रेलवे बोर्ड एवं मेंबर स्टाफ की निष्क्रियता से खड़ा हुआ संवैधानिक संकट

पदोन्नति में आरक्षण का मामला बना केंद्र सरकार और उसके सभी मंत्रालयों के गले की हड्डी

पदोन्नति में आरक्षण देने के बावजूद पश्चिम मध्य रेलवे ने उच्च अदालत नहीं बताई सच्चाई

सीआरबी, सेक्रे./रे.बो., सेक्रे./डीओपीटी, जीएम/उ.प.रे. और चारों डीआरएम हुए लाइन हाजिर

आठों अधिकारियों की गलती अक्षम्य, सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन्हें जेल भेजा जाए तो आश्चर्य नहीं

सुरेश त्रिपाठी

पिछले करीब दो वर्षों के दरम्यान रेलवे बोर्ड, खासतौर पर सीआरबी एवं मेंबर स्टाफ, की अक्षम्य निष्क्रियता और लापरवाही के कारण रेल मंत्रालय के समक्ष एक बड़ा संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है. यह संकट जोनल रेलों द्वारा रेलवे बोर्ड के पत्र क्रमांक आरबीई 126/2010 के अनुपालन के परिप्रेक्ष्य में खड़ा हुआ है, जिसे पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट, चंडीगढ़ तथा राजस्थान हाई कोर्ट, जयपुर बेंच ने रद्द कर दिया था. तथापि, जोनल रेलों द्वारा रेलवे बोर्ड के उक्त पत्र क्रमांक का अनुपालन अवैध रूप से लगातार जारी रहा. उक्त पत्र के अनुसार वरिष्ठता सूची में ऊपर रहने वाले एससी/एसटी कर्मचारियों को सामान्य वर्ग के कोटे में पदोन्नत किया जाता रहा, जबकि आरक्षित वर्ग की सीटों को निम्न वरीयता वाले आरक्षित उम्मीदवारों से भरा जाता रहा. इस पदोन्नति में आरक्षण के चलते रेलवे सहित केंद्र सरकार के कई अन्य विभागों में आरक्षण औसत 22.5% से काफी ज्यादा हो गया, जो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एम. नागराज मामले में दिए गए आदेशों एवं दिशा-निर्देशों के विपरीत है. इस पर चंडीगढ़ एवं राजस्थान हाई कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने दि. 3.2.2015 को रेलवे बोर्ड के उक्त पत्र क्रमांक 126/2010 के आधार पर दी जा रही पदोन्नतियों को स्टे कर दिया था. तथापि, रेलवे ने उक्त पत्र के आधार पर पदोन्नतियां देना लगातार जारी रखा. इस पर ‘समता आंदोलन समिति, बीकानेर’ ने सेक्रेटरी/डीओपीटी, सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड, चेयरमैन, रेलवे बोर्ड, महाप्रबंधक/उ.प.रे. और उ.प.रे. के चारों मंडलों के मंडल रेल प्रबंधकों के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला सुप्रीम कोर्ट में दायर किया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उक्त आठों अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से 29 अगस्त 2016 को अदालत के समक्ष हाजिर होने का आदेश दिया था. जहां इन अधिकारियों ने मामले को समझने के लिए एक बार फिर समय माँगा. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए अंतिम तारीख 15 सितंबर 2016 तय की थी. मगर इन अधिकारियों की तरफ से एक बार पुनः महाधिवक्ता ने, यह कहते हुए कि भारत सरकार ने इस मामले पर विचार-विमर्श हेतु बैठक बुलाई है, अदालत से एक सप्ताह का समय मांग लिया. अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अंतिम सुनवाई 22 सितंबर 2016 को होने वाली है.

Contempt Petition before Supreme Court Against RBE No. 126/2010

Vide Office Memorandum issued on 11.07.2002 by Railway Board directed following that..

1) SC/ST candidates appointed on a post by promotion on their own Merit (and not owing to reservation or relaxation of qualifications) will be adjusted on general category points.

2) SC/ST candidates promoted on their own merit and adjusted against unreserve points will retain their status of SC/ST and will also be eligible to get benefits available to SC/ST employees. They will also get seniority as per panel position on promotion. (It means that SC/ST will get benefits against reserved as well as general posts).

It was later clarified on 31.01.2005 that where promotions are made by non-selection method (only seniority and fitness, where concept of merit is not involved) the letter dated 11.07.2002 will not apply. (It means that if promotions are made by non-selection method a reserved community man cannot be promoted/adjusted against unreserved post).

The above letter dated 31.01.2005 was set aside by CAT/Madras on dtd. 14.09.2006 and held that in non-selection posts also SC/ST will be adjusted against general posts.

Government filed a Writ petition in Madras High Court but was dismissed without any reason.

DOPT/UOI was thus compelled on 10.08.2010 to withdrew the Office Memorandum dated 31.01.2015. And Clarified that Reserved candidates appointed by promotion on their own Merit and Seniority and not owing to reservation or relaxation will now be adjusted against unreserved roster points irrespective of the mode of process of selection i.e. non-selection method or selection method.

This was a damaging decision of the DOPT. It resulted in mass scale induction of SC/STs on higher posts in all the cadres. The quota of 15% and 7.5% reserved for them exceeded every where above total 22.5%.

Earlier policy was that reserved candidate came in any service by getting relaxation can only be promoted against reserved quota post if available in a grade/cadre.

Railway board also issued RBE No. 126/2010 accordingly which says that-

a) Reserve community candidates appointed by promotion on their own Merit and Seniority and not because of reservation or relaxation in qualifications are to be adjusted against general points ignoring the method of selection process.

b) These orders were made effective from 21.08.1997 with retrospective effect.

c) Further if any shortfall of SC/ST candidate still exist the same shall be made good through vacancies arising in future.

It was implemented with back date. A UNIQUE Example of ‘Chalbaji’. It also led to artificial creation of shortfall for SC/ST. It is an example of Changing the Caste of SC/ST to General. (Just like a ‘Dharm Parivartan’).

Punjab High Court on dtd. 15.07.2011 quashed the orders of DOPT dtd. 10.08.2010 as it was opposite to the Supreme Courts orders in M. Nagraja Case and held that there will be no reservation in Promotions at all.

Similarly CAT/Jaipur in an O. A. No. 62/2011 on dtd. 26.11.2011 directed that RBE No. 126/2010 be ignored by Railways while making promotions. It means that there will be no reservation in promotions and if reserved vacancy exist then only a SC/ST employee may be promoted but not against general post.

Railways Writ Petition in High Court of Rajasthan at Jaipur was also dismissed on dtd. 27.11.2015. Still Railway did not implemented both the High Court’s orders and kept promoting SC/ST employyees against general posts. Rather the Railway filed SLP against this order of Punjab and Rajasthan High Court in Supreme Court where ‘No Stay’ was granted by Hon’ble Supreme Court. The case is pending for adjudication.

Now Samata Andolan Samity have filed contempt of court petition against Chairman, Railway Boad and GMs on various Zones except WCR that despite Supreme Courts orders on RBE No. 126/2010 and guidelines in M. Nagraja’s case (to not to consider promotions of SC/ST unless after verifying the individuals social and economic backwardness and the existing representation in any cadre) the Railways are giving them promotions against general posts. Lists of such promotions have been filed with CP. A copy is attached with this communication.

While most of the Ministries have followed the orders of Hon’ble Courts, the Railways are continued issuing promotion orders following RBE No. 126/2010.

Zonal Railways plead that unless RBE 126/2010 is withdrawn by Railway board, they cannot change the practice.

Member Staff is sitting IDLE over the issue and not taking initiative just to meet his vested interest of getting some future assignments saying that it is a political issue and he cannot displease minister. Member Staffs inaction and anti general community attitude is damaging the work culture in the system, leading to great harassment to them and favouritism to SC/STs.

इस मामले में विधिक जानकारों का कहना है कि रेलवे बोर्ड और खासतौर पर मेंबर स्टाफ एवं सीआरबी ने प्रस्तुत मामले में अक्षम्य लापरवाही का नमूना पेश किया है, जिसकी वजह से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त आठों उच्च अधिकारियों को कोर्ट में बुलाकर लाइन हाजिर किया. पूरी व्यवस्था सहित इन अधिकारियों के लिए भी यह स्थिति अत्यंत शर्मनाक है. उल्लेखनीय है कि पिछले करीब दो सालों से उत्तर पश्चिम रेलवे द्वारा इस मामले में रेलवे बोर्ड को लगातार संदर्भ भेजे जाते रहे हैं, मगर मेंबर स्टाफ इसे राजनीतिक मामला मानकर चुपचाप चुप्पी साधे रहे, जिसकी वजह से सीपीओ/उ.प.रे. कर्ण सिंह को वीआरएस लेकर जाना पड़ा.

विधिक जानकारों का यह भी कहना है कि इन आठों अधिकारियों की गलती अक्षम्य है, सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन्हें जेल भेजा जाना चाहिए, क्योंकि जब तक ऐसा कोई कड़ा कदम उच्च अदालत द्वारा नहीं उठाया जाएगा, तब तक यह उच्च पदस्थ नौकरशाह अदालत के आदेशों को धता बताते रहेंगे और जिस दिन से पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट और राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश आए थे, उसके बाद से हुई ऐसी तमाम पदोन्नतियों को खारिज करते हुए उन्हें रिवर्ट किया जाना चाहिए.

पश्चिम मध्य रेलवे ने उच्च अदालत को भी गुमराह किया

इस संबंध में एक और महत्वपूर्ण जानकारी यह मिली है कि उ.प.रे. सहित लगभग सभी रेलों ने ऐसी पदोन्नतियों को स्वीकार करते हुए अपने यहां की वास्तविक स्थिति अदालत के समक्ष प्रस्तुत की है. परंतु पश्चिम मध्य रेलवे ने इस मामले में उच्च अदालत को भी गुमराह किया है और कहा है कि उसके यहां ऐसी पदोन्नतियां नहीं हुई हैं. जबकि ‘रेलवे समाचार’ को अपने विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प.म.रे. में भी ऐसी कई पदोन्नतियां की गई हैं, जिनका सबूत यहां प्रस्तुत है. यह सबूत भोपाल मंडल, प.म.रे. द्वारा जारी कार्यालय आदेश सं. 289/2016, दि. 22.04.2016 है, जिसमें भोपाल मंडल में आरक्षित वर्ग के कुल 18 रेलकर्मियों को सामान्य वर्ग के के पदों पर पदोन्नति में आरक्षण दिया गया है.

पदोन्नति में आरक्षण किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं -पी. एन. शर्मा

समता आंदोलन समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा ने जयपुर में मीडिया से बात करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने रेल मंत्रालय सहित केंद्र सरकार के सभी विभागों को भी अदालत की अवमानना नोटिस जारी करके उनसे पूछा है कि विभिन्न अदालती आदेशों के विपरीत पदोन्नतियों में आरक्षण देने के लिए क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए. जबकि विभिन्न हाई कोर्ट, कैट और सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नतियों में आरक्षण पर रोक लगाई हुई है. उन्होंने कहा कि 17 जून 1995 से पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगी हुई है.

तथापि विभिन्न राज्य सरकारें इसे रोकने का साहस नहीं कर पा रही हैं और असंवैधानिक रूप से इस गलत आरक्षण पद्धति को चलाए जा रही हैं, जिससे सैकड़ों याचिकाएं देश की तमाम अदालतों में लंबित हैं. श्री शर्मा ने कहा कि लंबी कानूनी प्रक्रिया से न्यायप्रिय और राष्ट्रवादी लोग परेशान हो रहे हैं. इससे सामाजिक भेदभाव और जातिवाद बढ़ रहा है. इस सबका विपरीत प्रभाव पूरी व्यवस्था और समाज पर पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि उ.प.रे. के जोधपुर, बीकानेर, अजमेर और जयपुर मंडलों के तमाम रेलकर्मी और समता मंच के सभी पदाधिकारी आज यहां एकत्रित होकर इस बात की शपथ ग्रहण करने जा रहे हैं कि अब पदोन्नति में आरक्षण किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं होगा.

समता मंच ने सभी बुद्धिजीवियों, विद्वानों एवं सम्मानीय सदस्यों से कहा है कि यह जानकारी एकत्रित करके साझा की जाए कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के किन अधिकारियों एवं कर्मचारियों की लापरवाही के कारण हुई रेल दुर्घटनाओं से रेलवे को कितना आर्थिक नुकसान हुआ है तथा कितने लोगों की जान गई और कितने लोग घायल हुए हैं. साथ ही यह भी जानकारी एकत्रित की जाए कि देश के कितने राजनीतिज्ञों में से किस-किस के पारिवारिक डॉक्टर आरक्षित वर्ग से हैं.

‘जरनल कैटेगरी आयोग’ का गठन किए जाने की मांग

इसके अलावा ‘अखिल भारतीय समानता मंच’ की तरफ से 10 सितंबर को एक मांग पत्र केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को दिया गया है, जिसमें मुख्य रूप से ‘जरनल कैटेगरी आयोग’ का गठन करने तथा विभिन्न हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनरल कैटेगरी के हक में अब तक जितने फैसले दिए गए हैं, उन्हें लागू किए जाने की मांग की गई है.

पदोन्नति में आरक्षण हेतु 117वां संशोधन विधेयक हुआ समाप्त

समता मंच के एक पदाधिकारी ने बताया कि पदोन्नति में आरक्षण हेतु 117वां संशोधन विधेयक सितंबर 2012 में राज्यसभा से पारित हुआ था. लोकसभा में ये बिल आज तक पेश नहीं हो पाया. इस बिल के समाप्त (लेप्स) होने के विषय में कई दिनों से उहापोह का वातावरण चल रहा था. समता मंच के अध्यक्ष श्री पाराशर ने इस विषय में गहन खोजबीन की है. इसके अनुच्छेद 107 एवं 108 का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि ये 117वां बिल जून 2013 में ही समाप्त हो गया था. इन अनुच्छेदों में यह प्रावधान है कि कोई बिल यदि राज्यसभा या लोकसभा में से किसी एक सदन में पारित हो जाता है और 6 माह में दूसरे सदन से पारित नहीं हो पाता है, तो दूसरे सदन की असहमति मानी ली जाती है, जिसके लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन नहीं बुला सकते हैं. चूँकि संविधान संशोधन के लिए संयुक्त अधिवेशन नहीं बुलाया जा सकता है, इसलिए ये 117वां बिल 17 जून 2013 को अंतिम रूप से समाप्त हो गया है.

‘आरक्षण भी एक तरह का भ्रष्टाचार है’

समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि आरक्षण भी एक तरह का भ्रष्टाचार है. उन्होंने बताया कि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में सामान्य वर्ग की आयु सीमा 32 से घटाकर 26 वर्ष किए जाने की साजिश की जा रही है. उन्होंने प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा गठित ‘बासवान कमेटी’ के इस प्रस्ताव का विरोध करने हेतु 16 सितंबर को ‘सामान्य वर्ग एकता मंच-उदयपुर संभाग’ द्वारा नगर निगम परिसर, टाउन हॉल, उदयपुर में ‘सामान्य वर्ग समस्त समाज – अधिकार रैली’ का आयोजन किया. इस रैली में बड़ी संख्या में सामान्य वर्ग के लोगों ने भाग लिया और इस बात की शपथ ली कि अब पदोन्नति में आरक्षण को किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जाएगा.

200 में से 8 अंक अंक पाने वाला सेलेक्ट

आरपीएससी की लिखित परीक्षा में 200 में से 8 अंक यानि 4% अंक पाने वाले आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार का सेलेक्शन होने पर एक बच्ची के पिता ने जोधपुर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक चिट्टी लिखकर उनसे पूछा है कि ऐसी सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था में मेरी बेटी का भविष्य क्या होगा? उक्त पिता ने लिखा है कि 66 साल तक आरक्षण का लाभ लेने के बावजूद यदि आरक्षणवादी (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति) आज भी दलित हैं, तो निश्चित रूप से आरक्षण व्यवस्था में भारी खोट है. तीन बार मुख्यमंत्री पद पर रहने के बावजूद अभी भी मायावती स्वयं को दलित (दलित शब्द की संविधान में कोई व्याख्या नहीं है) ही हैं, तो यह आरक्षण प्रणाली की कमी है.

‘दलित’ शब्द की संविधान में कोई व्याख्या नहीं

सैकडों आईएएस, आईपीएस, पीसीएस और लाखों श्रेष्ठ उम्मीदवारों के अधिकार हड़पने के बाद भी यदि आरक्षणवादी अब भी दलित ही हैं, और समाज में उन्नति नहीं हो पाई है, तो इसका अर्थ यह है कि देश की आरक्षण प्रणाली में निश्चित तौर पर भारी खोट है. अनेक मंत्री, सैकड़ों विधायक और सांसद होने के बाद भी यदि आरक्षणवादी अब दलित (‘दलित’ शब्द की संविधान में कोई व्याख्या नहीं है) कहलाने लगे हैं, तो यह उनकी मानसिक समस्या है. जिस आरक्षण व्यवस्था का प्रावधान आज़ादी के बाद भारत सरकार ने किया था, उस वर्ष यदि 18 वर्ष के किसी व्यक्ति ने आरक्षण का लाभ लिया होगा, तो आज 2016 में उसकी पांचवीं पीढ़ी आरक्षण का लाभ ले रही है. यह कहां तक जायज है? बाबू जगजीवन राम केंद्र में सालों तक मंत्री रहे, उनके परिवार की मीरा कुमार, पी. एल. पूनिया, जो कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव थे, इन्हें अपने वर्ग के वास्तविक जरुरतमंदों को आरक्षण दिया जाना आवश्यक नहीं लगता है.

वर्ष 1902 में शाहूजी महाराज ने सर्वप्रथम अपनी रियासत में आरक्षण का प्रावधान किया था. 1908 एवं 1909 में अंग्रेजी हुकूमत ने ‘मिंटो मार्ले’ कानून बनाकर भारत में आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी. लेकिन वर्ष 2016 में यानि की 107 साल बाद भी अगर समस्या का निदान नहीं हो पाया है, तो आरक्षण व्यवस्था में कहीं न कहीं भारी विसंगति मौजूद है. 1950 से ही पब्लिक रिप्रजेंटेशन एक्ट के द्वारा हर पांच साल में आरक्षित वर्ग से लगभग 131 सांसद लोकसभा में पहुंचते हैं. वर्तमान चुनाव प्रणाली में कोई गरीब चुनाव लड़ सकता है? यदि नहीं, तो आरक्षणवादी किस प्रकार से कमजोर, शोषित और दलित हो सकते हैं, और उन्हें आरक्षण की आवश्यकता क्यों है? बसपा, जो कि आरक्षण का पुरज़ोर समर्थन करती है, मीडिया मे छपीं खबरों के अनुसार, एक-एक विधायक से चुनाव का टिकट देने के लिए करोड़ों रुपए लेती है, क्या वास्तव में ऐसे लोगों को आरक्षण की आवश्यकता है?

समाज में फैलता हुआ विद्वेष का ज़हर

सरकारें निशुल्क कॉपी-किताबें बाँट रहीं हैं. सरकारी विद्यालयों में फीस न के बराबर है. इंजीनियरिंग तक की पढाई में वजीफे बांटे जा रहे हैं. इस सबके बावजूद आरक्षण और फिर पदोन्नति के लिए भी आरक्षण पर आरक्षण दिया जाना कहां तक लाजमी है? यह संविधान के अनुच्छेद 14 तथा अनुच्छेद 335 और समता के अधिकार का खुला उल्लंघन है. हर कदम पर सरकारें समाज में विद्वेष पैदा करके इसे विभक्त किए जा रही हैं. सरकारें इन साधनों पर भारी-भरकम खर्च कर रही हैं. इसके साथ ही यदि सरकारी विद्यालयों में शिक्षा को पूर्णतः निशुल्क करके अनिवार्य कर दिया जाए, विशेषकर गरीब, आरक्षित तथा अनारक्षित वर्ग के सभी लोगों के लिए तथा उत्कृष्ट किस्म की कोचिंग खोल दी जाए या वर्तमान कोचिंग चलाने वालों को ऐसे विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए सब्सिडी जैसी कोई अन्य व्यवस्था की जाए. अर्थात निःशुल्क पढ़ाई और कोचिंग आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के सभी अभ्यर्थियों को दी जाए.

यह एक सही समाधान हो सकता है. तत्पश्चात विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म भी सभी के लिए निशुल्क कर दिए जाएं और अंत में योग्यता के आधार पर चयन किया जाए, तो किसी को कोई समस्या नहीं होगी और जातिवाद को बढ़ावा भी नहीं मिलेगा. इससे समाज में फैलता हुआ विद्वेष का ज़हर बहुत हद तक रुकेगा. समाज, वर्ग और जाति के आधार पर देश बँट रहा है और देश का विकास बाधित हो रहा है. इसके लिए पूरी तरह से देश की सरकारें और नौकरशाही जिम्मेदार है.

आरक्षण लेने और देने के नाम पर देश की हजारों करोड़ की संपत्ति बर्बाद हो रही है. आरक्षण के कारण सामान्य वर्ग पर हर तरह से दवाब बढ़ता जा रहा है. सरकार की आरक्षण नीति के कारण देश में सामान्य वर्ग की एकता अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि कथित दलित वर्ग सरकारी अनुदान और वोट बैंक की राजनीति के चलते अब बहुत शक्तिशाली हो गया है. यदि सरकार इसी तरह आरक्षण पर आरक्षण देती रही और इसका दायरा लगातार बढ़ाया जाता रहा, तो 21वीं सदी का भारत अखंड नहीं रह पाएगा. इस तरह देश को खंडित करने के लिए सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियां भी दोषी हैं. ऐसे में अब न्यायपालिका से ही एकमात्र और आखिरी उम्मीद बची है कि वह सरकार की वर्तमान आरक्षण नीति की समीक्षा करे और देश की एकता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिए उचित मार्गदर्शन कर सरकार को आगाह करे.

यूएन मुख्यालय के समक्ष आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी

भारत में आरक्षण के विरोध के स्वर संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के बाहर भी सुनाई देने लगे हैं. हाल ही में देश में आरक्षण द्वारा सामान्य वर्ग पर किए जा रहे मानवाधिकार हनन को लेकर यूएन मुख्यालय के बाहर जमकर नारेबाजी की गई और आरक्षण की पूर्णरूपेण समाप्ति हेतु मांग की गई. यूएन के सामने यह विरोध प्रदर्शन समता मंच के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया. संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के बाहर की सड़क पर इस प्रदर्शन का आयोजन महासभा के 71वें सत्र की शुरुआत के समय किया गया. आरक्षण से पीड़ित सामान्य वर्ग ने देश से इस विषय पर तत्काल विचार-विमर्श करने की अपील की.

प्रदर्शनकारियों ने आरक्षण विरोधी तख्तियां और बैनर लहराए तथा ‘भारत में सामान्य वर्ग को समानता का अधिकार दो’ आदि नारे लगाए गए. तत्पश्चात यूएन के उच्चाधिकारियों ने मामले की गंभीरता को समझते हुए भारत को इस दोहरे व्यवहार के लिए कड़ी फटकार लगाई. आरक्षण के विरोध में अब देश के हर कोने से विरोधी स्वर उठने लगे हैं. इसी परिप्रेक्ष्य में समता आंदोलन समिति ने वर्तमान आरक्षण पद्धति का विरोध करने के लिए कई तरीके और कार्यक्रम बना रखे हैं, जिन पर समय-समय पर अमल किया जाने वाला है. इसके साथ ही समिति द्वारा यह भी संदेश दिया जा रहा है कि राजनीति संख्या बल का खेल है और राजनीतिज्ञ इस खेल के कुटिल खिलाड़ी बन गए हैं, फिर वह चाहे किसी भी राजनीतिक पार्टी के ही क्यों न हों. इसलिए सामान्य वर्ग को भी एकजुट होकर अपनी शक्ति का अहसास सभी राजनीतिक दलों को कराना होगा.