पुत्र प्रेम में लालू नपे, अब ‘प्रमोटी प्रेम’ में नापेगा रेलवे बोर्ड!

सीआरबी और सेक्रेटरी/रे.बो. की कभी-भी हो सकती है लाइन हाजिरी

समय-सीमा समाप्त होने के बावजूद रेलवे बोर्ड ने नहीं बदली वरीयता

अटार्नी जनरल और कैबिनेट सेक्रेटरी के निर्देशों की उड़ाई गई धज्जियां

रे.बो. के ढुलमुल रवैये से पैदा हुआ सभी जोनल रेलों में न्यायिक संकट

सीधी भर्ती सहित प्रमोटी अधिकारियों की भी अधर में अटकी पदोन्नतियां

सुरेश त्रिपाठी

मोदी सरकार एक तरफ जहां अपने धुर-विरोधी, भ्रष्टाचारी और उपद्रवी नेताओं की करतूतों का कच्चा चिट्ठा खोल रही है, तो दूसरी तरफ सभी केंद्रीय मंत्रालयों में न्यायसंगत और पारदर्शी नियमों का पालन करने का दबाव बना रही है. परिणामस्वरूप एक ओर सरकारों का तख्तापलट हो रहा है, तो दूसरी ओर मंत्रालयों के भ्रष्ट अधिकारियों को चिन्हित कर उन्हें जबरन सेवानिवृत्त कराया जा रहा है. मोदी सरकार एक अलग ढंग से दागी नेताओं के साथ-साथ भ्रष्ट अधिकारियों का भी सफाया करने पर आमादा है. यह देखते हुए भी यदि रेलवे बोर्ड सहित जोनल रेलों के तमाम रेल अधिकारीगण अब भी नहीं चेतते हैं, तो शासन, प्रशासन और न्यायपालिका के समक्ष उनकी भारी किरकिरी होना लगभग तय है.

25 जुलाई को ‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको लालू ने ठगा नहीं’ शीर्षक से ‘रेलवे समाचार’ ने पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा रेलवे में किए गए अधिकारी पदोन्नति घोटाले को विस्तृत रूप से उजागर किया था, उसका परिणाम सबके सामने है. इसी प्रकार ‘रेलवे समाचार’ विगत कुछ वर्षों के दौरान रेलवे में हुए अधिकारी पदोन्नति घोटाले पर लगातार साक्ष्यों के साथ सामग्री प्रकाशित करता आ रहा है. इसी वजह से रेलवे के पूरे ग्रुप ‘ए’ कैडर का लेखा-जोखा अब सभी को समझ में आने लगा है. इसके साथ ही अदालत के निर्णय ने भी इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि ‘रेलवे समाचार’ द्वारा प्रस्तुत जानकारी शत-प्रतिशत सत्य और रेलवे के हित में होती है.

मोदी सरकार के ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ के नारे के अंतर्गत रेलवे बोर्ड के आकाओं द्वारा अड़ियल रुख अपनाना एक बहुत बड़े संकट को दावत देने के समान है. ग्रुप ‘ए’ अधिकारी पदोन्नति घोटाले की वजह से सरकार और अदालत की अवमानना की गाज किस-किस पर गिरेगी, यह तो समय बताएगा, परंतु एक बात तय है कि रेलवे बोर्ड का उच्च तंत्र जितना ज्यादा अक्खड़ और अधर्मी रुख अपनाएगा, मोदी सरकार में उसकी उतनी ही ज्यादा दुर्गति और किरकिरी होगी.

पटना हाई कोर्ट ने रेलवे बोर्ड को अपनी पुरानी गलतियों को सुधारने का एक सुनहरा मौका दिया है, फिर भी यदि वह अपनी जिद पर अड़ा है, तो यहां वह कहावत चरितार्थ होने वाली है कि लातों के भूत बातों बात से नहीं मानते’. यहां यह जान लेना आवश्यक है कि अदालत ने वरीयता पुनर्निर्धारण के लिए रेलवे बोर्ड को चार महीने का समय दिया था, जो 30 जून को समाप्त हो गया. फिर भी रेलवे बोर्ड ने अदालत को वरीयता में बदलाव की अब तक कोई जानकारी नहीं दी है. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि केंद्रीय गृहमंत्री के दबाव में रेलमंत्री ने हालांकि प्रमोटी अधिकारी संघ के साथ पांच बार बैठक तो की है, परंतु उन्होंने भी अटार्नी जनरल और कैबिनेट सेक्रेटरी के निर्देशों के परिप्रेक्ष्य में पटना हाई कोर्ट के निर्णय को लागू करने पर अपनी दृढ़ता दर्शाई है. तथापि, दीवार पर लिखी इस स्पष्ट इबारत को स्टोरकीपर के नेतृत्व वाला रेलवे बोर्ड नहीं पढ़ पा रहा है.

‘रेलवे समाचार’ को अपने विश्वस्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि रेलवे बोर्ड ने अब एक और कुटिल चाल चली है. वह यह कि अदालत को गुमराह करने के लिए उसके आदेश को मानने वाली नोटिंग पर सक्षम प्राधिकार (कम्पीटेंट अथॉरिटी) सीआरबी से समय रहते अर्थात जून महीने में ही सहमति ले ली गई है. परंतु आगे की समस्त प्रक्रिया और सही मायने में वरीयता पुनर्निर्धारण को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया है. इसके साथ ही रेलवे बोर्ड द्वारा अब तक जोनल रेलों को भी अंतिम फैसले की जानकारी नहीं दी गई है.

विभिन्न जोनल रेलों के सैकड़ों अधिकारियों ने अपने ज्ञापन रेलवे बोर्ड को भेजे हैं, फिर भी रेलवे बोर्ड के अकर्मण्य उच्च अधिकारी अपनी उद्दंडता और मनमानी से बाज नहीं आ रहे हैं. महीनों बीतने के बाद भी रेलवे बोर्ड का आदेश निर्गत न होने की वजह से सभी जोनों में जीएजी में रिक्तियों के बावजूद अधिकारियों को प्रमोशन नहीं दिया जा पा रहा है. इससे सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के साथ-साथ ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों की भी पदोन्नति प्रभावित हो रही है. इसका सीधा प्रभाव रेलवे की उत्पादकता पर पड़ रहा है.

रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेलवे समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार पटना हाई कोर्ट के निर्णय को लागू किए जाने संबंधी नोटिंग पर सीआरबी ने अपने हस्ताक्षर जून में ही कर दिए थे. यह फाइल वर्तमन में कार्मिक निदेशालय के पास लंबित है.माना जा रहा है कि मेंबर स्टाफ के न होने से यह फिलहाल लंबित है. परंतु सूत्रों का कहना है कि प्रमोटी अधिकारी संघ (इरपोफ) और आरबीएसएस के दबाव में वरीयता के पुनः निर्धारण के इस निर्णय को लागू नहीं किया जा रहा है. सूत्रों का कहना है कि मेंबर स्टाफ के न होने की बात इसलिए अमान्य है, क्योंकि इस पद को अब नया पदनाम देने की तैयारी चल रही है, जिससे कि डीजी/कार्मिक आनंद माथुर के दावे को खत्म किया जा सके.

तमाम अधिकारी रेलवे बोर्ड के ऐसे अक्षम नेतृत्व पर लानत भेज रहे हैं, जो राष्ट्र की सम्मानित एवं संगठित संस्था का प्रमुख होने के बावजूद इतनी बड़ी दकियानुसी में जी रहा है. रेलवे बोर्ड से कुछ लोग यह भी अफवाह उड़ा रहे हैं कि पटना हाई कोर्ट के आदेश पर अंतिम सहमति के लिए कानून मंत्रालय और कार्मिक मंत्रालय की संस्तुति के लिए नोटिंग भेजी गई है. परंतु दोनों मंत्रालयों से आरटीआई के ततः प्राप्त जवाब, जो दो दिन पहले प्राप्त हुआ है, में यह कहा गया है कि मंत्रियों के पास इस तरह का पत्र या नोटिंग रेलवे बोर्ड से प्राप्त नहीं हुआ है. इसमें यह भी बताया गया है कि अदालत के आदेशों को मानना या न मानना संबंधित मंत्रालय की जवाबदेही होती है. इससे जाहिर है कि रेलवे बोर्ड इस मामले में जानबूझकर देरी कर रहा है.

वरीयता निर्धारण में देरी करके ‘इरपोफ’ को दिया जा रहा है समय

यह तो तय है कि इरपोफ यदि पटना हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल करता है, तो उसके रिजेक्ट होने के शत-प्रतिशत आसार हैं, क्योंकि जिस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही अपना निर्णय दे चुका है और उस पर रिव्यू पिटीशन भी रिजेक्ट कर चुका है, उस पर उसके द्वारा पुनर्विचार किए जाने की संभावना शून्य मानी जा रही है. ऐसे में सिर्फ रेलवे के चंद अधिकारियों के लिए एक ‘सेटल्ड केस’ को दोबारा खोले जाने का सवाल ही नहीं उठता है.

यह भी जगजाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी निर्णय ‘प्रिंसिप्लस’ को निर्धारित करता है. उसका निर्णय किसी विषय विशेष के लिए नहीं होता है. अतः सुप्रीम कोर्ट से रिलीफ के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं. तथापि, प्रमोटी अधिकारी संघ यह अवश्य चाहेगा कि पटना हाई कोर्ट के आदेश का पालन देरी से हो, क्योंकि इसमें जितनी देरी होगी, उतने ही प्रमोशन प्राप्त किए प्रमोटी अधिकारी सेवानिवृत्त होते जाएंगे, जिससे इस आदेश का असर कम से कम प्रमोटी अधिकारियों पर पड़ेगा. इसी प्रयास के तहत इरपोफ नेतृत्व डैमेज कंट्रोल की युक्ति में जुटा हुआ है, जिससे वह अपनी गिरती हुई साख को बचा सके.

कोटा वृद्धि की फाइल पर एक ही दिन में बोर्ड के उच्च अधिकारियों ने दी थी मंजूरी

उल्लेखनीय है कि जहां पटना हाई कोर्ट के निर्णय को लागू करने में इतनी देरी की जा रही है, वहीं रेलवे बोर्ड के उच्च अधिकारियों ने प्रमोटी कोटा बढ़ाने में अति-तत्परता दिखाते हुए उसे एक ही दिन में अपनी मंजूरी प्रदान करने की काबिलियत दिखाई थी. 21 जुलाई 2005 का वह ऐतिहासिक दिन सभी को याद है. इसी दिन रेलवे बोर्ड के अधिकारियों ने सुपर जेट स्पीड से काम करते हुए प्रमोटी कोटे की असंवैधानिक बढ़ोत्तरी वाली नोटिंग पर अपनी मंजूरी दी थी. एक ही दिन में संयुक्त निदेशक/स्थापना(जीपी), कार्यकारी निदेशक/स्थापना(जीसी) और एडवाइजर स्टाफ सभी ने नोटिंग पर मंजूरी देकर प्रमोटी कोटा को 180 से बढ़ाकर 255 किया था. यह प्रक्रिया मात्र दो महीनों में पूरी कर ली गई थी. अर्थात रेलवे बोर्ड के बाबू से लेकर रेलमंत्री तक सभी ने कर्मठता का उदाहरण प्रस्तुत किया और पलक झपकते ही प्रमोटी कोटा बढ़ा दिया गया था.

रेलवे बोर्ड के इन निर्लज्ज और भ्रष्ट अधिकारियों का मन जब इतने से भी नहीं भरा, तो पहले भेजे जा चुके प्रमोटी अधिकारियों की डीपीसी के पेपर्स यूपीएससी से वापस मंगाकर फिर से बढ़े हुए कोटे पर डीपीसी करने के लिए इंडेंट भेजा. रेलवे बोर्ड के इन अधिकारियों द्वारा जो ‘प्रमोटी प्रेम’ दर्शाया गया, उसका सीधा अर्थ इनके भ्रष्टाचार से ही लगाया जा सकता है, क्योंकि उनकी यह अति-तीव्र तत्परता इसके बिना संभव ही नहीं हो सकती थी. अब इनके अंदर इतनी भी शर्मो-हया बाकी नहीं बची है कि हाई कोर्ट द्वारा दिए गए समय की मियाद पूरी होने के बावजूद उस पर अमल सुनिश्चित कर सकें. आरबीएसएस की उंगलियों पर नाचता रेलवे बोर्ड और इसके वरिष्ठ अधिकारी सिर्फ एक रबर स्टैम्प बनकर रह गए हैं. पद पर बैठ गए हैं परंतु इन्हें कैडर की जानकारी रत्ती भर भी नहीं है, जो अपनी अकर्मण्यता से युवा अधिकारियों का भविष्य खराब कर रहे हैं.

अटार्नी जनरल और कैबिनेट सेक्रेटरी के आदेशों की हो रही है अनदेखी

इसी वर्ष अटार्नी जनरल और कैबिनेट सेक्रेटरी के दिशा-निर्देशों को पालन करने के लिए रेलवे बोर्ड ने सभी जोनल रेलों को पत्र लिखा था. इसमें स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि प्रतिदिन हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उनके द्वारा निर्गत होने वाले आदेशों को अविलंब लागू किया जाए. तथापि, महीनों बीतने के बाद भी जोनल रेलों के साथ ही खुद रेलवे बोर्ड भी पटना हाई कोर्ट के आदेश पर अमल करने से कतरा रहा है. इससे ऐसा लग रहा है कि कुछ अधिकारियों को नुकसान नहीं होने देने के चक्कर में अदालत के समक्ष एक बार पुनः रेलवे बोर्ड की किरकिरी होनी तय है.

‘रेलवे समाचार’ के सूत्रों का कहना है कि हताश युवा अधिकारी अदालत का दरवाजा खटखटा चुके हैं और अदालत की अवमानना के आरोप में सीआरबी एवं सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड को किसी भी समय लाइन हाजिर होने का आदेश निकल सकता है, जो कि रेल मंत्रालय के लिए अत्यंत शर्मनाक होगा. वरीयता निर्धारण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही अंतिम फैसला सुना दिया है, जो कि फिलहाल अकाट्य है. इसलिए रेलवे बोर्ड को आगे बढ़कर संबंधितों के कुटिल नेटवर्क को समझना चाहिए कि वह सिर्फ चार-पांच प्रमोटी पैनल के कारण पूरी बिरादरी का बंटाधार न होने दे. वरना आने वाली अधिकारी पीढ़ियां वर्तमान नेतृत्व को कभी माफ नहीं करेंगी.