बहुत अनोखे और विसंगतिपूर्ण हैं रेलवे में पदोन्नति के नियम

कोई ग्रुप ‘सी’ कर्मचारी भी पा सकता है ग्रुप ‘ए’ के पद तक पदोन्नति

ग्रुप ‘बी’ से ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन के लिए नहीं है कोई निर्धारित योग्यता का मानक

योग्य कर्मचारियों/अधिकारियों के प्रति रेल प्रशासन का हमेशा रहा है उदासीन रवैया

महत्वपूर्ण मुद्दे पर कन्नी काटते नजर आते हैं मान्यताप्राप्त कर्मचारी/अधिकारी संगठन

सुरेश त्रिपाठी

भारतीय रेल की वार्षिक आय घटने का सिलसिला पिछले साल से लगातार जारी है. केंद्र सरकार के सहयोग और रेलवे के अथक प्रयास के बाद भी भारतीय रेल के परिचालन औसत (ऑपरेटिंग रेश्यो) में अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है. ऐसी स्थिति में रेल प्रशासन के समक्ष चुनौती यह है कि आखिर रेलवे की दशा और दिशा में कैसे अपेक्षात्मक सुधार लाया जाए. ऐसे में कई सवाल जेहन में उठते हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या रेल प्रशासन अपने राजपत्रित पदों (गजटेड पोस्ट्स) पर अच्छे योग्य (बेस्ट क्वालिफाइड) अभ्यर्थियों की नियुक्ति कर रहा है?

रेलवे में प्रतिवर्ष ग्रुप ‘ए’ के पदों पर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से जितनी सीधी भर्तियां की जाती हैं, उतने ही पदों के लिए फीडर ग्रेड अर्थात् आंतरिक व्यवस्था के तहत ग्रुप ‘बी’ से ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन किया जाता है. यूपीएससी से चयनित अभ्यर्थियों की योग्यता और बुद्धिमत्ता पर यदि कोई शक या कमी नहीं है, तो प्रश्न यह उठता है कि वह कौन सा आयाम है, जिसमें सुधार करने की नितांत आवश्यकता है, जिससे रेलवे पर पड़ रहे चौतरफा बोझ का मजबूती के साथ संतुलन किया जा सके.

यह तो सर्वज्ञात है कि ग्रुप ‘बी’ से ग्रुप ‘ए’ में पदोन्नति सिर्फ सालाना गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) के आधार पर वरीयता क्रम में उपलब्ध ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों में से की जाती है. अर्थात् ग्रुप ‘ए’ के पदों पर प्रमोशन देने में शैक्षिक योग्यता अथवा लिखित परीक्षा का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसा किया जाना वास्तव में रेलवे की वर्तमान कार्य-प्रणाली और जिम्मेदारियों के अनुरूप नहीं माना जा सकता है. इसका दोष सीधे-सीधे रेलवे बोर्ड के उच्च पदों पर आसीन नीति-निर्माताओं को जाता है, जो बदलते वक्त और परिवेष के मुताबिक स्थापना नियमावली में आवश्यक बदलाव नहीं ला पा रहे हैं.

रेलवे की गिनती भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में से एक तकनीकी विभाग के रूप में की जाती है, जिसमें अभियांत्रिकी (इंजीनियरी) और प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) की भूमिका महत्वपूर्ण है. ऐसे में बिना किसी टेक्निकल अथवा मैनेजेरियल क्वालिफिकेशन के कर्मचारियों को उच्च पदों पर बैठाया जाना रेल प्रशासन की बहुत बड़ी चूक है.

आजादी के बाद नए-नए उद्योग लाए गए, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी पर आधारित अनेकों मंत्रालयों/विभागों का निर्माण हुआ. परंतु उस समय देश में अभियांत्रिकी स्नातक (इंजीनियरिंग ग्रेजुएट) अभ्यर्थी कम हुआ करते थे. इसलिए मंत्रालयों ने भी प्रमोशन में क्वालिफिकेशन पर ज्यादा जोर नहीं दिया था. रेलवे भी उन्हीं मंत्रालयों में से एक था, जिसने उच्च पदों पर प्रमोशन में क्वालिफिकेशन की अनिवार्यता को जरूरी नहीं समझा.

धीरे-धीरे देश की शैक्षिक वातावरण बदलता गया और सिविल इंजीनियरिंग, एमबीए, एकाउंट्स, फाइनेंस इत्यादि विषयों के हजारों की संख्या में संस्थान (इंस्टिट्यूट) खुलने लगे. इसके फलस्वरूप भारतीय समाज पूरी तरह अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी पर आधारित नई तकनीकी के साथ प्रतिबद्ध हो गया. इस बदलाव से अछूता रेलवे भी नहीं रह पाया. वर्तमान में रेलवे में भी ग्रुप ‘सी’ और ग्रुप ‘बी’ के पदों पर पदस्थ कर्मचारियों और अधिकारियों की क्वालिफिकेशन (शैक्षिक योग्यता) बी.टेक, एम.टेक, एमबीए, फाइनेंस, एकाउंट्स इत्यादि है.

ऐसे में रेलकर्मियों की शैक्षिक योग्यता को उनके प्रमोशन आदि में नजरअंदाज करना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है. इससे रेलवे को दोहरा नुकसान हो रहा है. पहला यह कि ‘इन-हाउस’ मौजूद टैलेंट का उचित उपयोग न किया जाना और तथा दूसरा यह कि शिक्षित कर्मचारियों/अधिकारियों की क्वालिफिकेशन (योग्यता) का उचित सम्मान न किया जाना. इससे इन अधिकारियों और कर्मचारियों के अंतर्मन में निराशा की व्याप्त भावना से रेलवे की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जो कि न सिर्फ पूरी तरह से राष्ट्र विरोधी है, बल्कि अक्षम्य अपराध भी है. ऐसे में रेलवे बोर्ड के उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों और अधिकारी संगठनों की यह जिम्मेदारी बनती है कि बदलते परिवेष को ध्यान में रखते हुए प्रमोशन के नियमों में न्यूनतम एजुकेशनल क्वालिफिकेशन का क्लॉज़ को जोड़ा जाए, जिससे रेलवे को अगले कई दशकों तक अपने गौरवशाली इतिहास को कायम रखने में मदद मिल सके.

पदोन्नति में शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता या अनिवार्यता का डीओपीटी का नियम भी समर्थन करता है. डीओपीटी के इस नियम में कहा गया है कि ‘उन मंत्रालयों/विभागों, जो अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी से जुड़े हैं, में प्रमोशन के दौरान मूलभूत शैक्षिक योग्यता (बेसिक क्वालिफिकेशन) का क्लॉज़ होना चाहिए. रेलवे भी पूर्णतः अभियांत्रिकी (इंजीनियरी) पर आधारित भारत सरकार का कमर्शियल ट्रांसपोर्ट विभाग है, जिसको ट्रांसपोर्टेशन के साथ-साथ शुद्ध लाभ कमा कर देश को देना है.

डीओपीटी के माध्यम से जारी किए जाने वाले भारत सरकार के दिशा-निर्देशों में प्रमोशन में तकनीकी शैक्षिक योग्यता (टेक्निकल क्वालिफिकेशन), डीओपीटी के पत्र सं. एबी/14017/13/2013-स्टैब्लिशमेंट, (आरआर) (1349) के पैरा-22 में बताई गई है. इसके अनुसार दिए गए प्रश्न का निम्नवत स्पष्टीकरण बताया गया है..

22. Whether the educational qualification prescribed for direct recruits are applicable to promotees?

Ans. “The educational qualifications are not generally insisted upon in the case of promotion to posts of non-technical nature, but for scientific and technical posts, these should be insisted upon, in the interest of administrative efficiency, at least in the case of senior Group ‘A’ posts in the pay Band-3, Grade Pay Rs. 6600, and above. Sometimes the qualifications for junior Group ‘A’ posts and Group ‘B’ posts may not be insisted upon in full, but only the basic qualification in the discipline may be insisted upon.”

उपरोक्त स्पष्टीकरण के मद्देनजर रेलवे बोर्ड द्वारा जल्दी से जल्दी ग्रुप ‘बी’ से ग्रुप ‘ए’ के प्रमोशन में ‘स्पेसिफिक क्वालिफिकेशन’ का क्लॉज़ जोड़ा जाना अत्यंत आवश्यक है. चूंकि ग्रुप ‘ए’ अधिकारी रेलवे के अधिकृत प्रतिनिधि (रिप्रेजेन्टेटिव) होते हैं, इसलिए जब उनके योग्य (क्वालिफाइड) और तकनीकी विशेषज्ञ (टेक्निकल एक्सपर्ट) होने को प्रमाणीकृत किया जाएगा, तभी वह आत्मविश्वास और निष्ठा के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निष्पादन कर सकेंगे.

ग्रुप ‘बी’ से ग्रुप ‘ए’ के प्रमोशन में निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते हैं..

1. यूपीएससी को इस बात पर राजी किया जाना चाहिए कि 50% प्रमोशन कोटे के रिक्त पदों को भरने के लिए रेलवे में कार्यरत ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों की एसीआर के साथ-साथ लिखित परीक्षा भी ली जाए. तत्पश्चात दोनों को उचित अनुपात में जोड़कर एक कॉमन मेरिट लिस्ट बनाई जाए. इसके बाद ही उनकी डीपीसी कराकर उन्हें ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन दिया जाए.

2. प्रमोटी (ग्रुप ‘बी’) कोटे के रिक्त पदों को दो भागों में बराबर विभाजित कर, एक भाग पर उन ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को प्रमोशान दिया जाए, जिनके पास बी.टेक, एम.टेक, एमबीए, एकाउंट्स, फाइनेंस की डिग्री हो तथा दूसरा भाग सामान्य रूप से सभी ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों के लिए उपलब्ध कराया जाए. ऐसा करने से क्वालिफाइड ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों के आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होगी, जिसका फायदा रेलवे को मिलेगा.

3. प्रमोटी कोटे के रिक्त पदों को तीन भागों में बांटकर एक भाग बी.टेक, एम.टेक, एमबीए, एकाउंट्स, फाइनेंस इत्यादि में डिग्री प्राप्त ग्रुप ‘सी’ कर्मचारियों को दिया जाए. इसके लिए 10 से 15 साल की न्यूनतम सर्विस का प्रावधान रखा जा सकता है. इनका चयन यूपीएससी द्वारा लिखित परीक्षा और एसीआर के आधार पर किया जा सकता है. दूसरा भाग बी.टेक, एम.टेक, एमबीए, एकाउंट्स, फाइनेंस आदि में डिग्री प्राप्त ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को दिया जा सकता है. जबकि तीसरा भाग सामान्य रूप से सभी ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों के लिए रखा जा सकता है.

4. रेलवे बोर्ड के अधिकारीगण और अधिकारियों के मान्यताप्राप्त संगठन खुद ही इतने सक्षम हैं कि वे उपरोक्त सुझावों से भी बेहतर कोई अन्य उपाय भी तैयार कर सकते हैं. तथापि, ऊपर बताए गए सुझाव कठिन हो सकते हैं, परंतु बदलते परिवेष को ध्यान में रखते हुए रेलवे के लिए ऐसा कोई उपाय करना अत्यंत आवश्यक हो गया है.

सब जानते हैं कि कोई भी सिस्टम ‘सेल्फ करेक्टिव’ होता है और यह भी कि कोई भी सिस्टम एक निश्चित समय तक ही अपनाए जाने के लिए कारगर हो सकता है. समय के साथ उसमें बदलाव अपरिहार्य होता है. यदि समय रहते सभी आयामों-उपायों पर समझदारी के साथ हल नहीं निकाला गया, तो रेलवे की बिगड़ती हालत, व्यवस्था को एक न एक दिन बदलने के लिए खुद ही बाध्य कर देगी. इसलिए समय रहते रेलवे की बिगड़ती व्यवस्था और आर्थिक स्थिति के मद्देनजर टेक्निकल क्वालिफिकेशन के सुझावों पर अमल करना एक कारगर कदम साबित हो सकता है. इसके परिणामस्वरूप कम से कम अगली एक सदी तक रेलवे शुद्ध लाभ कमाकर देश की प्रगति और उन्नति में अन्य मंत्रालयों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल सकेगा.