April 7, 2019

वैध वेंडर्स को अनुमति नहीं, अवैध वेंडर्स को संरक्षण

जीआरपी एवं आरपीएफ द्वारा वैध वेंडर्स के विरुद्ध की जाती है कार्रवाई

सांसदों द्वारा रेलमंत्री को दिए गए सुझावों पर 9 महीने बाद भी अमल नहीं

पूरी भारतीय रेल पर संरक्षित अवैध वेंडरों/हाकरों की धमाचौकड़ी बदस्तूर जारी

मुंबई : रेलमंत्री पीयूष गोयल, रेलवे बोर्ड और आईआरसीटीसी के तथाकथित खानपान विशेषज्ञों के तमाम दावों के बावजूद रेलयात्रियों को चलती गाड़ियों तथा प्लेटफार्मों पर गुणवत्तापूर्ण खानपान एवं खाद्य पदार्थों की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पा रही है. ऐसा लगता है कि एक सोची-समझी साजिश के तहत भारतीय रेल पर रेलयात्रियों को लूटने की अवैध वेंडरों/हाकरों को खुली छूट दे दी गई है. शायद यही कारण है कि प्लेटफार्मों/रेलवे स्टेशनों पर स्थित खानपान स्टालों, फूड कोर्ट, फूड कियोस्क, फास्ट फूड कार्नर, फूड प्लाजा इत्यादि स्टेटिक यूनिट्स जैसे वैध लाइसेंसियों के वैध वेंडर्स को प्लेटफार्मों और उन पर आने वाली गाड़ियों में वेंडिंग की अनुमति नहीं दी गई है. इसके साथ ही सितंबर 2017 में भाजपा के ही दो सांसदों द्वारा रेलमंत्री को पत्र लिखकर उनमें दिए गए सुझावों पर आज 9 महीने बाद भी अमल करने की जरूरत रेलमंत्री अथवा रेलवे बोर्ड ने महसूस नहीं की है.

उल्लेखनीय है किभाजपा सांसद और झारखंड भाजपा के अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा एवं भाजपा सांसद शेर सिंह घुबाया ने 12 सितंबर 2017 को पत्र लिखकर तमाम कारण स्पष्ट करते हुए रेलमंत्री को सुझाव दिया था कि रेलवे स्टेशनों पर स्थित उपरोक्त स्टेटिक कैटरिंग यूनिटों के लाइसेंसधारियों को प्लेटफार्मों एवं उन पर आने वाली गाड़ियों में वेंडिंग की अनुमति प्रदान कर दी जाए, जिससे रेलवे स्टेशनों, प्लेटफार्मों और चलती गाड़ियों में अवैध वेंडर्स की समस्या से निजात पाई जा सकती है तथा इस तरह रेलयात्रियों को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स के गुणवत्तापूर्ण खाद्य पदार्थों की आपूर्ति भी सुनिश्चित की जा सकती है. दोनों सांसदों ने अपने पत्रों में लिखा है कि आईआरसीटीसी द्वारा रेलवे स्टेशनों पर उक्त स्टेटिक कैटरिंग यूनिट्स के माध्यम से जो खानपान सुविधा रेलयात्रियों को उपलब्ध कराई गई है, उसका समुचित लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है.

सांसदों ने लिखा है किउक्त स्टेटिक कैटरिंग यूनिट्स को ट्रेनों में यात्रा करने वाले रेलयात्रियों को गुणवत्तापूर्ण खानपान सुविधा उपलब्ध कराने तथा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स के फूड आइटम्स की आपूर्ति के प्रावधान के बावजूद उन्हें प्लेटफार्मों और ट्रेनों में वेंडिंग की अनुमति नहीं दी गई है, इस तरह रेलयात्रियों को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स के गुणवत्तापूर्ण फूड आइटम पाने से वंचित किया जा रहा है. उन्होंने लिखा है कि यह सर्वज्ञात है कि लगभग सभी प्रकार की ट्रेनों में अवैध वेंडरों/हाकरों की भरमार है, जो कि गुणवत्ताविहीन और घटिया किस्म के स्थानीय खाद्य पदार्थ, जो कि किसी आदमी के खाने लायक भी नहीं होते हैं, और कई प्रकार के खतरनाक पेय-पदार्थ ज्यादा कीमत पर रेलयात्रियों को बेच रहे हैं. उन्होंने लिखा है कि यह अवैध वेंडर/हाकर सिर्फ ज्यादा लाभ कमाने के लिए यह काम करते हैं, जबकि रेलयात्रियों अथवा रेलवे के प्रति न तो उनकी कोई जिम्मेदारी या जवाबदेही होती है, और न ही उनसे रेलवे को कोई राजस्व प्राप्त हो रहा है, करोड़ों रेलयात्रियों के साथ यह एक प्रकार की बेईमानी है.

सांसदों ने लिखा है कि इसके अलावा आईआरसीटीसी ने ई-कैटरिंग की भी शुरुआत की है. इसके लिए आईआरसीटीसी ने रेलयात्रियों को खाने की आपूर्ति करने हेतु खानपान सुविधा उपलब्ध कराने वालो (फूड एग्रीगेटर्स) की नियुक्ति भी की है, जो कि रेलवे को एक पैसे की भी लाइसेंस फीस चुकाए बिना रेलवे स्टेशनों और चलती गाड़ियों में रेलयात्रियों को खाना और अन्य फूड आइटम्स की आपूर्ति कर रहे हैं. इन फूड एग्रीगेटर्स द्वारा यह खाना ऐसी जगहों से आपूर्ति किया जा रहा है, जहां साफ-सफाई का भारी आभाव होता है, इससे उपभोक्ता रेलयात्रियों के स्वास्थ्य को भारी खतरा पैदा हो रहा है. उन्होंने यह भी लिखा है कि उनकी समझ में यह नहीं आ रहा है कि उपभोक्ताओं (रेलयात्रियों) के व्यापक स्वास्थ्य हितों को नजरअंदाज करके इस प्रकार की कोई नीति कैसे बनाई जा सकती है?

दोनों सांसदों ने अपने पत्रों में स्पष्ट रूप से लिखा है कि उपरोक्त खतरनाक स्थितियों को नजरअंदाज करके फूड प्लाजा, फास्ट फूड यूनिट्स, फूड कोर्ट्स और फूड कियोस्क इत्यादि के लाईसेंसी ऑपरेटर्स, जो कि रेलवे अथवा आईआरसीटीसी को सालाना करोड़ों की लाइसेंस फीस दे रहे हैं और इसके साथ ही करोड़ों की सिक्योरिटी डिपाजिट भी दे रखी है, को प्लेटफार्मों और ट्रेनों में रेलयात्रियों को फूड आर्टिकल्स/आइटम्स उपलब्ध कराने की अनुमति आईआरसीटीसी अथवा रेलवे के जोनों/मंडलों द्वारा नहीं दी गई है, यह एक बहुत बड़ी नीतिगत विसंगति है, जबकि इनके वैध स्टाफ (वेंडर्स) को जीआरपी एवं आरपीएफ द्वारा भी अक्सर प्रताड़ित और उत्पीड़ित किया जा रहा है. उन्होंने लिखा है कि इससे रेलवे में भ्रष्टाचार की एक सामानांतर व्यवस्था लगातार चल रही है. अतः उनका मानना है कि उपरोक्त स्टेटिक कैटरिंग यूनिट्स के लाइसेंसियों की इस जायज शिकायत को न सिर्फ फौरन दूर किया जाए, बल्कि उन्हें जल्दी से जल्दी प्लेटफार्मों और ट्रेनों में वेंडिंग की अनुमति भी प्रदान की जानी चाहिए.

इसके अलावा भी तमाम खानपान विशेषज्ञों एवं जानकारों के साथ ही अधिकांश रेल अधिकारियों का भी यह मानना है कि रेलवे अथवा आईआरसीटीसी को सिर्फ अपनी लाइसेंस फीस और फूड ऑपरेटर्स की अधिकृत नियुक्ति तथा निरीक्षण तक ही अपने को सीमित रखना चाहिए. इसके अलावा खानपान की पसंद, कीमत, ब्रांड्स की उपलब्धता इत्यादि का सारा दारोमदार उपभोक्ता यानि रेलयात्री और फूड ऑपरेटर्स पर छोड़ देना चाहिए, जैसा कि स्थानीय शहरी निकायों द्वारा होटलों, रेस्तराओं आदि के लिए किया जाता है.

इसके बाद भी यदि रेलयात्री (उपभोक्ता) की कोई शिकायत मिलती है, तो उसकी जमीनी जांच-परख के पश्चात् संबंधित फूड ऑपरेटर के विरुद्ध निर्धारित कानूनी प्रक्रिया के तहत उचित कार्रवाई की जा सकती है. उनका यह भी कहना है कि यदि रेल प्रशासन द्वारा ऐसा नहीं किया जाता है, अथवा इस तरह का कोई साहसपूर्ण कदम नहीं उठाया जाता है, तब न तो कभी रेलवे में रेलयात्रियों को साफ-सुथरा और गुणवत्तापूर्ण खानपान उपलब्ध हो पाएगा, और न ही कभी रेलवे को खानपान संबंधी शिकायतों से छुटकारा मिल सकेगा.