पूर्वोत्तर रेलवे का भंगेड़ी लेखाधिकारी बना भविष्य-दृष्टा!
भांग खाकर कर रहे हैं रेलकर्मियों की शिकायतों का निवारण
निकम्मे/कामचोर अधिकारियों के विरुद्ध कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रहा रेल प्रशासन
विजयशंकर, ब्यूरो प्रमुख
गोरखपुर : कर्मचारियों के शिकायतों के निवारण के लिए रेलवे बोर्ड द्वारा बनाए गए ‘निवारण’ पोर्टल को लांच किए हुए काफी समय हो गया है. इस पोर्टल पर रेल कर्मचारी अपनी समस्याओं के निवारण के लिए ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराते हैं. परंतु यह पोर्टल मात्र एक मजाक एवं खानापूरी होकर बनकर रह गया है. शिकायतों को संबंधित जोनल रेलवे को भेज दिया जाता है. वहां से जो भी उल्टा-सीधा जबाब आता है, उसे समस्या का निवारण मान लिया जाता है. जबकि जोनल मुख्यालयों में बैठे कुछ अधिकारी भांग पीकर इन शिकायतों का जवाब दे रहे हैं और रेलवे बोर्ड में बैठे संबंधित मूढ़ अधिकारी उनके जवाब को ज्यों का त्यों कर्मचारी को सरकाकर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री मान ले रहे हैं.
उपरोक्त तथ्य का एक जवलंत उदाहरण पूर्वोत्तर रेलवे में देखने को मिला है. पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर में कार्यरत लेखा विभाग के एक कर्मचारी विवेक श्रीवास्तव ने अपनी शिकायत निवारण पोर्टल पर डाली थी, जिसमें उसने 2008 से देय एमएसीपी का लाभ उसे नहीं मिलने की शिकायत की थी. इसके जवाब में पूर्वोत्तर रेलवे के लेखाधिकारी/प्रशासन द्वारा यह स्वीकार किया गया कि कर्मचारी को एमएसीपी 2008 से देय था. परंतु जबाव देते समय लगता है कि वह भांग पीकर बैठे थे, क्योंकि उन्होंने अपने जवाब में लिखा कि – “तत्कालीन नियमानुसार संबंधित कर्मचारी की विगत तीन वर्षों (2009, 2010 एवं 2011) की एसीआर देखी गई, जो मानक के अनुरूप नहीं थी. अतः उसे एमएसीपी का लाभ नहीं दिया गया.” साथ में उक्त अधिकारी द्वारा यह भी लिखा गया कि कर्मचारी ने एक मुकदमा भी रेलवे पर किया है.
यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि संबंधित कर्मचारी को वर्ष 2008 की एमएसीपी का लाभ देने हेतु उक्त मूढ़ लेखाधिकारी द्वारा उसकी वर्ष 2009 से 2011 तक की एसीआर देखने की बात कही गई है. यह अत्यंत आश्चर्य का विषय है कि यहां उक्त लेखा अधिकारी को भूत एवं भविष्य का फर्क भी नहीं ज्ञात रहा. अथवा इस भंगेड़ी अधिकारी को शायद यह मुगालता रहा होगा कि कुछ भी उल्टा-सीधा जबाव दे दो, शिकायत निस्तारित मान ली जाएगी.
जब वर्ष 2008 में एमएसीपी का लाभ देय था, तब कर्मचारी की विगत वर्षों यानी वर्ष 2006, 2007 और 2008 की एसीआर देखी जानी चाहिए थी, न कि आने वाले वर्षों की. जो वर्ष 2008 तक लिखी ही नहीं गई थी और तब तक उनका कोई अस्तित्व ही नहीं था. कर्मचारी द्वारा जो मुकदमा रेलवे के विरुद्ध किया गया है, वह उसकी वर्ष 2011 की एसीआर में दी गई गलत एंट्री के लिए किया गया है, न कि एमएसीपी न दिए जाने के संबंध में. बताते हैं कि कार्मिक विभाग ने संबंधित कर्मचारी को एमएसीपी का लाभ दिए जाने की बात कही थी, परंतु भांग की पिनक में संबंधित लेखाधिकारी ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया.
हास्यस्पद यह भी है कि जब उक्त फाइल प्रस्तुत की गई, तब संबंधित लेखाधिकारी के उक्त मूर्खतापूर्ण जवाब पर जोनल मुख्यालय सहित रेलवे बोर्ड तक के किसी भी उच्च अधिकारी की नजर क्यों नहीं पड़ी? इससे यह साबित होता है कि निवारण पोर्टल का प्रभावशाली उपयोग नहीं हो रहा है. कर्मचारी ने निवारण पोर्टल पर पुनः अपील दाखिल की है. अब देखना है कि कौन सा मनगढ़ंत जवाब पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन द्वारा दिया जाता है?
कर्मचारियों का उत्पीड़न जारी है, जबकि सीआरबी कर्मचारियों की शिकायतों को सही तरह से सुनने एवं उनका सही निराकरण करने पर जोर दे रहे हैं. तथापि हकीकत में जोनल एवं मंडल अधिकारी भांग खाकर काम कर रहे हैं. इसके बावजूद रेल प्रशासन ऐसे कामचोर और निकम्मे अधिकारियों के विरुद्ध कोई कारगर कदम नहीं उठा रहा है. जानकारों का कहना है कि यदि ऐसे किसी एक भी अधिकारी को टांग दिया जाएगा, तो बाकी अधिकारी अपने पूरे होशोहवास में काम करने लगेंगे. मगर सवाल यह है कि क्या रेल प्रशासन अथवा रेलमंत्री ऐसा कोई साहसी कदम उठा पाएंगे, जो कि स्वयं ऐसे निकम्मे, भ्रष्ट और कामचोर अधिकारियों को भरपूर प्रश्रय दे रहे हैं?