April 7, 2019

मैलानी एवं कानपुर डिपो की बैलास्ट टेंडर्स की फाइलें गायब !

विजिलेंस को फाइलें देने मना किया, बयान देने भी नहीं गया ओएस

गोरखपुर ब्यूरो : ‘रेलवे समाचार’ द्वारा 28 फरवरी को ‘कमीशनखोरी के चलते फाइनल नहीं हुआ बैलास्ट टेंडर?’ शीर्षक से प्रकाशित खबर के बाद मैलानी डंप एवं कानपुर अनवरगंज डंप की बैलास्ट टेंडर्स की दोनों फाइलें गायब कर दिए जाने की जानकारी विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेलवे समाचार’ को प्राप्त हुई है. ज्ञातव्य है कि उक्त टेंडर्स के बारे में डीआरएम, लखनऊ मंडल, पूर्वोत्तर रेलवे सहित कुछ अन्य संबंधित अधिकारियों से ‘रेलवे समाचार’ द्वारा पूछताछ की प्रक्रिया के दौरान ही सीनियर डीईएन/समन्वय, लखनऊ मंडल का तबादला पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय, गोरखपुर कर दिया गया था. परंतु किसी कार्यक्रम के बहाने सीनियर डीईएन/समन्वय को अब तक रिलीव नहीं किया गया, जबकि उक्त कथित कार्यक्रम उनकी जगह नव-नियुक्त हुआ अधिकारी भी बखूबी कर सकता था.

सूत्रों का कहना है कि ऐसा करके वास्तव में सीनियर डीईएन/समन्वय को दोनों टेंडर्स की फाइलें गायब करने और जानबूझकर रिकॉर्ड को रफादफा करने का अवसर उपलब्ध कराया गया है. सूत्रों का यह भी कहना है कि चूंकि उक्त मामले में तीनों टीसी मेंबर तो दोषी हैं ही, बल्कि एडीआरएम (एक्सेप्टिंग अथॉरिटी), डीआरएम, जिन्हें दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने की लिखित जिम्मेदारी सौंपी गई थी, और सीटीई, जो कि उक्त टेंडर्स की फॉलोअप के लिए जिम्मेदार थे, तथा पीसीई, जो कि पूरे जोन के ट्रैक मेंटीनेंस के लिए जवाबदेह हैं, सभी की जिम्मेदारी बनती है, इसलिए जानबूझकर उक्त फाइलें गायब की गई हैं, क्योंकि यह टेंडर खुलेआम भ्रष्टाचार के कारण ही फाइनल नहीं किए जा सके थे.

इस मामले में कर्मचारियों का भरोसा जोनल विजिलेंस पर बिलकुल भी नहीं है. उनका कहना है कि इससे पहले पूर्व चीफ इंजीनियर ओ. एन. वर्मा, जिन्हें रिटायरमेंट के बाद हाल ही में एक मामले में मेजर पेनाल्टी चार्जशीट दी गई है, के समय भी इसी प्रकार कई टेंडर फाइलें गायब कर दी गई थीं, उक्त मामले को भी सिर्फ एफआईआर दर्ज करके भुला दिया गया है, जबकि संबंधित फाइलों का आज तक पता नहीं चला है. इसीलिए वर्मा सुखरूप रिटायर हो गए और बाकी सभी संबंधित अधिकारी मौज कर रहे हैं तथा जोनल विजिलेंस आजतक उनका कुछ नहीं कर पाया है. उनका कहना है कि जिस डिप्टी सीवीओ/इंजी. पर अपने ही जूनियर से पांच लाख रुपये की रिश्वत मांगने के आरोप में जांच चल रही हो, उस पर कौन भरोसा करेगा?

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘रेलवे समाचार’ द्वारा उपरोक्त शीर्षक खबर प्रकाशित किए जाने के बाद पूर्वोत्तर रेलवे विजिलेंस द्वारा लखनऊ मंडल कार्यालय पर करीब एक हप्ते तक छानबीन की गई, परंतु उक्त फाइलें उसे यह कहकर नहीं सौंपी गईं कि संबंधित फाइलें गायब हैं, उनकी खोज की जा रही है. बताते हैं कि विजिलेंस ने संबंधित कार्यालय अधीक्षक (ओएस/टेंडर) को बयान दर्ज कराने के लिए गोरखपुर आने को कहा था, परंतु सूत्रों का कहना है कि उसे सीनियर डीईएन/समन्वय द्वारा नहीं जाने दिया गया. सूत्रों का कहना है कि फाइलों के बारे में जब विजिलेंस ने सीनियर डीईएन/समन्वय से पूछा तो उनका कहना था कि फाइलें ओएस/टेंडर के पास हैं, जबकि ओएस/टेंडर उक्त फाइलें सीनियर डीईएन/समन्वय के पास होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ रहा है.

बहरहाल, यह तो जाहिर है कि इस मामले में निश्चित रूप से कोई बहुत बड़ा गोलमाल किया गया है. और यह भी जाहिर है कि भ्रष्टाचार अथवा कमीशन की अनुचित मांग की ही बदौलत उक्त दोनों बैलास्ट टेंडर डेढ़ साल की लंबी अवधि में भी फाइनल नहीं हो पाए. चूंकि इस मामले में नीचे से लेकर ऊपर तक के सभी संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने की नौबत आ रही है, इसलिए सब एक-दूसरे को बचाने और आपस में एक-दूसरे की पीठ सहलाने में लग गए हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री भले ही भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात हर मंच से दोहराते रहें, मगर उनकी निगरानी एजेंसियों की कोताही के चलते सरकारी महकमों से भ्रष्टाचार उनके इस जुबानी-जमाखर्च से मिटने वाला नहीं है.