April 25, 2020

बहुत फर्क होता है कठोर कदम उठाने और कठोर कदम उठाने की बातें करने में !

लॉकडाउन के नियमों और एडवाइजरी का सरकारी दफ्तरों में सरकारी बाबुओं द्वारा ही किया जा रहा सर्वाधिक उल्लंघन

सरकारी बाबुओं की देखरेख और संरक्षण में हो रही है अत्यावश्यक वस्तुओं की कालाबाजारी/मुनाफाखोरी

बहुराष्ट्रीय ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनियों को कारोबार शुरू करने की अनुमति देने से बरबाद हो जाएंगे देश के छोटे व्यापारी

कोरोना वायरस की महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन में सरकार को गुमराह करने का गोरखधंधा पूरे देश में चल रहा है। जहां कुछ अधिकारी अपनी जागीर बनाए रखने के लिए लॉकडाउन के नियमों और कार्मिक मंत्रालय द्वारा जारी एडवाइजरी को दरकिनार करके, मातहतों का दुरुपयोग कर उन्हें मौत के मुंह में ढ़केल रहे हैं, वहीं मार्केट में व्यापारी वर्ग के बीच सेनिटाइजर हो, मास्क हो, खाने-पीने की चीजें हों या डॉक्टरों की पीपीई किट, सभी में मुनाफाखोरी और कालाबाजारी चल रही है।

संभवतः वैश्विक स्तर पर भी यही स्थिति है और तमाम सरकारें इस विषाणु से डरी हुई हैं तथा अपने-अपने स्तर पर अपने नागरिकों को इससे बचाव के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं। 56 इंच की छाती रखने वाले हों या 36 इंच वाले, सब इस एक विषाणु से डरे हुए हैं, मगर फिर भी वह किसी भी तरीके से पढ़े-लिखों की तरह इस बचाव मुहिम को अंजाम देते नजर नहीं आ रहे हैं।

जबकि इस समय देश और दुनिया को केवल पढ़-लिखे और कुशल प्रशासक ही बचा सकते हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कठोर कदम उठाना और कठोर कदम उठाने की बातें करना, दोनों में बहुत फर्क होता है।

यदि इस समय हर प्रकार से कालाबाजारी, मुनाफाखोरी पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो देश को बर्बाद होने में केवल और केवल तीन महीने का समय ही लगेगा।

भुखमरी चरम सीमा पर है, जहां-तहां अटके लोगों तक उचित आपूर्ति नहीं पहुंच पा रही है, जबकि कुछ अधिकारी, किराना दुकानदार, सरकारी राशन वितरण से जुड़े व्यापारी, केमिस्ट तथा सेनिटाइजर बनाने वाले उद्योग, पीपीई किट बनाने में जुटे उद्योगों, इत्यादि में हर प्रकार से मुनाफाखोरी चल रही है।

हालांकि सरकार द्वारा इस सबको रोकने की भी तमाम घोषणाएं की गई हैं, नियम और नंबर जारी किए गए हैं, परंतु जहां हर दूसरा व्यक्ति निजी स्वार्थ में डूबा हो, और कहीं किसी सामान्य आदमी की सुनवाई न हो रही हो, वहां किसकी मजाल है कि वह नियम का हवाला दे और जारी किए गए नंबरों पर कॉल करके शिकायत करने की हिमाकत कर सके!

पीपीई किट और सेनिटाइजर के भी कोई मानक स्थापित नहीं किए गए हैं। फील्ड में कोरोना की रोकथाम से लगातार जूझ रहे डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ को अब तक पर्याप्त पीपीई किट्स और अन्य बचाव सामग्री उपलब्ध नहीं कराई जा सकी है।

बड़े-बड़े किराना स्टोर, सुपर मार्केट, केमिस्ट की दुकानें जनता की छाती से खून चूसने में लगी हुई हैं, लेकिन सरकार में बैठे बाबुओं को यह सब नहीं दिख रहा है, वह पद और सत्ता के मद में धृतराष्ट्र हो रहे हैं।

छोटे घरेलू व्यापारियों और 10-20-50 मजदूर लेकर सरकारी-अर्धसरकारी या निजी कांट्रेक्ट वर्क करने वाले छोटे-छोटे व्यापारियों-कांट्रेक्टरों के लिए सरकार की तरफ से कोई खास राहत की घोषणा नहीं की गई है।

इस पर भी उनके जले में नमक छिड़कने के लिए सरकार ने बड़ी और बहुराष्ट्रीय ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनियों को अपना कारोबार शुरू करने की तैयारी दर्शाई है, जिनका इस महामारी की रोकथाम में अब तक कोई योगदान सामने नहीं आया है।

सरकार द्वारा जारी लॉकडाउन के नियमों और एडवाइजरी का सर्वाधिक उल्लंघन सरकारी दफ्तरों में सरकारी बाबुओं द्वारा ही किया जा रहा है, जो अनावश्यक रूप से अपने मातहत लगभग सभी स्टाफ को दफ्तर आने के लिए बाध्य कर रहे हैं। रेल मंत्रालय भी उनमें से एक है, जहां कोई देखने-सुनने वाला ही नहीं है।

Sadistic people want their empire running and with number of slaves around them constantly gives them egoistic kick!

प्रस्तुत है ऐसे ही एक केंद्रीय मंत्रालय में कार्मिकों की लॉकडाउन पीरियड में उपस्थिति की संकल्पना – In a Ministry assume..

Secretary : 1

Additional Secretary : 2

Joint Secretary level : 10

Personal staff say, Multi-tasking staff (MTS) PA, driver for each to above : 52

Dy Secretary/Director level : 12

MTS and PA each for above : 24

Total = 101

Who are required to come mandatorily.

Now see others number

Under Secretary and equal : 20

Senior Section Officers and equal : 25

Assistant Section Officers and equal : 30

All rest : 60

MTS : 40

Total : 175

1/3rd of 175 required to come that is 58.

So out of total officials of 276, a total no. of 159 official are required to be present in a Ministry.

What an awesome way to follow lockdown !

Brilliant work by a “Government of IAS” supported by BJP from outside.

A reliable source in MHA says, the home secretary was almost bullied by other departments secretaries, कि इसको डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल तक लेकर जाओ, क्योंकि इन स्लेव्स के बिना हमारे जॉइंट सेक्रेटरी काम नहीं कर सकते हैं।

सूत्र का यह भी कहना है कि “जॉइंट सेक्रेटरीज और सेक्रेटरीज ने कहा होगा कि अगर डायरेक्टर तथा डिप्टी सेक्रेटरी नहीं आएंगे, तो काम कौन करेगा! उनका काम तो पालिसी बनाना है, काम तो डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी करते हैं।”

सूत्र का कहना था कि जितना खटने वाला काम यानि “अनरेम्यूनरेटिव वर्क” होता है, वह आईएएस बाकी विभागीय लोगों से करवाते हैं, जैसे अंग्रेज भारतीयों से करवाते थे। आईएएस तो नोट की अंग्रेजी ठीक करता है और फाइनल नोट पर हस्ताक्षर करता है बस!

यह तो एक छोटी मिनिस्ट्री का “हाईपोथेटिकल मिरर” है, क्योंकि मीडियम साइज की लगभग हर मिनिस्ट्री में औसतन इतना ही स्टाफ होता है।

https://twitter.com/kanafoosi/status/1250651559647539201?s=19

रेलवे का तो अन्य मंत्रालयों की अपेक्षा और भी बुरा हाल है। यहां अधिकारियों की मनमानी की कोई सीमा नहीं रह गई है और कोई देखने-सुनने वाला भी नहीं है। जानकारी मिली है कि रेलवे बोर्ड में भी अनावश्यक भीड़ लगाई जा रही है और एडवाइजरी का पालन नहीं किया जा रहा है। हालत यह है कि दिल्ली मंडल के एक महान अधिकारी 25 मार्च से ऑफिस में बैठकर स्टाफ के अटेंडेंस रजिस्टर में सिर्फ छुट्टियां लिखे जा रहे हैं।

ऐसा ही हाल लगभग सभी जोनल रेलों और मंडलों का भी है। जहां शतरंज की बिसात (भारतीय रेल) पर बादशाह और वजीर (छोटे-बड़े अधिकारी) तो सब अंदर यानि ऑफिस और घरों में सुरक्षित बैठे हैं, जबकि प्यादों (सर्वसामान्य रेलकर्मियों) को बिना उचित सुरक्षा इंतजाम के फील्ड (युद्ध क्षेत्र) में मरने के लिए हांका जा रहा है।

A senior officer says, In normal time duty even one meaningful work in entire day justified your existence in office. This is extraordinary situation concerning life and death not of your but your near and dear family members and society at large.

In this situation you can filter what is priority and what is routine, and then you can decide what can be done from home and what cannot, he said.

He further added, “going by these two criteria one can see nothing worth and meaningful to be in office physically and to put himself at unnecessary risk. But sadistic people want their empire running and with number of slaves around them constantly gives them egoistic kick!!”