जारी है उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में बिड कैपेसिटी घोटाला

उत्तर रेलवे मुख्यालय, बड़ोदा हाउस, नई दिल्ली.

“आखिर कब तक चलेगा यह पिक एंड चूज का खेल? यह सब ऊपर बैठे बड़े लोगों (अधिकारियों) का खेल है, जो न केवल कर्मचारियों को, बल्कि ठेकेदारों को भी बेवकूफ बनाते हैं और अपनी जेबें भरते हैं।”

उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में बिड कैपेसिटी का घोटाला आज भी लगातार चल रहा है। परंतु इस पर लगाम लगाने वाला कोई नहीं है, क्योंकि उत्तर रेलवे का जोनल विजिलेंस और रेलवे बोर्ड का सार्वभौमिक विजिलेंस दोनों गहरी नींद में सुला दिए गए हैं। फिर सीवीसी से ही क्या उम्मीद की जा सकती है।

पूर्व सीएओ/कंस्ट्रक्शन, उत्तर रेलवे बी. डी. गर्ग के समय में अथवा उनके द्वारा शुरू किया गया बिड कैपेसिटी का यह घोटाला आज भी उत्तर रेलवे में लगातार जारी है। अब तो उत्तर रेलवे निर्माण संगठन के अधिकारियों द्वारा इस घोटाले को यहां एक परंपरा के रूप में स्थापित कर दिया गया है।

सबको पता है कि 6 माह में काम नहीं हो सकता, फिर क्यों शॉर्ट टर्म टेंडर किया जा रहा है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए उत्तर रेलवे निर्माण संगठन का कोई अधिकारी तैयार नहीं है।

सीपीआरओ को भी लगता है कि केवल दिल्ली के कुछ चुनिंदा पत्रकारों के ही फोन उठाने का निर्देश दिया गया है?

उल्लेखनीय है कि इसी तरह रोहतक-मेहम-हांसी नई रेल लाइन के निर्माण में हुए भारी भ्रष्टाचार और उसके विरुद्ध की गई ढ़ेरों लिखित शिकायतों के चलते मार्शल इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड का कांट्रैक्ट टर्मिनेट कर दिया गया था। तथापि दोषी अधिकारियों के विरुद्ध आजतक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

अब इसी रोहतक-मेहम-हांसी लाइन की हांसी-तोशम रोड (स्टेट हाइवे-12) की क्रासिंग किमी. 68-110 पर रोड ओवर ब्रिज (आरओबी) का निर्माण करने का टेंडर सीएओ/सी/उ.रे. द्वारा जारी किया गया है।

जानकारों का कहना है कि यह टेंडर जारी करने से पहले कार्य की उचित समीक्षा भी नहीं की गई है।

इस टेंडर की विज्ञापित वैल्यू ₹2285068.10 है। इस टेंडर में भी उक्त आरओबी का निर्माण पूरा करने की अवधि छह महीने ही रखी गई है, जबकि यह निश्चित है कि छह महीनों में यह तो क्या, कोई भी ब्रिज (आरओबी) बनकर तैयार नहीं हो सकता। जबकि इसके साथ अन्य कई कार्य भी किए जाने हैं।

आखिर कब तक चलेगा यह पिक एंड चूज का खेल? यह कहना है उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में कार्यरत कुछ फील्ड सुपरवाइजरों का। उनका कहना है कि “यह सब ऊपर बैठे बड़े लोगों (अधिकारियों) का खेल है, जो न केवल कर्मचारियों को, बल्कि ठेकेदारों को भी बेवकूफ बनाते हैं और अपनी जेबें भरते हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि “जो कोई इनसे फाइट करता है, उसे ये सब मिलकर बरबाद कर देते हैं।” वह कहते हैं कि वी. के. गुप्ता और बी. डी. गर्ग पर चूंकि कोई कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए उनके द्वारा सेट किया गया भ्रष्टाचार का सिस्टम अब यहां परंपरा बन चुका है।

कर्मचारी और कांट्रैक्टर कहते हैं –

ऊपर तक मिले हैं कंस्ट्रक्शन अधिकारी!

जिन पर रिश्वतखोरी ने की हुई है सवारी!!

विशेष: टेंडर्स में “एडवरटाइज्ड वैल्यू” का कोई अर्थ नहीं निकलता। इन छद्म शब्दों का कोई औचित्य भी प्रमाणित नहीं होता। अतः इसे पहले की ही भांति “एस्टीमेटेड कास्ट” यानि “अनुमानित लागत” लिखा जाए और यह आंकड़ा, अंकों के साथ-साथ अक्षरों/शब्दों में भी लिखी जानी चाहिए!

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