October 5, 2020

तब क्या होता है, जब भोगी प्रवृति के बौने लोग करते हैं नेतृत्व?

Minister for Railways Piyush Goyal with General Secretary NFIR Dr M Raghvaiya, President Guman Singh and General Secretary, AIRF Com. Shivgopal Mishra, L. N. Pathak & other office bearers of the recognised railway unions and federations.

पूरी तरह बिक चुका है FROA, कीमत है – केवल दिल्ली में महत्वपूर्ण पदों पर बने रहना!

रिटायर चालबाज के हाथों सौंपकर प्रमोटी अधिकारियों ने खत्म कर दिया IRPOF का अस्तित्व!

यूनियनों/फेडरेशनों के बूढ़े-लाचार नेताओं ने गिरवी रख दी 13.50 लाख रेल कर्मचारियों की गरिमा

सुरेश त्रिपाठी

भारतीय रेल अभी जिस भयावह दौर से गुजर रही है और जहां इसके अधिकारियों एवं कर्मचारियों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है, वहीं रेल अधिकारियों का संगठन “फेडरेशन ऑफ रेलवे ऑफिसर्स एसोसिएशंस” (FROA) अभी तक के सबसे अक्षम, अवसरवादी और भीतरघाती लोगों के हाथ में है। 

लोग पूछते हैं कि क्या यह वही संगठन है, जिसको कभी लीजेंडरी लोगों का नेतृत्व प्राप्त था। इंद्र घोष, विक्रम चोपड़ा, शुभ्रांशु जैसे कद के लोगों की कमी अभी रेल अधिकारी ही नहीं कर्मचारी भी इस संक्रमण के दौर में बुरी तरह से महसूस कर रहे हैं।

कई जोनों के अधिकारियों का यह कहना है कि “अगर रेलमंत्री को आज की तारीख में रेल अधिकारियों और कर्मचारियों के किसी सशक्त आंदोलन को तोड़ना होता, तो एफआरओए के वर्तमान अध्यक्ष और महामंत्री को जयचंद के रोल में वे स्वयं चुनते या ये दोनों खुद जाकर अपनी सेवा देने का प्रस्ताव करते और चरणों में चारणों की भांति दंडवत लेट जाते!”

उनका कहना है कि, “हालांकि वर्तमान में भी वे कुछ इसी तरह लेटे हुए हैं, लेकिन रेल अधिकारियों और कर्मचारियों का दुर्भाग्य यह है कि ये दोनों पहले से ही इन पदों पर कब्जा जमाए हुए हैं, जिससे रेलमंत्री और सीआरबी का काम बहुत आसान हो गया है।”

वह कहते हैं, “इन दोनों की वही खासियत है जो डपोरशंख की होती है। अधिकारियों के सामने ये रेलमंत्री, सीईओ और मोदी को पेट भर गालियां देते हैं। परंतु जब रेलमंत्री और सीईओ के सामने जाते हैं, तो इन्हें अपनी पोस्ट और दिल्ली नजर आने लगती है। तब ये उनकी हां में हां मिलाकर दरबारी स्टाइल में उन्हें धन्यवाद और कोर्निश – कदमबोसी करते बाहर आ जाते हैं।”

“बाहर आकर फिर बड़ी निर्लज्जता से फिर अपनी बहादुरी का बखान करते हैं, सीईओ और मंत्री को गाली देते हैं। इसके तुरंत बाद अधिकारियों के सवाल-जबाब से बचने की कोशिश करते हुए किसी जरूरी काम का बहाना बनाकर निकल भागते हैं।” उन्होंने कहा।

अधिकारियों का यह भी कहना है कि “अभी जितना दबाब है, उसमें इनको अपनी इज्जत बचाने के लिए सीईओ से जाकर साफ कह देना चाहिए कि हम दोनों पर टीएडीके और तेजी से हो रहे रेलवे के निजीकरण, कारपोरेटाइजेशन/प्राइवेटाइजेशन, अधिकारियों/कर्मचारियों के हितों के विरुद्ध लिए जा रहे निर्णयों के कारण बहुत ज्यादा दबाव है। अतः हम दोनों तत्काल प्रभाव से एसआरओए से इस्तीफा दे रहे हैं।”

उनका कहना है कि “लेकिन ये दोनों इतने निर्लज्ज हैं कि ये ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे, और न अब तक किया है। ये सिर्फ अपनी खातिर फेंके गए कुछ सुविधाओं के टुकड़ों के लिए जयचंद की भूमिका निभाते रहेंगे, क्योंकि दिल्ली में बने रहने के लिए इनकी एकमात्र योग्यता का आधार इनकी चमचागीरी, चापलूसी और एफआरओए के यह पद ही हैं।”

पूर्व मध्य रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अत्यंत क्षोभ के साथ कहा कि “आप इनको जानते नहीं हैं, नहीं तो कोई अपेक्षा ही नहीं रखते। किसी बड़े मुद्दे की बात तो छोड़ ही दें, इन्होंने आज तक किसी एक सांकेतिक विरोध तक का भी आह्वान नहीं किया है।”

इस विषय पर एफआरओए के महामंत्री से जब बात करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने दिल्ली से बाहर होने और बाद में बात करने की बात कहकर मुद्दे को टाल गए!

बहरहाल, “रेलसमाचार” ने पहले भी लिखा है कि ऑफीसर्स फेडरेशंस (एफआरओए/इरपोफ) की कमान दिल्ली से बाहर के जोनल अधिकारियों के हाथों में होनी चाहिए, न कि दिल्ली में बने रहने के लिए आसक्त अधिकारियों के हाथ में।

प्रशासन और सरकार से संवाद में आसानी होने की बात कहकर दिल्ली में बने रहने के आसक्त किन्हीं चापलूस और चरण-चाटुकार अधिकारियों को इन महत्वपूर्ण संगठनों की कमान थमाने का कुटिल और कपटपूर्ण बहाना अब कालबाह्य हो चुका है।

जब तक ऐसा नहीं होता अथवा जब तक सभी अधिकारी इसके लिए जागरूक नहीं होंगे, तब तक इन दोनों ऑफीसर्स फेडरेशनों के चाल-चरित्र में कोई मूलभूत बदलाव आने वाला नहीं है।

जो लोग इस महामारी के चलते भीषण संक्रमण काल में भी सैकड़ों रेल अधिकारियों और कर्मचारियों के मरने के बावजूद रेल अधिकारियों/कर्मचारियों के वाजिब हक की रक्षा नहीं कर सकते, उन्हें अधिकारी और कर्मचारी संगठनों का नेतृत्व करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।

इतिहास इस बात का गवाह है कि, “नेतृत्व जब कभी दलाल, चालबाज और भोगी प्रवृति के बौने लोग करते हैं, तब वही हाल होता है, जो आज रेल का हो रहा है।”

हकीकत यह है कि आज रेल अधिकारियों और कर्मचारियों में जो आक्रोश, अनिश्चितता है, वैसा कभी नहीं रहा। पिछले 40-50 सालों में शायद यह पहला मौका है, जब अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ उनके परिवार भी इतने आक्रोशित, परंतु लाचार हैं।

हालात ऐसे हैं कि अधिकारियों के बीच से यदि कोई सक्षम और सही नेतृत्व देने वाला ईमानदार व्यक्तित्व सामने आ जाए, तो लाखों कर्मचारियों का हुजूम भी उसके पीछे निकल पड़ने को तैयार है। यही नहीं, अगर कर्मचारियों के बीच से भी कोई जुझारू नेतृत्व देने वाला खड़ा हो जाए, जो लड़ने-मरने को तत्पर हो, तो उनके पीछे सारे अधिकारी और बच्चों के साथ उनकी फेमिली भी सड़क पर आ सकती है।

आज वक्त का तकाजा तो यही है, वरना जयचंदों के हाथ बिकना तो इतिहास में लिखा ही हुआ है।

सीआरबी/सीईओ सहित अधिकारी और कर्मचारी संगठनों के सभी बूढ़े और युवा नेताओं को समर्पित

कोहनी पर टिके हुए लोग,

टुकड़ों पर बिके हुए लोग !

करते हैं बरगद की बातें,

ये गमले में उगे हुए लोग !!

#CRB #CEO #FROA #IRPOF #AIRF #AIRFINDIA #NFIR #NFIRINDIA #Railway #IndianRailways #privatisation #corporatisation #PMO #PMOIndia #PiyushGoyal #MinisterForRailways