व्यवस्था की आंखों में धूल झोंककर प्रायोजित रूप से की जा रही अकूत कमाई और ठेकेदारों का फेवर
#RailSamachar द्वारा शनिवार, 18 सितंबर 2021 को “टेंडर्स की लागत, फाइनल भुगतान, एडवांस टेंडर, वेरिएशन और पीवीसी में संगठित लूट की गहराई से जांच हो!“ शीर्षक से प्रकाशित खबर पर इंजीनियरिंग विभाग के रेलकर्मियों का बहुत जबरदस्त रेस्पॉन्स मिला। उक्त शीर्षक खबर में बताए गए तथ्यों की पुष्टि करते हुए रेलकर्मियों ने इंजीनियरिंग अधिकारियों द्वारा निर्माण कार्यों की लागत बढ़ाने और ज्यादा कमीशन के लिए उपयोग किए जा रहे कई नए तथ्यों का खुलासा किया है।
उन्होंने कहा कि ठेकेदारों के हक में ठेकेदारों द्वारा प्रायोजित ठेकेदारों को लाभान्वित करने और स्वयं लाभान्वित होने के उद्देश्य से ही 8 मीटर गहराई वाली पाइलिंग की मानक आवश्यकता को इंजीनियरिंग अधिकारियों द्वारा बढ़ाकर अनावश्यक रूप से 20-23-25 मीटर तक किया जा रहा है और उक्त पैसे की बंदरबांट हो रही है।
उनका कहना है कि डिप्टी सीई स्तर के अधिकारियों के इन कृत्यों की जानकारी उनके उच्च अधिकारियों के भी संज्ञान में नहीं आ पाती है, क्योंकि डिप्टी स्तर के अधिकारियों का झुंड अपने-अपने “बॉस” को विश्वास में लेकर ही ऐसा कृत्य किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि ऐसे भ्रष्टतम अधिकारियों द्वारा मातहतों को निरीक्षण के समय कामचोर और ठेकेदारों से मिलीभगत करने की बात कहकर संबंधित मातहतों को नीचा दिखाया जाता है। जबकि उक्त ठेकेदारों से वही चीफ इंजीनियर और डिप्टी चीफ इंजीनियर की मिलीभगत होती है।
यहां तक कि एक डिप्टी चीफ इंजीनियर ने चापलूसी की सारी हदें पार करते हुए अपनी निजी स्वार्थपूर्ति के लिए एक चीफ इंजीनियर से कहा कि, “आपको मैं अपने भगवान का दर्जा देता हूं और भगवान की जगह पर मानता हूं और आपसे यही उम्मीद है कि आप मुझे भगवान के रूप में मदद करेंगे!” गजब की धूर्तता है।
इसी तरह कुछ अधिकारियों द्वारा जीएम या पीसीई अथवा सीएओ/कंस्ट्रक्शन के समक्ष बार-बार निरीक्षण और मीटिंग के दौरान यह बताने का प्रयास किया जाता है कि “पूरे समय वह केवल रेलवे हित में काम करने और कार्य प्रगति के लिए ही लगा हुआ है!”
जबकि वही अधिकारी रात-दिन एक कलयुगी मनुष्य के रूप में अपनी कुत्सित दिमागी सोच और व्हाइट कॉलर क्राइम के तहत केवल अपनी कमाई बढ़ाने और ठेकेदारों का फेवर करने तथा किसी भी तरह उनके टेंडर्स की राशि बढ़ाए जाने की जुगत में लगा रहता है। यह कहना है कई रेलकर्मियों का।
उन्होंने बताया कि बिल्डिंगों के निर्माण में कैप बीम की मोटाई और गहराई (डेप्थ) को चार से पांच गुना अधिक बढ़ाकर अनावश्यक रूप से फिजूल खर्च कर करोड़ों रुपये से अधिक का भुगतान कर रेल राजस्व की प्रायोजित लूट की जा रही है। उनका कहना है कि यह सारे तथ्य प्रमाणिक हैं, जिन्हें जब चाहे देखा, परखा और जांचा जा सकता है।
यहां तक कि उच्च अधिकारियों द्वारा इसे कांक्रीट होने के समय अगर मौके पर देखा जाए, तो उनके सामने केवल अपना सिर धुनने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि रेलवे ब्रिज निर्माण में भी उच्च अधिकारियों को ऐसी ही स्थिति देखने को मिलेगी। इसी प्रकार डिजाइन में अर्थ की डेंसिटी की कमी बताकर पाईल की डेप्थ और उसके डायामीटर को बढ़ाकर एवं उसी के अनुरूप स्टील तथा सीमेंट की डिजाइन मिक्स्ड में बढ़ोत्तरी कर कुछ डिप्टी चीफ इंजीनियरों और चीफ इंजीनियरों द्वारा अकूत धनार्जन किया जा रहा है।
कर्मचारियों का कहना है कि ऐसे अधिकारियों से रेलवे को बचाने की आवश्यकता है, क्योंकि यह केवल व्यवस्था की आंखों में धूल झोंककर प्रायोजित रूप से केवल अपनी कमाई करने में लगे हुए हैं।
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