आरक्षण: दलितों को दलित बनाए रखने की साजिश-3

चार-चार बार असंवैधानिक संशोधन करके संविधान को विरूपित किया गया

जातिगत दबाव में भारतीय संसद को पांचवीं बार शर्मसार करने की कोशिश

वंचितों-दलितों के साथ अन्याय करने पर मजबूर हैं राष्ट्रवादी जन-प्रतिनिधि

गलत है पदोन्नति में आरक्षण, यह जानते हुए भी नागरिकों से विश्वासघात

पदोन्नति एवं नौकरी में आरक्षण के मुद्दे पर किया जा रहा है देश को गुमराह

सुरेश त्रिपाठी

पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में ‘समता आंदोलन समिति’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पारासर नारायण शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे अपने लंबे पत्र में पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था के तहत दलितों को दलित बनाए रखने की साजिश के साथ ही प्रधानमंत्री से यह भी विनम्र निवेदन किया है कि चार-चार बार असंवैधानिक संशोधन करके संविधान को विरूपित किया गया है और अब पुनः जातिवादी नेताओं के दबाव में पांचवीं बार फिर से इसमें संशोधन करके देश और संसद को शर्मशार करने की तैयारी की जा रही है. उन्होंने लिखा है कि पदोन्नति में आरक्षण गलत और संविधान की भावना के विपरीत है, यह जानते हुए भी देश की अधिसंख्य जनता के साथ विश्वासघात किया जा रहा है. पदोन्नति और नौकरियों में आरक्षण से संबंधित मुद्दे पर देश को गुमराह किया जा रहा है.

फोटो परिचय : वड़ोदरा में एक जन-समूह को संबोधित करते हुए ‘समता आंदोलन समिति’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पारासर नारायण शर्मा एवं उनके साथी.

विधायिका और जन-प्रतिनिधियों की लगातार गिरती साख

पदोन्नति में आरक्षण के अविधिक अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक व्यवस्था के कारण भारतीय संसद, राज्य विधानसभाओं और जनप्रतिनिधियों की गरिमा और साख लगातार और बार-बार गिरती जा रही है. 45,500 जातिवादी राजनेताओं और लोकसेवकों के दवाब में आकर संसद, राज्य विधानसभाएं और जन-प्रतिनिधिगण बार-बार लज्जित हो रहे हैं.

निम्नलिखित तथ्यों पर गौर फरमाएं-

1. इस एक ही मामले में चार बार असंवैधानिक संशोधन करके संविधान को विरूपित किया गया. न्यायपालिका की गरिमा गिराई गई. मूल संविधान में पदोन्नति में आरक्षण की अन्यायपूर्ण, अविधिक, विभेदकारी और असंवैधानिक व्यवस्था कहीं नहीं थी. जातिवादियों के दवाब में आकर संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की संविधान सम्मत व्याख्या को उलटने के लिए 77वां, 81वां, 82वां एवं 85वां संविधान संशोधन किया गया. इन चारों संविधान संशोधनों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन अनिवार्य शर्तों के तहत सशर्त सही ठहराकर अप्रत्यक्ष रूप से पुनः निरस्त कर दिया गया. सभी जानते है कि उक्त तीनों कारणों में से कोई भी कारण संख्यात्मक आंकड़ों के आधार पर या प्रमाणिक तौर पर पूरी करना असंभव है. इस प्रकार संविधान की रक्षा की शपथ लेने वाले सांसदों द्वारा संसद को लज्जित करते हुए संविधान में चार बार असंवैधानिक संशोधन करके इसे विरूपित किया गया. न्यायपालिका की गरिमा जातिगत दवाब में गिराई गई.

2. जातिगत दबाव में भारतीय संसद को पांचवीं बार शर्मसार करने की कोशिश की गई. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एम. नागराज प्रकरण में उपरोक्त चारों संशोधनों को अप्रत्यक्ष रूप से असंवैधानिक घोषित करने के निणर्य को पुनः पलटने और न्यायपालिका का पुनः अपमान करने तथा भारतीय संसद को पुनः लज्जित करने के लिए 117वां संविधान संशोधन बिल लाया गया. यह संशोधन बिल राष्ट्रवादी नागरिकों और राष्ट्रवादी सांसदों के विरोध के कारण संसद द्वारा पिछले पांच वर्षों में भी पारित नहीं किया जा सका है और अंततः निरसित (लेप्स) हो गया.

3. जातिगत दवाब में संसद को पुनः लज्जित करने की तैयारी की जा रही है. अब पुनः भाजपा की अगुआई वाली वर्तमान केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री, अन्य मंत्रियों और सांसदों द्वारा घोषणा की जा रही है कि अविधिक, अन्यायपूर्ण, विभेदकारी एवं असंवैधानिक घोषित हो चुकी पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को पुनः चालू करने के लिए संविधान संशोधन बिल लाया जाएगा. इस प्रकार देश को पुनः लज्जित और न्यायपालिका को अपमानित किया जाएगा. संविधान को पुनः विरूपित किया जाएगा. राष्ट्रवादी कर्मठ लोकसेवकों के साथ पुनः अन्याय किया जाएगा. वंचित दलितों के साथ पुनः विश्वासघात किया जाएगा.

4. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की गरिमा गिराए जाने की तैयारी हो रही है. पदोन्नति में आरक्षण के लिए लाए जा रहे 117वें संविधान संशोधन बिल की भाषा पढ़ने से स्पष्ट होता है कि यह संशोधन अनुसूचित जाति/जनजाति (अजा/अजजा) के अगड़े और संपन्न लोकसेवकों को काल्पनिक पिछड़ा (डीम्ड बैकवर्ड) मानने की व्यवस्था करता है. इस प्रावधान से राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संसद की गरिमा गिरने वाली है कि भारतीय सांसद और संसद किस प्रकार मुठ्ठीभर जातिवादी लोकसेवकों एवं राजनेताओं के आगे लाचार तथा असहाय हैं, जो राष्ट्रहित में सच को सच कहने की भी हिम्मत नहीं रखते. केवल 45,500 जातिवादी लोकसेवकों एवं राजनेताओं के बंधक बनकर संसद में राष्ट्रविरोधी निर्णय करने को लाचार हैं.

5. अविधिक और असंवैधानिक पार्टी व्हिप के आगे राष्ट्रवादी सांसदों की बोलती बंद है. सांसदों से जब पदोन्नति में आरक्षण के अन्यायपूर्ण प्रावधान का समर्थन नहीं करने की गुहार लगाई जाती है, तो सभी राष्ट्रवादी सांसद व्यक्तिगत रूप से इसका विरोध करते हैं. वह इसे देश के लिए बेहद घातक बताते हैं, लेकिन संसद में पार्टी व्हिप के सामने लाचार होकर राष्ट्रहित के विरोध में खड़े होकर संविधान संशोधन बिल का समर्थन कर देते हैं. पूरा विश्व भारतीय संसद और सांसदों की लाचारी देखकर, जातिवादी लोकसेवकों और राजनेताओं की गिरफ्त में संसद और सांसदों को देखकर करोड़ों राष्ट्रवादी नागरिकों द्वारा चुने गए सांसदों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अविधिक पाबंदी को देखकर हतप्रभ रह जाता है. इससे भारतीय संसद और सांसदों की गरिमा और गिरती है.

6. राष्ट्रवादी सांसद भी वंचितों एवं दलितों से अन्याय करने पर मजबूर हैं. सभी राष्ट्रवादी सांसद जानते हैं कि पदोन्नति में आरक्षण की अन्यायपूर्ण व्यवस्था अजा/अजजा की 95% जनसंख्या को लंबे समय तक पिछड़ा, दलित और वंचित वर्ग बनाए रखने की साजिश है. फिर भी वे अगड़े एवं संपन्न अजा/अजजा अर्थात ‘नव-शोषक वर्ग’ के दबाव में आकर बार-बार संविधान संशोधन समर्थन देने करने को लाचार हैं. इस साजिश का हिस्सा बनकर करोड़ों वंचित अजा/अजजा के साथ अन्याय कर रहे है.

7. राष्ट्रवादी सांसद पदोन्नति में आरक्षण की बुराईयों को जानते हुए भी आम नागरिक से विश्वासघात कर रहे हैं. सभी राष्ट्रवादी सांसद यह भी जानते हैं कि पदोन्नति में आरक्षण की अन्यायपूर्ण व्यवस्था से लोकसेवकों में जातिगत वैमनस्यता और गुटबाजी बढ़ रही है. राष्ट्रवादी, कर्मठ लोकसेवकों में हताशा, निराशा और काम के प्रति उदासीनता में वृद्धि हो रही है. केंद्र एवं राज्यों का लोक-प्रशासन अपनी क्षमता खोता जा रहा है. अजा/अजजा के लोकसेवक प्रतिशोधात्मक रूप अपना रहे हैं. देश जातिगत गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है. फिर भी सांसदगण, संसद और राष्ट्र को नुकसान पहुंचाने वाले संविधान संशोधनों को सहमति देकर आम जनता से विश्वासघात कर रहे हैं.

8. जातिवादी सांसद साजिशन संसद को गुमराह करते हैं. संसद में ‘पदोन्नति में आरक्षण’ पर बहस के दौरान जातिवादी सांसदों द्वारा जानबूझकर ‘नौकरी में आरक्षण’ के मुद्दे पर बहस करके संसद को गुमराह किया जाता है. जबकि दोनों मामले बिल्कुल अलग हैं. उनके द्वारा संसद में झूठे आंकड़े और तथ्य प्रस्तुत किए जाते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि उनके खिलाफ सच बोलने की हिम्मत किसी भी राजनीतिक दल या नेता में नहीं है. बेशर्मी के साथ पूरे देश को एक साजिश के तहत गुमराह किया जाता है. इस तरह संसद को भी शर्मसार किया जाता है.

9. राज्यों के विधायकगण भी बार-बार संविधान विरोधी कानून बनाने को लाचार हैं. सांसदों की तरह ही जातिवादी लोकसेवकों और राजनेताओं के दवाब में आकर राज्यों के विधायकगण भी लगातार संविधान विरोधी कानून बनाकर पदोन्नति में आरक्षण देते जा रहे हैं, जिन्हें बार-बार उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित किया जा रहा है. क्रमशः