तीन अक्षम मेंबर्स से मिला भारतीय रेल को छुटकारा
जीएम/द.पू.रे. एस.एन.अग्रवाल ने एमएस में ज्वाइन किया
जीएम/एमसीएफ राजेश अग्रवाल होंगे अगले एमआरएस
सुधांशु मणि को सेवा-विस्तार देने का प्रस्ताव हुआ अमान्य
सुरेश त्रिपाठी
एक-एक करके अकर्मण्य अधिकारियों से भारतीय रेल का पिंड छूटता जा रहा है. ऊपरी स्तर से बात की जाए, तो सबसे पहले अब तक के सबसे ज्यादा अकर्मण्य साबित हुए मेंबर ट्रैफिक मोहम्मद जमशेद से रेलवे सहित ट्रैफिक-कमर्शियल अधिकारियों का पिंड छूट गया. जिस प्रकार उन्हें हर तरह से फेवर करके जीएम बनाया गया था और फिर उनके लिए न्यूनतम अवधि को भी कम करके जिस तरह मेंबर ट्रैफिक बनाया गया और इस पद पर उन्हें पिछले 10-15 वर्षों के दरम्यान सबसे लंबा कार्यकाल भी मिला, उससे सभी को यह उम्मीद थी कि वह रेलवे और ट्रैफिक कैडर के लिए भी कुछ अच्छा करेंगे, परंतु वास्तव में मो. जमशेद ने न सिर्फ सबकी उम्मीदों पर पानी फेरा, बल्कि अब तक के सबसे असफल और अलोकप्रिय मेंबर ट्रैफिक साबित होकर 30 को जून सेवानिवृत्त हो गए.
मोहम्मद जमशेद की अलोकप्रियता इतनी ज्यादा हो चुकी थी कि रेलवे बोर्ड में शायद सभी उच्चाधिकारी उनके रिटायर हो जाने की राह देख रहे थे. शायद यही वजह रही होगी कि उनकी जगह पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर के महाप्रबंधक रहेगिरीश पिल्लई की पदस्थापना के आदेश 15-20 दिन पहले ही जारी कर दिए गए थे. गंभीर प्रकृति के अधिकारी माने जाने वाले श्री पिल्लई ने 30 जून को ही बतौर मेंबर ट्रैफिक अपना नया पदभार ग्रहण कर लिया था. उनके पदभार ग्रहण करने के बाद कुछेक को छोड़कर समस्त ट्रैफिक-कमर्शियल अधिकारियों ने काफी राहत महसूस की है. इसके साथ ही जिस तरह विगत एक वर्ष के दौरान तमाम ट्रैफिक-कमर्शियल अधिकारियों का कारण-अकारण उत्पीड़न किया गया, उससे वह श्री पिल्लई से कैडर की भलाई और अपने प्रोत्साहन के लिए भी कुछ पुख्ता करने की उम्मीद कर रहे हैं.
इसके बाद बतौर मेंबर स्टाफ देबल कुमार गायन उर्फ डी. के. गायन भी बिना किसी उपलब्धि के 30 जून को रिटायर हो गए. हालांकि उनसे किसी को कोई खास उम्मीद इसलिए भी नहीं थी, क्योंकि हर प्रकार से अयोग्य होने के बावजूद वह सिर्फ अपनी ‘एज-प्रोफाइल’ की बदौलत जीएम और मेंबर बन गए थे. जबकि बिना किसी योग्यता के उन्हें मेंबर स्टाफ बनाकर पूरा फेवर किया गया था, इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि जब उन्हें बोर्ड मेंबर बनाया गया, तब उनका कार्यकाल एक साल नहीं बचा था, जो कि बोर्ड मेंबर बनने के लिए न्यूनतम निर्धारित अवधि है. जो अधिकारी जीएम और बोर्ड मेंबर के स्तर पर पहुंचने के बाद भी ‘कैडर फीलिंग’ से मुक्त नहीं हो पाते, उनमें देबल कुमार गायन का नाम प्रमुख रूप से शुमार रहा है.
अयोग्य डी. के. गायन की जगह बतौर मेंबर स्टाफ एस. एन. अग्रवाल की पदस्थापना को एक ईमानदार, सक्षम और सर्वथा योग्य अधिकारी को उचित सम्मान दिए जाने के रूप में देखा जाना चाहिए. हालांकि रेलवे बोर्ड ने उनका आदेश जारी करने में करीब 20 दिन की देरी की. स्पष्टवादी और बेलाग बातचीत करने वाले श्री अग्रवाल को अपनी एसीआर अपने मातहत और सहयोगी अधिकारियों से लिखवाने वाले अधिकारी के रूप में भी जाना जाता है. इसके अलावा वह अपने कार्यों का स्वयं भी विश्लेषण एवं पुनरीक्षण करते रहते हैं और उसमें ज्यादा बेहतर सुधार कैसे किया जाए, इसका भी वह लगातार अवलोकन करते रहे हैं. बतौर मंडल रेल प्रबंधक, नागपुर, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे और बतौर महाप्रबंधक, दक्षिण पूर्व रेलवे, उनका कामकाज नजदीक से देखने वाले तमाम अधिकारियों की तो उनके बारे में कम से कम यही राय है.
श्री अग्रवाल की पदस्थापना में देरी का एक कारण यह माना जा रहा है कि इस दरम्यान रेलवे बोर्ड ने मेंबर स्टाफ की पोस्ट को ‘इन-कैडर पोस्ट’ बनाए जाने का एक प्रस्ताव डीओपीटी को भेज दिया था. जानकारों का मानना है कि यदि ऐसा ही करना था, तो यह काम देबल कुमार गायन जैसे अयोग्य अधिकारी को मेंबर स्टाफ बनाए जाने से पहले किया जाना चाहिए था. उनका यह भी कहना है कि एक्स-कैडर मेंबर स्टाफ के रूप में एस. एन. अग्रवाल की नियुक्ति अंतिम हो सकती है, क्योंकि ‘इन-कैडर पोस्ट’ बनाने की समस्त प्रक्रिया पूरी हो चुकी है.
जानकारों का कहना है कि यदि डीओपीटी द्वारा जानबूझकर अथवा किन्हीं अन्य कारणों से उक्त नोटिफिकेशन जारी करने में देरी नहीं की गई होती, तो श्री अग्रवाल को बोर्ड मेंबर बनने का मौका ही नहीं मिल पाता. हालांकि जानकारों का यह भी कहना है कि नोटिफिकेशन जारी करने में इसलिए भी देरी की गई या करवाई गई, क्योंकि समस्त कार्मिक कैडर सहित बोर्ड में कोई भी वर्तमान डीजी/पर्सनल आनंद माथुर को मेंबर स्टाफ बनते नहीं देखना चाहता था. अब 30 जून 2019 को श्री अग्रवाल के रिटायर होने पर कार्मिक कैडर के पहले मेंबर स्टाफ के रूप में एन. के. प्रसाद की नियुक्ति हो सकती है, जो कि वर्तमान में महाप्रबंधक, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, निर्माण हैं.
अब जहां तक वर्तमान मेंबर रोलिंग स्टॉक रवीन्द्र गुप्ता की बात है, जिनसे 31 जुलाई को भारतीय रेल छुटकारा पाने जा रही है, तो डीआरएम, चक्रधरपुर, एसडीजीएम/म.रे., सीएमई/स्पेशल प्रोजेक्ट, बिहार, सीएमई/प.रे. रहते हुए वह हमेशा एक छुपे रुस्तम रहे हैं. कामकाज और प्रशासनिक रूप से जीरो रहे गुप्ता जी को तत्कालीन मेंबर मैकेनिकल केशव चंद्रा ने मध्य रेलवे से सीधे बिहार भेज दिया था. श्री चंद्रा के रिटायर होते ही अपनी जुगाड़ लगाकर गुप्ता जी पुनः सीएमई/प.रे. बनकर मुंबई आ गए थे. मुंबई में पदस्थ रहते हुए उन्होंने शायद एक बार भी माटुंगा, परेल, महालक्ष्मी, लोअर परेल अथवा मुंबई सेंट्रल की किसी भी वर्कशॉप में जाने अथवा निरीक्षण करने की जहमत कभी नहीं उठाई, मगर बतौर एमआरएस रिटायर होने से पहले उन्होंने निरीक्षण के बहाने चौथ वसूलने के लिए महालक्ष्मी और लोअर परेल वर्कशॉप का प्रायोजित दौरा कर दिया. गुप्ता जी को इसलिए भी मध्य रेलवे के तमाम अफसर याद करते हैं, क्योंकि जब उनके एक नजदीकी को जेडआरटीआई, भुसावल के तत्कालीन प्रिंसिपल ने कोई ठेका देने से मना कर दिया था, तब उन्होंने एसडीजीएम/म.रे. रहते हुए उक्त प्रिंसिपल का बहुत बड़े पैमाने पर उत्पीड़न किया था. तत्संबंधी मामला अभी भी चल रहा है. ऐसे अधिकारी से भारतीय रेल को छुटकारा मिलने पर तमाम अधिकारी खुशी महसूस कर रहे हैं.
रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि जुगाड़ू रवीन्द्र गुप्ता की जगह अब बतौर मेंबर रोलिंग स्टॉक (एमआरएस) राजेश अग्रवाल की न्यायोचित नियुक्ति हो सकती है, जो कि वर्तमान में एमसीएफ, रायबरेली के महाप्रबंधक हैं. सूत्रों का कहना है कि जिस प्रकार एमसीएफ का जीएम बनाकर उनके साथ न्याय किया गया था, ठीक उसी प्रकार अब उन्हें एमआरएस बनाकर उनके साथ पूरा न्याय किया जा सकता है, वरना ‘स्टोरकीपर’ ने तो उनका कैरियर बरबाद करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी. प्राप्त जानकारी के अनुसार बतौर जीएम/एमसीएफ राजेश अग्रवाल ने वेंडर डेवलपमेंट, स्किल डेवलपमेंट, कर्मचारी कल्याण, पर्यावरण विकास और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार विकास के विभिन्न कार्यक्रम चलाने के साथ ही कोच निर्माण की अत्याधुनिक असेंबली लाइन का विकास करके अपनी योग्यता, क्षमता तथा प्रशासनिक काबिलियत साबित कर दी है.
सूत्रों का यह भी कहना है कि हालांकि राजेश अग्रवाल के रास्ते में एक अड़ंगा आ रहा था, मगर डीओपीटी, पीएमओ और एसीसी ने उस अड़ंगे को सिरे से निरस्त कर दिया है. रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से ‘रेल समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार आईसीएफ के महाप्रबंधक सुधांशु मणि के काम से प्रसन्न होकर रेलमंत्री ने उन्हें सेवा-विस्तार देने का एक प्रस्ताव पीएमओ को भेजा था. सूत्रों का कहना है कि दिसंबर में सेवानिवृत्त हो रहे श्री मणि की कार्य एवं प्रशासनिक क्षमता, काबिलियत, निष्ठा और ईमानदारी पर किसी को भी कोई शक नहीं है. परंतु इस स्तर पर सेवा-विस्तार दिए जाने की परंपरा नहीं रही है. उनका यह भी कहना है कि यदि मंत्री को श्री मणि इतने ही सक्षम और काबिल लगते हैं, तो मंत्री अथवा रेलवे बोर्ड ने माफिया यूनियन की पसंद के एक नाकाबिल अधिकारी को उसकी च्वाइस पोस्टिंग देकर उन्हें दक्षिण रेलवे के अतिरिक्त कार्यभार से मात्र हप्ते भर में ही क्यों हटा दिया था, जबकि उतने ही दिनों में श्री मणि ने वहां अपनी काबिलियत साबित कर दी थी. क्या रेलवे बोर्ड के अधिकारीगण और मंत्री के सलाहकार इतने अक्षम और नाकाबिल हैं, जो उन्हें उचित समय पर योग्य सलाह नहीं दे पा रहे हैं? बहरहाल, पीएमओ के नकार के बाद राजेश अग्रवाल का एमआरएस बनने का रास्ता लगभग साफ हो गया है और उनकी पोस्टिंग की फाइल को शीघ्र ही पीएमओ से हरी झंडी मिल सकती है.
अब राजीव गुप्ता के रिटायर हो जाने से डीजी/नायर, वी. पी. पाठक के डीजी/स्टोर्स बनने से सीएलडब्ल्यू, गिरीश पिल्लई के एमटी बनने से प.म.रे. और एस. एन. अग्रवाल के एमएस बनने से द.पू.रे. सहित महाप्रबंधकों के चार पद पहले से ही खाली हैं. 31 जुलाई को एम. सी. चौहान के सेवानिवृत्त हो जाने पर उ.म.रे. के एक और जोनल महाप्रबंधक का पद खाली हो जाएगा. जबकि एमआरएस बनने पर जीएम का एक पद और खाली होने वाला है. इस तरह एक अगस्त को कुल छह महाप्रबंधकों के पद रिक्त होंगे. नया जीएम पैनल एसीसी से पास होकर काफी पहले से ही रेलवे बोर्ड को मिल चुका है. ऐसे में जीएम्स की पोस्टिंग की तैयारी रेलवे बोर्ड को पहले से करनी चाहिए थी. परंतु बताते हैं कि अब तक इसकी प्रक्रिया भी शुरू नहीं की गई है. जबकि अगले कुछ महीनों में एक बोर्ड मेंबर सहित जोनल महाप्रबंधकों के दो-तीन और पद खाली होने जा रहे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि एमआर सेल, सीआरबी सेल और सेक्रेटरी/रे.बो. सेल में बैठे सैकड़ों अधिकारी और उनके सहयोगी कर्मचारी क्या कर रहे हैं? आखिर क्यों इन वरिष्ठ पदों पर पोस्टिंग की प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं की जाती?