आर्थिक मंदी से नहीं, कर्मचारियों की मंदी से जूझ रही भारतीय रेल
नवनियुक्त रेलमंत्री और सीआरबी से कुछ बेहतर करने की है उम्मीद!
रेलमंत्री और सीआरबी दोनों के सामने है रेलवे को पटरी पर लाने की गंभीर चुनौती
सुरेश त्रिपाठी
तीन साल पहले केंद्र की सत्ता में आने पर जहां एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय रेल को राष्ट्र की जीवन रेखा कहा था, वहीं दूसरी तरफ राष्ट्र की यह जीवन रेखा जनता के जीवन को लील रही थी, क्योंकि सुरेश प्रभु की रेल में खेल ही खेल हो रहा था. उस खेल को खत्म करने के लिए नए रेलमंत्री पीयूष गोयल और नए चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) अश्वनी लोहानी के सामने कई गंभीर चुनौतियां हैं, क्योंकि भारतीय रेल इस समय आर्थिक मंदी से नहीं, बल्कि कर्मचारियों की मंदी और सोच की विपन्नता से जूझ रही है. राष्ट्र की इस जीवन रेखा को ‘अधिकारी’ नामक ‘कीटाणुओं’ ने संक्रमित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी है. ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नए रेलमंत्री पीयूष गोयल कोयला मंत्रालय की तरह रेल मंत्रालय को भी साफ-सुथरे ढ़ंग से संभाल पाएंगे या फिर इस राष्ट्र की इस जीवन रेखा रेल में इसी तरह खेल होता रहेगा?
रेलमंत्री पीयूष गोयल के रेल मंत्रालय का पदभार संभालते ही राष्ट्र की जीवन रेखा ने सूक्ष्म स्वागत किया है, क्योंकि उसी दिन उड़ीसा के कटक में एक मालगाड़ी रेलवे फाटक (लेवल क्रासिंग) पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई. तथापि, भारतीय रेल के रोजाना करीब तीन करोड़ यात्री भी उनसे यही उम्मीद करते हैं कि श्री गोयल जिस प्रकार कोयला मंत्रालय का पदभार ग्रहण करने के तत्काल बाद अधिकारियों के साथ हुई अपनी पहली बैठक में स्पष्ट वक्तव्य करते हुए अपना मंतव्य व्यक्त किया था, उसी प्रकार वह रेल मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों को भी वैसा ही एक स्पष्ट संदेश देंगे. कोयला मंत्रालय की बैठक में दिए गए उनके वक्तव्य का उक्त वीडियो का उनके रेल मंत्रालय का पदभार संभालते ही सोशल मीडिया में वायरल होना भी ऐसा ही संदेश दे रहा है.
कोयला मंत्रालय में अधिकारियों के साथ पहली बैठक में श्री गोयल ने अपना मंतव्य प्रकट करते हुए कहा था कि हमें वास्तव में बिजनेस की जरुरत है, और हम एकजुट होकर इस काम को एक मिशन के रूप में कर रहे हैं. यह पूरी संवेदना के साथ करने वाला काम है, क्योंकि प्रत्येक उस गरीब आदमी को, जिसके घर में आजतक बिजली नहीं पहुंची है, आप कल्पना करें कि अगर आपके बच्चों की क्या दशा होगी, जहां कोई आदमी 40-42 डिग्री तापमान में शत-प्रतिशत हाउस होल्ड में 24 घंटा रह रहा है, तो आपकी क्या दशा होगी. हम लोग इस मिशन को पूरा करने का संकल्प लें. इसे किसी भी स्थिति में नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, यह ध्यान रखा जाना चाहिए. यह संदेश नीचे से ऊपर तक सब जगह पूरे विद्युत् विभाग में पहुंच जाना चाहिए कि अगर एक भी व्यक्ति ने एक भी रुपये की रिश्वत ली, किसी की चाय भी पी, तो उसको कानून के अनुसार कड़ी से कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.
उन्होंने यह भी कहा था कि यदि कोई अधिकारी कांट्रेक्टर के साथ किसी भी प्रकार की मिलीभगत करता है, अपने रिश्तेदारों को कांट्रेक्ट दिलवाता है, या दिलवाया है, अथवा कोई ऐसा पुराना हिसाब-किताब चल रहा है, इस सबको मेहरबानी करके तुरंत खत्म करो. उन्होंने कहा कि अगर कोई इस नई व्यवस्था में काम नहीं कर सकता है, या करना नहीं चाहता है, तो वह अपना इस्तीफा देकर घर चला जाए. उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी. यह संदेश सब जगह दे दो, कि अगले एक हप्ते के अंदर जितने लोगों को इस नई व्यवस्था में काम करने में किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई हो, फिर वह चाहे कोई भी हो, बड़े से बड़ा व्यक्ति भी, यह संदेश उस तक पहुंच जाना चाहिए कि उसके पास एक हप्ते का समय है, इस दरम्यान वह अपना त्याग पत्र देकर सम्मानपूर्वक चला जाए. उसका पूरा हिसाब-किताब हो जाएगा, उसकी पूरी पेंशन मिल जाएगी, जो भी सरकारी-कानूनी व्यवस्था है उसके हिसाब से.
उन्होंने यह भी कहा था कि सभी लोग अपनी-अपनी आदतें बदल लें, अपने खर्चों को नियंत्रित कर लें, यह मैं सभी लाइनमैनों के लिए कह रहा हूं, इंस्पेक्टरों के लिए कह रहा हूं, गुणवत्ता की जांच करने वालों के लिए कह रहा हूं और कॉन्ट्रैक्टर्स के लिए भी कह रहा हूं, जिस किसी को भी नई व्यवस्था में काम करने में कोई तकलीफ या परेशानी है, उन सभी के लिए कह रहा हूं, वह त्याग पत्र देने और बाहर जाने के लिए मुक्त है. यदि किसी कांट्रेक्टर को लगता है कि वह इस नई व्यवस्था से नहीं जुड़ सकता है, वह बात कर ले, उसे टर्मिनेशन ऑर्डर देकर बाहर कर दिया जाए. हम काम की गुणवत्ता, ईमानदारी, विश्वसनीयता और समय पर काम को पूरा करने के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेंगे, वह समझते हैं कि उनका यह मंतव्य सबको अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा.
उन्होंने कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि अधिकारियों को उनका यह संदेश बहुत अच्छी तरह से आत्मसात हो गया होगा. कनिष्ठ-वरिष्ठ सभी अधिकारियों को यह संदेश पता चला जाना चाहिए. इसे आप सभी लोग सुनिश्चित करें. यदि जरुरत हो तो उनके साथ एक वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग करके बात की जाए. उन्होंने कहा कि अगर जाति-धर्म को लेकर ऐसे किसी प्रकार के भेदभाव का एक भी प्रकरण उनके सामने आया तो उसे किसी भी स्थिति में बर्दास्त नहीं किया जाएगा. पॉवर फॉर डाक्यूमेंट्स में इस बात का जमीनी स्तर पर ध्यान रखा जाना चाहिए. देश में एक लाख गांव हैं, कोई यह नहीं कह सकता कि सामानांतर काम नहीं होगा. इस नई व्यवस्था में नए तरीके से काम होगा. जहां-जहां भी बिडिंग हो रही है, वहां-वहां उन सबको भरोसा दिलाओ कि एक रुपये का भी भ्रष्टाचार नहीं होना चाहिए. जहां-जहां भी बिडिंग प्रोसेस सुधर सकता है, उसे अविलंब सुधारा जाना चाहिए.
‘रेलवे समाचार’ को सोशल मीडिया से मिले श्री गोयल के उक्त वीडियो संदेश से पूरी उम्मीद पैदा हुई है कि यदि उन्होंने रेल मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच भी ऐसा ही कोई संदेश प्रसारित किया तो न सिर्फ उनके अंदर भरपूर आत्म-विश्वास पैदा होगा, बल्कि वह नई स्फूर्ति और ऊर्जा के साथ भारतीय रेल को पटरी पर वापस लाने के उनके मिशन को कामयाब बनाने में उनका भरपूर साथ भी देंगे. इसके लिए उन्हें तुरंत कुछ आवश्यक कदम उठाने की भी जरुरत है. नए सीआरबी अश्वनी लोहानी ने इस तरफ कुछ आवश्यक कदम उठाए हैं, जिससे कर्मचारियों और अधिकारियों में पर्याप्त उत्साह पैदा हुआ है. परंतु जरुरत इस बात की भी है कि जो भी आदेश-निर्देश दिए जाएं, उन पर अमल भी लगे हाथ सुनिश्चित करवाया जाए. तभी उनका समुचित उपयोग और औचित्य साबित होगा.
सर्वप्रथम उन्हें 10 साल से एक ही शहर, एक ही रेलवे, एक ही जोन, एक ही मंडल, एक ही स्टेशन पर जमे हुए अधिकारियों और कर्मचारियों को तत्काल दरबदर करने की प्रक्रिया सुनिश्चित करनी होगी. ट्रांसफर/पोस्टिंग में श्रमिक यूनियनों अथवा अधिकारी संगठनों का कोई दखल नहीं होना चाहिए. चपरासी तक की पदोन्नति उसके पूर्व कार्य-स्थल पर नहीं की जानी चाहिए, ऐसी जो पदोन्नतियां अब तक हुई हैं, उन्हें संशोधित किया जाना चाहिए. इसके लिए बिना किसी भेदभाव के सीवीसी के दिशा-निर्देशों पर तत्काल अमल करना होगा. सीवीसी के यह दिशा-निर्देश किसी भी श्रमिक या अधिकारी संगठन से ऊपर और वैधानिक हैं.
इसके साथ ही उन्हें कर्मचारी कल्याण की योजनाओं को भी प्रभावी ढ़ंग से लागू करना होगा, उन्हें अधिकारियों के रहमोकरम पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए. पूर्व निजाम में कर्मचारियों की शिकायतों को हल करने के लिए जो ‘निवारण’ नामक पोर्टल बनाया गया था, उसे अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही ‘निपटा’ दिया, नतीजा शून्य है. इससे कर्मचारियों में व्यवस्था के प्रति भारी असंतोष व्याप्त है. यदि मानव संसाधन असंतुष्ट है, तो उससे अपेक्षित परिणाम की उम्मीद नहीं की जा सकती, अतः उसका संतुष्ट होना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.
भारतीय रेल में चौतरफा व्याप्त भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाया जाना आवश्यक है. प्रत्येक टेंडर डाक्यूमेंट्स की टेंडर जारी किए जाने से पहले विजिलेंस वेटिंग होनी चाहिए. इससे न सिर्फ बाद की परेशानियों से संबंधित अधिकारियों को बचाया जा सकेगा, बल्कि ओवर-बजटिंग से भी छुटकारा मिलेगा. इसके साथ ही कॉन्ट्रैक्टर्स का समय पर भुगतान सुनिश्चित कराया जाना चाहिए. इससे वह नए टेंडर्स में भाग ले सकेंगे, जिससे रेलवे को ज्यादा प्रतिस्पर्धी दरें प्राप्त होंगी और स्वस्थ प्रतियोगिता को बढ़ावा मिलेगा. इसके अलावा उन सभी संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध अविलंब कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए, जो वर्षों से कॉन्ट्रैक्टर्स के फाइनल बिलों का भुगतान रोक कर बैठे हैं. इस प्रकार वह न सिर्फ नए निर्माणों की प्रगति में बाधक हैं, बल्कि अपनी इस तानाशाही प्रवृत्ति के चलते वह भ्रष्टाचार को बढ़ाने में सहायक भी हैं. इसकी तुरंत पहचान की जानी चाहिए.
30 जून से पहले के टेंडर्स के फाइनल बिलों के भुगतान हेतु सीआरबी ने हाल ही में जो निर्देश जारी किए हैं, जोनल रेलों के ‘मुनीम’ यानि एकाउंट्स विभाग उसे नहीं मान रहे हैं. उन्होंने कॉन्ट्रैक्टर्स को जीएसटी के फॉर्मेट में ही बिल सब्मिट करने को कहा है. परिणामस्वरूप सभी जोनल रेलों में चौतरफा निर्माण कार्य ठप पड़ गए हैं. इसके लिए तुरंत कोई उचित हल निकाला जाना आवश्यक है. नए रेलमंत्री सुनिश्चित परिणाम चाहते हैं, तो उपरोक्त व्यवस्थाएं उन्हें तुरंत करवानी होंगी, क्योंकि मुनीम से मालिक बन बैठे लोगों ने प्रत्येक सरकारी विभाग का बंटाधार कर दिया है, जबकि उनकी जिम्मेदारी कहीं भी सुनिश्चित नहीं है. गर्दन उनकी पकड़ी जाती है, जो निर्माण कार्यों की प्रगति और अमल के प्रति जिम्मेदार होते हैं.
वैसे श्री गोयल का अपने काम को लेकर ‘कंसेप्ट’ बहुत स्पष्ट है. तथापि, उन्हें इस बात का भी अनुमान होना चाहिए कि यह कोयला मंत्रालय नहीं, रेल मंत्रालय है. यहां के अधिकारी बहुत काईयां हैं, जिन्हें मंत्री को गुमराह करने में महारत हासिल है. उन्हें अपने सलाहकार बहुत सोच-समझकर और पूरी सावधानी से रखने होंगे, क्योंकि अनंत स्वरूप और हनीश यादव जैसे कुटिल और अक्षम सलाहकारों के कारण ही सुरेश प्रभु बतौर रेलमंत्री असफल साबित हुए हैं. रेलवे बोर्ड के मेंबर भी रेलमंत्री के वास्तविक सलाहकार होते हैं. परंतु वर्तमान कदाचारी मेंबर ट्रैक्शन, कभी किसी कागज पर हस्ताक्षर न करने वाले छुपे रुस्तम मेंबर रोलिंग स्टॉक, सर्वथा असंतुष्ट और आलसी मेंबर ट्रैफिक जैसे मेंबर्स और कई अक्षम एवं अयोग्य महाप्रबंधकों से अपेक्षित आउटपुट की उम्मीद नहीं की जा सकती है. सुरेश प्रभु इसलिए भी असफल साबित हुए, क्योंकि उन्होंने अधिकारियों की ट्रांसफर/पोस्टिंग पर कभी ध्यान ही नहीं दिया. और जब कभी ध्यान दिया, तो संबंधित मेंबर्स ने उनकी बात को कोई तवज्जो नहीं दी, और यदि दी भी तो भ्रष्टों की सिफारिश पर भ्रष्टों को सीसीएम/उ.रे. जैसे कमाऊ पदों पर बैठाया गया. जिन्होंने सरकार की और प्रधानमंत्री तक की योजनाओं पर पानी फेर दिया. यानि सही जगह पर गलत अधिकारी बैठाए गए, जिसका नतीजा सबके सामने है.
क्रमशः