August 20, 2021

व्यवस्था को दबाव में लेने की चालबाजी

रेल में यूनियन का मतलब और उद्देश्य अब वह नहीं रहा, जो वास्तव में होता है, या होना चाहिए। ज्यादातर पदाधिकारियों का काम अब केवल जोड़-तोड़ और दलाली करना ही रह गया है!

सुरेश त्रिपाठी

रेल में यूनियन पदाधिकारी होने का मतलब अब कामचोरी, करप्शन और दलाली करने का लाइसेंस प्राप्त करना हो गया है। यह रेलकर्मी उत्तर रेलवे, फिरोजपुर मंडल के अमृतसर स्टेशन पर कमर्शियल डिपार्टमेंट में खलासी है और साथ में एक यूनियन का सक्रिय पदाधिकारी/कार्यकर्ता भी है – कथित मीडिया प्रभारी या प्रचार मंत्री! प्राप्त जानकारी के अनुसार इसकी ड्यूटी कूरियर सर्विस में काम करने के लिए लगाई गई तो छुट्टी डालकर सीएमआई के विरुद्ध आधारहीन आरोप लगा रहा है।

इसका नाम नरिंदर सिंह है। इसने गुरुवार, 19 अगस्त 2021 को एक यूट्यूब पर अपलोडेड और एक डायरेक्ट वीडियो “रेलसमाचार” और “रेलव्हिस्पर्स” को भेजा। दोनों वीडियो में इसने एक ही बात कही है कि इसकी ड्यूटी बार-बार प्रदीप कुमार सिंह, सीएमआई/अमृतसर द्वारा अलग-अलग डिपो में लगाई जाती है और इससे वह पहले एक हजार रुपये, फिर डेढ़ हजार रुपये प्रतिदिन देने के लिए कहते हैं। सीएमआई द्वारा की गई इस डिमांड का यह कोई आधार या प्रमाण वीडियो में प्रस्तुत नहीं करता।

वीडियो में इसके चेहरे के भावों से साफ जाहिर हो रहा है कि इसे वहां काम करने पर लगाए जाने से ऐतराज है जहां इसे वास्तव में काम करना पड़ेगा और कामचोरी करने का मौका नहीं मिलेगा, जिससे इसकी न सिर्फ आजादी बाधित हो रही थी, बल्कि इसकी धौंस कम हो जाने की भी चिंता इसे सता रही है। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप ही इसने सीएमआई सहित मंडल अधिकारियों को भी दबाव में लेने के उद्देश्य से सीएमआई पर मनगढ़ंत आरोप लगाया।

इस खलासी द्वारा लगाए गए उपरोक्त आरोपों के बारे में सबसे पहले सीएमआई प्रदीप कुमार सिंह से बात की गई। उन्होंने साफ कहा कि सभी आरोप निराधार हैं। उन्होंने बताया कि चूंकि गुड्स में फिलहाल कोई काम नहीं है। इसलिए इस खलासी की ड्यूटी मंडल अधिकारियों के आदेश पर फिलहाल कूरियर सर्विस में लगाई गई है। इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि चूंकि कूरियर सर्विस में जो आदमी था, वह रिटायर हो गया और फिलहाल जो आदमी इस काम में लगाया गया था, वह सही तरह से काम नहीं कर पा रहा था। इसलिए उसे वापस उसके डिपो में भेजकर इस खलासी की ड्यूटी लगाई गई थी।

उन्होंने यह भी बताया कि अभी कल ही इसे इस काम के बारे में बताया गया था मगर यह सीजीएस के पास छुट्टी डालकर चला गया तथा घर में बैठकर यह झूठे और मनगढ़ंत आरोप लगाकर वीडियो बना दिया। उन्होंने कहा कि इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है। इसीलिए वह इसके विरुद्ध मानहानि का केस करने की तैयारी कर रहे हैं। मंडल अधिकारियों से संपर्क करने पर उन्होंने भी खलासी के आरोपों में कोई सच्चाई नहीं होने की बात कही है।

अमृतसर में कार्यरत कई रेलकर्मियों से बात करने पर उन्होंने बताया कि “यह खलासी रत्ती भर भी काम नहीं करता है। यह कई-कई दिनों तक हाजिरी भी नहीं लगाने भी नहीं आता है, क्योंकि यूनियन का आदमी है, तो कोई इससे काम करने के लिए भी नहीं कहता है। ऐसे में इसके द्वारा लगाए गए आरोप तथ्यहीन हैं। वैसे भी यूनियन के आदमी से हफ्ता मांगने की हिम्मत भला कौन करेगा?”

उन्होंने कहा कि “अधिकारियों/कर्मचारियों को यूनियन पदाधिकारियों द्वारा इसी तरह ब्लैकमेल किया जाता है, जबकि सच यह है कि किसी भी अधिकारी/कर्मचारी की हिम्मत नहीं है कि इन कामचोरों से पैसा मांगने की जुर्रत कर सकें!” उन्होंने कहा कि “पद के अनुसार जिनकी कोई हैसियत नहीं है, वह लोग यूनियन का बिल्ला लगाकर ढ़ेले भर का भी कोई काम किए बिना न केवल शेर बने हुए हैं, बल्कि बड़े-बड़े अधिकारियों और वरिष्ठ कर्मचारियों पर धौंस जमाते घूमते हैं और मुफ्त में लाखों रुपये का वेतन लेते हैं।”

एक कर्मचारी का कहना था कि “यहां एक मंडल मंत्री हैं, जिसने पिछले लगभग डेढ़ साल से कोई काम नहीं किया है। गार्ड हैं, इस दौरान 18 से 20 लाख रुपये मुफ्त वेतन ले चुके हैं, मगर इस दरम्यान एक भी गाड़ी लेकर नहीं गए हैं। घर बैठे रहते हैं, या फिर एयरकंडीशंड यूनियन ऑफिस में आकर बैठ जाते हैं, अथवा सीएल लेकर यहां-वहां अधिकारियों/कर्मचारियों पर रौब गांठते फिरते हैं। सीएल का कोई हिसाब नहीं है। आखिर एक यूनियन पदाधिकारी को साल भर में कितनी सीएल लेने की अनुमति है?” इस कर्मचारी ने कहा कि “यह स्थिति केवल फिरोजपुर मंडल की ही नहीं, बल्कि भारतीय रेल के सभी मंडलों के मंडल पदाधिकारियों की है। इनकी आय की जांच सीबीआई और आयकर विभाग से कराए जाने की आवश्यकता है।”

एक अन्य वरिष्ठ कर्मचारी का कहना था कि “यूनियनों की वजह से रेल बरबाद हुई है, क्योंकि यूनियनें कामचोर और करप्ट कर्मचारियों को बढ़ावा देती हैं। उसका यह भी कहना था कि परिस्थितियां चाहे कुछ भी हों, मगर जब कार्यकाल समाप्त हो गया है, तब यूनियनों को अधिकारविहीन किया जाना चाहिए था। ऐसे में रेल प्रशासन उनके साथ पीएनएम वगैरह क्यों कर रहा है? उसने कहा कि यह सब लोग अमरबेल की तरह हैं, जिनके कारण यूनियनें बदनाम होती हैं। लेकिन गलती बड़े नेताओं की है, क्योंकि ऐसे कामचोरों और करप्ट लोगों को उन्हीं का संरक्षण प्राप्त होता है, क्योंकि रेलवे में अब यूनियनें भी राजनीतिक दांव-पेंचों से संचालित हो रही हैं।”

यही नहीं, इधर “#Railwhispers” द्वारा ट्विटर पर जैसे ही इसका निराधार वीडियो बयान सार्वजनिक किया गया, वैसे ही यह उधर सरेंडर हो गया। पता चला कि इसकी यूनियन के दूसरी शाखाओं के पदाधिकारी सीएमआई से माफी मांगने लगे और सभी जगह से उक्त वीडियो डिलीट करने की दुहाई भी दी। और वास्तव में यूट्यूब से साढ़े चार मिनट का उक्त वीडियो तत्काल डिलीट कर दिया गया है। स्पष्ट है कि व्यवस्था को दबाव में लेने के लिए ही इस कामचोर खलासी ने “वीडियो गेम” की यह चतुर चाल चली थी।

इस पर कर्मचारियों का कहना है कि अब उक्त सीएमआई को और भी ज्यादा सतर्क रहना पड़ेगा, क्योंकि ऐसी चालबाजी में एक्सपोज होने के बाद यह लोग थोड़े समय के लिए मौन साध लेते हैं, मगर फिर यह संबंधित अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध उसका चरित्र हनन करने अथवा एट्रोसिटी जैसा कोई षड़यंत्र करके उसका कैरियर और भविष्य दोनों बरबाद करने की कोशिश अवश्य करते हैं। उसका कहना था, “यही कारण है कि इसी तरह इनके दबाव में आकर अधिकारी और कर्मचारी इनके खिलाफ जाने और कुछ कहने से बचते हैं।”

बहरहाल, कर्मचारियों ने जो कहा, उसमें पर्याप्त दम है। इसके अलावा भी यूनियनों की अन्य तमाम शिकायतें हैं, जिन पर एक लंबी सीरीज लिखी जा सकती है। उनकी यह बात भी सही है कि कुछ अपवादों को छोड़कर ज्यादातर यूनियन पदाधिकारी करप्ट और कामचोर हैं। यह सब कमोबेश अधिकारियों/कर्मचारियों को ब्लैकमेल करके अपनी नेतागीरी चलाते हैं। यूनियन का अर्थ और उद्देश्य अब वह नहीं रहा, जो वास्तव में होता है, या होना चाहिए। यह भी सही है कि ज्यादातर यूनियन पदाधिकारियों का काम अब केवल दलाली करना ही रह गया है।

इसके अलावा, यह भी सही है कि रेल की बरबादी में जितना योगदान अकर्मण्य, निकम्मे और भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों का है, उससे ज्यादा बड़ा योगदान यूनियनों के कथित नेताओं/पदाधिकारियों का है, क्योंकि न वह ईमानदार हैं, और न ही उन्होंने अपने पदाधिकारियों और रेलकर्मियों को रेल कार्य पूरी ईमानदारी से करने के लिए कभी नहीं कहा। रेलमंत्री और रेल प्रशासन को इन्हें नियंत्रित करने के लिए अविलंब विचार करना चाहिए और इसके लिए सबसे पहले यूनियनों के चुनाव कराने की घोषणा तथा सीनियर सबॉर्डिनेट सुपरवाइजरों को यूनियनों से अलग करने का निर्णय तुरंत लिया जाना चाहिए।

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