ईसीआर का सबक-2: कैसे होगा मौखिक भ्रष्टाचार का स्थाई समाधान!
ट्रैफिक डायरेक्टरेट, रेलवे बोर्ड की भूमिका की भी गहनता से जांच करे सीबीआई!
रेलवे बोर्ड को ऐसी स्थिति बहुत सूट करती है, जिसमें चित्त भी उसकी और पट्ट भी उसकी ही होती है, और कभी अगर कोई बात सामने आ भी जाती है, तो नीचे फील्ड स्तर के लोगों को बलि का बकरा बनाकर गंगा नहा ली जाती है!
ट्रैफिक डिपार्टमेंट में जो जितना बड़ा चोर, भ्रष्ट और फरेबी है, वही सबसे ज्यादा ईमानदारी झाड़ता है, और काम के तौर-तरीकों पर भाषण देता है, वही सबको ईमानदारी और कर्मठता का सर्टिफिकेट भी बांटता है। रेलवे बोर्ड में और हर जोन में इनका एक कॉकस बना हुआ है!
पूर्व मध्य रेलवे (ईसीआर) में घटित दुर्भाग्यपूर्ण घटना के संदर्भ में ईसीआर सहित उत्तर मध्य रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे, पूर्व रेलवे, दक्षिण पूर्व रेलवे इत्यादि के बहुत सारे वर्तमान और पूर्व अधिकारियों से लंबी चर्चाएं की गईं, जिसके फलस्वरूप कई गंभीर तथ्यों का खुलासा हुआ। इन चर्चाओं से एक बार फिर यह प्रमाणित हुआ कि रेल में भ्रष्टाचार की असली जड़ अधिकारियों का एक ही जगह लंबे समय तक टिके रहना है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, पटना बंगलूरू जैसे बड़े शहर माफिया अधिकारियों के गढ़ बन गए हैं। इन शहरों में बने रहने के लिए कैश और काइंड में रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों को ओब्लाइज किया जाता है। कमाऊ पोस्टिंग मिलेगी तो पति-पत्नी उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम कहीं भी चले जाएंगे, वैसे एक रात में ही उनके रिश्तों/फेमिली में दरार आ जाएगी! बहरहाल, इस धूर्त चालबाजी पर फिर कभी विस्तार से प्रकाश डाला जाएगा, अभी ईसीआर के मुद्दे पर लौटते हैं!
एक रिटायर्ड पीसीसीएम का कहना है कि सीबीआई को ईसीआर के मामले में पीसीओएम के साथ ही रेलवे बोर्ड के ट्रैफिक डायरेक्टरेट की भूमिका की भी गहनता से छानबीन करनी चाहिए। इसके अलावा 10-15 साल पीछे जाकर भी इस प्रकरण की तमाम कड़ियां जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए। तभी इस विषवृक्ष की गहरी जड़ों का पता चल पाएगा, और तभी रेलवे में लंबे समय से चल रहे इस मौखिक भ्रष्टाचार का स्थाई समाधान मिल पाएगा! क्योंकि रेलवे बोर्ड जानबूझकर कई जगहों पर साइलेंट हो जाता है, चुप्पी साध लेता है, और अगर कोई मामला बहुत आगे बढ़ता है, तो फिर से कन्फ्यूजिंग पॉलिसी बनाकर पल्ला झाड़ लेता है।
उनका यह भी कहना है कि जैसा मामला ईसीआर में घटित हुआ है, अगर स्पष्ट लिखित पॉलिसी होती, तो कोई खेल नहीं होता। रेलवे बोर्ड की ट्रैफिक और कमर्शियल की अधिकांश पॉलिसी इस तरह से बनी हुई हैं कि हर अधिकारी उसकी अपनी तरह से अथवा अपने मन-मुताबिक व्याख्या कर सकता है, और इसीलिए कई निर्दोष तथा ईमानदार अधिकारी, खासकर वाणिज्य विभाग में पॉलिसी के हिसाब से काम करके भी विजिलेंस मामलों में उलझा दिए गए हैं। इसके सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं।
पिछला आर्टिकल भी पढ़ें: “ईसीआर का सबक-1: जो सबको स्पष्ट दिखता है, केवल उनको नहीं, जिनको वास्तव में दिखना चाहिए!“
उन्होंने यह भी कहा कि रेलवे बोर्ड को ऐसी स्थिति बहुत सूट करती है, जिसमें चित्त भी उसकी और पट्ट भी उसकी ही होती है, और कभी अगर कोई बात सामने आ भी जाती है, तो नीचे फील्ड स्तर के लोगों को बलि का बकरा बनाकर गंगा नहा ली जाती है। जैसा कि ईसीआर के वर्तमान मामले में होता दिखाई दे रहा है।
उनका यह भी कहना है कि “ट्रैफिक डिपार्टमेंट में जो जितना बड़ा चोर, भ्रष्ट और फरेबी होता है, वही सबसे ज्यादा ईमानदारी झाड़ता है, और काम के तौर-तरीकों पर भाषण देता है, वही बाकी सबको ईमानदारी और कर्मठता का सर्टिफिकेट भी बांटता रहता है। रेलवे बोर्ड में और हर जोन में इनका एक कॉकस बना रहता है।”
व्हाट्सएप चैट में मिलेंगे दोषियों के सबूत
जानकारों का कहना है कि सीबीआई को सीनियर डीओएम/सोनपुर सचिन मिश्रा की पीसीओएम के साथ हुई व्हाट्सएप चैट की भी छानबीन करनी चाहिए। चूंकि पैसे के लेनदेन के प्रमाण सीबीआई को पहले ही मिल चुके हैं, अब मिश्रा का मोबाइल उसके कब्जे में है, इसलिए यह छानबीन उसके लिए काफी आसान है। उनका कहना है कि संभवतः 22 जुलाई को सचिन मिश्रा द्वारा व्हाट्सएप पर पीसीओएम को भेजी गई प्लानिंग वाली चैट में इस प्रकरण में मिश्रा के कम और पीसीओएम के ज्यादा दोषी होने के प्रमाण मिल सकते हैं।
कौन सुनेगा हासिए पर गए लोगों की व्यथा?
#RailSamachar के पास विश्वसनीय सूत्रों से कई ऐसी जानकारियां मिलती रहती हैं, जो काफी विस्मित करने वाली होती हैं! और जो रेलवे में हर दिन बढ़ते भ्रष्टाचार का प्रमाण भी होती हैं। इसमें जो लोग सबूतों और प्रमाणिकता के साथ विषयों की जानकारी देते हैं, उनमें से अधिकांश लोग वह भी होते हैं, जो हर स्तर पर अपनी व्यथा रख चुके होते हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई न होने, और दुष्ट-भ्रष्ट लोगों के लगातार महत्वपूर्ण तथा शक्तिशाली पदों पर बने रहने के कारण धीरे-धीरे वे हिम्मत हारकर और हीनभावना का शिकार होकर चुपचाप बैठ जाते हैं।
सफेदपोश भ्रष्टों का नया हथकंडा
आज की तारीख में भी बड़े शातिरों का कुछ नहीं होता है, चाहे वह मैकेनिकल, सिविल, एसएंडटी, ट्रैफिक, कमर्शियल, इलेक्ट्रिकल, फाइनेंस, स्टोर्स, पर्सनल, आरपीएफ और मेडिकल का ही क्यों न हो। अब पिछले लगभग पांच सालों से एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है, जिसमें रेलवे के सफेदपोश भ्रष्टतम अधिकारियों द्वारा दुबई और कनाडा में इंवेस्टमेंट धड़ल्ले से किए जा रहे हैं। यह सूची सीबीआई, ईडी आदि जैसी सर्वसाधनसंपन्न जांच एजेंसियां अपने थोड़े से प्रयास से ही पता लगा सकती हैं। ऐसे दो शातिरों की चर्चा रेलवे सर्कल में कुछ समय से हो रही है।
हालांकि इसमें तकनीकी डिपार्टमेंट्स के लोगों का ही अब तक एकाधिकार बताया गया है। जैसा पहले से ही दूसरी सेवाओं के लोग और भ्रष्ट व्यापारी अपने बच्चों को विदेश भेजकर वहां अपनी अवैध कमाई हवाला के माध्यम से भेजकर खपाते रहे हैं, वही ट्रेंड अब रेलवे में भी भ्रष्टाचार का वॉल्यूम बढ़ने के कारण बहुत तेजी से फैल चुका है। जिनके बच्चे विदेशों में कथित तौर पर पढ़ाई कर रहे हैं, अथवा रह रहे हैं, जांच एजेंसियों को ऐसे अधिकारियों की पहचान करना कतई मुश्किल नहीं है, अगर सरकार की मंशा हो तो!
त्वरित कार्यवाही कर दूर किया जाए भ्रम
ईसीआर की इस चेन-लिंक्ड घटना का पूरी गंभीरता से संज्ञान लेते हुए रेलमंत्री को चाहिए कि पूर्व मध्य रेलवे के सभी प्रमुख मुख्य विभाग प्रमुखों (पीएचओडी), जिनका कार्यकाल दो साल हो चुका है, को तुरंत हटा दें, भले ही उनमें से किसी का रिटायरमेंट दो माह बचा हो, या दो साल! क्योंकि इस आड़ में वे बहुत बड़ा खुला खेल रहे हैं कि रिटायरमेंट में दो साल से कम का नियम लागू होने के कारण न तो उनकी जगह बदली जा सकती है, और न ही पद।
अगर एक सही मैसेज देना है, और रेलमंत्री को अपनी बन रही गलत छवि से बचना है, तो उपरोक्त कार्रवाई करके उन्हें एक कड़ा संदेश देना ही चाहिए। पूर्व तट रेलवे में ऐसा किया गया है, वहां हाल ही में जल्दी ही रिटायर हो रहे पीसीओएम को हटाकर साइड लाइन किया गया, मगर उसमें एमओबीडी की आपसी लाग-डांट और बंदरबांट प्रमुख कारण रहा। यहां रेलमंत्री अगर स्वयं यह पहल करते हैं, तो उसका एक गहरा संदेश सभी जोनल रेलों में सभी विभाग प्रमुखों को जाएगा!
सुनिश्चित हो प्रमोशन पर ट्रांसफर के नियम का पालन!
दूसरी बात यह कि हर महत्वपूर्ण पदोन्नति जैसे एसजी, एसएजी और एचएजी मिलने पर जहां हैं, वहां से दूसरे जोनों में बिना अपवाद के अधिकारियों की पदस्थापना की जाए, और खासकर उस जोन में जहां उसने काम नहीं किया है। प्रमोशन पर ट्रांसफर का नियम भी है। इसका पालन हर हाल में सख्ती से सुनिश्चित किया जाए, जिसे माफियाओं ने शिकारे पर रखकर रेल भवन की छत से लटका दिया है।
अभी हाल में जितने भी एचएजी के प्रमोशन आर्डर रेलवे बोर्ड से निकले हैं उसमें भी यही सेटिंग की गई है कि जो जहां था वहीं पर एडजस्ट कर दिया गया है। इनमें से तीन माफियाओं को रेल भवन से निकालकर बड़ौदा हाउस में बैठा दिया गया, जबकि बाकी को जहां का तहां प्रमोट कर दिया गया है। कई जगहों पर पीएचओडीज की पोस्ट्स पर सभी विभागों में कमोबेस एसएजी-सीएचओडी बनकर काम कर रहे हैं, और फर्जी पोस्ट्स बनाकर बड़े शहरों में लोगों को एडजस्ट किया जा रहा है। यही रेल में भ्रष्टाचार की असली जड़ है। इस विषय पर जल्दी ही गहराई से प्रकाश डाला जाएगा।
निहित व्यक्तिगत स्वार्थों के अनुसार चल रही रेल
रेल के शीर्ष नेतृत्व को, और सरकार को भी, शायद यह भान नहीं है कि रेल को रेल की आवश्यकता के अनुसार नहीं, बल्कि माफियाओं और निहित व्यक्तिगत स्वार्थों के अनुसार चलाया जा रहा है। रेलमंत्री और सीआरबी के पास अभी भी अपनी साख बचाने का बहुत थोड़ा समय बचा है, जिसमें रे.बो. के पत्र सं. ई(ओ)III-2022/पीएम/19, दि. 29.07.2022 को जारी इस तरह के सभी एचएजी, एसएजी, एसजी के ऑर्डर को रिवाइज किया जाए और जहां के तहां एडजस्ट कर दिए गए इन सभी शातिर लोगों को दूसरे जोनों में भेजा जाए, या फिर इन्हें वीआरएस लेकर घर जाने के लिए कहा जाए।
इसके साथ ही हर स्तर पर रेलवे बोर्ड की पीरियोडिकल ट्रांसफर पालिसी पर तुरंत कड़ाई से अमल सुनिश्चित किया जाए। इसके अंतर्गत कर्मचारियों के लिए 4 साल का, जूनियर स्केल से सेलेक्शन ग्रेड तक के अधिकारियों के लिए 3 साल का, और सीनियर एडटमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (एसएजी) तथा हायर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (एचएजी) के लिए 2 साल के कार्यकाल का नियम बिना किसी अपवाद के सख्ती से लागू होना चाहिए।
नीति-नियम का पालन हो, अन्यथा उनके रद्द होने की घोषणा करें!
अधिकारियों और कर्मचारियों की आवधिक स्थानांतरण नीति (पीरियोडिकल ट्रांसफर पालिसी) को ताक पर धर दिए जाने के परिणामस्वरूप ही रेल में चौतरफा भ्रष्टाचार का बोलबाला हुआ है। इसी कारण से हर स्तर पर रेल में सड़ांध मारते, बजबजाते भ्रष्टाचार के तालाब बन गए हैं। इसके लिए जोनल विजिलेंस के मुखिया सर्वथा जिम्मेदार हैं। अगर नियम है, तो उस पर पूरी निर्ममता से अमल सुनिश्चित किया जाए, अन्यथा उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिए जाने की सार्वजनिक घोषणा की जाए।
इसमें वैकल्पिक (अल्टरनेट) तौर पर सेंसेटिव और नॉन-सेंसिटिव पोस्ट्स पर भी पदस्थापना सुनिश्चित की जानी चाहिए। ऐसा कतई न हो कि एक आदमी को लगातार दूसरी पोस्टिंग भी सेंसेटिव या कमाई वाली महत्वपूर्ण पोस्ट मिल जाए या लगातार दूसरी भी नॉन-सेंसिटिव मिल जाए। इससे विजिलेंस का भी काम कम होगा। माफियाओं का सिंडीकेट भी टूटेगा। कार्यक्षमता बढ़ेगी। लोगों में सिस्टम के प्रति सकारात्मक भरोसा पैदा होगा। वे अपने को साबित करने और अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने का प्रयास भी करेंगे। पारदर्शिता आएगी, इससे भ्रष्टाचार कम होगा!
क्रमशः – रेक आउट-टर्न में कैसे होती है हेराफेरी! कैसे होती है खाली रेक दौड़ाकर हजारों करोड़ की मौखिक अफरा-तफरी!
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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