March 13, 2020

कहीं निजी घाटे की पूर्ति करने के लिए तो नहीं दी जा रही प्राइवेट ऑपरेटरों को अनुमति?

97 करोड़ की लागत से बनी वंदेभारत एक्सप्रेस ने एक वर्ष में 115% ऑक्यूपेंसी के साथ की 92 करोड़ की कमाई

वंदेभारत एक्सप्रेस ने निर्बाध सेवा का एक वर्ष पूरा कर लिया है। कुल करीब 97 करोड़ की लागत से बनी इस ट्रेन, नई दिल्ली-वाराणसी 22435/22436 ने एक वर्ष के दौरान 115% ऑक्यूपैंसी के साथ लगभग 92 करोड़ की कमाई की है।

लेकिन ‘विभागवाद’ से ओतप्रोत चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) विनोद कुमार यादव के दांव-पेंच से वंदेभारत को बनाने वाले रेल अधिकारियों पर निहित उद्देश्य से विजिलेंस इंक्वायरी अभी भी चल रही है। इसके चलते एक तरफ जहां रेल अधिकारियों में भारी हताशा व्याप्त है, तो दूसरी ओर देश-विदेश में इन अधिकारियों सहित भारतीय रेल का भी मखौल उड़ाया जा रहा है।
https://twitter.com/sritara/status/1237728058091528192?s=19

मात्र 97 करोड़ की लागत से बनी नई दिल्ली-वाराणसी 22435/22436 वंदेभारत एक्सप्रेस ने एक वर्ष में 115% ऑक्यूपैंसी के साथ 92 करोड़ की कमाई की। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या कोई प्राइवेट ट्रेन ऑपरेटर इससे अच्छी, सस्ती और लाभदायक सेवा दे सकता है? फिर भारतीय रेल के निजीकरण और इम्पोर्ट की ऐसी ताबड़तोड़ जल्दी क्यों है?

खबर है कि 38000 करोड़ की लागत से 60 ट्रेनसेट आयात करने और उससे मोटा कमीशन खाने की योजना जब मीडिया में लीक हो गई, तब देश की आंखों में धूल झोंकने के लिए 44 वंदेभारत रेक बनाने की अनुमति आईसीएफ को दी गई। परंतु इसके लिए जो टेंडर निकाला गया है, बताते हैं कि वह कभी फाइनल नहीं होने वाला है। प्राप्त जानकारी के अनुसार हाल ही इस संबंध में रेलवे बोर्ड में हुई बैठक में कोई सहमति नहीं बन पाई, बल्कि संबंधित अधिकारियों और वेंडर्स के बीच कुछ तथ्यों को लेकर गरमागरम बहस अवश्य हुई।

बताते हैं कि जीएम/आईसीएफ में इतना साहस नहीं है कि वह इस टेंडर को फाइनल कर सकें। विश्वसनीय सूत्रों का तो यह भी कहना है कि ऊपर से दबाव डाले जाने पर भी वह यह काम नहीं कर पाएंगे। एक अपुष्ट खबर यह भी है कि पहले सिर्फ 10 रेक बनाने की अनुमति दी गई थी, मगर प्रोपल्शन सिस्टम उपलब्ध कराने वाली कंपनी से जब मोटे कमीशन की डिमांड की गई, तब उसने रेक की संख्या बढ़ाने की मांग कर दी। बताते हैं कि इस तरह 10 रेक को बढ़ाकर 44 रेक किया गया।

सूत्रों का कहना है कि अब यह 44 रेक का टेंडर भी कभी फाइनल नहीं होगा, क्योंकि पहले वाली आयात योजना मीडिया के कारण फेल हो जाने से कमीशन का जो भारी निजी घाटा हुआ है, उसकी भरपाई प्राइवेट ऑपरेटरों को ट्रेनसेट आयात करने की अनुमति देकर की जा रही है।

देश में इस समय करीब 10 करोड़ युवा बेरोजगार हैं और यह बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रही है। रेल मंत्रालय ने भर्ती के नाम पर बेरोजगारों से फार्म भरवाकर पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से उनकी 1000 करोड़ रुपये से भी अधिक की राशि हड़प रखी है। परंतु एक साल से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद इस भर्ती की कोई तारीख घोषित नहीं कर सका है।

https://youtu.be/0tsBT7SWLdw

महात्मा गांधी ने विदेशी उत्पादों के बहिष्कार से इंग्लैंड के उद्योगों की कमर तोड़ डाली थी, देशी खादी को बढ़ावा दिया था और ब्रिटिश-शासन को उखाड़ फेंका था। लेकिन ‘अति-समझदार’ रेलमंत्री पीयूष गोयल और ‘नासमझ’ सीआरबी विनोद कुमार यादव स्वदेशी रेल उद्योग को नष्ट करके निजी रेल कंपनियों के माध्यम से ट्रेनसेट इंपोर्ट करने पर आमादा हैं। जबकि देश में करोड़ों युवा बेरोजगारी के कारण इधर-उधर भटक रहे हैं।

Uncertainty on Cadre-Merger issue

Does CRB VKYadav think before he leaps? He has quite obviously misled the Cabinet.

Now he say that officers will be permitted to remain in their “own” cadres since IRMS is not legally enforceable. Were Law Ministry, DOPT and UPSC consulted before making the Cabinet note?

What does mean Mr BACKTRACKER

On Cadre-Merger CRB VKYadav initially claimed that none would suffer, then he backtracked & said that some people may lose & some gain. Now in a complete reversal he says that officers need not opt for IRMS.

https://twitter.com/kanafoosi/status/1228955966814572544?s=19

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