किसी का फेवर करना कोई मेंबर ट्रैफिक और सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड से सीखे!
भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था की बात कोरी बकवास है – जुगाड़ है, तो सब कुछ संभव है!
एक मजाक बनकर रह गई है 10-15 साल वाली रेलवे बोर्ड और रेलमंत्री की ट्रांसफर नीति
Suresh Tripathi
किसी अधिकारी या कर्मचारी को यदि सारी लाज-शरम छोड़कर फेवर करना हो, तो वह जाकर मेंबर ट्रैफिक और सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड सह एडीशनल मेंबर ट्रैफिक का शागिर्द बन जाए, क्योंकि इन दोनों अधिकारियों की अब तक की जो गतिविधियां रही हैं, उनके मद्देनजर यह बात सही साबित होती है। स्थिति यह है कि मेंबर ट्रैफिक ने एक विवादास्पद अधिकारी को अनावश्यक फेवर करके कम से कम रिटायरमेंट तक तो अपने लिए “फ्री-सोमरस आपूर्ति” का पुनः बंदोबस्त कर लिया है, क्योंकि उनके जीएम/द.पू.रे. रहते हुए भी वही उनकी आपूर्ति का सबसे बड़ा माध्यम था, ऐसा बताया गया है!
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ज्ञातव्य है कि मंगलवार, 19 मई 2020 को दोपहर बाद करीब पांच बजे रेलवे बोर्ड से मनोज कुमार का प्रमोशन/पोस्टिंग ऑर्डर निकला, उन्हें डायरेक्टर/रेल मूवमेंट, कोलकाता से उठाकर वहीं दक्षिण पूर्व रेलवे में अस्वाभाविक रूप से सीएफटीएम के पद पर पदस्थ किया गया, जो कि सभी अधिकारियों के लिए अत्यंत आश्चर्यजनक था, क्योंकि किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि इतने विवादास्पद और जूनियर अधिकारी की पहली पोस्टिंग ही सीएफटीएम में हो सकती है। जबकि वहीं उससे कई बैच सीनियर और सक्षम अधिकारी बैठे हुए हैं तथा वहीं उसे बैठाया जा सकता है जहां वह कई साल लगातार बतौर डिप्टी सीओएम रहकर अपने सीनियर्स की जड़ें खोदता रहा था। ऐसे अधिकारी का मेंबर ट्रैफिक द्वारा इतना अधिक फेवर किया जाएगा, किसी को भी भरोसा नहीं था।
उनका यह फेवर यहीं खत्म नहीं हुआ। अगले ही दिन गुरुवार, 20 मई 2020 को सुबह ही उन्होंने मनोज कुमार को सीएफटीएम/द.पू.रे. का चार्ज लेने दक्षिण पूर्व रेलवे मुख्यालय, गार्डेन रीच भेज दिया। जहां प्राप्त जानकारी के अनुसार पीसीओएम को उन्होंने रिपोर्ट किया। वह उन्हें ज्वाइन कराने के लिए महाप्रबंधक के पास लेकर पहुंचीं। मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान सीएफटीएम ने तभी उन्हें दो दिन बाद सोमवार को चार्ज हैंड ओवर करने के बारे में सूचित किया था। इसके बाद उन्होंने मनोज कुमार को सोमवार को आने के लिए कहकर वापस भेज दिया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार ऐसा माना जाता है कि गार्डेन रीच मुख्यालय से निकलने के बाद मनोज कुमार ने मेंबर ट्रैफिक को उपरोक्त ताजा स्थिति से अवगत कराया। इसके लिए उन्होंने मेंबर ट्रैफिक से मोबाइल पर बात की या उन्हें टेक्स्ट मैसेज भेजा, यह तो पता नहीं चल सका, मगर द.पू.रे. मुख्यालय से उनके निकलने के तुरंत बाद मेंबर ट्रैफिक का फोन पीसीओएम को पहुंचा और उन्होंने उनसे मनोज कुमार को फौरन सीएफटीएम का चार्ज दिलवाने को कहा। तत्पश्चात मनोज कुमार को कॉल करके बुलाया गया, जो कि कहीं आसपास ही थे और फौरन पहुंच गए, तथा उन्हें चार्ज सौंप दिया गया। अधिकारी आश्चर्यचकित हैं कि आखिर मेंबर ट्रैफिक द्वारा मनोज कुमार का इतना फेवर करने का औचित्य क्या है?
एमटी के फेवर की हद ये है कि 20 मई को ही जैसे ही मनोज कुमार ने करीब 2 बजे सीएफटीएम/द.पू.रे. का चार्ज लिया, उसके थोड़ी देर बाद ही एमटी ने उन्हें डायरेक्टर/रेल मूवमेंट का भी अतिरिक्त प्रभार सौंपते हुए तत्संबंधी आदेश रेलवे बोर्ड से जारी करा दिया। अधिकारियों का कहना है कि यह तो अपक्षित ही था, क्योंकि इस बारे संबंधित अधिकारी ने कोलकाता में पहले से ही हवा बनाई हुई थी। उनका कहना है कि इस फेवर के चलते एमटी ने अपनी रही-सही इज्जत भी गंवा दी है। उनके इस कदम से ट्रैफिक सर्विस के सभी अधिकारी उनसे सख्त नाराज हुए हैं।
अधिकारियों का कहना है कि “मनोज कुमार को तो तुरंत चार्ज लेने की जल्दी समझी जा सकती है, क्योंकि उन्होंने इस पोस्टिंग के लिए कथित तौर पर काफी मोटा दाम चुकाया होगा। परंतु मेंबर ट्रैफिक को उन्हें चार्ज दिलवाने की ऐसी क्या जल्दी थी, यह समझने वाली बात है।” उन्होंने इसका कारण यह बताया कि “इस पोस्टिंग के लिए मेंबर ट्रैफिक ने जो डील की है, यदि चार्ज टेकिंग ओवर में देरी होती, तो उन्हें यह पोस्टिंग रद्द होने और एक मोटी डील उनके हाथ से न निकल जाने की आशंका रही होगी! इसीलिए उन्हें चार्ज दिलाने की जल्दी थी।” उनका यह भी कहना था कि “यह आशंका सिर्फ मेंबर ट्रैफिक को ही नहीं, बल्कि उस पूर्व रेल राज्यमंत्री को भी थी, जिसने यह डील करवाई है!” उनका तो यह भी मानना है कि इस मामले में पीएमओ के भी सूत्र जुड़े हुए हैं। इस बात से रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों ने भी इत्तेफाक जाहिर किया है।
उल्लेखनीय है कि आईआरटीएस-2000 बैच के कई अधिकारियों का पैनल जनवरी 2020 में ही फाइनल हो चुका था। पक्की खबर यह भी है कि फाइल पर इन सबकी प्रमोशनल पोस्टिंग भी तभी कर दी गई थी। तथापि चूंकि सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड को इनमें से अपने एक चहेते, जिसकी फाइल पर प्रस्तावित पोस्टिंग उत्तर पश्चिम रेलवे, जयपुर की गई है, को दिल्ली में ही बनाए रखना है, इसलिए उन्होंने हम सबकी पोस्टिंग अटकाई हुई है।
अब इसमें से चूंकि मनोज कुमार ने अपनी गोटियां सीधे मेंबर ट्रैफिक के साथ फिट कर लीं, इसलिए उनको फेवर करने के लिए उनके साथ कमलेश गोसाई की पोस्टिंग की गई है। सूत्रों का कहना है कि यह फाइल सीआरबी को भी नहीं भेजी गई, जबकि सीएफटीएम की पोस्टिंग की फाइल सीआरबी तक जाती है। चूंकि रेलमंत्री ने डायरेक्टर/रेल मूवमेंट के पद को अपग्रेड करने और उस पर मनोज कुमार की ही पोस्टिंग की मेंबर ट्रैफिक की अनुशंसा को खारिज करते हुए फाइल लौटा दी थी, अतः अब उनकी सीएफटीएम में पोस्टिंग की फाइल सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड द्वारा चालाकी दिखाते हुए सीआरबी के पास भी नहीं भेजी गई।
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अटके हुए अधिकारियों का कहना है कि बाकी हम सब अभी भी इसलिए अटके हुए हैं, क्योंकि हमारी पोस्टिंग तो तभी हो पाएगी जब सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड अपने चहेते को दिल्ली में फिट करने का कोई मुकम्मल जुगाड़ कर लेंगे। अभी तो फिलहाल उन्होंने कोविद के नाम पर उसे स्वास्थ्य मंत्रालय में टिकाकर दिल्ली में ही रखा हुआ है।
जिस तरह सरकार और रेलमंत्री द्वारा भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था की बात करना न सिर्फ बेमानी है, बल्कि यह केवल एक कोरी बकवास है। उसी तरह रेलमंत्री द्वारा 10-15 साल से एक शहर-एक रेलवे में टिके ऐसे तमाम अधिकारियों को दर-बदर करने की घोषित नीति भी अब तक केवल बकवास ही साबित हुई है। रेलवे बोर्ड के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि “यदि सरकार में, और रेलमंत्री सेल से लेकर मंत्रियों और पार्टी सांसदों तक किसी की पहुंच है, तो उसके लिए सब कुछ संभव है।” रेल मंत्रालय में ऐसे अनेकों उदाहरण मौजूद हैं।
Why this IRTS officer is being most favoured by Railway Board repeatedly?
रेल मंत्रालय में भ्रष्टाचार का यह आलम रेलमंत्री सेल से लेकर कमोबेश हर बोर्ड मेंबर और विभाग प्रमुख तक पसरा हुआ है। ठेकेदारों का कहना है कि “प्रत्येक टेंडर में कमीशन का रेट कुल मिलाकर लगभग 10% तक पहुंच चुका है। तथापि अब जब रेलवे की आंतरिक आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई है और कर्मचारियों को वेतन देने तक के लाले पड़ने की नौबत आ चुकी है, तब एक तरफ वैश्विक महामारी के समय भी मालगाड़ियां चलाई गईं हैं, तो दूसरी तरफ खुद के साथ रेलवे की कमाई के लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के नाम पर पार्सल स्पेशल ट्रेनें चलाकर हार्ड पार्सल की ढ़ुलाई की जा रही है।”
जाहिर है कि ऐसे में यह महामारी रेलमंत्री के साथ ही कुछ कदाचारी रेल अधिकारियों के लिए भी वरदान स्वरुप साबित हो रही है। यही वजह है कि उन्हें मनोज कुमार जैसे जुगाड़ू और कमाऊ पूतों की सख्त जरूरत है। इसीलिए उनको कमाऊ पोस्ट पर बैठाना उन्हें जरूरी लगता है। इसीलिए उनकी नीति और निर्णय में कहीं कोई एकरूपता नहीं है। इसीलिए अब कास्ट कटिंग की बात की जा रही है। इसके लिए रेलवे बोर्ड ने सभी जोनल रेलों को मौखिक आदेश जारी किया है। रेलकर्मियों की 50% कटौती के लिए रेलमंत्री ने तो पहले ही फरमान जारी किया हुआ है।