घनश्याम सिंह को फेवर करने के लिए रे.बो.विजिलेंस ने सीवीसी को दिग्भ्रमित किया

वर्ष 2014-15, 2015-16 का 26 एएस जानबूझकर टेंडर फाइल से गायब किया गया

रिपोर्ट न सिर्फ दिग्भ्रमित करती है, बल्कि गलत तरीके से सभी नियमों को बाईपास करती है

प्राइवेट वकील द्वारा दिया गया ऑब्जरवेशन न सिर्फ गलत था, बाकी कानून के विरुद्ध भी था

विजिलेंस रिपोर्ट टीसी मेंबर्स की प्रोसीडिंग्स ज्यादा विजिलेंस अथॉरिटी की रिपोर्ट कम लगती है

रेलवे समाचार ब्यूरो

रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने सितंबर 2016 में घनश्याम सिंह के मामले में जो 80 पेज की विजिलेंस रिपोर्ट बनाकर क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स के सभी मामलों को गड्ड-मड्ड करते हुए घालमेल किया था, यह सब उसने वास्तव में सीवीसी को दिग्भ्रमित करने और घनश्याम सिंह को फेवर करने के लिए किया था. पूरी रिपोर्ट में चार मामलों को कुछ इस तरह से गड्ड-मड्ड किया गया है, जिससे कि कोई जानकार व्यक्ति भी तमाम माथापच्ची के बावजूद किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सके. यही सीवीसी के साथ भी हुआ है, जहां टेंडर्स की तमाम तकनीकी बारीकियों के जानकार उपलब्ध नहीं हैं, और उसे संबंधित विभाग की मेहरबानी पर निर्भर रहना पड़ता है. सीवीसी ने उक्त रिपोर्ट पर अब खुद रेलवे बोर्ड (अनुशासनिक अधिकारी – डिसिप्लिनरी अथॉरिटी) को ही उचित निर्णय लेने को कहा है.

उल्लेखनीय है कि यह 80 पेज की विजिलेंस रिपोर्ट रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने सीवीसी के लिए बनाई थी, जिसमें टेंडर नं. 64-डिप्टी सीईई/सी/एमबी/14-15, दि. 22.05.2015 में एल-1 रहे क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स को सभी टर्म्स एंड कंडीशंस को पूरा करने के बावजूद बायपास किया गया था. ‘रेलवे समाचार’ का मानना है कि इस विजिलेंस रिपोर्ट में घनश्याम सिंह को फेवर किया गया है. चूंकि घनश्याम सिंह उक्त टेंडर में ‘एक्सेप्टिंग अथॉरिटी’ थे, इसलिए स्वाभाविक रूप से यह माना जा सकता है कि उनके आदेश पर ही वास्तव में क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स को उपरोक्त टेंडर में बाईपास किया गया. इस रिपोर्ट में क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स को बाईपास किए जाने के जो कारण बताए गए हैं, वह न सिर्फ तर्कसंगत नहीं हैं, बल्कि इसके जरिए पूरी व्यवस्था सहित सीवीसी को भी गुमराह किया गया है.

रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा बनाई गई यह 80 पेज की रिपोर्ट ‘रेलवे समाचार’ के पास सुरक्षित है. रेलवे बोर्ड विजिलेंस की यह रिपोर्ट क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स के उपरोक्त टेंडर से ही प्रमुख रूप से संबंधित है. इस रिपोर्ट को रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने बहुत बुरी तरह से उलझाया है. इस रिपोर्ट के जरिए रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने वास्तव में सीवीसी और पूरी व्यवस्था की आंखों में धूल झोंकी है.

उपरोक्त मामले की पूरी पृष्ठभूमि देखने के बाद ‘रेलवे समाचार’ द्वारा यहां बिंदुवार विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है.

1. यह रिपोर्ट ईडी/विजिलेंस/इलेक्टिकल, रेलवे बोर्ड आर. के. राय ने बनाई है. श्री राय की घनश्याम सिंह के साथ बहुत पुरानी नजदीकी है, यह भारतीय रेल में सर्वविदित है.

2. ईडी/विजिलेंस/इलेक्ट्रिकल, रेलवे बोर्ड आर. के. राय ने पूरा जोर लगाते हुए विजिलेंस इंवेस्टिगेशन एजेंसी का नहीं, बल्कि इस मामले में बतौर एक टेंडर कमेटी (टीसी) मेंबर काम किया है.

3. पूरी रिपोर्ट देखने से जाहिर है कि आर. के. राय ने टेंडर कमेटी मेंबर्स के निष्कर्ष को ही सही ठहराने में अपनी पूरी विद्वता लगा दी, जिससे यह साबित किया जा सके कि क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स को बाईपास किए जाने का टेंडर कमेटी का निर्णय सही था. यह काम आर. के. राय ने पूरी शिद्दत के साथ किया, ताकि वह एक्सेप्टिंग अथॉरिटी घनश्याम सिंह सहित टेंडर कमेटी के सभी मेंबर्स को इस विजिलेंस इंवेस्टिगेशन से बचा सकें.

4. ईडी/विजिलेंस/इलेक्ट्रिकल, रेलवे बोर्ड आर. के. राय विजिलेंस में रहते हुए भी वास्तव में घनश्याम सिंह के हाथ की कठपुतली हैं. घनश्याम सिंह द्वारा आर. के. राय का इस्तेमाल अपने मन-मुताबिक किया जा जाता रहा है. यह सच्चाई एडवाइजर विजिलेंस, रेलवे बोर्ड की जानकारी में होने के बाद भी वह इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं कर पाए. घनश्याम सिंह ने अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को साइड लाइन करने के लिए ईडी/विजिलेंस आर. के. राय का पूरा उपयोग किया है.

5. क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स ने घनश्याम सिंह के खिलाफ अपनी पहली शिकायत उनके जीएम बनने से एक साल पहले दि. 08.08.2015 को सीवीसी में की थी. सीवीसी ने यह शिकायत रेलवे बोर्ड विजिलेंस को दि. 25.08.2015 को फॉरवर्ड की थी. फिर भी एक साल बाद घनश्याम सिंह को 25 अगस्त 2016 को पूर्व रेलवे का महाप्रबंधक बनने के लिए सीवीसी की क्लीयरेंस मिली, तो इसके सारा श्रेय आर. के. राय को ही जाता है.

6. ‘रेलवे समाचार’ को अपनी छानबीन के बाद यह पता चला है कि ईडी/विजिलेंस आर. के. राय ने क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स का केस, जो सीवीसी ने दि. 25.08.2015 को रेलवे बोर्ड विजिलेंस को भेजा था, की फाइल ही बनने नहीं दी और सीवीसी तथा पूरी व्यवस्था के आंखों में धूल झोंकते हुए घनश्याम सिंह को न सिर्फ क्लीनचिट दी, बल्कि सीवीसी क्लीयरेंस देते हुए पूर्व रेलवे का महाप्रबंधक बनवाने में भी पूरा सहयोग किया.

7. अब इसी आधार पर उक्त 80 पेज की विजिलेंस रिपोर्ट में इस मामले को पूरी तरह से उलझाकर सीवीसी और पूरी व्यवस्था को दिग्भ्रमित करते हुए घनश्याम सिंह को मेंबर ट्रैक्शन, रेलवे बोर्ड (एमटीआर) बनाने के लिए सीवीसी क्लीयरेंस प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि एमटीआर बनने के बाद घनश्याम सिंह उन्हें शाबाशी देते हुए प्रमोशन और बढ़िया पोस्टिंग दें. इसके लिए आर. के. राय पूरी शिद्दत के साथ कोशिश में लगे हुए हैं.

8. इस मामले की पूरी प्रष्ठभूमि जानने के बाद ‘रेलवे समाचार’ ने पूरे मामले का बिंदुवार विश्लेषण किया है. इससे यह भी जाहिर होता है कि किस तरह उत्तर रेलवे, कश्मीरी गेट, दिल्ली के निर्माण संगठन कार्यालय में बैठे सीएलए के. के. गर्ग के खिलाफ विजिलेंस इंवेस्टिगेशन करने का नाटक किया गया और उसे क्लीनचिट देते हुए बरी कर दिया गया.

‘रेलवे समाचार’ का बिंदुवार विश्लेषण इस प्रकार है..

सीएलए के. के. गर्ग ने टेंडर क्लॉज़ 1.1.4.1, 1.1.4.2, 1.1.4.4 (बी) एवं 1.1.4.5 के कानूनी पॉइंट्स को बुरी तरह से उलझाया और पूरी व्यवस्था की आंखों में धूल झोंकी तथा क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स की पार्टनरशिप डीड को कानूनी तौर पर अमान्य बताते हुए झूठा अनुमान और मत घोषित किया, जिसकी उन्हें कठोर से कठोर सजा होनी चाहिए थी, जो कि ईडी/विजिलेंस, रेलवे बोर्ड आर. के. राय ने नहीं दी और उसे क्लीनचिट देकर बरी कर दिया.

क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स के रजिस्ट्रार ऑफ फर्म्स की मनी रिसिप्ट नंबर 48948 दि. 15.08.2011 को सीएलए के. के. गर्ग ने जानबूझकर कानूनी ओपिनियन में नहीं लिया और पार्टनरशिप डीड को कानूनी रूप से अमान्य बताते हुए झूठी ओपिनियन दिया.

सीएलए के. के. गर्ग ने अपनी ओपिनियन में यह बताया कि पार्टनरशिप डीड की फोटोकॉपी पढ़ने योग्य नहीं है, जिसमें अगस्त 2011 दिख रहा है, पर किस दिन बनी, यह नहीं दिख रहा है. सवाल यह उठता है कि सीएलए के. के. गर्ग ने क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स से उसकी ओरिजनल पार्टनरशिप डीड क्यों नहीं मांगी? बिना ओरिजनल पार्टनरशिप डीड मांगे ही क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स की पार्टनरशिप डीड को कानूनी रूप से कैसे अमान्य करार दिया गया?

विजिलेंस डिपार्टमेंट ने सीएलए के. के. गर्ग के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि विजिलेंस डिपार्टमेंट ने उसे क्लीनचिट देते हुए आगे और लूटपाट करने की अनुमति दे दी. उल्लेखनीय है कि सीएलए के. के. गर्ग प्रत्येक उस कांट्रेक्टर से 1000-1500 रुपए झटक लेता है, जिसका कोई भी डॉक्यूमेंट उसके पास कानूनी सलाह के लिए भेजा जाता है. कई मामले ऐसे भी हैं, जहां पार्टनरशिप डीड में पार्टनर कोई है, मगर उसी पार्टी या फर्म की बैलेंस शीट में पार्टनर अलग हैं, मगर सीएलए के. के. गर्ग ने उनके फेवर में अपनी कानूनी राय दी और वह पार्टियां/फर्में आज भी उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में मौज कर रही हैं.

बताते हैं कि कई कॉन्ट्रैक्टर्स ने यह भी कहा था कि पार्टनरशिप डीड के साथ संबंधित फर्म की बैलेंस शीट भी सीएलए या कथित एडवोकेट हाई कोर्ट के पास कानूनी राय के लिए भेजी जानी चाहिए, परंतु पूर्व सीएओ/सी/उ.रे. बी. डी. गर्ग ने उनकी यह कानून-सम्मत राय नहीं मानी. परिणामस्वरूप उनकी बिरादरी के ही सीएलए के. के. गर्ग जैसे कई लोग उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में आज भी भारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. इसके अलावा हाई कोर्ट की अधिवक्ता गीतांजलि मोहन भी आर. के. राय और के. के. गर्ग की ही कोटरी में हैं, वह भी श्री राय से अलग नहीं जा सकती हैं.

रेलवे बोर्ड की इस विजिलेंस रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट नहीं है कि किस शेड्यूल ऑफ पावर (एसओपी) के अंतर्गत सीएलए के. के. गर्ग ने बाहरी वकील श्रीमती गीतांजलि मोहन को विशेष कानूनी सलाह लेने के लिए नियुक्त किया? जबकि टेंडर डॉक्यूमेंट में इसका कहीं कोई प्रावधान नहीं है. किसी बाहरी वकील से कानूनी सलाह लिए जाने के लिए महाप्रबंधक, उत्तर रेलवे या किसी अन्य सक्षम अथॉरिटी का अप्रूवल/स्वीकृति भी नहीं ली गई थी. ‘रेलवे समाचार’ का यह मानना है कि उपरोक्त तमाम तिकड़म करने के बजाय रेलवे बोर्ड लीगल सेल में क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स की उक्त पार्टनरशिप डीड भेजी जानी चाहिए थी. जो कि नहीं भेजी गई. इसका मतलब स्पष्ट है कि पूरे मामले में जानबूझकर घालमेल किया गया.

क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स ने अपने एक पत्र (सं. क्यूईसी/टेंडर/2014-15, दि. 01.08.2015) के माध्यम से उसकी पाटनरशिप डीड रेलवे बोर्ड लीगल सेल में भेजे जाने के बारे में डिप्टी सीईई/सी, मुरादाबाद और तत्कालीन सीईई/सी/तिलक ब्रिज, नई दिल्ली घनश्याम सिंह को लिखा था, फिर भी इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया गया.

‘रेलवे समाचार’ की छानबीन में यह भी पता चला है कि टेंडर कमेटी मेंबर अपना उल्लू सीधा करने के लिए प्राइवेट/बहारी वकीलों से अपने हिसाब से और जैसा चाहिए वैसा कुछ भी लिखवाकर यह साबित करते हैं कि संबंधित पार्टी/फर्म या कंपनी के कागजात कानूनी तौर पर सही नहीं पाए गए, इस आधार पर उनको बाईपास किया गया है. टेंडर कमेटी मेंबर इस आधार पर अपने खास ठेकेदारों को ऊंची दरों पर टेंडर देते हैं और खूब पैसा (कमीशन) कमा रहे हैं.

उपरोक्त नजरिए से ईडी/विजिलेंस, रेलवे बोर्ड आर. के. राय ने जांच क्यों नहीं की? इसके बारे में उन्होंने कुछ भी देखा-परखा क्यों नहीं और सीएलए, टेंडर कमेटी मेंबर तथा टेंडर एक्सेप्टिंग अथॉरिटी घनश्याम सिंह को बरी करते हुए क्लीनचिट कैसे दे दी? यह पूरी तरह से कानून की अवहेलना है, जिससे ऐसा लगता है कि पूरा रेलवे बोर्ड विजिलेंस घनश्याम सिंह के हाथों बिक गया है.

टेंडर कमेटी (टीसी) प्रोसीडिंग्स :

टेंडर कमेटी मेंबर्स ने कुछ भी देखा नहीं, परखा नहीं और सिर्फ सीएलए के. के. गर्ग के कानूनी अनुमान को मद्देनजर रखते हुए तथा अपने आका घनश्याम सिंह के कहने पर सबसे अधिक प्रतिस्पर्धापूर्ण ऑफ़र देने वाले क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स (एल-1) को तमाम नियमों, उप-नियमों और दिशा-निर्देशों की अनदेखी करते हुए बाईपास करके उक्त टेंडर सिक्का इंजीनियरिंग कंपनी (एल-2) को दे दिया गया.

सिक्का इंजीनियरिंग कंपनी घनश्याम सिंह की खास ठेकेदार कंपनी बताई जाती है. आजकल इसकी गतिविधियां पूर्व रेलवे में भी देखी जा सकती हैं, जहां घनश्याम सिंह जीएम बने हुए हैं. घनश्याम सिंह के पूर्व रेलवे में जीएम बनने के बाद सिक्का इंजीनियरिंग कंपनी को बहुत सारे टेंडर और अन्य काम दिए गए हैं, जिसकी जांच होनी जरूरी है.

क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स का यह मानना था कि पार्टनरशिप डीड रजिस्टर है, क्योंकि उसने पार्टनरशिप डीड के साथ रजिस्टार ऑफ फर्म्स की 750 रुपए की मनी रिसिप्ट टेंडर डॉक्यूमेंट के साथ लगाई थी. रेल प्रशासन का भी यही मानना था कि क्वालिटी इंजीनियर्स की पार्टनरशिप डीड रजिस्टार ऑफ फर्म्स के पास रजिस्टर है. टेंडर कमेटी की प्रक्रिया के दौरान रेलवे और क्वालिटी इंजीनियर्स के बीच टेंडर क्लॉज़ 1.1.4.4 (बी) के तहत रजिस्टर/नॉटराइज पार्टनरशिप डीड का एक ही मतभेद (डिस्प्यूट) था. ऐसे में टेंडर कमेटी द्वारा कार्यवाही करते हुए क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स (एल-1) को बाईपास करना कहां तक उचित था? रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने इसके ऊपर क्या कार्रवाई की?

टेंडर के सभी क्लॉज़ परस्पर विरोधी/अंतर्विरोधी हैं, इसलिए विजिलेंस ने इसी क्लॉज़ को इस रिपोर्ट में ज्यादा घुमा-फिराकर सीवीसी और पूरी व्यवस्था को गुमराह किया है. टेंडर के क्लॉज़ परस्पर विरोधी/अंतर्विरोधी होने का पूरा फायदा टेंडर कमेटी मेंबर उठाते हैं. इसीलिए एल-1 ठेकेदार के अनुसार टेंडर क्लॉजेज की रूपरेखा तय की जाती है और अपने खास ठेकेदारों को टेंडर दिया जाता है.

यदि यह मान भी लिया जाए कि टेंडर कमेटी की प्रक्रिया के दौरान क्वालिटी इंजीनियर्स की जमा की हुई पार्टनरशिप डीड गलत/अमान्य थी, जो कि रेलवे के अनुसार नहीं थी, क्योंकि तब तक टेंडर कमेटी ने रजिस्टार ऑफ फर्म्स से क्वालिटी इंजीनियर्स की पार्टनरशिप डीड की जांच नहीं की थी. ऐसे में टेंडर क्लॉज़ संख्या 1.1.4.5 के तहत टेंडर कमेटी द्वारा क्वालिटी इंजीनियर्स (एल-1) को प्रोपराइटरशिप के आधार पर टेंडर दिया जाना चाहिए था, जो कि नहीं दिया गया.

जबकि टेंडर क्लॉज़ संख्या 1.1.4.5 में यह साफ शब्दों में लिखा है कि अगर कंपनी के पेपर अधूरे पाए गए, तो टेंडर इंडिविजुअल नाम पर आवंटित किया जाएगा. तथापि, टेंडर कमेटी ने इस क्लॉज़ के आधार पर उक्त टेंडर क्वालिटी इंजीनियर्स को प्रोपराइटरशिप बेस पर भी नहीं दिया. टेंडर कमेटी ने टेंडर क्लॉज़ 1.1.4.5 पर विचार क्यों नहीं किया?

उपरोक्त भारी लापरवाही अथवा जानबूझकर या घनश्याम सिंह के इशारे पर की गई दुष्टतापूर्ण कोताही पर रेलवे बोर्ड विजिलेंस अथवा ईडी/विजिलेंस/इलेक्ट्रिकल, रेलवे बोर्ड आर. के. राय ने टेंडर कमेटी मेंबर्स के विरुद्ध कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? टेंडर कमेटी मेंबर्स ने क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स की प्रोपराइटरशिप के बारे में गलत अर्थ निकाला, इसकी कोई जांच क्यों नहीं की गई?

टेंडर कमेटी मेंबर्स ने टेंडर क्लॉज़ संख्या 1.1.4.5 पर न तो खुद कोई विचार किया और न ही क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स के साथ कोई विचार-विनिमय किया. इसके बजाय उन्होंने सबसे अधिक प्रतिस्पर्धापूर्ण ऑफ़र देने वाले क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स (एल-1) को सीधे बाईपास करके उक्त टेंडर सिक्का इंजीनियरिंग कंपनी (एल-2) को देने की सिफारिश की.  जबकि टेंडर एक्सेप्टिंग अथॉरिटी घनश्याम सिंह ने टेंडर क्लॉज़ संख्या 1.1.4.5 पर कोई टिप्पणी या प्रतिक्रिया न देते हुए टेंडर कमेटी की सिफारिश को स्वीकार कर लिया और अपने चहेते ठेकेदार सिक्का इंजीनियरिंग कंपनी को करोड़ों का काम दे दिया.

As Per Clause no. 1.1.12 Credential of Tender

1.1.12 (i) क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स ने अपने टेंडर डाक्यूमेंट्स के साथ इस क्लॉज़ के तहत डिप्टी सीईई/सी/चर्चगेट, पश्चिम रेलवे, मुंबई का अमलनेर-धरणगांव सेक्शन के बीच 25केवी सिंगल फेज ओएचई ओपन रूट का काम पूर्ण किया हुआ सर्टिफिकेट लगाया था, जिसकी टेंडर कॉस्ट 5.54 करोड़ है. जबकि प्रस्तुत इस टेंडर में मात्र 3.07 करोड़ का काम पूर्ण किया हुआ सर्टिफिकेट चाहिए था, जो कि उससे ज्यादा है. इसलिए क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स टेक्निकल एलिजिबिलिटी क्राईटेरिया में भी पार्टनरशिप फर्म/प्रोपराइटरशिप फर्म के तौर पर सभी टर्म्स एंड कंडीशन को पूरा कर रहा है.

Financial Eligibility Creteria 1.1.12 (j)&(k)

इस क्लॉज़ 1.1.12 (j)&(k) के तहत इस टेंडर में वर्ष 2012-13, 2013-14, 2014-15 और 2015-16 के दरम्यान कुल 13.18 करोड़ रुपए का टर्न-ओवर होना चाहिए था. क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स ने वर्ष 2012-13, 2013-14, 2014-15 और 2015-16 का फॉर्म 26 एएस जमा करवाया था. यह ऑनलाइन फॉर्म इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. इस 26 एएस फॉर्म के अनुसार क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स की पार्टनरशिप फर्म के रूप में 19.19 करोड़ रुपए का टर्न-ओवर परिलक्षित है- (टेबल ‘ए’). जबकि प्रोपराइटरशिप फर्म के तौर पर इसका टर्न-ओवर 17.13 करोड़ रुपए दिखाई दे रहा है- (टेबल ‘बी’). अतः यह स्पष्ट है कि क्वालिटी इंजीनियर्स कंपनी पार्टनरशिप और प्रोपराइटरशिप फर्म दोनों आधार पर फाइनेंसियली एवं टेक्निकली पूरी तरह से एलिजिबल है.

‘रेलवे समाचार’ की छानबीन में यह भी सामने आया है कि वर्ष 2014-15 और 2015-16 का फॉर्म 26 एएस, जो कि क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स ने टेंडर डाक्यूमेंट्स के साथ सब्मिट किया था, को घनश्याम सिंह के आदेशानुसार टेंडर फाइल से गायब किया गया, ताकि क्वालिटी इंजीनियर्स फाइनेंसियल क्राईटेरिया पूरा न कर पाए. रेलवे बोर्ड की 80 पेज की उक्त विजिलेंस रिपोर्ट में कहा गया है कि क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स ने चार्टर्ड अकाउंटेंट का सर्टिफिकेट ऑफ फाइनेंस, टर्नओवर सब्मिट किया है और उसको (एसएन-38) में रखा गया है. क्वालिटी इंजीनियर्स के (टेबल ‘ए’ =19.19 करोड़) और (टेबल ‘बी’ 17.13 करोड़) को 26 एएस के साथ वेरीफाई/जांच पड़ताल कर सकते हैं. 26 एएस यह ऑनलाइन फॉर्म इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर उपलब्ध है.

निष्कर्ष :

1. रेलवे बोर्ड की यह विजिलेंस रिपोर्ट पूरी तरह से एकतरफा है, जिसमें घनश्याम सिंह को बचाने के लिए जलेबीनुमा अंग्रेजी लिखकर पूरा घालमेल किया गया है, जबकि क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स को हर तरह से एलिजिबल होते हुए भी दरकिनार किया गया है.

2. घनश्याम सिंह के हाथों का खिलौना बनकर ईडी/विजिलेंस/इलेक्ट्रिकल, रे.बो. आर. के. राय ने सीवीसी को भेजने से पहले विजिलेंस की समस्त प्रोसीडिंग्स को मैनेज किया, जबकि उन्होंने क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स की आपत्तियों को पूरी तरह से दरकिनार किया है.

3. पूरी विजिलेंस रिपोर्ट देखने से जाहिर होता है कि ईडी/विजिलेंस/इलेक्ट्रिकल, रेलवे बोर्ड आर. के. राय ने इसमें विजिलेंस अधिकारी के बजाय टेंडर कमेटी मेंबर की भूमिका ज्यादा निभाई है और टेंडर कमेटी मेंबर्स एवं टेंडर एक्सेप्टिंग अथॉरिटी घनश्याम सिंह द्वारा की गई गलतियों को छिपाने की पूरी कोशिश की है.

4. ईडी/विजिलेंस/इलेक्ट्रिकल, रेलवे बोर्ड आर. के. राय ने उपरोक्त भूमिका इसलिए निभाई, क्योंकि यह सभी जानते हैं कि वह घनश्याम सिंह के हस्तक हैं और घनश्याम सिंह के मेंबर ट्रैक्शन, रेलवे बोर्ड बनने पर उन्हें न सिर्फ प्रमोशन, बल्कि बेहतर और कमाऊ पोस्टिंग मिलने के पूरे आसार हैं.

5. इसलिए टेंडर क्लॉज़ 1.1.15 के अनुसार क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स का बिजनेस एक साल के लिए सस्पेंड किया जाना न सिर्फ अवैध है और इस मामले में लागू नहीं होता है, बल्कि यह कानूनी रूप से भी गलत है.