April 7, 2019

भ्रष्ट रेल अधिकारियों को प्राप्त है रेलमंत्री का संरक्षण?

रेलवे के सुधार की उम्मीद छोड़ चुके हैं रेल अधिकारी और कर्मचारी

भ्रष्टाचार पर नहीं रह गया है रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड का कोई नियंत्रण

अधिकारी ने फर्जी शिकायतें करने/करवाने की पुरानी हरकतें शुरू कर दी

सुरेश त्रिपाठी

एक तरफ रेलमंत्री पीयूष गोयल रेलवे में भ्रष्टाचार के खिलाफ न सिर्फ सख्त रवैया अपनाए जाने का सार्वजनिक बयान देते नजर आते हैं, बल्कि कई बार बैठकों के दौरान वह रेल अधिकारियों को अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्ट और कामचोर कहने से भी नहीं चूके हैं. दूसरी तरफ वह भ्रष्ट अधिकारियों को प्रश्रय भी देते दिखाई दे रहे हैं. यह ठीक है कि मंत्रिमंडलीय समकक्षों के साथ ही तमाम सांसदों की भी सिफारिशों को सभी मंत्रालयों के मंत्रियों द्वारा पूरी तवज्जो दी जाती है, मगर घोषित भ्रष्ट, चोर, चापलूस और चरित्रहीन अधिकारियों एवं कर्मचारियों को मंत्रियों का संरक्षण मिलना न सिर्फ पूरी प्रशासनिक और सरकारी मशीनरी के लिए हानिकारक है, बल्कि ऐसे ही सरकारी कर्मचारी और अधिकारी जल्दी ही सरकार और मंत्री की नाकामी तथा बदनामी का कारण भी बनते हैं.

यही कारण है कि रेलवे के ऐसे ही कुछ अधिकारियों की बदौलत पिछले चार सालों से रेलवे में जमीनी कामकाज कम, बकवास और लफ्फाजी ज्यादा हो रही है. इसके अलावा जो अधिकारी पूरी ईमानदारी, समर्पण एवं कर्तव्यनिष्ठा के साथ काम कर रहे हैं, अथवा करना चाहते हैं, उन्हें काम नहीं करने देकर परेशान किया जा रहा है, जबकि भ्रष्ट, चोर, चापलूस और चरित्रहीनों का बोलबाला हो रहा है, जैसा कि हमेशा से रहा है, तब वर्तमान सरकार अथवा रेलमंत्री में और पूर्व की सरकारों तथा उनके लालू, ममता जैसे भ्रष्ट रेलमंत्रियों में क्या अंतर रह गया है?

उपरोक्त बात का पुख्ता सबूत रेल अधिकारियों को तब मिला, जब दक्षिण पूर्व रेलवे के एक परिचालन अधिकारी का तबादला एक बड़े उद्योग घराने की उच्च स्तरीय शिकायत के बाद रेलवे बोर्ड द्वारा केंद्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्रालय में कर दिए जाने के बावजूद रेलमंत्री के हस्तक्षेप से रिलीव होने के मात्र 10 दिन बाद ही उक्त अधिकारी को उसी जगह, उसी विभाग और उसी रेलवे में पुनः पदस्थ कर दिया गया. ज्ञातव्य है कि उक्त अधिकारी का यह तबादला जब द.पू.रे. से बाहर 18 साल बाद 8 फरवरी को किया गया था, और जब 5 मार्च को उसे अंततः वहां से रिलीव किया गया था, तब इससे बुरी तरह त्रस्त द.पू.रे. के सभी रेल अधिकारी और लोडिंग करने वाली फर्मों ने बहुत राहत महसूस की थी.

मगर जैसे ही 15 मार्च को यह अधिकारी उसी जगह, उसी विभाग और उसी रेलवे के अपने चेंबर में पुनः विराजमान हो गया, वैसे ही सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ हीदक्षिण पूर्व रेलवे में लोडिंग करने वाली तमाम फर्मों ने रेलवे में सुधार की सारी उम्मीदें छोड़ दीं. इससे पहले हमारे विश्वसनीय सूत्रों ने रेलवे बोर्ड को उक्त अधिकारी के भ्रष्टाचार के न सिर्फ तमाम सबूत दिए थे, बल्कि जहां-जहां और जिस-जिस दलाल के जरिए यह अधिकारी लोडिंग फर्मों से अवैध उगाही कर रहा था, उनके नाम और संपर्क नंबर भी रेलवे बोर्ड को उपलब्ध कराकर जांच करके खुद संतुष्ट हो लेने को भी कहा था. इसके अलावा सूत्रों ने इस बात से भी आगाह किया था, कि इस अधिकारी को रिलीव करने में जितनी ज्यादा देरी की जाएगी, रेलवे बोर्ड को इसका तबादला रद्द करने के लिए उतना ही ज्यादा दबाव झेलना पड़ेगा. जो कि अंततः सही साबित हुआ.

हालांकि हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि इस अधिकारी को अब तक परिचालन से अलग रखकर उससे संबंधित कोई कामकाज नहीं दिया गया है, मगर उसके उसी जगह बैठे रहने से भी लोडिंग फर्मों में पर्याप्त दहशत बनी हुई है. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले हप्ते इस अधिकारी ने खड़कपुर मंडल से लोडिंग करने वाली एक फर्म से कथित तौर पर एक मोटी रकम की मांग की थी, जिसको पूरा नहीं किए जाने पर इस अधिकारी ने मंडल के एक सहायक मंडल परिचालन प्रबंधक को अपनी हड़क में लेकर उसके जरिए उक्त लोडिंग फर्म का रेक रात के 3 बजे लोडिंग साइडिंग में प्लेस करा दिया. बताते हैं कि रात के उस वक्त उक्त फर्म के पास रेक लोड करने की कोई पूर्व तैयारी नहीं थी, जिससे अंततः परेशान होकर उसने आत्म-समर्पण कर दिया.

इसके साथ ही सूत्रों का कहना है कि इस अधिकारी ने विभाग के दूसरे अधिकारियों के खिलाफ फर्जी शिकायतें करने और करवाने की अपनी पुरानी हरकतें पुनः शुरू कर दी हैं. इस परिप्रेक्ष्य में दक्षिण पूर्व रेलवे के हमारे विजिलेंस सूत्रों ने बताया कि हाल ही में इसके द्वारा दो-तीन पूर्व एवं वर्तमान विभागीय अधिकारियों के खिलाफ फर्जी शिकायतें विजिलेंस को मिली हैं. हालांकि विजिलेंस सूत्रों का यह भी कहना है कि उक्त शिकायतों में किसी शिकायतकर्ता का नाम स्पष्ट नहीं है, तथापि विजिलेंस ने उनकी जांच शुरू कर दी है, जिससे सभी विभागीय अधिकारी भय से कोई काम करने या जरूरी निर्णय लेने से बचने लगे हैं. नाम न उजागर करने कि शर्त पर कोलकाता स्थित कुछ अधिकारियों का कहना है कि ऐसे माहौल में दक्षिण पूर्व रेलवे की लोडिंग और समस्त कार्य-निष्पादन पर काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

अधिकारियों का कहना है कि काबिल और कार्यक्षम अधिकारियों के खिलाफ झूठी शिकायतें करना और करवाना तथा उन्हें अपनी अवैध कमाई के रास्ते से हटाना इस अधिकारी की बहुत पुरानी आदत रही है. उन्होंने बताया कि यह अधिकारी अपने किसी नजदीकी रिश्तेदार के सीबीआई में होने का हथकंडा अपनाकर अपने सभी वरिष्ठ एवं कनिष्ठ अधिकारियों को अब तक अपनी गिरफ्त में रखता आया है और इसी दहशत के बल पर इसने अब तक पी. सी. हरनाथ, अहिरवार, रहमान, अखिलेश पांडेय, हरविंदर सिंह और प्रशांत सिंघानिया जैसे कई दक्ष अधिकारियों को अपने रास्ते से हटाने में कामयाब रहा है. बताते हैं कि यह सभी अधिकारी या तो रेलवे बोर्ड अथवा किसी अन्य रेलवे में तबादला लेकर चले गए, या फिर किसी पीएसयू में प्रतिनियुक्ति पर लगे हुए हैं.

इस संदर्भ में सूत्रों का कहना है कि टाटानगर में कार्यदक्ष एरिया ऑफिसर रहे अखिलेश पांडेय को इस भ्रष्ट अधिकारी ने बतौर सीनियर डीओएम/चक्रधरपुर कुल 13 कांफिडेंसियल लेटर थमाए थे, जबकि प्रशांत सिंघानिया जैसे काबिल अधिकारी को खड़कपुर मंडल के सीनियर डीओएम के पद से हटाने के लिए यह अधिकारी नए-नए ज्वाइन हुए जीएम को भी दिग्भ्रमित करने में कामयाब रहा, जबकि तत्कालीन प्रिंसिपल सीओएम तो इसकी अवैध कमाई में हिस्सेदार होने के नाते इसके सामने हमेशा नतमस्तक ही रहे और यह जो-जैसा कहता था, वैसा ही वह करते थे. बताते हैं कि भारतीय रेल का यह शायद पहला मामला है, जब सिंघानिया की जगह वर्तमान सीनियर डीओएम विनीत कुमार गुप्ता की पोस्टिंग सिर्फ एक कंट्रोल मैसेज के जरिए की गई थी. जब मामला कैट में गया, तब प्रशासन ने कोर्ट के डर से डिप्टी सीपीओ/गजटेड के साथ जोड़तोड़ करके प्लेसमेंट कमेटी की मिनिट्स बदलकर पिछली तारीख में उनका पोस्टिंग आर्डर निकाला था.

यही नहीं, उक्त अधिकारी ने सिंघानिया जैसे युवा और ईमानदार अधिकारी का भावी कैरियर उसकी 3-4 महीने की एसीआर में ‘नॉट फिट फॉर ऑपरेशन’ लिखकर खराब करने की भी कोशिश की थी. जबकि बतौर डीओएम उसके ही अथक परिश्रम के कारण उस वर्ष खड़कपुर मंडल को ऑपरेटिंग की सर्वश्रेष्ठ कार्यदक्षता शील्ड मिली थी. बताते हैं कि इसी कार्यदक्षता की बदौलत ही सिंघानिया को बाद में वहीँ सीनियर डीओएम बनाया गया था. सूत्रों का कहना है कि सिंघानिया को पूरी साजिश के साथ और योजनाबद्ध तरीके से हटाया गया था, जिसमें तत्कालीन सीओएम सहित कुछ अन्य ट्रैफिक अधिकारी भी शामिल थे, क्योंकि सिंघानिया के रहते खड़कपुर मंडल की लोडिंग फर्मों से उनका ‘कलेक्शन’ लगभग बंद हो गया था.

जानकारों का कहना है कि उक्त अधिकारी अपने ऐसे सभी जूनियर अधिकारियों का कैरियर तबाह करता रहा है, जो उसका दलाल बनने अथवा उसकी कोटरी में शामिल होने से मना करते रहे हैं. इसी बात के कुछ भुक्तभोगी उपरोक्त अधिकारी हैं, जिन्हें विश्वास में लेकर रेल प्रशासन उपरोक्त तमाम तथ्यों की पुष्टि कर सकता है. उक्त अधिकारी की पुनः उसी जगह पोस्टिंग होने से भयानक अवसाद का शिकार हुए इन अधिकारियों का स्पष्ट कहना है कि जिस दिन उसने उसी जगह फिर से ज्वाइन किया था, उसी दिन यह तय हो गया था कि रेलवे का कुछ नहीं हो सकता. उनका कहना है कि रेलवे बोर्ड में बैठे उच्च अधिकारियों को इतनी भी समझ नहीं है कि जिस अधिकारी को तमाम आरोपों के तहत 18 साल बाद ट्रांसफर किया गया है, उसे पुनः उसी जगह पदस्थ कर दिए जाने से वह पहले की अपेक्षा ज्यादा मजबूत हो जाएगा.

इन जानकारों का यह भी कहना है कि महीने भर तक रिलीव नहीं होने देकर तत्कालीन रीढ़हीन सीओएम ने तो उसकी भरपूर मदद की ही थी, बल्कि उसकी अवैध कमाई में हिस्सेदार बनकर रेलवे बोर्ड में बैठे कुछ उच्च अधिकारी भी उसकी मदद करते रहे हैं. अधिकारी बताते हैं कि यह भ्रष्ट अधिकारी सीओएम से स्पष्ट कहा करता था कि “सर, ‘कलेक्शन’ नहीं आ रहा है, संबंधित सीनियर डीओएम को तत्काल हटाएं और सीओएम उसकी ‘आज्ञा’ की ‘अवज्ञा’ नहीं कर पाते थे.” उनका यह भी कहना है कि यही वजह रही है कि उक्त ‘भीतरघाती’ अधिकारी अपने समकक्ष और उच्च विभागीय अधिकारियों के निर्णयों को भी रेलवे बोर्ड के माध्यम से अक्सर बदलवाकर उन्हें नीचा दिखाता रहा है. इन जानकारों का यह भी कहना है कि यदि रेल प्रशासन अथवा रेलवे बोर्ड इस संबंध में कोई जांच करता है, तो इन सभी तथ्यों की पुष्टि करने के लिए सभी भुक्तभोगी अधिकारी तैयार हैं.

रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों ने ‘रेलवे समाचार’ को बताया कि केंद्रीय कैबिनेट में शामिल बिहार के एक बड़बोले नेता की सिफारिश पर रेलमंत्री पीयूष गोयल ने उक्त अधिकारी का तबादला रद्द करके उसे उसी रेलवे में उसी जगह, उसी विभाग में पदस्थ करवाया, जबकि रेलवे बोर्ड इसके लिए तैयार नहीं था. सूत्रों का कहना है कि मंत्री को उक्त अधिकारी की समस्त पृष्ठभूमि की पूरी जानकारी दी गई थी और यह भी कहा गया था कि यदि उसे कोलकाता में ही रखना है, तो पूर्व रेलवे या मेट्रो रेलवे के लिए उसका पोस्टिंग आर्डर जारी किया जा सकता है. तथापि मंत्री की जिद के सामने रेलवे बोर्ड को उक्त अधिकारी के सामने अपनी नाक नीची करके उसे वहीँ पदस्थ करना पड़ा.

ऐसे में अधिकारियों का कहना है कि भ्रष्टाचार के बारे में मंत्री जी जैसा कहते हैं, वास्तव में वैसा करते नहीं हैं. उनका कहना है कि कई केंद्रीय मंत्रियों का रेलवे बोर्ड के दैनंदिन कामकाज में हस्तक्षेप के चलते कोई भी बोर्ड मेंबर विवेकपूर्ण निर्णय लेने की स्थिति में नहीं रह गया है. अपनी इस बात के उदहारण स्वरूप उनका कहना था कि चाहे रेलवे बोर्ड में कैटरिंग छीनने और अधिकारियों की वरिष्ठता एवं कैडर तय करने का मामला हो, कोर में टेंडर्स की कंडीशन बदल दिए जाने का मामला हो, उ. रे. के कुछ भ्रष्ट ट्रैफिक एवं कमर्शियल अधिकारियों का मामला हो, चाहे उ. रे. सहित पूर्वोत्तर रेलवे के कुछ महाभ्रष्ट इंजीनियरिंग अधिकारियों का मामला हो, कुछ जोनल रेलों में चल रही जीएम की मनमानी और ‘सर्विस प्रोवाइडर्स’ के लिए उनका खुला समर्थन हो, सीनियर डीसीएम/भोपाल की मनमानी के सामने प. म. रे. प्रशासन की अकर्मण्यता और घुटने टेक देने का मामला हो, द. रे. में ‘माफिया यूनियन’ के समक्ष समस्त रेल प्रशासन का आत्म-समर्पण हो, उ.म.रे. में डॉक्टरों के सामने प्रशासन का नतमस्तक हो जाना हो, इत्यादि सभी मामलों में न सिर्फ भ्रष्टाचार गहराई तक समाया हुआ है, बल्कि इनमें किसी न किसी केंद्रीय मंत्री अथवा सांसद का भी हस्तक्षेप है.

ऐसे में रेलमंत्री हों या रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारीगण, सभी को इस तमाम भ्रष्टाचार और जोड़तोड़ की पूरी जानकारी है और उनकी जानकारी में ही यह सब हो रहा है, तथापि इस खुले भ्रष्टाचार पर उनका कोई नियंत्रण नहीं रह गया है. एक ही जगह 15 साल से ज्यादा समय तक जमे अधिकारियों को दरबदर करने की जो नीति (ट्रांसफर पालिसी-2015) बनाई गई है, भ्रष्ट अधिकारियों की मजबूत लॉबी के सामने उस पर रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड दोनों ही अमल नहीं कर रहे हैं. अधिकारियों का बहुत स्पष्ट कहना है कि वे रेलवे के सुधार की सारी उम्मीदें छोड़ चुके हैं, जिनसे इस बारे में बहुत सारी उम्मीदें की गई थीं, वह भी या तो दबाव में हैं अथवा मंत्री जी उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं. रेलवे में चौतरफा सिर्फ दिखावा किया जा रहा है, जमीनी स्तर पर कोई खास प्रगति नहीं हो रही है, जबकि प्रशासन का पूरा भट्ठा बैठ गया है.

कर्मचारियों की मांगों और उनके कल्याण पर सिर्फ लीपापोती हो रही है, सभी मान्यताप्राप्त संगठनों का सरकार और रेलमंत्री से मोह भंग हो चुका है, रेलवे में चारों तरफ चापलूसों, कामचोरों, दलालों का बोलबाला हो रहा है, जिससे सभी रेल अधिकारी और कर्मचारी निराश हो चुके हैं. ऐसे में रेलवे के सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती है. इस पर तो रेलकर्मियों द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा वह वार्तालाप ही यहां उद्धृत करना शायद ज्यादा समसामयिक होगा कि “सरकार को जिस सरकारी विभाग को बेचना होता है, उसे और उसके कर्मचारियों को सरकार द्वारा पहले खूब बदनाम किया जाता है, फिर यह कहकर उसको बेच दो दिया जाता है कि कर्मचारी निकम्मे हो गए थे, काम नहीं कर रहे थे, विभाग या कंपनी घाटे में चली गई है, इसके उबरने की अब कोई उम्मीद नहीं बची है, इसलिए इसका निजीकरण किया जा रहा है, या इसकी 50-75% हिस्सेदारी बेची जा रही है.” शायद भविष्य में रेलवे का यही हस्र होने वाला है.