बनी सिंह का परिवार.

अब जब उसके बड़े लड़के को अनुकंपा आधार पर नौकरी देने की बात आई तो दिल्ली मंडल के डीआरएम ने उसे नौकरी देने से मना करते हुए यह घोषित कर दिया कि मरने वाला व्यक्ति (बनी सिंह) रेलकर्मी ही नहीं था. डीआरएम के इस अमानवीय आचरण के कारण मृतक गार्ड बनी सिंह का 9 जनों का पूरा परिवार सड़क पर आ गया.

ऐसे में अब परिवार को घर की दीवार पर टंगा बनी सिंह को मिला सेफ्टी अवार्ड वाला प्रमाण पत्र ही आखिरी सहरा लगा. तब परिवार ने उस अधिकारी की खोज शुरू की, जिसने गार्ड बनी सिंह को उक्त सेफ्टी अवार्ड दिया था. खोजते-पूछते हुए अंततः उन्हें एम. एस. चालिया का पता मिल ही गया, जो कि वर्तमान में सीपीएम/फ्वोईस/उ.रे. के पद पर दिल्ली में ही पदस्थ हैं.

इस संदर्भ में ‘रेल समाचार’ द्वारा संपर्क किए जाने पर श्री चालिया का कहना था कि हालांकि यह मामला डीआरएम, दिल्ली मंडल का है, परंतु उस परिवार के विश्वास और गरीबी को देखते हुए मैं उसे मना नहीं कर पाया. उन्होंने बताया कि इस मामले में उन्होंने तत्काल डीआरएम, एडीआरएम, सीनियर डीपीओ और यहां तक कि एपीओ तक को भी, सभी से उक्त गरीब परिवार की मदद करने की गुहार लगाई, परंतु सभी अधिकारियों ने असमर्थता दर्शा दी.

श्री चालिया सहित कई अन्य अधिकारियों, जिस-जिस को इस परिवार की बदहाल स्थिति और मामले के बारे में पता चला, सबने संबंधित अधिकारियों को बहुत समझाने की कोशिश की कि जब सीनियर डीओएम ने उसे नौकरी पर बहाल करके मेडिकल फिटनेस के लिए रेफर किया था, तब वह नौकरी पर माना जाना चाहिए. मगर इस महत्वपूर्ण तर्क और वास्तविक तथ्य को दिल्ली मंडल के सभी अधिकारियों ने मानने से इंकार कर दिया. इसका कारण यह था कि जब मंडल का मूढ़ मुखिया ही उक्त तथ्य पर तनिक भी तवज्जो देने पर राजी नहीं था, तब उनमें से किसी क्या मजाल हो सकती थी.

ऐसे में जब कोई विकल्प नहीं दिखाई दिया, तो एक रिटायर्ड रेलवे कर्मचारी आर. सैनी, जो कि अब वकालत करने लगे थे, को इस परिवार की मदद करने के लिए मनाया गया. सैनी ने न सिर्फ परिवार की तरफ से दिल्ली कैट में याचिका दाखिल की, बल्कि अपनी तरफ से उक्त परिवार को 10 हजार रुपये की मदद भी दी. मामला करीब चार महीने तक चला और कैट का अंतिम फैसला परिवार के पक्ष में आ गया.

दिल्ली मंडल के डीआरएम सहित अन्य सभी संबंधित अधिकारीगण उपरोक्त अमानवीयता अथवा मूर्खता अब भी दिखा रहे हैं. क्योंकि कैट के आदेश पर अमल करने के बजाय उन्होंने अब इसे अपनी तथाकथित मगर अहंकारपूर्ण प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है और अब वह कैट के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देने जा रहे हैं. कार्मिक विभाग सहित सभी सक्षम अधिकारियों के इस प्रकार के अहंकारपूर्ण व्यवहार के कारण ही न सिर्फ अदालतों में फालतू मामलों का बोझ पड़ता है, बल्कि रेलकर्मियों के साथ अमानवीयतापूर्ण बर्ताव भी होता है. जबकि पद के कर्तव्य का उचित पालन नहीं करने के विरुद्ध इन सभी संबंधित अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी तय नहीं होती है.

इस पर श्री चालिया का कहना है कि अब मैंने भी ठान लिया है कि अधिकारी-कर्मचारी के रिश्ते को बदनाम नहीं होने दूंगा और इस गरीब परिवार को न्याय दिलवाने के लिए इसको हाई कोर्ट में भी मदद करूंगा. वह कहते हैं कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि कभी यह दिन भी देखना पड़ेगा कि इनाम देने की सजा उन्हें इस प्रकार से मिलेगी. तथापि उन्हें इस बात का संतोष है कि इसी प्रकार सही, ईश्वर ने उन्हें किसी की मदद करने का अवसर दिया है.