दक्षिण रेलवे: मुख्य लेखाधिकारी और जीएम के बीच भारी मतभेद
जीएम ने सच को स्वीकारा, जबकि पूरे मुद्दे से साफ मुकर गए पीएफए
चेन्नई : खतौली दुर्घटना के बाद निलंबन का दंश झेलकर और बाद में माफिया यूनियन अथवा अपनी पसंद से दक्षिण रेलवे के महाप्रबंधक बनाए गए आर. के. कुलश्रेष्ठ जहां एक तरफ ‘माफिया यूनियन’ को ज्यादा तवज्जो देने के लिए हमेशा विबाद में रहते हैं, वहीँ आजकल उनकी अपने ही लेखा विभाग प्रमुख के साथ पटरी नहीं बैठ रही है. इसके लिए वह एक तरफ खुद के निर्धारित नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, वहीँ दूसरी तरफ लेखा विभाग के कई अधिकारियों की पदोन्नति को अटका दिए हैं. इससे दक्षिण रेलवे के अधिकांश अधिकारी श्री कुलश्रेष्ठ से काफी खफा हैं.
विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेल समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार प्रमुख वित्त सलाहकार एवं मुख्य लेखाधिकारी (पीएफए) श्री विश्वनाथन ने पिछले कुछ महीनों से अधिकारिक कार्यालयीन बैठकों में कई मुद्दों पर महाप्रबंधक आर. के. कुलश्रेष्ठ के कामकाज और कार्य-शैली की न सिर्फ आलोचना की थी, बल्कि जीएम की कई योजनाओं को नियमों का हवाला देकर या अटका दिया, या फिर इस टसल के चलते वह सिरे से रद्द हो गईं. सूत्रों का कहना है कि भ्रामक कार्य-शैली के कारण श्री कुलश्रेष्ठ की अपने ही अधिकारियों से पटरी नहीं बैठ पा रही है.
सूत्रों ने ‘रेल समाचार’ को बताया कि श्री कुलश्रेष्ठ ने 500 डॉलर के रिफंड का बिल लेखा विभाग को भेजा था, जो कि उन्होंने अमेरिका के अधिकारिक दौरे पर व्यक्तिगत रूप से खर्च किए थे. परंतु बताते हैं कि मुख्य लेखाधिकारी ने यह रिफंड देने से मना कर दिया और इस संबंध में जीएम द्वारा अनधिकारिक रूप से दिए गए आदेश का विरोध भी किया. ज्ञातव्य है कि दक्षिण रेलवे में श्री विश्वनाथन को एक ईमानदार अधिकारी माना जाता है.
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उपरोक्त 500 डॉलर, तब सूत्रों ने ‘रेल समाचार’ को यह 400 डॉलर बताए थे, के रिफंड के मामले में लगभग दो महीने पहले 28 जून को ‘रेल समाचार’ ने एक ट्वीट किया था, जिसे सीआरबी और रेल मंत्रालय सहित खुद जीएम/द.रे. के ट्वीटर हैंडल पर टैग किया गया था. परंतु इनमें से किसी ने भी न तो उक्त ट्वीट का कोई संज्ञान लिया, और न ही उस पर कोई जवाब या टिप्पणी करना जरूरी समझा.
सूत्रों का कहना है कि महाप्रबंधक श्री कुलश्रेष्ठ, जो कि एक अत्यंत गरम दिमाग के अधिकारी माने जाते हैं, को लेखा विभाग, और खासतौर पर मुख्य लेखाधिकारी, का यह रवैया सख्त नागवार गुजरा है. उन्होंने इस बात को काफी गंभीरता से लेते हुए लेखा विभाग के विरुद्ध इसे व्यक्तिगत मुद्दा बना लिया है. इसके लिए वह बात-बात पर अधिकारियों पर नाराजगी जाहिर करने लगे हैं.
बताते हैं कि महाप्रबंधक श्री कुलश्रेष्ठ ने संबंधित फाइलों पर कुछ विशेष नियमों का हवाला देते हुए कई लेखा अधिकारियों की पदोन्नति अटका दी है. सूत्रों का कहना है कि आश्चर्य इस बात का है कि लेखाधिकारियों की पदोन्नति की फाइलें अटकाकर महाप्रबंधक खुद अपने ही बनाए नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं.
इसी घटनाक्रम में सूत्रों ने ‘रेल समाचार’ को जानकारी देते हुए कहा कि महाप्रबंधक ने लेखा विभाग के जॉइंट सेक्रेटरी स्तर के एक वरिष्ठ लेखाधिकारी को बंगला प्यून देने से मना कर दिया. जबकि यह सर्वज्ञात है कि जेएजी एवं इससे ऊपर के लगभग सभी अधिकारी बंगला प्यून लेने/पाने के लिए अधिकृत हैं और इसके लिए नियमानुसार उन्हें मना नहीं किया जा सकता है. उनका कहना है कि इस संबंध में रेलवे बोर्ड के दिशा-निर्देश बहुत स्पष्ट हैं, जिनके अनुसार बिना किसी विशेष अथवा उचित कारण के ऐसे किसी अधिकारी को बंगला प्यून देने से इंकार नहीं किया जा सकता है, जो इसके लिए पात्र है.
इस मुद्दे पर ‘रेल समाचार’ द्वारा जब दक्षिण रेलवे के विभिन्न विभागीय अधिकारियों से उनकी राय जानने की कोशिश की गई, तो नाम उजागर न करने की शर्त पर उनका कहना था कि लेखा विभाग से व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने के चक्कर में एक सामान्य आदमी की तरह व्यवहार करके श्री कुलश्रेष्ठ महाप्रबंधक पद की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं. इससे दक्षिण रेलवे की छवि और भी ज्यादा खराब हो रही है. हालांकि उनका यह भी कहना था कि इसके लिए मुख्य लेखाधिकारी भी समान रूप से जिम्मेदार हैं.
उल्लेखनीय है कि बीते 15 अगस्त को 72वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के आयोजन स्थल, जो वर्षों बाद माफिया यूनियन के अनधिकृत कब्जे से मुक्त हो पाया है, पर उपस्थित दक्षिण रेलवे के तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों ने इस बात को खासतौर पर नोटिस किया कि जहां दक्षिण रेलवे के विभाग प्रमुख जैसे कई वरिष्ठ अधिकारियों को मंच पर बैठने का मौका नहीं दिया गया, वहीँ माफिया यूनियन का एक बदनाम पदाधिकारी महाप्रबंधक और अपर महाप्रबंधक के बीच में पूरी शान से अकड़कर बैठा हुआ था.
फोटो परिचय: 15 अगस्त को 72वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर यूनियन कार्यालय परिसर में झंडारोहण के समय सदर्न रेलवे मजदूर यूनियन के महामंत्री एन. कन्हैया ने अपने जूते उतरना जरूरी नहीं समझा. उनका यह कृत्य वहां इस मौके पर उपस्थित कई कर्मचारियों को अत्यंत नागवार लगा. उन्होंने उनकी जूते पहनी यह फोटो निकालकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी.
इन वरिष्ठ अधिकारियों का यह भी कहना है कि महाप्रबंधक महोदय कई प्रकार की गलतियां कर रहे हैं. परंतु जब इसके लिए उन्हें कोई अधिकारी रोकता/टोकता है, तो वह इसे उसके विरुद्ध अपना व्यक्तिगत मुद्दा बना लेते हैं. इसी क्रम में उनका कहना था कि हाल ही में दक्षिण रेलवे निर्माण संगठन के एक वरिष्ठ अधिकारी को गलत कारण से ट्रांसफर किया गया. उन्होंने बताया कि इसके लिए अरक्कोणम यार्ड रि-मॉडलिंग का कार्य सही तरीके से नहीं करवाए जाने का कारण बताया गया है. जबकि इसके पीछे उक्त अधिकारी के आवास में काम करने वाली महिला असली कारण बताई जाती है.
उपरोक्त तमाम मुद्दों पर जब ‘रेल समाचार’ द्वारा जीएम/द.रे. आर. के. कुलश्रेष्ठ से संपर्क करके उनका पक्ष लिया गया, तो सर्वथा पहली बार अत्यंत सौहार्दपूर्ण बातचीत करते हुए उन्होंने पूरे विस्तार से अपना पक्ष प्रस्तुत किया. 500 डॉलर के रिफंड के मामले में श्री कुलश्रेष्ठ का कहना है कि हां, उन्होंने विदेश दौरे पर खर्च हुए उनके 500 डॉलर का बिल भुगतान हेतु लेखा विभाग को भेजा था. यह दौरा सीआरबी और रेलवे बोर्ड द्वारा संस्तुत था, उसमें यदि उन्हें किसी कारणवश अपने पास से पैसा खर्च करना पड़ा है, तो उसका रिफंड तो वह क्लेम करेंगे ही. परंतु पीएफए को लगता है कि हमें यह नहीं मिलना चाहिए, तो हमने अपना क्लेम वापस ले लिया है, क्योंकि वह इस मुद्दे पर अपने ही मातहत एक विभाग प्रमुख के साथ कोई विवाद नहीं करना चाहते हैं.
इसी मुद्दे पर उन्होंने आगे अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि विदेश दौरे पर अपनी जेब से खर्च हुए रिफंड का सिर्फ उनका ही नहीं, बल्कि प्रमुख मुख्य यांत्रिक अभियंता (प्रिंसिपल सीएमई) का भी क्लेम था. पीएफए ने उनका भी क्लेम रद्द कर दिया. श्री कुलश्रेष्ठ का कहना है कि उन्होंने तो अपना क्लेम वापस ले लिया है, परंतु प्रिंसिपल सीएमई का क्लेम रेलवे बोर्ड को अग्रसारित किया गया है. इसके अलावा इस मुद्दे पर उनका यह भी कहना था कि उन्होंने आरडीएसओ और विदेश मंत्रालय, जिसके अधिकारी अक्सर अधिकारिक विदेशी दौरों पर जाते रहते हैं और यदि वहां उनको अपनी जेब से कोई खर्च करना पड़ता है, तो उन्हें विभाग से बाद में रिफंड मिल जाता है, के संदर्भ भी मंगवाकर पीएफए को दिए, मगर फिर भी उन्होंने रिफंड देने से जब मना कर दिया, तो हमने अपना क्लेम वापस ले लिया, क्योंकि यदि 500 डॉलर का रिफंड नहीं मिलता है, तो उनको कोई फर्क नहीं पड़ता है.
लेखा विभाग के अधिकारियों की पदोन्नति के बारे में जब श्री कुलश्रेष्ठ से पूछा गया, तो उनका कहना था कि उन्होंने न तो कोई फाइल रोकी है, और न ही किसी को पदोन्नति देने से मना किया है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 से कई अधिकारियों के विरुद्ध उनके एससी/एसटी वर्ग का नहीं होने कि शिकायतें पेंडिंग हैं, उन्होंने लेखा एवं कार्मिक विभाग से यही पूछा है कि यह शिकायतें इतने लंबे समय से क्यों पेंडिंग हैं, इसका निराकरण करके फाइल्स को उनके पास भेजा जाए. इस पर जब उनसे यह पूछा गया कि उन्होंने ही पूर्व में यह आदेश दिया है कि ऐसी शिकायतों की वजह से किसी अधिकारी की पदोन्नति नहीं रोकी जाएगी, तब उन्होंने फाइल्स वापस क्यों कर दीं? इस पर श्री कुलश्रेष्ठ का कहना था कि उन्होंने शिकायतों पर संबंधित विभाग से स्पष्टीकरण मांगकर अपने पूर्व के आदेश को दरकिनार नहीं किया है.
एक वरिष्ठ लेखाधिकारी को बंगला प्यून देने से मना करने के मामले में श्री कुलश्रेष्ठ का कहना था कि इस मामले में दक्षिण रेलवे के अन्य सभी विभागों की स्थिति अप-टू-डेट है, परंतु लेखा विभाग में इस पर कुछ विसंगति है. तथापि यह कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है. लेखा विभाग से स्पष्टीकरण आते ही संबंधित अधिकारी को जल्दी ही उसका बंगला प्यून दे दिया जाएगा. श्री कुलश्रेष्ठ से जब यह पूछा गया कि अधिकारीगण उनसे नाराज क्यों हैं, तो उनका कहना था कि उन्हें तो ऐसा कोई आभास नहीं हुआ है कि अधिकारी हमसे नाराज हैं!
उपरोक्त मुद्दों पर ‘रेल समाचार’ ने जब दक्षिण रेलवे के प्रमुख वित्त सलाहकार एवं मुख्य लेखाधिकारी श्री विश्वनाथन से भी संपर्क करके उनका पक्ष जानने की कोशिश की, तो वह सिरे से हर मुद्दे पर मुकर गए. उनका स्पष्ट कहना था कि जीएम ने उनके पास 500 डॉलर के रिफंड का कोई बिल नहीं भेजा था. इस पर जब उनसे यह कहा गया कि खुद जीएम का कहना है कि उन्होंने उक्त रिफंड का बिल लेखा विभाग को भेजा था, मगर शायद पीएफए के नियम में नहीं बैठता है, इसलिए उन्होंने अपना बिल वापस ले लिया है, जबकि प्रिंसिपल सीएमई के बिल का भी रिफंड मना कर दिए जाने पर उसे रेलवे बोर्ड को रेफर किया गया है. इस पर श्री विश्वनाथन ने कहा कि तब ‘रेल समाचार’ को आरटीआई लगाकर जीएम से उसका कागजी सबूत मांगना चाहिए.
श्री विश्वनाथन ने लेखा विभाग के अधिकारियों की पदोन्नति के मामले में जीएम द्वारा फाइलें वापस कर दिए जाने के मुद्दे पर कहा कि कुछ अधिकारियों के विरुद्ध उनकी जाति/वर्ग को लेकर शिकायतें काफी लंबे समय से पेंडिंग हैं, उसी पर जीएम ने स्पष्टीकरण मांगा है, यह राज्य सरकार का मामला है, उससे संपर्क किया जा रहा है, जल्दी ही स्पष्टीकरण के साथ पदोन्नति का निपटारा हो जाएगा. बंगला प्यून के मामले में उन्होंने कोई स्पष्ट बात नहीं कही.
बहरहाल जीएम/द.रे. श्री कुलश्रेष्ठ और पीएफए/द.रे. श्री विश्वनाथन से हुई उपरोक्त बातचीत से यह तो बिल्कुल स्पष्ट है कि उक्त दोनों वरिष्ठ रेल अधिकारियों के बीच एक-दूसरे के कामकाज के तौर-तरीकों को लेकर काफी गहरे आपसी मतभेद हैं. हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि दोनों अधिकारियों के बीच इन मतभेदों की शुरुआत दक्षिण रेलवे की तमाम धरोहर इमारतों में लिफ्ट लगाए जाने की जीएम की योजना को पीएफए द्वारा रेलवे बोर्ड के निर्देश का हवाला देते हुए इसके लिए बजट देने से मना करने से हुई थी. इसके अलावा लेखा विभाग को इस बात पर भी ऐतराज है कि जहां एक तरफ दक्षिण रेलवे में अधिकारियों को सेंक्शन स्ट्रेंथ से लगभग तीन गुना ज्यादा बंगला प्यून दिए गए हैं, वहीँ दूसरी तरफ जीएम ने हैदोस रोड, नंगमबक्कम स्थित खुद के अधिकारिक बंगले के अलावा स्टर्लिंग रोड, वैगई कॉलोनी में भी एक फ्लैट अपने कब्जे में रखा हुआ है. सूत्रों का यह भी कहना है कि कई मामलों में लेखा विभाग की अनावश्यक अड़ीबाजी के चलते भी न सिर्फ विवाद पैदा होता है, बल्कि कई आवश्यक कार्यों में अनावश्यक विलंब होता है.
निजी बातचीत में अधिकारीगण खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि ऊपरी स्तर से सब कुछ ठीक होने के भले कितने ही बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हों, मगर यह एक सच्चाई है कि भारतीय रेल में पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार कई गुना बढ़ा है. इस पर रेल मंत्रालय का वर्तमान निजाम भी लगाम कसने में नाकाम साबित हुआ है. इस मुद्दे पर रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘रेल समाचार’ से कानाफूसी के अंदाज में कहा कि जो निजाम खुद आईआरसीटीसी के पैसे से नियम-विरुद्ध चार्टर्ड हेलिकॉप्टर उड़ाने और पार्टी से जुड़े बड़े ठेकेदारों के पक्ष में टेंडर कंडीशन बनवाकर उनको रेलवे के करोड़ों के ठेके देकर भ्रष्टाचार को प्रश्रय दे रहा हो और मेंबर ट्रैक्शन जैसे महाभ्रष्ट अधिकारी को सार्वजनिक रूप से ईमानदारी का तमगा दे चुका हो, वह भ्रष्टाचार में लिप्त कदाचारी वरिष्ठ रेल अधिकारियों पर नकेल कैसे कस सकता है?