मेडिकल विभाग की ट्रांसफर/पोस्टिंग में जातिवाद-बिरादरीवाद का बोलबाला

रेलवे डॉक्टरों को शिफ्ट करके की जा रही है निजी-सीएमपी डॉक्टरों की नियुक्ति

रेलमंत्री के आदेश के बावजूद एक महिला डॉक्टर को फेवर करने हेतु पोस्ट ट्रांसफर की गई

उच्च मेडिकल अधिकारियों द्वारा पक्षपात और न्याय के नाम पर किया जा रहा है अन्याय

रिटायरमेंट के दिन तीन डॉक्टरों को आधे घंटे के लिए सीएमएस बनाकर रिटायर किया गया

रेलवे बोर्ड और जोनल स्तर पर जिन अधिकारियों को रेलकर्मियों एवं अधिकारियों के साथ न्याय करने के लिए ऊंचे-ऊंचे पदों पर बैठाया गया है, उनके बारे में निचले स्तर के लोगों का बहुत अफसोस के साथ कहना है कि यह लोग न्याय नहीं, बल्कि अन्याय कर रहे हैं. इसके अलावा यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी उन्हें सही वस्तुस्थिति से अवगत कराना चाहता है, तो उनकी खरी-खरी बातें उन्हें बहुत खराब लगती हैं, मगर सच तो हमेशा से कड़वा ही रहा है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार सिर्फ सीएमएस की पोस्ट से रिटायर करने के लिए शुक्रवार, 29 जनवरी की शाम 5.30 बजे रेलवे बोर्ड से ऑर्डर निकालकर तीन डॉक्टरों को आधे घंटे के लिए सीएमएस बनाकर उन्हें रिटायर किया गया, जबकि जो ऑर्डर उक्त तीनों डॉक्टरों के रिटायर होने के बाद निकाला जाना था, उससे कोई समस्या नहीं होने वाली थी. इसके लिए उक्त तीनों डॉक्टरों द्वारा कितना पैसा ऊपर तक खर्च किया गया और उनकी फाइल जोनल मुख्यालय से लेकर रेलवे बोर्ड तक किस तरह तेजी से दौड़ाई गई, यह अपने-आप में एक चमत्कार ही है, क्योंकि जहां रेलवे बोर्ड से ऐसे ऑर्डर निकलने में महीनों लग जाते हैं, वहां यह काम चंद घंटों में किया गया. बताते हैं कि इसके लिए उक्त तीनों डॉक्टरों ने जोन से लेकर रेलवे बोर्ड तक लाखों रुपए का चढ़ावा चढ़ाया था, तब उनका सीएमएस होकर रिटायर होने का सपना पूरा हो पाया था.

इसके अलावा लखनऊ में एक महिला डॉक्टर को उत्तर रेलवे के चारबाग स्थित हॉस्पिटल से पूर्वोत्तर रेलवे के बादशाह नगर रेलवे हॉस्पिटल में ट्रांसफर किया गया, जो कि अपनी नौकरी की शुरुआत से लेकर आज तक लगभग 20-25 साल से लखनऊ में ही पदस्थ है. प्राप्त जानकारी के अनुसार उक्त महिला डॉक्टर को लखनऊ में ही एडजस्ट करने के लिए गोरखपुर से उसके लिए एक पोस्ट ट्रांसफर करके बादशाह नगर रेलवे हॉस्पिटल में लाई गई है, और उस पर उक्त महिला डॉक्टर को पदस्थ किया गया है, जिसका बंगला वहीं गोमती नगर में है और वह आज तक लखनऊ से बाहर कभी नही गई है. जबकि रेलमंत्री के लिखित आदेश हैं कि कोई भी एलिमेंट किसी के लिए कहीं भी ट्रांसफर नहीं किया जाएगा.

इस परिप्रेक्ष्य में मेडिकल विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर मध्य रेलवे में जहां सीएमएस की एक पोस्ट खाली है, वहां एक डॉक्टर को एडजस्ट नहीं किया जा रहा है, बल्कि उक्त रेलवे डॉक्टर को वहां से निकालकर और अन्यत्र उसका ट्रांसफर करके वहां दो सीएमपी निजी डॉक्टर नियुक्त किए जा रहे हैं. एक मान्यताप्राप्त संगठन के पदाधिकारी का कहना है कि यह खुला भ्रष्टाचार तो है ही, इसके साथ ही यह अपनी जाति-बिरादरी के लोगों को फायदा पहुंचाने की एक गलत प्रक्रिया भी है, जिसकी जड़ें अब रेल प्रशासन में बहुत गहराई तक जा पहुंची हैं.

यह सारे गलत और नियम विरुद्ध कार्य मेडिकल विभाग के उच्च अधिकारियों की मिलीभगत से किसी न किसी अपने को भी फेवर करने के लिए किए जा रहे हैं. यही नहीं, रेलवे में डॉक्टरों की भारी कमी है, इसके बावजूद रेलवे के डॉक्टर को अन्यत्र ट्रांसफर करके उसकी जगह एक नहीं, बल्कि दो-दो सीएमपी निजी डॉक्टरों की नियुक्ति की जा रही है, जो कि सिर्फ रेलवे अस्पतालों से शहर के निजी अस्पतालों के लिए मरीजों का इंतजाम करने वाले डॉक्टर के रूप में ही रेलवे में अपनी नियुक्ति करवाते हैं और इसके लिए लाखों रुपए की रिश्वत भी मेडिकल विभाग के सम्बंधित उच्च अधिकारियों को देते हैं. कई रेलकर्मियों एवं यूनियन पदाधिकारियों का कहना है कि यह निजी सीएमपी डॉक्टर 50-60 हजार रुपए प्रतिमाह रेलवे से वेतन लेने के बावजूद रेलवे अस्पतालों में सिर्फ निजी अस्पतालों के रेफरल डॉक्टर या एजेंट के रूप में ही काम करते हैं. जबकि पोस्ट खाली होने के बावजूद जरूरतमंद अधिकारी को एडजस्ट नहीं किया जा रहा है.

इसके अलावा बताते हैं कि मेडिकल विभाग में आज की तारीख में रेलवे बोर्ड से लेकर कई जोनल रेलों में भी ‘कोटे वालों’ का बोलबाला हो गया है, जो किसी काबिल डॉक्टर को बर्दास्त नहीं कर पा रहे हैं. मेडिकल विभाग में यह जातिवादी नेक्सस भी एक बहुत बड़ा रैकेट हो गया है. बताते हैं कि रेलवे बोर्ड के मेडिकल निदेशालय सहित जोनल रेलों के मेडिकल विभागों में भी अधिकांशतः आरक्षित वर्ग के डॉक्टरों की पहुंच हो गई है, जिनकी मेडिकल प्रैक्टिस लगभग नगण्य है, मगर ऊंचे पदों पर पहुंचने के बाद भी वह अपने उत्तरदायित्व को कलंकित करते हुए भ्रष्टाचार, जोड़-तोड़, जाति-बिरादरी और पक्षपात के मकड़जाल में उलझे हुए हैं.

रेल प्रशासन को यह बहुत अच्छी तरह से ज्ञात है कि ‘रेलवे समाचार’ डॉक्टरों के या किसी भी रेल अधिकारी और कर्मचारी के एक जगह पर लंबे समय तक पदस्थ रहने के सख्त खिलाफ रहा है और इस संबंध में अन्य विभागों के अधिकारियों की ही तरह मेडिकल विभाग के अधिकारियों का भी प्रत्येक तीन-चार साल के अंतराल में अन्यत्र ट्रांसफर किए जाने पर सीवीसी के दिशा-निर्देशों का पालन किए जाने का हमेशा पक्षधर रहा है. मगर अपने सहित अपने नाते-रिश्तेदारों के लिए भी घर-पहुंच तमाम मेडिकल सुविधाएं मिलने के लालच में डीआरएम, जीएम और बोर्ड मेंबर्स ने कभी डॉक्टरों या मेडिकल विभाग के अधिकारियों का एक निश्चित समयावधि पर ट्रांसफर किया जाना आज तक सुनिश्चित नहीं किया है. इसके बावजूद ‘रेलवे समाचार’ ने यह कभी नहीं चाहा कि किसी भी अधिकारी को अनावश्यक रूप से परेशान किया जाए.

मेडिकल विभाग में चल रहा दवाईयों और मेडिकल मशीनरी की खरीद, निजी अस्पतालों के साथ सांठ-गांठ, निजी अस्पतालों के खर्च पर रेलवे के डॉक्टर्स का विदेश भ्रमण आदि सहित ट्रांसफर/पोस्टिंग का यह सारा रैकेट ‘रेलवे समाचार’ ने पहले भी कई बार उजागर किया है. इसकी जड़ें डिवीजनल और जोनल रेलवे अस्पतालों से लेकर जोनल मुख्यालयों एवं रेलवे बोर्ड तक फैली हुई हैं. जहां सालाना करोड़ों का भ्रष्टाचार हो रहा है. ‘रेलवे समाचार’ को इससे कोई फर्क नही पड़ता कि कौन कहां जा रहा है, कौन नहीं जा रहा, मगर इस तमाम मेडिकल नेक्सेस की वजह से इसके भ्रष्टाचार का खामियाजा सर्वसामान्य रेल कर्मचारियों और अधिकारियों सहित रेलवे राजस्व को हो रहे भारी नुकसान के रूप में देश को और भारतीय रेल को भुगतना पड़ रहा है. इस अन्याय, पक्षपात और भ्रष्टाचार पर अविलंब रोक लगाई जानी चाहिए.