सीआरबी और सेक्रेटरी/रे.बो. के विरुद्ध अदालत की अवमानना नोटिस
रेलवे बोर्ड की अहंमन्यता के कारण शुरू हुई आर-पार की अदालती लड़ाई
जवाब दाखिल करने हेतु रेलवे बोर्ड को मिली सिर्फ एक हप्ते की मोहलत
सीआरबी और सेक्रेटरी/रे.बो. की निष्क्रियता पर अदालत ने जताई नाराजगी
हर हाल में 17 अगस्त से पहले पुनर्निर्धारित करनी होगी ग्रुप ‘ए’ की वरीयता
सुरेश त्रिपाठी
भारतीय रेल में हुए अरबों रुपये के अधिकारी पदोन्नति घोटालेपर दिए गए अदालत के निर्णय की अवमानना पर चेयरमैन, रेलवे बोर्ड ए. के. मितल और सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड आर. के. वर्मा के विरुद्ध कैट/पटना ने गुरुवार, 10 अगस्त को नामजद अवमानना नोटिस (सीपी/70/2017) जारी की है. कैट ने अपने आदेश में कहा है कि ओ. ए. नं. 460/2015, आर. के. कुशवाहा बनाम ए. के. मितल मामले में दि. 03.05.2016 को इस ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए निर्णय पर जानबूझकर अमल नहीं किए जाने और अदालत की जानते-बूझते हुए अवहेलना करने हेतु क्यों न उनके खिलाफ अदालती अवमानना की कार्रवाई की जाए. अदालत ने एक हप्ते में आवश्यक कागजात पेश किए जाने सहित उपरोक्त दोनों प्रतिवादियों को अगली सुनवाई के समय व्यक्तिगत रूप से हाजिर रहने के साथ ही चार हप्ते के अंदर अपना जवाब दाखिल करने का समय दिया है. मामले की अगली सुनवाई 29 अगस्त को होगी.
उल्लेखनीय है कि रेलवे में हुए अरबों रुपये के इस अधिकारी पदोन्नति महा-घोटाले पर ‘रेलवे समाचार’ द्वारा आवश्यक दस्तावेजों के आधार पर अपने पाठकों को लगातार ताजा जानकारी उपलब्ध कराई जाती रही है. परंतु विडंबना यह है कि इस महाघोटाले के उजागर होने और अदालती आदेशों के बावजूद रेलवे बोर्ड अपनी हठधर्मिता अथवा अपने ‘प्रमोटी प्रेम’ से उबर नहीं पा रहा है तथा लगातार अदालत के आदेशों की अवहेलना कर रहा है, जो कि सरकारी तंत्र के लिए घोर निंदनीय कृत्य है.
ज्ञातव्य है कि पटना हाई कोर्ट और कैट/पटना ने रेलवे बोर्ड को आदेश दिया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एन. आर. परमार मामले में दिए गए दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन करते हुए रेलवे में भी ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों की वरीयता का पुनर्निर्धारण किया जाए. इसके साथ ही अदालत ने यह भी आदेश दिया था कि डीओपीटी के ओ. एम. दि. 04.03.2014 में दिए गए निर्देशों के अनुसार दि. 27.11.2012 के बाद जितने भी प्रमोटी अधिकारियों की इंटर-से-सीनियरिटी का निर्धारण हुआ है, नए नियमों के आधार पर उन सभी की संयुक्त वरीयता निर्धारण करके अदालत को बताया जाए. परंतु रेलवे बोर्ड द्वारा अदालत के इस आदेश का पालन आज तक नहीं किया गया. रेलवे बोर्ड यदि अब भी यह वरीयता निर्धारण करने और अदालत का आदेश मानने में और विलम्ब या कोताही करता है, तो इस महाघोटाले के मुद्दे पर रेलवे बोर्ड को अदालत के सामने बुरी तरह शर्मशार होना पड़ सकता है.
यह तो सर्वज्ञात है कि इंटर-से-सीनियरिटी के नए नियम में एंटी-डेटिंग सीनियरिटी का नियम समाप्त हो चुका है. इसके साथ ही इंडेंट भेजने की तारीख के आधार पर ग्रुप ‘ए’ में सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के बीच पारस्परिक वरीयता का निर्धारण किया जाना है. परंतु रेलवे बोर्ड ने अपनी अहंमन्यता, अकर्मण्यता और लापरवाही का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अदालत द्वारा दी गई समय-सीमा से एक महीना अधिक बीत जाने के बाद भी वरीयता का निर्धारण नहीं किया है. अतः ऐसा माना जा रहा है कि अदालत द्वारा जारी की गई उक्त अवमानना नोटिस ‘प्रमोटी प्रेम’ के चलते रेलवे बोर्ड के मुंह पर पड़ा एक करारा तमाचा है.
अदालत की सजगता और सक्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सभी संबंधित आवश्यक कागजात प्रस्तुत करने के लिए अदालत द्वारा रेलवे बोर्ड को सिर्फ एक हप्ते की मोहलत दी गई है. इसका मतलब यह है कि रेलवे में हुए इस अरबों रुपये के अधिकारी पदोन्नति महाघोटाले की गंभीरता से अदालत अब बखूबी परिचित हो चुकी है. यहां यह कहना शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ‘रेलवे समाचार’ द्वारा इस महाघोटाले से संबंधित विगत में प्रकाशित विस्तृत विवरणों से अदालत भी पूरी तरह से वाकिफ है. अतः न्यायिक प्रतिबद्धता के कारण शायद अदालत भी अब रेलवे बोर्ड को उसकी हैसियत याद दिलाने का मन बना चुकी है. अतः अब देखना यह है कि 17 अगस्त से पहले या तो रेलवे बोर्ड द्वारा अधिकारियों की वरीयता बदलकर अदालत के आदेश का पालन सुनिश्चित किया जाएगा, या फिर चेयरमैन, रेलवे बोर्ड और सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड दोनों अदालत के सामने व्यक्तिगत रूप से हाजिर होकर अपनी पूरी बिरादरी को शर्मिंदा करेंगे?