उ.म.रे.: फालतू चेकिंग ड्राइव्स से आजिज आए वाणिज्य कर्मचारी

एक ही समय, एक ही साथ चलाए जा रहे हैं तीन-तीन जांच अभियान

उमेश शर्मा, ब्यूरो प्रमुख, इलाहाबाद

उत्तर मध्य रेलवे का वाणिज्य विभाग, विशेषकर इलाहाबाद मंडल वर्तमान में केवल फालतू के स्पेशल ड्राइव चलाकर अपने मैनपावर का दुरुपयोग कर रहा है. इस अभियान में कमर्शियल इंस्पेक्टर, सुपरवाइजर इत्यादि को उनके मुख्य आवंटित कार्य को छोड़कर उक्त अभियान में लगाया जा रहा है. कभी कैटरिंग ड्राइव, कभी क्लीनिंग ड्राइव, कभी भीड़ के दौरान दलालों की धरपकड़ की ड्राइव. आखिर किस बात की हैं यह स्पेशल ड्राइव? क्या इलाहाबाद मंडल का वाणिज्य विभाग यह मान रहा है कि कैटरिंग, क्लीनिंग, पीआरएस में कार्यरत स्टाफ अपनी ड्यूटी सही ढंग से नहीं कर रहा है? यदि हां, तो उन पर आवश्यक कार्रवाई करने के बजाय उन पर निगरानी के लिए ड्राइव के नाम पर अन्य महत्वपूर्ण वाणिज्य स्टाफ की ड्यूटी लगाकर मैनपॉवर की दोहरी बर्बादी नहीं की जा रही है?

कर्मचारियों का कहना है कि दरअसल वाणिज्य विभाग में कार्य करने वाले कर्मचारियों की शॉर्टेज है और अधिकारी सरप्लस में हैं, जिनका काम केवल फाइलों पर आदेश देना रह गया है. उनका कहना है कि स्पेशल ड्राइव विशेष मौकों पर एक सप्ताह या पखवाड़े भर के लिए ही चलाई जाती हैं, परंतु इलाहाबाद मंडल के तथाकथित मूर्धन्य वाणिज्य अधिकारी दो-दो महीने की ड्राइव चलवा रहे हैं. तथापि उ.म.रे. महाप्रबंधक, प्रमुख मुख्य वाणिज्य प्रबंधक, मंडल रेल प्रबंधक इत्यादि वरिष्ठ अधिकारियों का ध्यान मैनपावर की इस बरबादी की तरफ जा ही नहीं रहा है.

कर्मचारियों ने बताया कि मजे कि बात ये है कि अवैध वेंडिंग पर अंकुश लगाने की ड्यूटी कैटरिंग इंस्पेक्टर, आरपीएफ इत्यादि की है, लेकिन ड्राइव में ड्यूटी कमर्शियल इंस्पेक्टर, सुपरवाइजर की लगाई जा रही है, जबकि उन्हें अवैध वेंडरों को पकड़ने का अधिकार ही नहीं है. उन्होंने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया कि अवैध वेंडिंग आरपीएफ तथा कैटरिंग विभाग मिलकर चला रहे हैं और इसका लाखों रुपये का हप्ता हर माह रेलवे के वाणिज्य तथा रेलवे सुरक्षा बल के उच्चाधिकारियों तक पंहुचाया जाता है.

कर्मचारियों का यह भी कहना है कि इस प्रकार के फालतू ड्राइव से वह अपने आवंटित कार्य यथा बुकिंग, पार्सल, गुड्स इत्यादि को देख ही नहीं पा रहे हैं और किसी दिन यदि कोई बड़ा घोटाला होगा, तो स्पष्टीकरण उन्हीं से ही मांगा जाएगा. इस प्रकार के फालतू अभियान मात्र उ.म.रे. में ही चलाए जा रहे हैं. इससे तमाम वाणिज्य कर्मचारी बुरी तरह डरे-सहमे हुए हैं और वे अपना निर्धारित कार्य भी नहीं कर पा रहे हैं.

हास्यास्पद स्थिति तो यह है कि खाद्य पदार्थों, पेयजल इत्यादि की सैंपलिंग लेने की प्राथमिक जिम्मेदारी रेलवे के स्वास्थ्य विभाग (मेडिकल) की है. परंतु इस अभियान में भी वाणिज्य विभाग के गैरजिम्मेदार अधिकारियों ने कमर्शियल इंस्पेक्टर तथा सुपरवाइजर की ड्यूटी भी मेडिकल स्टाफ के साथ लगातार दो महीने के लिए लगा दिए हैं. कर्मचारियों का कहना है कि वाणिज्य विभाग के अधिकारियों में कोई सामंजस्य भी नहीं है और वे एक ही साथ एक ही अवधि में तीन-तीन ड्राइव का आर्डर निकालकर अपनी मूर्खता का परिचय दे रहे हैं.

हालांकि ‘रेल समाचार’ का मानना है कि उपरोक्त प्रकार की चेकिंग ड्राइव लगभग सभी जोनल रेलों द्वारा अपने सभी मंडलों में चलाई जा रही हैं, जिससे सभी वाणिज्य स्टाफ इस तरह की फालतू ड्राइव से अजीज आ चुका है. कर्मचारियों का कहना है कि इस प्रकार के सिस्टम से उनका विश्वास उठ गया है. जहां भी नजर डाली जाती है, वहीँ घोटाला नजर आता है, मजे की बात ये है कि शिकायत भी किससे की जाए, क्योंकि हिस्सा तो ऊपर तक भी जा रहा है. उनका कहना है कि वे अपने आस-पास रेलवे में इतने घोटाले देख रहे हैं, तो बाकी जगहों पर क्या हाल होगा? इसका सिर्फ अंदाज ही लगाया जा सकता है. क्या कोई ऐसा तंत्र विकसित किया जा सकता है, जहां घोटालों पर सही ऐक्शन लेने की कोई गुंजाईश बनती हो?