एनपीएस और सरकार की वादाखिलाफी के विरुद्ध रेलकर्मियों का संसद पर मोर्चा
नेशनल पेंशन स्कीम में सामाजिक सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं, सबकुछ असुरक्षित
नई दिल्ली : ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के आहवान पर मंगलवार, 13 मार्च को एनपीएस और सरकार की वादाखिलाफी के विरोध में संसद पर विशाल मोर्चा निकाला जा रहा है. उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) 1 जनवरी, 2004 से प्रभावी करते हुए लंबे संघर्ष के बाद प्राप्त सामाजिक सुरक्षा, सेवानिवृत्ति के समय अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन एवं फेमिली पेंशन इत्यादि को समाप्त कर दिया था, जबकि उपरोक्त तिथि से सरकारी सेवा में आए कर्मचारी से मूल वेतन एवं महंगाई भत्ते का 10 प्रतिशत प्रतिमाह एनपीएस फंड में कटौती की जा रही है, जिसमें न्यूनतम पेंशन राशि अथवा फेमिली पेंशन की कोई गारंटी नहीं दी गई है.
यहां यह भी उल्लेख करना आवश्यक है कि इस मुद्दे पर सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों सहित रेल कर्मचारियों में 7वें वेतन आयोग की कर्मचारी विरोधी सिफारिशों, जिसमें न्यूनतम वेतन निर्धारण एवं तदनुरूप फिटमेंट फार्मूले में जीवन-यापन की आवश्यक सामग्री के बाजार भाव, महंगाई दर तथा मान्य डॉ. एक्रवायड फार्मूला और वेतन निर्धारण हेतु देश की सर्वोच्च अदालत (सुप्रीम कोर्ट) के दिशा-निर्देशों को पूरी तरह दरकिनार किया गया है, को लेकर देश भर में भारी असंतोष व्याप्त है.
रेल कर्मचारियों सहित समस्त केंद्रीय कर्मचारियों में व्याप्त भारी असंतोष एवं बढ़ रहे आक्रोश के मदेनाजर प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से भारत सरकार के शीर्ष मंत्री समूह, जिसमें देश के गृहमंत्री, वित्तमंत्री, रेलमंत्री एवं रेल राज्यमंत्री ने नेशनल काउंसिल-जेसीएम के पदाधिकारियों को आश्वस्त किया था कि व्यापक असंतोष के मुद्दों पर अधिकारप्राप्त समिति का गठन किया जा रहा है, मंत्री समूह के इस स्पष्ट आश्वासन के परिपेक्ष्य में नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ ऐक्शन (एनजेसीए) ने 11 जुलाई 2016 से प्रस्तावित हड़ताल को स्थगित कर दिया था.
ज्ञातव्य है कि भारत सरकार द्वारा गठित कमेटी को 4 माह के अंदर अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन बार-बार आश्वासनों के बावजूद कोई भी संतोषजनक परिणाम 19 महीने बीत जाने के बाद भी अब तक सामने नहीं आया है.
ऐसा देखा जा रहा है कि भारत सरकार तेज गति से आउटसोर्सिंग, निगमीकरण एवं निजीकरण को भारतीय रेल पर लागू करने की नीति पर बढ़ती जा रही है, जो देश और देश की सर्वसामान्य जनता (रेल यूजर्स) के हितों के खिलाफ है. जबकि इससे रेल कर्मचारियों के सामने और भी गंभीर समस्या पैदा करने वाली है.
ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के गोरखपुर में नवंबर 2017 में संपन्न 93वें वार्षिक अधिवेशन में रेल कर्मचारियों में बढ़ रहे असंतोष एवं आक्रोश के दृश्टिगत उचित निर्णय लिया गया कि संसद के बजट सत्र के दौरान पूरे देश के रेल कर्मचारी ‘विशाल संसद मार्च’ में भाग लेकर अपना आक्रोश एवं प्रमुख मुद्दों पर व्याप्त गंभीर असंतोष दर्ज कराएंगे.
एआईआरएफ द्वारा ‘रेलवे समाचार’ को भेजी गई विज्ञप्ति के अनुसार 93वें वार्षिक अधिवेशन के सर्वसम्मत प्रस्ताव के क्रियान्वयन में तथा भारत सरकार के उदासीन रवैये एवं सरकारी कर्मचारियों के महत्वपूर्ण मुद्दों को एक निश्चित समय सीमा में हल निकालने के प्रति गंभीरता के अभाव में सरकार के विरुद्ध 13 मार्च को ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन द्वारा ‘विशाल संसद मार्च’ का आयोजन किया जा रहा है. इस मोर्चे में देश भर से आने वाले लगभग 50 हजार रेल कर्मचारी शामिल होंगे.
बहरहाल, एआईआरएफ की इस हलचल की पृष्ठभूमि में तमाम रेलकर्मियों का मानना है कि अगले साल यूनियन की मान्यता के चुनाव होने वाले हैं, इसी के मद्देनजर एआईआरएफ ने अपनी रणनीति की शुरुआत कर दी है, मगर जहां एक फेडरेशन चुप या अलग-थलग है, वहां एक फेडरेशन की ऐसी हलचलों से सरकार पर शायद ही कोई व्यापक दबाव बन पाएगा. कुछ प्रबुद्ध कर्मचारियों का यह भी कहना है कि यदि दोनों फेडरेशन एनपीएस के मुद्दे पर वास्तव में गंभीर हैं, तो उन्हें मिलकर ऐसा कोई गंभीर प्रयास करना चाहिए, तभी शायद कोई सफलता मिल पाएगी.