March 20, 2020

अपने आदेशों/निर्देशों पर अमल करवाने में अक्षम साबित हो रहा है रेलवे बोर्ड

पहली पोस्टिंग से लेकर अब तक एक ही शहर टिके हुए हैं कुछ रेल अधिकारी

सुरेश त्रिपाठी

भारतीय रेल में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण बार-बार यह उभरकर सामने आया है कि रेलवे बोर्ड अपने द्वारा जारी किए गए आदेशों और निर्देशों को लागू करवाने में सर्वथा असमर्थ साबित होता रहा है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि अधिकारियों और कर्मचारियों की न सिर्फ कार्यक्षमता में गिरावट आई है, बल्कि उनकी कार्यशैली में भी कोई सुधार या बदलाव नहीं हो पाया है।

ऐसे में उन तमाम अधिकारियों की मनमानी, उद्दंडता और भ्रष्टाचार को प्रश्रय मिलता रहा है, जो अपनी पहली पोस्टिंग से लेकर आजतक एक ही शहर और एक ही जोन में जमे हुए हैं। यहां तक कि इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनका आजतक कोई जोन भी एलॉट नहीं किया गया है।

उदाहरण स्वरूप, इनमें से एक 1992 बैच की आईआरपीएस अधिकारी सुनीता सिंह का ही मामला देख लें, जो कि रेलसेवा ज्वाइन करने से लेकर अब तक पिछले 28 वर्षों से लगातार दिल्ली में ही पदस्थ हैं और आजतक कभी एक दिन के लिए भी दिल्ली से बाहर इनकी पोस्टिंग नहीं हुई है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार सुनीता सिंह को अब तक उत्तर रेलवे जोन भी एलॉट नहीं हुआ है, फिर भी एसएजी (सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड/जॉइंट सेक्रेटरी लेवल) तक की सभी पदोन्नतियां इन्हें दिल्ली में ही प्राप्त हो चुकी हैं। यहां ऐसे कई अन्य अधिकारी भी हो सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि रेलवे में सर्विस ज्वाइन करने के बाद नियमानुसार प्रत्येक ग्रुप ‘ए’ अधिकारी को एक जोन एलॉट किया जाता है, जहां वह जेएजी (जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड) तक काम करता है, उसके बाद ही अन्य जोनों में उसका ट्रांसफर करने का नियम है।

परंतु ऐसा बताया गया है कि आईआरपीएस अधिकारी सुनीता सिंह को सर्विस ज्वाइन करने के समय उत्तर रेलवे जोन आवंटित नहीं किया गया था और उनकी लीन भी उत्तर रेलवे में नहीं है।

उत्तर रेलवे में ऐसे ही एक और प्रमोटी आईआरपीएस अधिकारी हैं आर. के. मल्होत्रा! जो कि वर्ष 1997 में एपीओ बनकर ग्रुप ‘सी’ से ग्रुप ‘बी’ में पदोन्नत हुए थे।

मल्होत्रा भी पिछले 23 वर्षों से लगातार दिल्ली में और खासतौर पर उतर रेलवे में ही रहकर कुर्सी तोड़ रहे हैं। इन्होंने भी आजतक दिल्ली से बाहर एक बार भी कदम नहीं रखा है और दिल्ली से बाहर आजतक कभी एक दिन की भी ड्यूटी नहीं की है।

यही नहीं, मल्होत्रा ने तो ग्रुप ‘सी’ की भी अपनी अब तक की पूरी रेलवे सर्विस दिल्ली में ही रहकर की है। और अब वर्ष 2022 में जब सेवानिवृत्ति के करीब पहुंच रहे हैं, तब सेवाकाल के दो साल बाकी होने पर अन्यत्र ट्रांसफर नहीं किए जाने का नियम बताकर वह सुखरूप दिल्ली से ही रिटायर हो जाएंगे।

सर्वप्रथम आवश्यक यह है कि आर. के. मल्होत्रा जैसे प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ मिलते ही अन्य जोनों में उनका ट्रांसफर करना सुनिश्चित किया जाए। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि ग्रुप ‘बी’ में पदोन्नति देने के समय भी उनकी पहली पोस्टिंग उसी डिवीजन अथवा डिवीजन से जुड़े मुख्यालय में कदापि नहीं की जानी चाहिए। ऐसे जितने भी प्रमोटी ग्रुप ‘ए’ अधिकारी हैं, उनका जोनल ट्रांसफर तुरंत सुनिश्चित किया जाए।

इसके बाद यह देखा जाए कि जो अधिकारी अपनी पहली पोस्टिंग से लेकर आजतक एक ही शहर में टिके हुए हैं, (इसमें सिर्फ ‘शहर’ की ही गणना की जानी चाहिए, न कि उस शहर में स्थित अन्य जोन/पीएसयू आदि घोंसलों की), उन्हें अविलंब अन्य जोनल रेलों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

यदि ऐसा सुनिश्चित नहीं किया जाएगा और इसका कड़ाई से पालन नहीं करवाया जाएगा, तो न कभी भारतीय रेल से भ्रष्टाचार को खत्म या न्यूनतम किया जा सकता है और न ही अधिकारियों की उद्दंडता, मनमानी और भ्रष्टाचार पर कभी कोई लगाम लगाई जा सकती है। इसके अलावा ऐसा न होने पर उनकी कार्यक्षमता और कार्यशैली में भी कोई सुधार नहीं लाया जा सकता है।

रेलवे बोर्ड से बार-बार इस संदर्भ में आदेश जारी किए जाते हैं, परंतु हर बार कभी राजनीतिक, तो कभी प्रशासनिक जोड़-तोड़ करके उन आदेशों को पलीता लगा दिया जाता है और नतीजा होता है वही ढ़ाक के तीन पात! इसका परिणाम यह है कि आज दिल्ली/मुंबई में अधिकारियों की इतनी भरमार हो चुकी है कि उनमें से बहुतों के पास बैठने तक के लिए कोई जगह नहीं है।

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