पुराने टेंडर्स की कंडीशंस में फेरबदल : सीवीसी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन
‘रुकावट के लिए खेद है, टेंडर में कई छेद हैं’
पुराने वर्किंग कॉन्ट्रैक्ट्स में मनमानी फेरबदल करके क्या दर्शाना चाहता है रेल प्रशासन?
रेलवे के नियम-कानून और नीति-नियमन में कहीं भी कोई संगति और स्थायित्व नहीं है
सुरेश त्रिपाठी
रेल मंत्रालय का निजाम भारतीय रेल की छवि चमकाने के लिए जहां अपनी ‘फोटोशोपिंग’ में व्यस्त है, वहीं रेलवे के कुछ अधिकारीगण अपनी-अपनी मनमानी करने में लगे हुए हैं. इस तरह जहां वे एक तरफ निजाम के कथित भ्रष्टाचार रोकने के ‘जुमले’ की हवा निकाल रहे हैं, तो दूसरी तरफ निर्माण कार्यों को निर्धारित समय पर पूरा करने या करवाने में उनकी कोई रुचि नहीं है. सीवीसी और रेलवे बोर्ड के लिखित दिशा-निर्देशों के अनुसार एक बार कोई टेंडर आवंटित हो जाने के बाद उसकी सेवा-शर्तों (टेंडर कंडीशंस) और कार्यों में किसी प्रकार का फेरबदल नहीं किया जा सकता है. और यदि ऐसा कोई फेरबदल किया जाता है, तो वह न सिर्फ असंवैधानिक होगा, बल्कि सीवीसी और रेलवे बोर्ड के उक्त दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन भी माना जाएगा. इसके बावजूद कुछ जोनल रेलों के अधिकारीगण टेंडर जारी होने के बाद ऐसा फेरबदल कर रहे हैं.
ऐसा ही एक फेरबदल उत्तर रेलवे, निर्माण संगठन द्वारा किया गया है. प्राप्त कागजात के अनुसार उत्तर रेलवे निर्माण संगठन द्वारा प्राइस वेरिएशन क्लॉज़ (पीवीसी) 46-ए की जनरल इंस्ट्रक्शंस (जीसीसी) में रनिंग कांट्रेक्ट की भी टेंडर कंडीशंस (पत्र संख्या 74-डब्ल्यू/0/डब्ल्यूए/पीटी.एक्स/सीपी/पीवीसी, दि. 20.01.2014) में फेरबदल किया गया है. हालांकि इस पत्र के साथ रेलवे बोर्ड के पत्र संख्या 2007/सीई-1/सीटी/18/पीटी.13, दि.02.05.2014 और पत्र संख्या 2007/सीई-1/सीटी/18/पीटी.19, (एफटीएस-8798) दि.15.10.2014 का भी संदर्भ दिया गया है. जबकि उक्त पत्र एफएएंडसीएओ/सी एवं सीएओ/सी/उ.रे. के अप्रूवल के बाद जारी किया गया है.
इस पत्र में कहा गया है कि उत्तर रेलवे निर्माण संगठन के पत्र दि. 31.01.2013 के अनुसार पीवीसी के रिवाइज्ड क्लॉज़ नं.29 रेलवे बोर्ड के इंस्ट्रक्शंस टेंडर्स पर एकीकृत अमल के लिए टेंडर डाक्यूमेंट्स के ‘स्पेशल टेंडर कंडीशंस एंड इंस्ट्रक्शंस टू टेंडरर्स’ में दी गई थी. इसमें यह भी कहा गया है कि रेलवे बोर्ड ने पीवीसी क्लॉज़ 46-ए की जीसीसी के कुछ निश्चित प्रावधानों में और फेरबदल (मॉडिफाइड) किया है.
इसके अनुसार टेंडर डॉक्यूमेंट के वेरिएशन क्लॉज़ 29 के सम्बंधित सब-क्लॉज़ 29.1, 29.2, 29.3 और 29.7 को मॉडिफाइड किया गया है. इसमें कहा गया है कि रिवाइज्ड क्लॉज़ सभी भावी वर्क्स टेंडर्स पर लागू होंगे. इसके अलावा उक्त रिवाइज्ड क्लॉज़ स्टील सप्लाई और सीमेंट सप्लाई कंपोनेंट एवं कंबाइंड/मिक्स आइटम्स के चालू टेंडर्स/कॉन्ट्रैक्ट्स में भी मॉडिफाइड क्लॉज़ 29.7 के अनुसार पीवीसी का भुगतान किया जाएगा.
इस पत्र पर डिप्टी सीई/सी/टीएंडसी प्रदीप कुमार ने 20.01.2015 को हस्ताक्षर किए हैं, जबकि पत्र में ऊपर 20.01.2014 की तारीख पड़ी है, जो कि वास्तव में 20.01.2015 होनी चाहिए थी. इससे साफ जाहिर है कि सम्बंधित रेल अधिकारी किसी भी पत्र पर हस्ताक्षर करते समय कितने होशियार और सतर्क रहते हैं.
इसमें यह भी कहा गया है कि पैरा (vi) एवं (vii) में दिए गए फ़ॉर्मूले क्रमशः Ms=Ox (Bs-Bso) और Mc = Ax (Wc-Wco)/Wco का इस्तेमाल सीधे तौर पर स्टील और सीमेंट सप्लाई के लिए पीवीसी के भुगतान हेतु किया जाएगा, जहां टेंडर शेड्यूल में ‘सप्लाई ऑफ स्टील’ और ‘सप्लाई ऑफ सीमेंट’ के लिए अलग आइटम का उल्लेख किया गया है. जबकि टेंडर शेड्यूल में ‘सप्लाई ऑफ स्टील एवं सीमेंट’ सहित कंबाइंड/मिक्स आइटम्स का प्रावधान किया गया है, वहां ‘कंपोनेंट ऑफ सप्लाई ऑफ स्टील एंड सीमेंट’ के लिए प्राइस वेरिएशन की राशि का भुगतान/रिकवरी अलग से उपरोक्त दोनों पैरा में दिए गए फ़ॉर्मूले के अनुसार की जाएगा.
उत्तर रेलवे निर्माण संगठन द्वारा किए गए उपरोक्त फेरबदल से वर्किंग कॉन्ट्रैक्टर्स अपने वर्किंग कॉन्ट्रैक्ट्स को पूरा नहीं कर सकते हैं. उनके ऊपर एक तरह से अतिरिक्त कार्य अथवा अतिरिक्त रिकवरी का मानसिक दबाव बना दिया गया है. कई कॉन्ट्रैक्टर्स का कहना है कि सबसे पहले तो वर्किंग कॉन्ट्रैक्ट्स में यह फेरबदल पूरी तरह से असंवैधानिक और सीवीसी के दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन है. उनका कहना है कि चालू कॉन्ट्रैक्ट्स में टेंडर कंडीशन बदले जाने से कोई भी कांट्रेक्टर मानसिक और आर्थिक परेशानी झेलकर निर्धारित काम को पूरा नहीं कर पाएगा. उनका यह भी कहना है कि यह किसी को लाभ पहुंचाने और किसी का नुकसान करने की साजिश है.
कुछ कॉन्ट्रैक्टर्स का यह भी कहना है कि टेंडर जारी होने के बाद उसकी कंडीशंस या आइटम्स अथवा स्कीम को बदलना नियम-कानून के साथ खिलवाड़ करने जैसा है. उनका कहना है कि बंधुआ प्रथा समाप्त हो गई है, इसके बावजूद टेंडर अवार्ड करने के बाद उसकी कंडीशन या स्कीम को बदलना किसी को फायदा और किसी को हानि पहुंचाना क्या रेलवे की यही व्यावसायिक ईमानदारी है? इसके अलावा मनमानी शर्तों का थोपा जाना भी कानूनन गलत है. उनका कहना है कि ऐसी बेईमानी करके बदली हुई कंडीशन या फ़ॉर्मूले के अनुसार बिल बनाते हुए क्या किसी अधिकारी के हाथ नहीं कांपते हैं?
इस संबंध में उत्तर रेलवे निर्माण संगठन के एक अधिकारी ने अपनी पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया कि पीवीसी/जीसीसी में रेलवे बोर्ड ने ऐसे-ऐसे लूप-होल छोड़ रखे हैं कि जब मर्जी तब उन्हें बदला जा सकता है. रेलवे के नियम-कानून और नीति-नियमन में कहीं भी कोई एकरूपता और स्थायित्व नहीं है. इसीलिए यहां हमेशा हर मामले में विवाद होते हैं और कोई भी कांट्रेक्टर अपना नुकसान हो जाने अथवा ब्लैक लिस्ट होने के डर से इन सभी असंगत नीतियों के खिलाफ कभी कोई आवाज नहीं उठाता है. अधिकारी का यह भी कहना था कि यही वजह है कि कोई भी निजी पार्टी रेलवे में अपना पैसा लगाने के लिए तत्पर नहीं होती है, क्योंकि उसे यह भरोसा ही नहीं हो पाता है कि रेलवे की नीतियां कब तक स्थिर रहेंगी?