किसको बेवकूफ बना रहे हैं कोहनी पर टिके हुए सीईओ/नीति आयोग और सीईओ/रेलवेज?
प्राइवेट बैंक आने से स्टेट बैंक की क्वालिटी में कोई सुधार नहीं हुआ, उल्टे साढ़े-सत्यानाश ही हुआ!
सुरेश त्रिपाठी
ये नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत और रेलवे बोर्ड के सीआरबी उर्फ सीईओ विनोद कुमार यादव प्रतिस्पर्धा बढ़ने की बात कहकर आखिर किसको बेवकूफ बना रहे है?
रेलवे के प्राइवेटाइजेशन यानि निजीकरण अथवा कॉरपोरेटेटाइजेशन उर्फ निगमीकरण को सही ठहराते हुए इनका यह कहना अपने आप में कितना हास्यास्पद है कि “जब देश में इतने प्राइवेट बैंक आए थे, तो स्टेट बैंक बंद थोड़े ही हो गया था। इससे तो कम्पटीशन आया और क्वालिटी बेहतर हुई।”
तो महोदय ! प्राइवेट बैंक अपनी व्यवस्था साथ लेकर आया था, भवन किराये पर लिए थे या खुद निर्मित किए थे और अपने कॉरपोरेट ऑफिस स्थापित किए थे।
सैकड़ों-हजारों लोगों को नौकरियां दी थीं।
जबकि रेलवे में आने वाला यह “प्राइवेट” आपकी – रेल, आपकी पटरी, आपका स्टेशन, आपका स्टाफ ‘यूज’ करेगा और खर्चा उठायेंगे आप यानि रेलवे – भारत सरकार, यानि आम करदाता यानि देश की जनता!
आपके इस “प्राइवेट” का लक्ष्य है प्राॅफिट, और सिर्फ प्राॅफिट कमाना, इसके अलावा कुछ नहीं।
यह भी पढ़ें: “विवेकशील बनो, वरना चलो.. आगे बढ़ो !“
स्टाफ के, रेलवे के, रोजी-रोटी के साथ सबसे बड़ी दगाबाजी ये कागजी शेर यूनियन और फेडरेशन वाले कर रहे हैं। इन्होंने अपना जमीर बेच दिया है कुर्सी की खातिर!
याद है जब रेलवे के दोनों मान्यताप्राप्त फेडरेशनों ने दूसरी बार आम रेल हड़ताल के लिए जनमत संग्रह कराया था, तब 98% रेलकर्मियों ने हड़ताल के पक्ष में मतदान किया था।
तब दोनों फेडरेशनों के नेताओं को बुलाकर सरकार ने वह ड्राफ्ट उन्हें दिखा दिया था कि यदि वे ज्यादा तीन-पांच करेंगे तो यूनियनों/फेडरेशनों से सभी रिटायर्ड पदाधिकारियों को निकाले जाने का यह तैयार ड्राफ्ट लागू करके उन्हें सभी सरकारी आलीशान सुविधाओं, से वंचित कर दिया जाएगा, फिर घर बैठकर आराम करना।
तब से लेकर आज तक इन यूनियनों/फेडरेशनों के तथाकथित नेताओं के बोल नहीं फूट रहे हैं।
“बगावत” के लिए कलेजा चाहिए !
तलवे चाटने के लिए एक जीभ ही काफी है !!
(#बगावत – अपनी बात कहने के संदर्भ)
यह जो जन-जागरूकता सप्ताह और कथित वर्चुअल रैलियां हो रही हैं, वह सब दिखावा और नाटकबाजी है। रेलकर्मियों और जनता को भरमाए रखने की यह वैसी ही चालबाजी है जैसी सरकार देश की जनता के साथ कर रही है।
अतः रेलवे का रसातल में जाना तय है। न स्टेशन रहेगा, न ये बड़े-बड़े बंगले और भवन रह जाएंगे। आपके अच्छे दिन आ गये हैं।
और हां, किसी मुगालते में न रहें, प्राइवेट बैंक आने से स्टेट बैंक की क्वालिटी में कोई सुधार नहीं हुआ, उल्टे साढ़े-सत्यानाश ही हुआ है। यह भी याद रखें!
#CRB/#CEO सहित #FROA, #IRPOF, #AIRF और #NFIR के मूर्धन्य पदाधिकारियों को समर्पित
कोहनी पर टिके हुए लोग, टुकड़ों पर बिके हुए लोग!
करते हैं बरगद की बातें, ये गमले में उगे हुए लोग!!
अफवाहों से सतर्क रहें, #रेल का #निजीकरण कदापि नही होगा, इसका पुख्ता आश्वासन मिल चुका है.. पूरे कांफिडेंस के साथ.. 😷
और हां,रेल संगठन, जो कह रहे थे, "जिस दिन निजी ट्रेन चलेगी उस दिन रेल का चक्का जाम होगा",वह भारी-भरकम हार पहनाकर #CEO का स्वागत कर रहे हैं,इसलिए कोई चिंता न करें pic.twitter.com/cd4Br6dmP0
— RAILWHISPERS (@Railwhispers) September 4, 2020
#railway #indianrailways #pmoindia #pmo #privatisation #corporatisation #privatebank #privatwrailway #ceo_ir #ceo_railways #arb #nitiayog #ceo_nitiayog #privatetrain #train