सीआरबी ने त्रिची मंडल के चार टीटीई का इंटर डिवीजन ट्रांसफर रोका

यदि अकर्मण्य रेलवे बोर्ड का होता रहा ऐसा हस्तक्षेप, तो कैसे सुधरेगा रेल प्रशासन?

भ्रष्ट कर्मचारियों को सीआरबी ने दिया और अधिक उद्दंड और भ्रष्ट होने का लाइसेंस

सीआरबी के इस अवैध हस्तक्षेप से यूनियन पदाधिकारी अब और ज्यादा होंगे निर्द्वंद

सीसीएम को ट्रांसफर न करा पाने के बदले क्या यूनियन से 10 करोड़ में हुआ यह सौदा?

सीबीआई द्वारा अनुशंसित 41 टीटीई का भी इंटर डिवीजन ट्रांसफर रोक लेंगे सीआरबी?

सुरेश त्रिपाठी

कुछ समय पहले चर्चा थी कि रेलवे बोर्ड के एक मेंबर नेदक्षिण रेलवे के मुख्य वाणिज्य प्रबंधक (सीसीएम) का ट्रांसफर करने के लिए यूनियन से 10 करोड़ रुपए की सुपारी ली है. यह चर्चा इतनी ज्यादा प्रबल थी कि बताया गया कि सीसीएम को रेलवे बोर्ड में बुलाकर उक्त मेंबर ने यह तक कह दिया कि चेन्नई जाकर अन्यत्र पोस्टिंग पर जाने की तैयारी करो, पोस्टिंग/ट्रांसफर ऑर्डर आपके पहुंचने से पहले चेन्नई पहुंच जाएगा. बहरहाल, बाद में पता चला कि एक ईमानदार व्यक्ति के हस्तक्षेप और रेलमंत्री तक इस चर्चा को पहुंचा दिए जाने से तब सीसीएम का ट्रांसफर ऑर्डर तो नहीं किया जा सका, मगर अब ऐसा लगता है कि वह 10 करोड़ की सुपारी सीआरबी तक पहुंचा दी गई है? क्योंकि सीआरबी के व्यक्तिगत हस्तक्षेप के कारण महाप्रबंधक, दक्षिण रेलवे के अप्रूवल से तिरुचिरापल्ली मंडल के जिन चार महाभ्रष्ट यूनियन पदाधिकारियों का इंटर डिवीजन ट्रांसफर 11 नवंबर को किया गया था, उसे सीआरबी ने रेलवे बोर्ड से एक पत्र (सं.2016/ई(एलआर)3/आरईएफ/एआईआरएफ/5, दि. 22.11.2016) जारी करवाकर रद्द कर दिया है.

उल्लेखनीय है कि त्रिची मंडल के जिन चार कर्मचारियों या यूनियन पदाधिकारियों का इंटर डिवीजन ट्रांसफर किया गया था, उनमें सीपीसी/सीपीएसआर/ओ/त्रिची एफ. एक्स. इसाक जॉनसन, सीटीआई/स्टेशन/त्रिची एम. थमारी सेल्वन, टीटीआई/स्टेशन/मालावरम बी. जयचंद्रन और सीएंडआरएस/त्रिची एस. जेड. सैय्यद ताजुद्दीन शामिल थे. दक्षिण रेलवे मुख्यालय से यह आदेश 11 नवंबर को जारी किया गया था. इसके तत्काल बाद उसी दिन चारों का लोकल ऑर्डर भी त्रिची मंडल से निकाला गया था. परंतु उपरोक्त चारों कर्मचारियों ने ट्रांसफर ऑर्डर स्वीकार नहीं किया था और अंडरग्राउंड हो गए थे. तथापि मंडल प्रशासन की तरफ से मस्टर से उनका नाम हटा दिया गया था और उनके ट्रांसफर ऑर्डर उनके घरों में चिपका दिए गए थे. अब सीआरबी की मेहरबानी से बताते हैं कि उक्त चारों कर्मचारी सीना तानकर त्रिची में घूम रहे हैं.

कहने को तो सीआरबी ने उक्त चारों कर्मचारियों अथवा यूनियन पदाधिकारियों के इंटर डिवीजन ट्रांसफर को छह महीने के लिए ‘पेंड’ किया है, मगर इसका दक्षिण रेलवे के समस्त कर्मचारियों और अधिकारियों में बहुत खतरनाक संदेश गया है. जबकि यूनियन की बांछें खिल गई हैं. कई अधिकारियों का कहना है कि सीआरबी का यह अवैध हस्तक्षेप महाप्रबंधक, दक्षिण रेलवे का भारी अपमान है, क्योंकि उनके आदेश से ही उक्त कर्मचारियों का ट्रांसफर किया गया था. ऐसे में यदि कोई जोनल महाप्रबंधक अपने मातहत कर्मचारियों को अनुशासित करने का कोई निर्णय नहीं ले सकता है, तो उसके महाप्रबंधक होने का क्या अर्थ रह जाता है? उनका यह भी कहना है कि सीआरबी के इस तथाकथित ‘पेंड ऑर्डर’ का मतलब यह है कि तब तक सीसीएम (मार्च में) रिटायर हो जाएंगे अथवा उससे पहले उन्हें कहीं अन्यत्र नियुक्त कर दिया जाएगा. उसके बाद दक्षिण रेलवे में यूनियन का साम्राज्य पूर्ववत स्थापित हो जाएगा. यही उक्त ‘पेंड ऑर्डर’ की असली मंशा है, क्योंकि यहां एसडीजीएम, सीपीओ, सीओएम इत्यादि जैसे यूनियन के जरखरीद गुलाम पहले से ही ऐसी ही मंशा लिए बैठे हुए हैं, जिन्हें अन्य जोनल रेलों में ट्रांसफर करने की हिम्मत रेलवे बोर्ड या सीआरबी नहीं जुटा पा रहे हैं?

अब सवाल यह उठता है कि क्या सीआरबी अथवा रेलवे बोर्ड में इतना साहस है कि वह चेन्नई मंडल के उन 41 टीटीई का भी इंटर डिवीजन ट्रांसफर रोक सकते हैं, जिसकी अनुशंसा सीबीआई ने की है? विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जब सीबीआई ने यह अनुशसा दक्षिण रेलवे के एसडीजीएम के पास यह कहकर भेजी थी कि जांच के दौरान इन 41 भ्रष्ट कर्मचारियों के मंडल में रहते कई प्रकार की बाधाएं आ सकती हैं, इसलिए इन सभी का तत्काल इंटर डिवीजन ट्रांसफर किया जाना चाहिए. तब एसडीजीएम ने पहले तो उक्त अनुशंसा को अपने पास काफी दिन तक दबाए रखा और इस बीच यूनियन से महाप्रबंधक के नाम एक पत्र लिखवाया कि रेलवे की तरफ से सीबीआई को लिखा जाए कि जांच में तेजी लाए और इस प्रकार के ट्रांसफर नहीं किए जाने चाहिए.

सूत्रों का कहना है कि एसडीजीएम ने सीबीआई की उक्त अनुशंसा पर बिना कोई टिप्पणी लिखे ही फाइल को सीपीओ के पास भेज दिया. बताते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों का एक साथ इंटर डिवीजन ट्रांसफर किए जाने की इबारत देखते ही सीपीओ के हाथ-पांव फूल गए, और उन्होंने उक्त फाइल यह लिखकर महाप्रबंधक के पास भेज दी कि उस पर उनकी अनुमति/अप्रूवल आवश्यक है. पता चला है कि महाप्रबंधक उक्त फाइल देखकर ही समझ गए कि एसडीजीएम और सीपीओ दोनों यूनियन के खैरख्वाह बने रहने के लिए यह सारा खेल कर रहे हैं. उन्होंने उस फाइल पर एसडीजीएम की टिप्पणी आवश्यक लिखकर फाइल पुनः एसडीजीएम के पास वापस भेज दी.

बताते हैं कि इसके बाद चालाक एसडीजीएम ने पहले संबंधित डिप्टी सीवीओ से उक्त फाइल पर वाजिब टिप्पणी लिखवाई और फिर खुद उस पर यह लिखकर कि चूंकि मामला सीबीआई की अनुशंसा का है, इसलिए महाप्रबंधक इस पर अपनी सहमति दें, और फाइल पुनः महाप्रबंधक के पास भेज दी. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस बार महाप्रबंधक ने फाइल पर लिखा कि यदि सीसीएम चाहें तो कुछ समय तक के लिए उक्त कर्मचारियों को सीबीआई से मोहलत दिला दें और सीबीआई को अपनी जांच तेज करने के लिए भी कहें, या फिर वह अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए उक्त सभी कर्मचारियों को ट्रांसफर किए जाने की यथोचित कार्यवाही करें. यानि हर अधिकारी ने फाइल पर जलेबियां बनाने की पूरी कोशिश की और अंततः सारा दारोमदार सीसीएम के सिर मढ़ दिया गया है. तथापि सूत्रों का कहना है कि उक्त 41 कर्मचारियों का इंटर डिवीजन ट्रांसफर रोकने की किसी अधिकारी में हिम्मत नहीं है, क्योंकि कोई भी सीबीआई के विरुद्ध नहीं जाना चाहेगा और उक्त ट्रांसफर अगले कुछ दिनों में हो सकते हैं.