एसी कोच मेंटीनेंस के टेंडर में तीन महीनों से की जा रही है लीपापोती
सीनियर डीईई/कोचिंग, मुंबई मंडल, म.रे. द्वारा ली गई विजिलेंस की सलाह?
सभी संबंधित अधिकारी मिलकर लगे हैं किसी भी तरह टेंडर फाइनल करने में!
कन्वेनर द्वारा टेंडर फाइनल करने के लिए लिखी जा रही है लंबी-चौड़ी ‘अंग्रेजी’
मुंबई : यह तो सर्वविदित है कि मध्य रेल, मुंबई मंडल द्वारा एसी कोच मेंटेनेंस का तीसरी बार गलत टेंडर निकाला गया है. यह टेंडर (नं. बीबी/एलजी/डब्ल्यू/सीएसटीएम/2016-17/08) 16 जून 2017 को खुला था. इससे पहले यह टेंडर दो बार रद्द किया जा चुका है. तथापि उससे कोई सबक सीखे बिना तीसरी बार पुनः टेंडर डॉक्यूमेंट में घालमेल करते हुए गलत एवं अस्पष्ट टेंडर निकाला गया. पहले भी दोनों बार टेंडर कंडीशन में स्टेट इलेक्ट्रिक लाइसेंस मांगा गया था, परंतु लाइसेंस न होने के बावजूद वर्तमान वर्किंग कांट्रेक्टर को ही टेंडर दिया गया. यही नहीं, इस बार भी यह कंडीशन टेंडर डॉक्यूमेंट में है, फिर भी उसी वर्किंग कांट्रेक्टर को यह टेंडर देने की कोशिश हो रही है. यदि लाइसेंस की यह अनावश्यक कंडीशन टेंडर में नहीं डाली गई होती, तो इस कार्य के लिए ज्यादा ऑफर मिलते और रेलवे को प्रतिस्पर्धी दरों में लाभ होता.
उल्लेखनीय है कि ‘रेलवे समाचार’ द्वारा अपनी वेबसाइट www.railsamachar.com पर 27 जून 2017 को इस गलत टेंडर के संबंध में ‘मुंबई मंडल/म.रे. द्वारा तीसरी बार गलत बनाया गया एसी कोच मेंटेनेंस का टेंडर’ शीर्षक से खबर प्रकाशित किए जाने के बाद महाप्रबंधक/म.रे. ने इसका संज्ञान लेते हुए संबंधित मंडल अधिकारियों को निर्देश दिया था कि उक्त टेंडर को जल्दी फाइनल किया जाए. परंतु महाप्रबंधक/म.रे. के कहने का यह तात्पर्य कतई नहीं था कि गलत टेंडर को उचित तरीके से फाइनल किया जाए! इस मामले में लगभग तीन महीने बीत जाने के बावजूद अब तक उक्त टेंडर फाइनल नहीं किया जा सका है. इसका स्पष्ट मतलब यही हो सकता है कि यह टेंडर काम करने वाला (वर्केबल) ही नहीं है.
तथापि, उक्त टेंडर की टेंडर कमेटी (टीसी) के कन्वेनर सहित बाकी तीनों सदस्य अपनी-अपनी तरह से इसकी विस्तार से ‘अंग्रेजी’ लिखने में व्यस्त हैं. जबकि पिछली बार ‘रेलवे समाचार’ द्वारा पूछे जाने पर सीईएसई संजय दीप ने कहा था कि टेंडर लगभग फाइनल हो चुका है और संबंधित अधिकारी यानि सीनियर डीईई/कोचिंग के छुट्टी से वापस आते ही इसे फाइनल कर दिया जाएगा. इस बात को तीन महीने बीत गए हैं, मगर टेंडर फाइनल नहीं किया जा सका है. इसका मतलब यही हो सकता है कि यह टेंडर तीसरी बार भी सही तरीके से नहीं बनाया गया है. परंतु महाप्रबंधक/म.रे. के निर्देश की आड़ में कैसी भी अंग्रेजी लिखकर इसे फाइनल करने की कोशिश की जा रही है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार सीनियर डीईई/कोचिंग, जो कि उक्त टेंडर की टीसी के कन्वेनर हैं, ने अपनी मर्जी से इस मामले में विजिलेंस से अनधिकृत रूप से सलाह-मशवरा किया है. बताते हैं कि विजिलेंस ने कार्यरत कांट्रेक्टर को बाईपास नहीं करने की सलाह दी है. जबकि इससे पहले कन्वेनर (सीनियर डीईई/कोचिंग) द्वारा वर्किंग कांट्रेक्टर को बाईपास किया जा रहा था. इस बारे में ‘रेलवे समाचार’ द्वारासंबंधित विजिलेंस अधिकारी से जब जवाबतलब किया गया, तो उनका कहना था कि विजिलेंस ने ऐसी कोई सलाह नहीं दी है, क्योंकि टेंडर विजिलेंस को नहीं, बल्कि टीसी मेंबर्स को फाइनल करना है. जबकि सीनियर डीईई/कोचिंग (कन्वेनर) इस बारे में कोई भी जवाब देने को तैयार नहीं हैं.
ज्ञातव्य है कि सीवीसी द्वारा अब तक ऐसे कोई दिशा-निर्देश निर्धारित नहीं किए गए हैं, जिससे कि कोई टेंडर फाइनल करने से पहले विजिलेंस की सलाह ली जाए. बल्कि ‘रेलवे समाचार’ इस बात की बीस साल से लगातार मांग करता आ रहा है कि टेंडर फाइनल करने से पहले विजिलेंस से वेटिंग करवाई जाए, जिससे कि बाद में संबंधित अधिकारियों को किसी भी प्रकार से विजिलेंस का भय न रहे. यह कार्य अब तक नहीं हुआ है, ऐसे में कन्वेनर सीनियर डीईई/कोचिंग द्वारा किस नियम के अंतर्गत विजिलेंस की सलाह ली गई? इस बात की जवाबतलबी सक्षम प्राधिकार द्वारा उनसे की जानी चाहिए.
इसके अलावा यह भी पता चला है कि टीसी के एक मेंबर ने अपनी करीब ढ़ाई-तीन तीन पेज की विस्तृत टिप्पणी में इस बात को सही साबित किया है कि उक्त टेंडर गलत तरीके से बनाया गया है और यह वर्केबल नहीं है. बताते हैं कि इस बात को लेकर उक्त टेंडर की ‘एक्सेप्टिंग अथॉरिटी’ यानि एडीआरएम ने उक्त टीसी मेंबर और टीसी कन्वेनर को काफी खरी-खोटी सुनाई है. जबकि सारी गलती टेंडर बनाने वाले टीसी कन्वेनर यानि सीनियर डीईई/कोचिंग की है, जिन्होंने तीसरी बार यह गलत टेंडर बनाया. जानकारों का कहना है कि सीनियर डीईई/कोचिंग को फौरन दर-बदर करने के बजाय पता नहीं क्यों मंडल प्रशासन उन्हें झेल रहा है? इससे न सिर्फ कार्य और समय का भारी नुकसान हो रहा है, बल्कि अनावश्यक रूप से वर्किंग कांट्रेक्टर को एक्सटेंशन देना पड़ रहा है.
‘रेलवे समाचार’ एक बार पुनः इस बात की आशंका व्यक्त कर रहा है कि उक्त टेंडर देकर दोनों में से किसी एक पार्टी को ‘ओब्लाइज’ करने की कोशिश की जा रही है. ज्ञातव्य है कि उक्त टेंडर में तीनों बार सिर्फ दो ही पार्टी ऑफर डाल रही हैं. यदि ऐसा नहीं है, तो टेंडर में ‘लाइसेंस’ की कंडीशन डालकर स्टर्लिंग विल्सन, फेडर्स लोयड, सिधवल, दौलतराम इंडस्ट्रीज इत्यादि जैसी अन्य तमाम फर्मों को इस टेंडर में भाग लेने से क्यों रोका गया? उल्लेखनीय है कि स्टर्लिंग विल्सन उपरोक्त समान कार्य दक्षिण पश्चिम रेलवे में बतौर जोनल कांट्रेक्ट कर रही है. यदि ऐसा होता, तो ज्यादा प्रतिस्पर्धी ऑफर मिलते और तब टेंडर फाइनल करना भी आसान होता. जानकारों का मानना है कि भले ही कन्वेनर ने विजिलेंस की अनधिकृत सलाह ली है, फिर भी यदि यह टेंडर वर्तमान विवादस्पद स्थितियों में फाइनल किया जाता है, तो इससे संबंधित पांचो अधिकारी विजिलेंस केस से नहीं बच पाएंगे! परिणामस्वरूप चौथी बार टेंडर किया जाना अपरिहार्य हो जाएगा.