आरपीएफ के केंद्रीय गृह-मंत्रालय के अधीन जाने की चर्चा आधारहीन

आधारहीन चर्चा की पृष्ठभूमि में आईपीएस अधिकारियों का हाथ होने की आशंका

नई दिल्ली : कुछ दिनों पहले आरपीएफ के एक धुर-विरोधी अंग्रेजी पत्रकार और रेलवे पर एक मूढ़ हिंदी अखबार द्वारा आरपीएफ को रेल मंत्रालय से केंद्रीय गृह-मंत्रालय को सौंपे जाने संबंधी मनगढ़ंत खबर प्रकाशित किए जाने और सोशल मीडिया में उसको कुछ व्हाट्सऐप समूहों में शेयर किए जाने से जानबूझकर भ्रम की स्थिति पैदा की गई कि आरपीएफ को रेलवे से अलग किया जा रहा है. इसके लिए बिबेक देबरॉय कमेटी की सिफारिश को आधार बनाया गया. परंतु रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों ने ‘रेलवे समाचार’ को बताया कि ऐसी कोई चर्चा रेल मंत्रालय नहीं हुई है.सूत्रों ने इस बात की अवश्य पुष्टि की है कि रेलवे स्कूलों और रेलवे के मेडिकल विभाग को रेलवे से अलग किए जाने संबंधी चर्चा हुई है तथा रेलवे बोर्ड इन दोनों को रेलवे से अलग किए जाने के संबंध में रेलवे के दोनों मान्यताप्रत फेडरेशनों के साथ एक सर्वमान्य समझौते पर भी पहुंच गया है. मगर आरपीएफ को अलग किए जाने की कोई चर्चा नहीं हुई है. यह कुछ आरपीएफ अधिकारियों की आईपीएस अधिकारियों के साथ मिलीभगत का नतीजा माना जा रहा है. सूत्रों का यह भी कहना है कि इस आधारहीन चर्चा के माध्यम से अपने अधिकारों के लिए जूझ रहे आरपीएफ कर्मियों को दिग्भ्रमित करके उनकी परेशानियों को और ज्यादा बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है.

हमारे सूत्रों का कहना है कि कुछ आरपीएफ अधिकारियों ने ही इस झूठी चर्चा को हवा दी है और आईपीएस के साथ वह भी इसके पीछे यह परखने की कोशिश कर रहे हैं कि इससे ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन कितना उद्वेलित होती है. इस बात का स्पष्ट संकेत उक्त अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित खबर से मिलता है, जिसमें एक आरपीएफ अधिकारी ने उक्त अखबार से कहा कि ‘वर्तमान में आरपीएफ अधिकारियों की वार्षिक रिपोर्ट (एसीआर) जोनल महाप्रबंधकों और मंडल रेल प्रबंधकों द्वारा लिखी जाती है, जिससे आरपीएफ उनकी ‘मर्सी’ (रहमोकरम) पर रहती है. यदि आरपीएफ केंद्रीय गृह-मंत्रालय के अधीन चली जाती है, तो इसे निर्बाध रूप से अपना काम करने का मौका मिलेगा.’ उसकी इसी बात से जाहिर है कि आरपीएफ के केंद्रीय गृह-मंत्रालय के अधीन जाने की यह अफवाह आरपीएफ के ही कुछ अधिकारियों ने फैलाई है, जो कि वर्तमान में भी निरंकुश हैं और भविष्य में भी और ज्यादा निरंकुश होकर मातहत आरपीएफ कर्मियों का और ज्यादा मनमाना उपयोग करना चाहते हैं.

इसके अलावा इस समय यह चर्चा आईपीएस द्वारा भी जानबूझकर इसलिए छेड़ी गई हो सकती है, क्योंकि ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन ने आरपीएफ में आईपीएस की गैर-कानूनी एवं असंवैधानिक नियुक्ति के विरुद्ध दिल्ली हाई कोर्ट में मुकदमा दायर कर रखा है, जिसमें भारत सरकार और रेल मंत्रालय सहित आईपीएस एसोसिएशन को भी कोर्ट के सवालों का जवाब देते नहीं बन रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार 8 फरवरी को हुई सुनवाई में भी रेल मंत्रालय कोर्ट के समक्ष न तो सीआईएसएफ से वर्तमान अनधिकारिक डीजी का पदभार मुक्ति (रिलीविंग लेटर) पत्र दाखिल कर सका, और न ही रेल मंत्रालय में उनकी जॉइनिंग का पत्र कोर्ट के सामने प्रस्तुत किया जा सका है. कोर्ट ने इन पत्रों की उपलब्धता के बिना आगे की सुनवाई से इंकार करते हुए अब 15 मार्च की अगली तारीख दी है और उक्त तारीख में उक्त पत्रों को प्रस्तुत किए जाने की सख्त हिदायत भी दी है.