अकर्मण्य रेल अधिकारियों को नहीं है कैडर की समझ?
आईआरपीएस अधिकारियों की काबिलियत पर लगा प्रश्नचिन्ह
रेलवे अकादमी ने लेक्चर के लिए रिटायर्ड प्रमोटी अधिकारी को बुलाया
30% अतिरिक्त अलाउंस लेकर भी क्या करते हैं कार्मिक कैडर के प्रोफेसर?
कहीं यह दुर्भावना ही अरबों रुपये के पदोन्नति घोटाले की जननी तो नहीं?
सुरेश त्रिपाठी
वड़ोदरा स्थित ‘भारतीय रेलवे राष्ट्रीय अकादमी’(एनएआईआर-नायर) के सीनियर प्रोफेसर ने प्रोबेशनर्स और एमडीपी में आए अधिकारियों के लिए ‘कैडर मैनेजमेंट’ पर लेक्चर देने हेतु एक रिटायर्ड प्रमोटी अधिकारी को आमंत्रित किया है, जिसका समय 20 अप्रैल को 11.30 से 13.30 के बीच में निर्धारित किया गया है. वैसे तो ‘नायर’ में इस तरह के गेस्ट लेक्चर होते रहते हैं, परंतु यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या वर्तमान में रेलवे में कार्यरत ऐसा एक भी अधिकारी नहीं है, जिसको रेलवे के ही कैडर की जानकारी न हो?
भारतीय रेल की यही विडंबना है कि प्रति वर्ष ग्रुप ‘ए’ के लिए यूपीएससी को इंडेंट भेजा जाता है. ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को चयन के साथ-साथ उचित प्रारूप में ट्रेनिंग भी दी जाती है. इसी तरह ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों के लिए दी पीसी कराया जाता है. जेएजी, सिलेक्शन ग्रेड, एसएजी, एचएजी के साथ साथ जॉइंट सेक्रेटरी की पोस्ट पर पदोन्नति और एम्पैनल्मेंट रेलवे बोर्ड द्वारा ही किया जाता है. वेकैंसी की गणना, कैडर रिस्ट्रक्टरिंग, डेपुटेशन के साथ-साथ ट्रांसफर/पोस्टिंग भी रेलवे बोर्ड द्वारा ही की जाती है। इन सभी कार्यों के लिए यूपीएससी से ग्रुप ‘ए’ पदों पर आईआरपीएस अधिकारियों की विशेष भर्ती भी की जाती है.
ऐसे में रेलवे के ‘कैडर मैनेजमेंट’ पर लेक्चर ले सकता हो, क्या रेलवे बोर्ड के साथ-साथ पूरी भारतीय रेल में ऐसा एक भी काबिल कार्मिक अधिकारी नहीं है? यदि ऐसा है, तो पूरे कार्मिक विभाग के अधिकारियों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए. इस प्रकार के उदाहरण ही यह साबित करते हैं कि इसी उदासीनता और अकर्मण्यता ने भारतीय रेल में अरबों रुपये के ‘अधिकारी पदोन्नति घोटाले’ को जन्म दिया. इसके साथ ही ऐसे घोटालों और घोटालेबाजों को फूलने-फलने का भी सुअवसर प्रदान किया. अतः ‘नायर’ में 20 अप्रैल को ऑडिटोरियम में मौजूद प्रोबेशनर्स और एमडीपी में आए ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को ‘कैडर मैनेजमेंट’ से संबंधित उनके मुखर सवालों के सही जवाब मिल ही जाएंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं है.
ऐसे कुछ सवाल निम्न प्रकार से हैं-
1. वर्ष 1998 में पोस्ट बेस्ड एससी/एसटी रिजर्वेशन विषय पर आर. के. सबरवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण निर्णय को रेलवे में किस प्रकार से लागू किया गया? सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय के बाद इस रिजर्वेशन के नियम को सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के बीच मौजूद रोटा-कोटा पर कैसे लागू किया गया? गलत नियम के अतिरिक्त लगभग चार हजार ग्रुप ‘बी’ के पदों का अवैध रूप से सृजन करके किसको फायदा पहुंचाया गया? वर्तमान में इस गंभीर गलती का निदान क्या है?
2. सरकार के ‘ऑप्टिमाइजेशन नियम’ द्वारा खत्म किए जा चुके ग्रुप ‘ए’ के पदों को पुनर्जीवित करके और कथित ‘बैकलॉग’ दिखाकर प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ पदों की सौगात क्यों और कैसे दी गई? यह एक प्रमाणिक तथ्य है, इसके मद्देनजर वर्तमान में इसका समाधान क्या हो सकता है? इस महाघोटाले में लिप्त रहे रेलवे बोर्ड के उन तमाम दोषी अधिकारियों को सजा मिलनी चाहिए या नहीं?
3. एक तरफ सरकार कैडर कम कर रही थी, तो दूसरी तरफ रेलवे बोर्ड, प्रमोटी अधिकारियों के लिए पलक-पांवड़े बिछाकर उनके लिए ग्रुप ‘ए’ का वार्षिक कोटा 180 से बढ़ाकर 411 (और कई बार राउंड फिगर में 412) कर रहा था, ऐसा क्यों हुआ और यह किसके प्रयासों से हुआ, इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाएगा? ‘लीव रिजर्व रिक्तियों’ को ‘स्थायी कैडर’ दिखाकर प्रमोटी अधिकारियों का कोटा बढ़ाया गया, क्या यह एक सोची-समझी साजिश नहीं थी?
4. कैबिनेट द्वारा रेलवे के लिए अधिकृत रूप से ग्रुप ‘ए’ के कुल 9700 पद स्वीकृत हैं, फिर रेलवे में प्रतिवर्ष 822 ग्रुप ‘ए’ अधिकारी क्यों और कैसे लिए जा रहे हैं? प्रतिवर्ष लगभग 3 प्रतिशत अधिकारी सेवानिवृत्त होते हैं, अर्थात साल भर में 287 ग्रुप ‘ए’ के पद रिक्त होते हैं, इन 287 वार्षिक रिक्तियों/पदों के सामने प्रतिवर्ष 411 सीधी भर्ती और 411 प्रमोटी, यानि कुल 822 अधिकारी क्यों लिए जा रहे हैं? यह खुला घोटाला किसको फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है? इस अत्यंत गंभीर समस्या से वर्तमान रेल प्रशासन को कैसे निपटना चाहिए?
इसी प्रकार के अभी अन्य बहुत सारे ज्वलंत सवाल हैं, जिनका जवाब ‘कैडर मैनेजमेंट’ में कोई मास्टर महानुभाव ही बता सकता है. यदि रेलवे बोर्ड को अपने आईआरपीएस अधिकारियों की काबिलियत पर कोई ऐतबार नहीं है, तो इस विषय पर गेस्ट लेक्चर देने आने वाले ‘साहब’ अपने सेवाकाल में कैडर व्यवस्था पर क्या-क्या योगदान दिए थे, क्या इसकी भी पड़ताल होनी चाहिए? वर्ष 1998 से ही जब कैडर में गड़बड़झाला चला आ रहा है, तो ये साहब उन दिनों में कहां थे?
रेलवे बोर्ड ने उन दिनों में कैडर मैनेजमेंट पर ऐसे ज्ञानियों से सलाह-मशवरा किया था, या नहीं? आज के परिवेश में इतने पढ़े-लिखे आईआरपीएस अधिकारियों के बावजूद 10-12 साल पहले रिटायर्ड हो चुके अधिकारी से आज लेक्चर दिलवाना कहां तक उचित है? यदि ऊपर पूछे गए सभी सवालों का सही जवाब रिटायर्ड महोदय दे देते हैं, तो ऑडिटोरियम में बैठे सभी अधिकारियों को धन्य होना चाहिए, अन्यथा ‘नायर’ सहित रेलवे बोर्ड में मौजूद आईआरपीएस अधिकारियों की योग्यता पर यह एक करारा तमाचा होगा, इसके सिवा और कुछ नहीं कहा जा सकता है.
लाखों-लाखों रुपये की मोटी-मोटी तनख्वाहें प्रतिमाह लेने वाले रेलवे बोर्ड के बड़े-बड़े अधिकारियों को क्या कैडर की पर्याप्त जानकारी या समझ नहीं है? मेंबर स्टाफ, सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड, डीजी/पर्सनल, एडवाइजर, ईडी(आईआर), ईडी/ई(जीसी), जॉइंट सेक्रेटरी/एस्टेब्लिशमेंट जैसे तमाम पदों पर विराजमान जो उच्च अधिकारी हैं, जिनका दिन-रात यही काम होता है- कैडर संबंधित दस्तावेजों को पढ़ना, समझना, अग्रसरित और अनुमोदित करना. जिनको ‘नायर’ में सिर्फ मात्र टीए/डीए देकर कैडर संबंधी जानकारी प्रोबेशनर्स को दिलवाई जा सकती है.
इसके अलावा सीनियर प्रोफेसर (सीपीओ स्तर) के अधिकारी सहित चार अन्य आईआरपीएस अधिकारी ‘नायर’ में ही उपलब्ध हैं, जो कि 30% अतिरिक्त टीचिंग अलाउंस (लगभग 45-50 हजार प्रतिमाह) भी ले रहे हैं, वह क्या कर रहे हैं? इनके तो नियमित लेक्चर (महीने में कम से कम 22 लेक्चर) भी नहीं होते हैं, तब यह कैडर मैनेजमेंट पर लेक्चर क्यों नहीं तैयार कर सकते हैं? ऐसे में हजारों-लाखों खर्च करके बाहर से गेस्ट लेक्चरर बुलाना कहां तक तर्कसंगत है? जाहिर है कि रेलवे में पूरी तरह से अंधेरनगरी चल रही है, जनता का पैसा अकारण पानी की तरह बहाया जा रहा है.
इस विषय में ‘रेलवे समाचार’ ने ‘नायर’ के महानिदेशक/प्राचार्य राजीव गुप्ता से जब संपर्क करके पूछा कि कैडर मैनेजमेंट पर वर्षों पहले रेलसेवा से रिटायर हो चुके अधिकारी को बतौर गेस्ट लेक्चरर बुलाने का क्या औचित्य है और ‘नायर’ में ही उपलब्ध आईआरपीएस फैकल्टी से यह लेक्चर देने के लिए क्यों नहीं कहा गया अथवा रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों को इसके लिए क्यों नहीं बुलाया गया? तो इस पर श्री गुप्ता का कहना था कि सर्वप्रथम यह कि लेक्चर्स का टाइम-टेबल वह नहीं बल्कि कोर्ष डायरेक्टर सेट करते हैं. उनसे पूछना पड़ेगा. हालांकि उन्होंने यह जरूर स्वीकार किया कि इसके लिए ईडी/जीसी को बुलाया जा सकता है, क्योंकि उन्हें इस विषय का ज्ञान है और इसके साथ ही उन्होंने डीओपीटी में भी प्रतिनियुक्ति पर कुछ वर्षों तक काम किया है. श्री गुप्ता ने अपनी बात यह कहकर खत्म कर दी कि वह इस बात की संबंधित लोगों से पूछताछ करेंगे कि ऐसा क्यों किया गया है?