नियमों का उल्लंघन और लापरवाही का भीषण परिणाम है आसनसोल की घटना

45 किमी. की गति से बैंकिंग लोको की डैसिंग, गार्ड की मौत, बैंकिंग लोको क्रू हुआ बेहोश

रनिंग कैडर में पदोन्नति में आरक्षण का दुष्परिणाम, बढ़ रही हैं टक्कर और डिरेलमेंट की घटनाएं

रे.बो. ने लिया घटना का तत्काल संज्ञान, ईडी/इलेक्ट्रिकल/रे.बो. ने लिखा सभी जोनों के सीईएलई को पत्र

सुरेश त्रिपाठी

एक तरफ भारतीय रेल में लगभग हर दिन नए-नए उदघाटनों का जलसा मनाया जा रहा है, जिसमें तमाम अधिकारियों और प्रशासनिक मशीनरी तथा मानव संसाधन का दुरुपयोग हो रहा है, जबकि दूसरी तरफ सोशल मीडिया में जन-शिकायतों का पिटारा खोलकर उनके निपटारे में तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों को झोंक दिया गया है. निर्धारित समय पर गाड़ियों के न चलने की इन्हीं हजारों जन-शिकायतों के चलते रेल प्रशासन ट्रेनों की पन्क्चुअलिटी के लिए भी रनिंग स्टाफ पर भारी दबाव बनाए हुए है. इसके परिणामस्वरूप आए दिन कहीं न कहीं ट्रेनों की टक्कर (कोलिजन), अवपथन (डिरेलमेंट) आदि की घटनाएं हो रही हैं. शनिवार, 11 जून को जहां एक तरफ आसनसोल मंडल, पूर्व रेलवे में बैंकिंग इंजन के गार्ड ब्रेकवान से टकरा जाने के कारण गार्ड की मौत हो गई, वहीं बोकारो रेलवे स्टेशन पर बोकारो-हावड़ा एक्स. का एक थ्री एसी कोच प्लेटफार्म पर गाड़ी प्लेसमेंट के समय डिरेल हो गया. हालांकि इस घटना में कोई यात्री हताहत नहीं हुआ, क्योंकि तब तक गाड़ी में कोई यात्री नहीं था.

प्राप्त जानकारी के अनुसार शनिवार को आसनसोल-धनबाद सेक्शन में आसनसोल मंडल के थापानगर-क्लुबाटन स्टेशनों के बीच चढ़ाई पर 58 वैगन (बॉक्स एन) वाली एक मालगाड़ी अचानक खड़ी हो गई. उसका लोको उक्त चढ़ाई पर पूरा लोड नहीं खींच पाया. मालगाड़ी के पायलट द्वारा बैंकिंग इंजन की मांग किए जाने पर एक डब्ल्यूएजी-9 लोको (कल्याण लोको शेड का इंजन) उक्त मालगाड़ी को पीछे से बैकिंग करने (धक्का लगाने) के लिए भेजा गया. यह बैंकिंग इंजन करीब 30 किमी प्रतिघंटे की गति से गया, और दृश्यता (विजिबिलिटी) की कमी या अन्य किसी कारण से आगे खड़ी मालगाड़ी की ब्रेकवान से टकरा गया. यह टक्कर इतनी जोरदार थी कि ब्रेकवान हवा में उछलकर बैंकिंग इंजन के ऊपर आ गई और ऊपर ओएचई से भी टकरा गई. नतीजे के रूप में ब्रेकवान में मौजूद गार्ड की तत्काल घटनास्थल पर ही मौत हो गई.

घटना के बारे में प्राप्त विस्तृत जानकारी के अनुसार उक्त लोडेड मालगाड़ी (बॉक्स एनएचएल) का इंजन चढ़ाई पर लोड को खींच नहीं पा रहा था. इस पर मालगाड़ी के इंजन क्रू द्वारा बैंकिंग इंजन की मांग की गई. पीछे की एक मालगाड़ी का थ्री-फेज़ लोको कटवाकर भेजा गया. बैंकिंग लोको पायलट ने अपनी गति पर नियंत्रण नहीं रखा. जबकि उसे दृश्यतानुसार 15/10 किमी. प्रतिघंटे की गति रखनी चाहिए थी. परंतु ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि उसकी गति इससे कहीं अधिक (30 किमी. प्रतिघंटा) थी. इसके परिणामस्वरूप ब्रेकिंग के बावजूद बैंकिंग लोको ब्रेकवान से टकरा गया. आगे की मालगाड़ी का गार्ड ब्रेकवान में ही था. जबकि उसे पीछे प्रोटेक्शन करना चाहिए था और ब्रेकवान से कम से कम 45 मीटर दूर खड़े रहकर रेड हैंड सिग्नल देना चाहिए था. मगर गार्ड द्वारा ऐसा नहीं किया गया. वह ब्रेकवान के अंदर ही बैठा रहा. इसके फलस्वरूप बैंकिंग लोको की ब्रेकवान से भीषण टक्कर हो गई, जिससे गार्ड ब्रेकवान उछलकर कांटेक्ट वायर (ओएचई) से टकरा गया और गार्ड की मौत हो गई.

ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि हाई पॉवर शॉक से गार्ड की मौत हुई, जबकि बैंकिंग लोको क्रू बेहोश हो गया. हालांकि ऐसा होना संभव नहीं है, क्योंकि ओएचई के इंजन या वैगन/कोच से टच होते ही इंजन और पूरे रेक के पटरी पर रहते भारी अर्थिंग होने से सब-स्टेशन से एक क्षण में ओएचई पॉवर ऑफ हो जाता है. बताया जा रहा है कि इस मामले में मदद के लिए भेजे गए बैंकिंग इंजन के पायलट (क्रू) द्वारा निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया गया. उसने अपनी गति पर नियंत्रण नहीं रखा. इसका कारण यह भी बताया जा रहा है कि चूंकि संबंधित अधिकारियों द्वारा समयपालन (पन्क्चुअलिटी) का अत्यधिक दबाव बनाया जाता है. इस मामले में भी संबंधित अधिकारियों या स्टाफ द्वारा ऐसा ही कुछ बैंकिंग लोको क्रू को कहा गया था. इसके अलावा बैंकिंग लोको क्रू को आगे की हाल्ट गाड़ी की निश्चित लोकेशन के बारे में नहीं बताया जाना भी ऐसे मामलों में पहले भी घातक सिद्ध हो चुका है. इसके अतिरिक्त उक्त हाल्ट मालगाड़ी के गार्ड को ऐसी स्थिति में अपनी वर्तमान जगह से कम से कम 600 मीटर पीछे जाकर रेल लाइन पर पटाखे बिछा देने चाहिए थे, जो कि उसने नहीं किया था.

इसके अलावा मालगाड़ी के गार्ड को अपनी ब्रेकवान से उतरकर न्यूनतम 45 मीटर पीछे जाकर अथवा कम से कम अपनी ब्रेकवान में पीछे की तरफ ही हाथ में लाल झंडी लेकर खड़ा रहना चाहिए था, जबकि वह ब्रेकवान के अंदर ही बैठा रहा. इस प्रकार इस दुर्घटना को निश्चित रूप से मानव निर्मित या मानवीय गलती कहा जा सकता है. जिसका खामियाजा संबंधित गार्ड को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा है. इस घटना से सीख लेकर तमाम रनिंग स्टाफ सोशल मीडिया में नियमों के पालन पर चर्चा कर रहा है. उसका कहना है कि इस घटना से सीख ली जाए और अधिकारियों द्वारा पंक्चुलिटी का चाहे जितना दबाव बनाया जाए, मगर किसी भी स्थिति में नियमों का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए. नियमों का पालन करें और गति पर नियंत्रण रखकर अपनी जान की जोखिम से बचें.

इस घटना का रेलवे बोर्ड द्वारा भी तत्काल संज्ञान लिया गया है. ताजा घटना के मद्देनजर रेलवे बोर्ड के कार्यकारी निदेशक/विद्युत सुधीर कुमार ने पूर्व रेलवे के मुख्य विद्युत इंजन अभियंता (सीईएलई) सहित सभी जोनों के सीईएलई को पत्र भेजकर कहा है कि ‘आसनसोल मंडल में घटी घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसमें बैंकर ने करीब 45 किमी. प्रतिघंटे की गति से ब्रेकवान को टक्कर मार दी, जिसके परिणामस्वरूप एक गार्ड की मौत हो गई. आसनसोल मंडल के सीनियर डीईई/ऑपरेशन का कहना है कि ड्राइवर को कॉशन ऑर्डर के साथ यह कहकर भेजा गया था कि वह ब्लॉक सेक्शन तक जाकर स्टार्टर सिग्नल से थोड़ा आगे खड़ी मालगाड़ी को चढ़ाई चढ़ने के लिए पीछे से पुश कर दे. यह दूरी मुश्किल से एक किमी. की ही रही होगी. मगर इसके साथ ही ड्राइवर को यह भी कहा गया था कि वह जल्दी करे, क्योंकि पीछे से राजधानी एक्सप्रेस आ रही है और उसकी पन्क्चुअलिटी लॉस नहीं होनी चाहिए. जैसा कि सीनियर डीईई/ऑपरेशन का कहना है कि हो सकता है कि इसी वजह से ड्राइवर ने कुछ ज्यादा जल्दबाजी दिखा दी होगी और इंजन को तेज गति से दौड़ा दिया होगा.’

पत्र में कार्यकारी निदेशक ने आगे कहा है कि ‘ऐसी किन्हीं भी असामान्य परिस्थितियों में कोई जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए और इस प्रकार की घटनाओं को किसी भी स्थिति में टाला जाना चाहिए.’ उन्होंने सभी जोनल सीईएलई से कहा है कि ‘इस बारे में सभी मंडलों के सीनियर डीईई/ऑपरेशन को कड़ी हिदायत दी जाए, कि वे रनिंग स्टाफ पर समयपालन का अनावश्यक दबाव न बनाएं.’ इसके अलावा उन्होंने पत्र में यह भी कहा है कि ‘बैंक पायलटिंग के लिए वरिष्ठ और अनुभवी ड्राइवर्स (लोको पायलट्स) को तैनात किया जाए और क्षेत्र की दुर्गमता के अनुसार बैंक पायलटिंग की वर्तमान लिमिट को भी पुनर्निर्धारित किया जाना चाहिए.’

इस मामले में कई वरिष्ठ लोको पायलट्स और लोको इंस्पेक्टर्स का कहना है कि उपरोक्त तमाम नियमों के अनुपालन में तो गड़बड़ी और हड़बड़ी दोनों हो ही रही है, क्योंकि सम्बंधित अधिकारियों द्वारा रनिंग स्टाफ पर पन्क्चुअलिटी के लिए बहुत अनावश्यक दबाव बनाया जाता है. इसके अलावा स्टाफ की भारी कमी भी है. तथापि प्रशासन द्वारा रनिंग कैडर में जो पदोन्नति में आरक्षण की नीति अपनाई जा रही है, उससे भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं. मध्य रेलवे और पश्चिम रेलवे के उपनगरीय क्षेत्र में आए दिन हो रही डिरेलमेंट की घटनाएं इसका ज्वलंत उदाहरण हैं. जबकि इस तरफ प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है.

उल्लेखनीय है कि रेलवे की बहुप्रतीक्षित योजना डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर (डीएफसी) अगले साल के अंत तक शुरू होने जा रही है. इस कॉरीडोर पर चलने वाली मालगाड़ियों में गार्डों के लिए कोई जगह नहीं होगी. इन मालगाड़ियों में न ही गार्ड होंगे और न ही गार्ड का डिब्बा (ब्रेकवान) होगा. इन मालगाड़ियों पर सीधे ड्राइवर का नियंत्रण रहेगा. गाड़ी के अंतिम डिब्बे में ‘एंड ऑफ ट्रेन टेलीमेटरी’ (ईओटीटी) यंत्र लगा रहेगा, जो जीएसएमआर सिस्टम से जुड़ा रहेगा और ड्राइवर को जानकारी देता रहेगा कि गाड़ी में सब कुछ ठीक-ठाक है. इस प्रकार धीरे-धीरे ही सही, भविष्य में भारतीय रेल गार्ड रहित होने की तरफ अग्रसर है.