April 7, 2020

भारतीय रेल: ताक पर प्रधानमंत्री का लॉकडाउन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रेलमंत्री पीयूष गोयल

प्रधानमंत्री से ज्यादा दूरदर्शी और होशियार हैं भारतीय रेल के अधिकारी!

Suresh Tripathi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता को दुनिया के अनेकों देश सराह रहे हैं, बस यह सराहना रास नहीं आ रही है तो भारत के कुछ धार्मिक ठेकेदारों को या फिर भारतीय रेल के अधिकारियों को। जिस तरह इस देश का हर आदमी अपने-आपको सर्वज्ञ और दूसरों से अधिक ज्ञानी मानता है, ठीक उसी तरह भारतीय रेल का हर अधिकारी अपने को प्रधानमंत्री से ज्यादा होशियार और हुनरमंद समझता है। शायद यही वजह है कि वह प्रधानमंत्री के लॉकडाउन को ताक पर रख उनके निर्देशों का उल्लंघन करने पर तुला हुआ है।

केंद्र द्वारा बार-बार निर्देश जारी किए जा रहे हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हर हाल में सुनिश्चित किया जाए। 14 अप्रैल तक के लॉकडाउन का सख्ती से पालन किया जाए। सारा देश लॉकडॉउन तोड़ने वालों पर लानतें भेज रहा है, मिलिट्री बुलाने की बात हो रही है, पर रेल अधिकारी इन सबसे बेखबर इस कठिन समय में भी रेलकर्मियों को न केवल भेड़-बकरियों की तरह कार्य करने को मजबूर कर रहे हैं, बल्कि प्रधानमंत्री के सद्प्रयासों पर भी पानी फेर रहे हैं।

रविवार, 5 अप्रैल को मुंबई मंडल, मध्य रेलवे के मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) ने सामान्य तौर पर केवल इतना संदेश दिया था कि “हमारे पास दो-दो चैलेंज हैं। एक तो कोरोना का लॉकडाउन, जिसका पालन करना है, दूसरा यह कि आने वाले मानसून की भी तैयारी करनी है।”

इसका बेजा अर्थ निकालते हुए मंडल अधिकारियों ने मानो एक मिनट भी गंवाए बिना रेलकर्मियों को इस महामारी की भट्ठी में झोंकना चालू कर दिया। जहां एक तरफ लगभग सारे रेल अधिकारी आराम से घर बैठकर या सुरक्षित जगह पर रहकर व्हाट्सएप पर निरंतर निर्देश दे-देकर लॉकडाउन की ऐसी-तैसी करने में लगे हैं।

वहीं दूसरी तरफ स्टाफ शटल में चलने वाला आरपीएफ कर्मी कोरोना पॉजिटिव पाया गया। जाने कितना स्टाफ, जो शटल में चल रहा है, कॉरोना पॉजिटिव हो गया होगा? आज यानि सोमवार, 6 अप्रैल को कुर्ला में 8-10 ट्रैकमैन एक-दूसरे से चिपककर ट्रैक मेंटीनेंस करते हुए देखे गए।

इस तरह से इंजीनियरिंग विभाग के रेलकर्मियों को न जाने कितनी जगह सामूहिक काम में लगाया हुआ है। संभव है कि कुछ समय बाद अधिकारियों को यह सुना जाए कि “लॉकडाउन में सभी रेलकर्मी घर पर थे। अतः कोई काम नहीं किया जा सका, अब बारिश आने वाली है, अतः मनमाने दाम पर कांट्रैक्ट वर्क कराना पड़ा है।”

जबकि वह काम पूरी तसल्ली से विभागीय कर्मचारियों द्वारा कराए जा रहे हैं और रेलकर्मी एवं उनके परिवारों की जान की बाजी अपने निहित स्वार्थ के लिए लगाई जा रही है। यहां तक कि फील्ड वर्किंग का अनुभव रखने वाले दोनों मान्यताप्राप्त संगठनों के पदाधिकारियों की फीडबैक को दरकिनार करके उनका कहना भी नहीं माना जा रहा है। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

कागज पर न जाने कितने किराए के वाहन दौड़ रहे हैं, लेकिन जब स्टाफ को लाने-लेजाने की जरूरत होती है, तो वह सब कभी खराब हो जाते हैं, कभी उनका पेट्रोल खत्म हो जाता है, कभी अन्य स्टाफ को लेने गया होता है, इत्यादि का बहाना बनाया जाता है। जहां लगभग हर अधिकारी को किराए पर वाहन उपलब्ध कराया गया है, वहीं इस संकटकाल में भी आवश्यक स्टाफ को लाने-ले जाने के लिए मात्र एक-दो वाहन से ही काम चलाया जा रहा है।

जितने वाहन किराए पर लिए गए हैं, वास्तव में वे इस लॉकडाउन पीरियड में किस उपयोग में हैं, यह किसी को पता नहीं है। जब हर अधिकारी फुर्सत में घर बैठा है, तो मंडल और मुख्यालय में तैनात पचासों वाहन कहां दूध देने जा रहे हैं? घर पर गाड़ी खड़ी करके उसका किराया और चालक की तनख्वाह दी जा रही है। जबकि फील्ड में आधी-अधूरी गाड़ियां चलाकर कर्तव्यनिष्ठा की मिसालें पेश की जा रही हैं।

One more incident happened in TRD Karjat depot, Mumbai dIvision, Central Railway on 6th Aprol’20. Khalasi Kiran Thorve electrocuted by 25 KV supply while working at KJT TSS. Shocked to expected in lock down period. Suffered with electric shock and burns and admitted in Panacea Hospital, Panvel.

आखिर यह गिरावट कहां जाकर खत्म होगी? केवल राष्ट्र का खून चूसना ही क्या हमारा लक्ष्य रह गया है? आज 6 अप्रैल को कर्जत में ट्रैक्शन सब-स्टेशन पर आधे-अधूरे स्टाफ से काम करवाया जा रहा था। इसमें एक स्टाफ 25 किलो वॉट की चालू लाइन के संपर्क में आ गया और अब अपनी जिंदगी-मौत के बीच जूझ रहा है। उसका परिवार मातम मना रहा है, पर किसी को उसकी सुधि नहीं है।

उधर मध्य रेलवे की ही एक महिला कर्मी को कोरोना सस्पेक्ट पाए जाने पर कल्याण रेलवे अस्पताल से घाटकोपर के कस्तूरबा अस्पताल, फिर मुंबई सेंट्रल स्थित पश्चिम रेलवे के जगजीवन राम अस्पताल, वहां से फिर भायखला रेलवे अस्पताल तथा पुनः जेआरएच तक दौड़ाया गया। कहीं किसी की कोई जिम्मेदारी तय नहीं।

एक महिला डॉक्टर अपने कोरोना सस्पेक्टेड पति को लाकर भायखला अस्पताल में भर्ती कर देती है, यूनियन द्वारा उसकी बैक हिस्ट्री निकालने की बात कही जाती है, तो उसे पहले ही टेस्ट में निगेटिव बताकर डिस्चार्ज कर दिया जाता है। जबकि बताते हैं कि दोनों डॉक्टर दंपति लॉकडाउन शुरू होने के दिन ही दिल्ली घूमकर लौटे थे।

अब सीनियर डीएसटीई/एनई ने मंगलवार, 7 अप्रैल से एसएंडटी के शत-प्रतिशत वर्कर्स को काम पर आने का आदेश दिया है। इस आदेश में हर सेक्शन में सिग्नल पोस्ट बदलने का फरमान है। जंक्शन बॉक्स तथा सभी पॉइंट्स की मोटरों का मेंटेनेंस करना है, आदि-आदि।

जबकि इनमें से एक भी काम अकेले व्यक्ति का नहीं है, यह सारे काम सामूहिक रूप से ही किए जा सकते हैं। काम चाहे ओवरहेड इक्विपमेंट्स (ओएचई) का हो, ट्रैक मेंटीनेंस का हो, या सिग्नल मेंटीनेंस का हो, यह सभी कार्य करने के लिए एकसाथ पूरी गैंग की आवश्यकता पड़ती है।

मुंबई में बारिश 7-8 जून या 12 जून से पहले आने की कोई संभावना नहीं होती, कई बार यह जून के अंत तक भी जरूर खिंच जाती है। ऐसे में जब 14 अप्रैल के बाद हरेक रेलकर्मी को अपनी ड्यूटी पर अनिवार्यतः आना ही है, तब क्या रेल अधिकारी 14 अप्रैल तक लॉकडाउन खत्म होने की प्रतीक्षा नहीं कर सकते हैं?

जबकि 14 अप्रैल के बाद भी कम से कम पौने दो महीने का पर्याप्त समय मेंटीनेंस के लिए मिलता है। और यदि वह यह कहें कि वे लॉकडाउन ओपन होने के पूर्व की तैयारी कर रहे हैं, तो जब गाड़ियां चलीं ही नहीं, तो कहीं कुछ बिगड़ा कैसे? जबकि ऐसी हर असेट का फॉर्मल चेक, मात्र एक वर्कर द्वारा भी किया और कराया जा सकता है।

इसी तरह गुड्स लाबियों में कथित अत्यावश्यक वस्तुओं की ढुलाई के नाम पर कुछ खास उद्योगपतियों का माल आधी कीमत पर ढ़ोकर रेलवे को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है। इसके लिए आवश्यकता से अधिक रनिंग स्टाफ को बुलाकर लॉबी में अनावश्यक भीड़ लगाई जा रही है।

घंटों तक रनिंग स्टाफ को गुड्स लॉबी में निठल्ला बैठाया जा रहा है। परंतु मंडल और मुख्यालय के होशियार परिचालन अधिकारियों द्वारा अगले 24 घंटे में कितनी मालगाड़ियां कहां से कहां तक चलेंगी, इतनी सी प्लानिंग नहीं हो पा रही है?

जबकि मात्र गाड़ी में माल चढ़ाने और उतारने का ही समय लगना है, वह भी निश्चित होता है, लाइन क्लियर की तो कोई परेशानी ही नहीं है, सारा मैदान साफ पड़ा है। तो फिर स्टाफ 12 से 18 घंटे कार्य कैसे कर रहा है? और वह भी ऐसी स्थिति में जबकि स्टाफ को एक चाय भी नसीब नहीं हो रही हो।

स्टाफ से लेकर सुपरवाइजर तक से संपूर्ण दक्षता की उम्मीद रखने वाले यह रेल अधिकारी आज एक परसेंट चलने वाली गाड़ियों को भी सही तरह से मैनेज नहीं कर पा रहे हैं। यह उनका नकारापन कहें या लॉकडाउन में सब के सब क्वॉरंटीन हो गए हैं? बस सिर्फ स्टॉफ को कीड़े-मकोड़ों की तरह काम करने के लिए लगा रखा है।

बहरहाल, जो भी हो, जिस तरह सारी दुनिया कुछ जिद्दी धर्मावलंबियों पर हजारों लानतें भेज रही है, ऐसा न हो कि इन लानतों के लिए रेल अधिकारी उनसे भी आगे निकल जाएं? अतः उनसे रेलकर्मियों का अनुरोध है कि ईश्वर के लिए प्रधानमंत्री का कहना मानें और उसको अक्षरशः अमल में भी लाएं। यही राष्ट्र हित में होगा और यही समाज के हित में भी होगा।

#SocialDistencing in the total bay on the #CentralRailway in #Lockdown period

रेलकर्मियों द्वारा सोशल मीडिया में डाला गया मैसेज

साथियो, देखिए किस तरह से सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जी उड़ाई जा रही है।

साथियो, आज कुर्ला में पॉइंट नं. 101-बी इंड (डाउन थ्रू लाइन) पर यूनिमेट मशीन से पैकिंग का कार्य हुआ।

आप इन तस्वीरों से खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कितना सोशल डिस्टेंसिंग मेनटेन किया जा रहा है।

कर्मचारी तो मजबूर है, काम तो करना ही है, क्योंकि ऊपर से साहब का आर्डर है, और काम भी ऐसा है कि अकेले एक व्यक्ति कर ही नहीं सकता, उसे मिलकर ही करना पड़ेगा।

अधिकारीगण खुद को तो सुरक्षित रखे हुए हैं, और ग्रुप-सी एवं ग्रुप-डी रेल कर्मचारियो को दूरी बनाकर रखने, सोशल डिस्टेंसिंग मेनटेन करते हुए, यूनिमेट मशीन का कार्य पूरा करने के लिए दबाव डाल रहे हैं।

अब आप खुद ही देखिए और बताइए कि कैसे सोशल डिस्टेंसिंग मेनटेन करके काम किया जा सकता है।

यदि एक स्लीपर को शिफ्ट करना है, या पॉइंट की राडिंग खोलकर अलग करना है, तो एक व्यक्ति यह सब कैसे कर सकता है।

इससे स्पष्ट है कि एसएंडटी और पी-वे स्टाफ को इस कोरोना (#COVID19) जैसी महामारी-बीमारी में रेलकर्मियों को मरने के लिए ढ़केला जा रहा है।

अधिकारियों से अनुरोध है कि कृपया ऐसा न करें, रेलकर्मियों का भी परिवार है, उनके भरोसे भी कई लोग जिंदगी जी रहे हैं, उनका क्या होगा, अगर इन्हें कुछ हो गया, तो ईश्वर न करे, ऐसा कुछ हो।

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