अदालती आदेशों की अवहेलना
रे.बो./जो.रेलों द्वारा सॉलिसिटर जनरल और कैबिनेट सेक्रेटरी के निर्देशों की अनदेखी
मोदी सरकार द्वारा की जा रही प्रशासनिक सुधार की पहल पर अधिकारियों का पलीता
अपनी मनमानी करने में जोनल रेलों से भी दो कदम आगे हैं रेलवे बोर्ड के अधिकारी
क्षुब्ध अधिकारियों ने ज्ञापन देकर मांगा प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मिलने का समय
प. रे. ने सेवानिवृत्ति से मात्र दो दिन पहले एक प्रमोटी अधिकारी को प्रमोशन दिया
हाई कोर्ट द्वारा अवैध घोषित जेएजी पैनल को शीघ्र क्लियर करने का कुत्सित प्रयास
सीपीसी की सिफारिश पर गठित कमेटी की रिपोर्ट को नहीं किया जा रहा सार्वजनिक
सुरेश त्रिपाठी
सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया (एसजी) औरकैबिनेट सेक्रेटरी (सीएस) की हिदायत के बावजूदरेलवे बोर्ड अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आ रहा है. पटना हाई कोर्ट द्वारा अवैध घोषित की गई सीनियरिटी लिस्ट में से एक प्रमोटी अधिकारी को पश्चिम रेलवे ने सेवानिवृत्ति से मात्र दो दिन पहले जेएजी में प्रमोशन दे दिया. अदालतों के निर्णय को दरकिनार करते हुए रेलवे बोर्ड के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा आरबीएसएस और ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों के अवैध घोषित हो चुके स्थाई जेएजी पैनल को जल्दी-जल्दी क्लियर करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है. कतिपय अधिकारियों के दबाव के चलते रेलवे बोर्ड द्वारा सातवें वेतन आयोग की सिफारिश पर गठित पांच सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है. अदालतों के निर्णय और ज्ञापनों पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं होने से युवा ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों में भारी असंतोष व्याप्त हो रहा है. इसके चलते पदोन्नति घोटाले पर 100 से अधिक युवा ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों द्वारा ज्ञापन देकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगा गया है.
एसजी के दि. 3 मार्च 2017 के पत्र (सं. एसजी/03/जनरल’2017/12) और सीएस के दि. 11 मई 2017 के डी. ओ. (सं. 403/1/5/2016/सीए.वी.) के माध्यम से चेयरमैन, रेलवे बोर्ड को स्पष्ट रूप से निर्देशित किया गया है कि ‘अदालतों के निर्णयों का निर्धारित समय के अंदर अनुपालन करते हुए संबंधित अदालत को बता दिया जाए.’ पत्र में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि ‘रेलवे में मौजूद कानून विभाग प्रतिदिन हाई कोर्टों और विभिन्न अदालतों की वेबसाइट पर जाकर रेलवे से संबंधित सभी मामलों पर दिए गए निर्णयों का अनुपालन किया जाए.’ इन उच्च स्तरीय निर्देशों को रेलवे बोर्ड ने सभी जोनल रेलों के महाप्रबंधकों को 24 मई 2017 को पत्र (सं. 2017/एलसी/मिस्लेनियस/10) लिखकर फैक्स, ईमेल और डॉक के माध्यम से तत्काल अवगत करा दिया था. परंतु रेलवे बोर्ड के साथ-साथ जोनल रेलवे भी सामंतवादी कार्य-प्रणाली का उदाहरण पेश करते हुए इन उच्च स्तरीय आदेशों को कचरे के डिब्बे में डाल कर भूल गए. इसका जीता जागता उदाहरण पश्चिम रेलवे में देखने को मिला है.
पटना हाई कोर्ट ने अपने 12 मई 2017 को दिए गए निर्णय में आईआरईएम में मौजूद इंटर-से-सीनियरिटी वाले नियम को रद्द करने के साथ-साथ रेलवे के संकेत एवं दूरसंचार विभाग (एसएंडटी) के ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों के वर्ष 2012-13 और 2013-14 के पैनल की वरीयता सूची को भी रद्द कर दिया है. इसकी सूचना ज्ञापनों के माध्यम से रेलवे बोर्ड सहित सभी जोनल रेलों को भी तत्काल दे दी गई थी.
तत्पश्चात रेलवे बोर्ड द्वारा सभी जोनल रेलों को 24 मई 2017 को उपरोक्त पत्र के माध्यम से अदालतों के आदेशों को अमल में लाने का आदेश निर्गत किया गया. इसके बाद भी उक्त उच्च स्तरीय आदेशों को दरकिनार करते हुए पश्चिम रेलवे ने एसएंडटी विभाग की रद्द हो चुकी प्रमोटी अधिकारियों की वरीयता में से एक अधिकारी अभय कुमार गुप्ता (डीएसटीई/सी/वड़ोदरा) को 31 मई 2017 को रिटायरमेंट से दो दिन पहले 29 मई 2017 को जेएजी (एडहाक) प्रमोशन दे दिया. {देखें प.रे. का प्रमोशन लेटर सं. ई(जी)838/6 (जेएजी)}.
पश्चिम रेलवे का यह कृत्य रेलवे बोर्ड के दिशा-निर्देश के खिलाफ होने के साथ ही हाई कोर्ट, पटना के आदेश की अवहेलना भी है. इसके लिए पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक के साथ-साथ मुख्य कार्मिक अधिकारी (सीपीओ) और मुख्य संकेत एवं दूरसंचार अभियंता (सीएसटीई) भी जिम्मेदार हैं. हाई कोर्ट की इस अवमानना पर सीआरबी और सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड पर पर्सनल हियरिंग की गाज किसी भी समय गिर सकती है.
इस तरह अपनी मनमर्जी से प्रमोशन देना रेलवे में पूर्ण रूपेण व्याप्त उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार का सूचक है. रेलवे, सीआरबी सहित किसी भी जोनल महाप्रबंधक की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं है कि वेलफेयर के नाम पर किसी भी अधिकारी को कभी-भी अपनी मनमर्जी से पदोन्नति देकर रेलवे राजस्व को चूना लगाया जाए. पश्चिम रेलवे द्वारा दिया गया संदिग्ध प्रमोशन मोदी सरकार द्वारा की जा रही प्रशासनिक सुधार की पहल पर करारा प्रहार है, जो कि रेलवे के सामंतवादी अधिकारियों द्वारा लगातार किया जा रहा है.
रेलवे बोर्ड के अधिकारी भी अपनी मनमानी करने में जोनल रेलों से भी दो कदम आगे हैं. पटना हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि आईआरईएम में मौजूद डीआईटीएस फिक्स करने वाले वर्तमान नियम को तत्काल बदलकर बिना एंटी डेटिंग देते हुए इंडेंट भेजने की तारीख के आधार पर इंटर-से-सीनियरिटी को पुनर्निर्धारित कर कोर्ट को बताया जाए. फिर भी रेलवे बोर्ड के अधिकारियों द्वारा हाई कोर्ट के उक्त दिशा-निर्देश को दरकिनार करते हुए वर्ष 2012-13 और 2013-14 के निरस्त हो चुके प्रमोटी अधिकारियों के पैनल को जेएजी में स्थाई प्रमोशन देने वाली फाइल को फटाफट क्लियर किया जा रहा है. बोर्ड के अधिकारियों द्वारा ऐसा करना पटना हाई कोर्ट के आदेशों की अवहेलना और अदालत की अवमानना है, जिसके लिए चेयरमैन, रेलवे बोर्ड और सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड तथा मेंबर स्टाफ, रेलवे बोर्ड सीधे-सीधे जिम्मेदार हैं.
30 जून 2017 को समाप्त हो रहा है पटना हाई कोर्ट द्वारा दिया गया समय
पटना हाई कोर्ट ने कैट, पटना के निर्णय पर यथास्थिति बनाए रखते हुए रेलवे को आदेश दिया था कि आईआरईएम में यथाशीघ्र बदलाव कर इंटर-से-सीनियरिटी को पुनर्निर्धारित किया जाए. कैट, पटना के 3 मई 2016 के निर्णय पर पटना हाई कोर्ट ने 12 जुलाई 2016 को उक्त आदेश दिया था. तत्पश्चात 12 मई 2017 को पटना हाई कोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय देते हुए यह स्टे हटा लिया गया. अतः पटना हाई कोर्ट द्वारा रेलवे बोर्ड को दिया गया छह हप्ते का समय 30 जून 2017 को समाप्त हो रहा है. ऐसी स्थिति में रेलवे बोर्ड को 30 जून 2017 से पहले ही आईआरईएम में यथोक्त बदलाव कर इंटर-से-सीनियरिटी को रिवाइज करके पटना हाई कोर्ट को बताना है, अन्यथा उसे अदालत की अवमानना का सामना करना होगा.
रेलवे बोर्ड द्वारा सातवें वेतन आयोग की सिफारिश पर गठित पांच सदस्यों वाली कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा रहा.
रेलवे में व्याप्त करोड़ों-अरबों रुपए के अधिकारी पदोन्नति घोटाले के ज्ञापन पर सातवें वेतन आयोग (सीपीसी) ने संज्ञान लेते हुए रेलवे बोर्ड को आदेश दिया था कि एक कमेटी बनाकर पूरे मामले पर गंभीरतापूर्वक और सघन निरीक्षण के बाद उक्त कमेटी की रिपोर्ट आयोग को सौंपी जाए. इस पर रेलवे बोर्ड ने पांच सदस्यों वाली एक कमेटी बनाकर इस पूरे मामले पर रिपोर्ट देने को कहा. 4 अक्टूबर 2016 (पत्र सं. ईआरबी-1/2016/23/53) को गठित की गई इस कमेटी में रेलवे बोर्ड के संयुक्त सचिव/स्था.-2 की अध्यक्षता में कार्यकारी निदेशक/ई(जीसी), कार्यकारी निदेशक/ई (आईआर), कार्यकारी निदेशक/वित्त(ई) और उप कानूनी सलाहकार शामिल थे. रेलवे बोर्ड के आंतरिक सूत्रों से ‘रेलवे समाचार’ को पता चला है कि उक्त कमेटी ने ‘पदोन्नति घोटाले’ पर अपनी जांच रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को काफी पहले ही सौंप दी थी, परंतु रेलवे बोर्ड उक्त जांच रिपोर्ट को आरबीएसएस और इरपोफ के दबाव में सार्वजनिक नहीं कर रहा है.
लगातार उपेक्षा के शिकार हो रहे युवा ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों ने बनाया बड़ा प्लान
विभिन्न अदालतों के निर्णय तथा अनेकों ज्ञापन देने के बावजूद भी रेलवे बोर्ड इस पूरे मामले पर ढुलमुल रवैया अपनाए हुए है. रेलवे की आत्मा कहे जाने वाले रेलवे बोर्ड पर आरबीएसएस के अधिकारियों द्वारा पूरी तरह से कब्जा कर लिया गया है. सीआरबी और रेलवे बोर्ड के सदस्यों तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की मजाल नहीं है कि वह उनके विरुद्ध कोई ठोस कार्यवाही कर सकें. इन असंगत एवं असमंजसपूर्ण स्थितियों की वजह से सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों की लगातार और भारी उपेक्षा हो रही है. ‘रेलवे समाचार’ को अपने स्रोतों से पता चला है कि 100 से अधिक युवा ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों ने रेलवे में हुए इस पदोन्नति घोटाले पर संयुक्त ज्ञापन भेजकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा है. उन्होंने पदोन्नति घोटाले से संबंधित सारे दस्तावेज और आरटीआई से प्राप्त समस्त जानकारी पीएमओ में जमा करा दी है.
अधिकारी पदों और पदोन्नतियों में हुए गंभीर भ्रष्टाचार के मद्देनजर ग्रुप ‘ए’ युवा अधिकारियों की कुछ प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं-
1. पदोन्नति घोटाले की सीबीआई से जांच कराकर दोषी अधिकारियों को अविलंब दंडित किया जाए. रेलवे बोर्ड की ऑफिस नोटिंग, (जिस पर लिखा गया है कि इरपोफ की लगातार मांग पर ऐसा किया जा रहा है), वाले पेज पर जिन-जिन अधिकारियों ने अपनी हस्ताक्षरित सहमति दी है, उन सभी अधिकारियों को अनुकरणीय दंड दिए जाने के साथ ही रेलवे राजस्व को अब तक जितना भी नुकसान हुआ है, वह सब उनसे वसूल किया जाए.
2. रेलवे बोर्ड द्वारा अदालत के आदेशों का अक्षरशः पालन करते हुए बिना एंटी डेटिंग के निर्धारित रोटा-कोटा के अनुपात में इंटर-से-सीनियरिटी का शीघ्र पुनर्निर्धारण किया जाए तथा उन सभी संबंधित अधिकारियों पर गाज गिराई जाए, जो कि इस कोर्ट निर्देशित समस्त न्यायोचित प्रक्रिया में बाधा डाल रहे हैं.
3. रेलवे बोर्ड सेक्रेट्रिएट सर्विस (आरबीएसएस) के अधिकारियों के कुचक्र और षड्यंत्र में फंसी सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों की कैरियर प्लानिंग, प्रमोशन, सर्विस इत्यादि से संबंधित समस्त प्रक्रिया को सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के हाथों में सौंपा जाए.
उपरोक्त प्रकार के सभी मुद्दों पर ग्रुप ‘ए’ युवा अधिकारी लामबंद होते नजर आ रहे हैं. इस पूरे मामले में हमेशा की तरह ‘रेलवे समाचार’ का मानना है कि अदालती आदेशों के बाद सब कुछ दूध और पानी की तरह स्पष्ट हो गया है. इसलिए रेलवे बोर्ड को अदालत के आदेशों और सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया एवं कैबिनेट सेक्रेटरी के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए अदालत को इसकी सूचना समय रहते दे देनी चाहिए. साथ ही पांच सदस्यों वाली कमेटी की रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करके अनावश्यक विवाद से बचा जाना चाहिए, अन्यथा रेलवे बोर्ड का ढुलमुल रवैया पूरे रेल मंत्रालय के लिए भारी शर्मिंदगी का कारण बन सकता है.
ऐसा इसलिए होगा क्योंकि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवा अधिकारियों को मिलने का समय दे दिया और वह सभी बातों से अवगत हो गए, तो यह रेलवे बोर्ड के शीर्ष (सीआरबी) के गाल पर एक बहुत झन्नाटेदार तमाचा साबित होगा, क्योंकि जो नेतृत्व अपने मजबूत स्तंभों की मान-मर्यादा की देखभाल नहीं कर सकता, वह देशहित में क्या काम करेगा? इसलिए यह पूरा मामला बड़ा ही दिलचस्प होता नजर आ रहा है. किसी भी केंद्रीय मंत्रालय के इतिहास में शायद यह पहला मौका है कि जब रेल मंत्रालय के अधिकारी अपने साथ हो रहे सौतेले व्यवहार और ज्यादती को राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के संज्ञान में लाने जा रहे हैं तथा पूरा रेल महकमा एक ग्रुप विशेष को लाभ देने के चक्कर में अपने अंदर फैली अराजकता को अपाहिज एवं मूकदर्शक बनकर देखता रहेगा.