January 15, 2021

आईआरसीटीसी: भ्रष्टाचरण को प्राप्त है पूरा संरक्षण

Mahendra Pratap Mall, Chairman and Managing Director, Indian Railway Catering & Tourism Corporation

लूट और भ्रष्टाचरण के विरुद्ध आईआरसीटीसी विजिलेंस का कोई संज्ञान नहीं

सुरेश त्रिपाठी

पिछले दिनों पूर्वोत्तर रेलवे की आरपीएफ ने गोरखपुर में गाड़ी संख्या 02558 को चेक करने के दौरान अवैध रूप से ऑन बोर्ड वेडिंग करते हुए कुछ लोगों को पकड़ा। जांच के दौरान खाने-पीने के सामानों के अलावा रेलवे द्वारा जारी कुटरचित रेल यात्रा पास भी उन लोगों से बरामद हुआ।

उल्लेखनीय है कि गाड़ी संख्या 05097/98, अमरनाथ एक्सप्रेस का खानपान का ठेका बंगलौर की कैटरिंग फर्म सीमा कैटरर्स को आईआरसीटीसी द्वारा आवंटित किया गया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार कोविड पीरियड में बिक्री न होने के कारण सीमा कैटरर्स ने ऑन बोर्ड खानपान सेवा प्रदान करने से मना कर दिया था।

लेकिन आईआरसीटीसी/गोरखपुर के कैटरिंग सुपरवाइजर संजीव गुप्ता एवं एरिया ऑफिसर/गोरखपुर की मिलीभगत से गाड़ियों में खुलेआम अवैध वेडिंग कराई जा रही थी। पूर्वोत्तर रेलवे आरपीएफ ने उक्त अवैध वेंडर्स को पकड़ने के बाद संजीव गुप्ता को थाने में बुलाकर कागज-पन्नों की वास्तविकता की जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की, तो संजीव गुप्ता ने उन्हें दाएं-बाएं करके वास्तविक वस्तुस्थिति बताने में पर्याप्त आनाकानी की। सूत्रों का कहना है कि गुप्ता ने मामले की सच्चाई छिपाते हुए अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी गुमराह किया और उन्हें उक्त मामला खुद के द्वारा पकड़े जाने की जानकारी दी।

विजिलेंस द्वारा रंगेहाथ पकड़ा गया था सुपरवाइजर

बताते हैं कि इसके पहले भी कोविड पीरियड के दौरान श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में निर्धारित (380 ग्राम) मात्रा से कम (लगभग आधी मात्रा, बमुश्किल 150 से 180 ग्राम तक) खाने की सप्लाई करते हुए आईआरसीटीसी की विजिलेंस टीम ने रंगेहाथ संजीव गुप्ता को पकड़ा था, लेकिन अपने आपको सीएमडी/आईआरसीटीसी का खास आदमी होने का दावा और प्रचार करने वाले इस सुपरवाइजर का आज तक कोई बाल भी बांका नहीं हो सका।

उक्त मामले को रफा-दफा कर दिया गया, जबकि स्पेशल ट्रेनों में यात्रियों को कम मात्रा में खाने की आपूर्ति करने को लेकर न सिर्फ प्रत्येक जोन और डिवीजन में यात्रियों ने भारी हंगामा किया था, बल्कि गोरखपुर और लखनऊ में भी इस बात को लेकर यात्रियों ने बहुत उत्पात मचाया था। इसके अलावा रेल अधिकारी और कर्मचारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि स्पेशल ट्रेनों में खाने की आपूर्ति के नाम पर आईआरसीटीसी ने भारी लूट मचाई।

लोकल वाटर वेंडर्स के साथ सुपरवाइजर की मिलीभगत

गोरखपुर रेलवे स्टेशन, “रेलनीर” के लिए मैनडेटरी स्टेशन है। लेकिन यहां से गुजरने वाली सभी गाड़ियों में रेलनीर की उपलबधता लगभग शून्य है। स्टेशन के खानपान स्टाल धारकों सहित पैंटीकार के व्यवस्थापकों की सर्वसामान्य शिकायत है कि यहां उन्हें रेलनीर उपलब्ध नहीं कराया जाता, जिसके कारण वे लोग लोकल ब्रांड का पानी खरीदकर यात्रियों को देने के लिए मजबूर हैं।

पैंट्रीकार प्रबंधकों और स्टेटिक यूनिटों के संचालकों का स्पष्ट आरोप है कि लोकल पानी सप्लाई करने वालों से गोरखपुर के कैटरिंग सुपरवाइजर संजीव गुप्ता की मजबूत “सेटिंग” है, जिसके कारण न केवल आईआरसीटीसी को, बल्कि रेलवे को भी जाने वाले निर्धारित रेवेन्यू को भारी चूना लग रहा है।

कुछ दिन पहले गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर खानपान स्टॉल चलाने वाले एस. बी. कैटरर्स ने पीसीसीएम/पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर को उसके स्टॉल पर रेलनीर की आपूर्ति नहीं होने की लिखित शिकायत दी थी, (प्रति सुरक्षित है)। एरिया ऑफिसर, गोरखपुर ने इसकी जांच में लीपापोती कर दिया, क्योंकि इसमें एरिया ऑफिसर की भी पूरी हिस्सेदारी पहले से ही सुनिश्चित रही है।

गंभीर शिकायतों की भी सुनवाई नहीं, परिणाम भी शून्य

वेंडर्स का स्पष्ट कहना है कि उनकी सामान्य शिकायतों की तो खैर कोई सुनवाई ही नहीं है, बल्कि उनकी गंभीर शिकायतों को भी दरकिनार कर कचरे में फेंक दिया जाता है। उनका कहना है कि कैटरिंग सुपरवाइजर/गोरखपुर संजीव गुप्ता, लखनऊ में बैठकर पूरे क्षेत्र की कमीशनखोरी में समान भागीदारी करने वाले एरिया ऑफिसर/आईआरसीटीसी और जीजीएम/लखनऊ के बहुत करीबी माने जाते हैं। इसीलिए उनके खिलाफ कैटरर्स और स्टेटिक यूनिट होल्डर्स द्वारा की जाने वाली लगभग सभी शिकायतों को रफा-दफा कर दिया जाता है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मुश्किल से एक-दो महीने छोड़कर संजीव गुप्ता विगत लगभग 10 वर्षो से लगातार गोरखपुर में बतौर सुपरवाइजर पदस्थापित है। इस अतिसंवेदनशील पद पर होने के बावजूद उसका आवधिक स्थानांतरण पॉलिसी को दरकिनार करते हुए प्रत्येक 4 वर्ष में नहीं किया गया। वेंडर्स ने कहा कि इससे साफ जाहिर है कि संजीव गुप्ता के तार सिर्फ एरिया ऑफिसर से ही नहीं, बल्कि ऊपर मुख्यालय (सीएमडी) तक जुड़े हुए हैं।

तमाम कर्मचारी दबी जुबान से बताते हैं कि संजीव गुप्ता तो खुलेआम अपने आपको सीएमडी/आईआरसीटीसी का खास आदमी बताता है। वह लोगों से साफ कहता है कि “इसीलिए तो वह लगातार 10 वर्षों से एक ही स्टेशन पर पदस्थापित है।” उनका कहना है कि “संजीव गुप्ता का इतने लंबे समय तक लगातार गोरखपुर में बने रहना ही इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि उसे उसके वरिष्ठों सहित सीएमडी का भी पूरा वरदहस्त और आशीर्वाद प्राप्त है।

एक्सटेंशन की जुगाड़ में एरिया ऑफिसर?

इधर एरिया ऑफिसर/आईआरसीटीसी/गोरखपुर धनंजय मिश्रा, जिनका कार्यक्षेत्र तो गोरखपुर है, परंतु वह अपना समस्त “गोरखधंधा” लखनऊ में बैठकर चलाते रहे हैं, के तीन साल के प्रतिनियुक्ति कार्यकाल के साथ ही एक साल का अतिरिक्त कार्यकाल भी इसी 18-20 जनवरी के दरम्यान समाप्त हो रहा है। इसलिए वह अपने डेप्युटेशन के एक्सटेंशन की जुगाड़ में भी लगे हैं।

इसमें आश्चर्यजनक, किंतु सत्य यह है कि उनके एक साल के एक्सटेंशन का “सेंक्शन लेटर” भी एक साल बाद, यानि पूरा एक साल का अतिरिक्त कार्यकाल बीत जाने पर दो दिन पहले ही वाया आईआरसीटीसी मुख्यालय दिल्ली, रेलवे बोर्ड से जारी किया गया है।

जबकि बताते हैं कि एरिया ऑफिसर/गोरखपुर की करतूतों का संज्ञान लेते हुए आईआरसीटीसी के वरिष्ठ अधिकारियों ने उनका डेप्युटेशन पीरियड न बढ़ाने का निर्णय लिया है। इसी परिप्रेक्ष्य में एचआर डिपार्टमेंट द्वारा उनके रिपैट्रिएशन का लेटर भी जारी करने की तैयारी है। बताते हैं कि रेलवे बोर्ड भी उन्हें और एक एक्सटेंशन देने के पक्ष में बिल्कुल नहीं है।

इसके अलावा, चूंकि आईआरसीटीसी में समायोजित (एब्जॉर्ब) होने पर फिलहाल प्रतिबंध लागू है, इसलिए उनके सामने वह विकल्प भी नहीं है। तथापि सूत्रों का कहना है कि “डील” यदि मजबूत हुई, तो इस प्रतिबंध को “एक्सेप्शन” के तौर पर उनके लिए रेलवे बोर्ड से ओपन कराया जा सकता है। उनका कहना है कि इसी “डील” के तहत और सब संबंधितों की मिलीभगत से ही तो पूर्व निर्धारित व्यक्ति का एवीओ में सेलेक्शन हुआ है!

लेकिन बताते हैं कि निर्णय चूंकि सीएमडी को लेना है, जो इसी 31 जनवरी को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि चूंकि “डील” लगभग पक्की है, इसलिए बुधवार-गुरुवार को वह दिल्ली मुख्यालय में अपनी हाजिरी लगाने पहुंचे थे और उम्मीद की जाती है कि साहब उन पर मेहरबान होंगे, क्योंकि आखिर वह लखनऊ में सेटल हो रहे हैं, तो रिटायरमेंट के बाद ताबेदारी और सेवादारी करने वाले गुलाम और फर्माबरदार तो उन्हें भी चाहिए होंगे ही!

उन्होंने बताया कि लखनऊ में साहब की समस्त आवासीय सुख-सुविधाओं की पूरी व्यवस्था पूर्व जीजीएम/लखनऊ करवा ही गए हैं, और जो कुछ कमी-बेसी रह गई होगी, उसके लिए वह खुद भी लखनऊ में लगातार मौजूद हैं ही। इसके अलावा अब जाते-जाते जीजीएम/लखनऊ की जिम्मेदारी भी अपने एक ऑलराउंडर फर्माबरदार को लखनऊ में पदस्थ कर आगे की भी पूरी व्यवस्था और जुगाड़ कर लिया गया है।

ज्ञातव्य है कि लगभग चार-पांच महीने पहले नए सीएमडी के लिए विज्ञापित किया गया था, जिसके अनुसार अब तक नया चयन हो जाना चाहिए था। परंतु बोर्ड के संबंधित निकम्मे अधिकारियों की लापरवाह प्रवृत्ति और एडहॉक मंत्री होने के कारण पूरी भारतीय रेल के साथ ही इसके सभी उपक्रम भी तदर्थवाद का अनुपालन कर रहे हैं। “यदि ऐसा नहीं है, तो अब तक नए सीएमडी का चयन संपन्न क्यों नहीं हो पाया?” इस प्रश्न का कोई उपयुक्त प्रत्युत्तर रेलवे बोर्ड के पास नहीं है।

जानकारों और कुछ वरिष्ठ रेल अधिकारियों का कहना है कि “वर्तमान सीएमडी/आईआरसीटीसी के कार्यकाल में हुई लूट और कदाचार के मद्देनजर यह कहना पड़ेगा कि पूर्व सीएमडी तो इनसे बहुत पीछे थे! इन्होंने लूट, भ्रष्टाचार और कदाचार की सारी हदें पार कर दी हैं। इसी के चलते कोई जोन ऐसा नहीं है, जिसे क्लीन चिट दी जा सके, जिसको जहां मौका मिल रहा है, वहां हाथ साफ कर रहा है। यदि ऐसा नहीं होता, तो नार्दर्न जोन के बेस-किचन की लागत 50 से 70 गुना अधिक नहीं हुई होती, तथापि अब तक भी वह पूरी तरह से बनकर तैयार नहीं हो पाया है!”

उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे अन्य कई उदाहरण हैं। उनका कहना था कि रेलवे में ईमानदार और साफ-सुथरी छवि वाले भी बहुत से अधिकारी हैं, परंतु शीर्ष पर यदि कोई घुन्ना, पूर्वाग्रही, कदाचारी और कैडर-जाति-बिरादरी देखकर पक्षपात करने वाला बैठा होता है, तब वह अपने जैसे ही अधकचरे, अनभिज्ञ, अल्पज्ञानी, गैर-अनुभवी मगर “वेल कनेक्टेड एंड वेल करप्ट” लोगों का चयन मुख्य पदों (की-पोस्टों) पर करता और करवाता है। ऐसे में कोई व्यवस्था साफ-सुथरी कभी नहीं रह सकती है!”

उनका यह भी कहना था कि “एक ईमानदार सीईओ के आने से हालांकि बहुत उम्मीद बंधी है, पर यदि पूरी व्यवस्था में नीचे से ऊपर तक दीमक लगी हो, तो एक निष्ठावान अधिकारी भी शायद ही कुछ सार्थक परिणाम देने में सफल हो पाए।”

अंत में उन्होंने कहा कि “ऐसे ही कदाचारी अधिकारियों एवं सुपरवाइजरों के चलते आईआरसीटीसी तथा भारतीय रेल की छवि न सिर्फ और ज्यादा धूमिल हो रही है, बल्कि निकट भविष्य में यदि इनका दीवाला भी निकल जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।”

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