April 7, 2019

मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा आंदोलन की तैयारी

मजदूर विरोधी प्रावधानों और दमनकारी नीतियों का सभी स्तर पर विरोध

नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) को लेकर रेलकर्मी अत्यंत उद्वेलित

एनपीएस के लिए सरकार नहीं, बल्कि मान्यताप्राप्त संगठन जिम्मेदार

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने 16 मार्च 2018 को सरकारी सेवा नियम(जीएसआर) 235(ई) के तहत एक नोटिफिकेशन जारी करके तयशुदा अवधि के रोजगार (Fixed Term Employment) का आदेश इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट (स्टैंडिंग ऑर्डर्स) ऐक्ट, 1946 एवं इसके अंतर्गत नियमों में परिवर्तन किया है. इस कानून के शेड्यूल 1ए के पैरा 3-बी (डीए) में कहा गया है-

“A Fixed Term Employment workman is a workman who has been engaged on the basis of a written contract of employment for a fixed period…”

इसके आगे पैरा 13 2(2) में कहा गया है-

“No workman employed on fixed term employment basis as a result of non-renewal of contract or employment or on the expiry of such contract period without it being renewed, shall be entitled to any notice or pay in lieu thereof, if his services are terminated..”

सरकार के ऐसे मजदूर विरोधी कानून और नीतियों के विरोध में लगभग सभी केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने आवाज उठाई है और सरकार को ज्ञापन एवं बातचीत द्वारा ऐसे मजदूर विरोधी कानून को खारिज करने का आह्वान किया है.

अगस्त 2017 को नीति आयोग ने तीन वर्षीय ऐक्शन एजेंडा (2017-18 से 2019-20) घोषित किया था, जिसमें सर्वप्रथम “फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट” का विषय प्रस्तुत किया गया था. खासतौर पर कपड़ा उद्योग (अपारेल सेक्टर) में इसे लागू करने की मंशा सरकार ने दर्शाई थी, लेकिन सरकार ने अब इसे सभी उद्योग में लागू करने का घोषणा कर दी है.

सरकार ने ‘लेबर कोड ऑन सोशल सिक्यूरिटी’ की धारा 2.52 में ‘फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट’ को “Fixed Term means contractual employment or arrangements between one employer and one employee characterized by a limited duration on or a pre-specified event to end the contract between them” के रूप में विश्लेषित किया है.

केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने समय-समय पर ऐसे मजदूर विरोधी प्रावधानों और सरकारी दमन एवं विघटनकारी नीतियों का सभी स्तर पर विरोध किया है तथा कई बार लिखित ज्ञापन भी दिए हैं. श्रमिक संगठनों के कई मुख्य एवं वरिष्ठ पदाधिकारियों का कहना है कि अब जब सरकार इस मामले में लगातार अड़ियल रुख अपना रही है और जबरदस्ती मजदूर क्षेत्र में “हायर एंड फायर” पालिसी लाकर न सिर्फ ट्रेड यूनियनों को खत्म करना चाहती है, बल्कि मजदूरों को पूंजीपतियों का गुलाम बनाना चाहती है, तब श्रमिक संगठनों के पास आंदोलन के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बच रहा है.

सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारी संगठन एकजुट होकर सरकार की उपरोक्त दमनकारी और विघटनकारी नीतियों का विरोध करने की जोरदार तैयारी कर रहे हैं. इसके लिए शीघ्र ही दिल्ली में श्रमिक संगठनों का जबरदस्त आंदोलन हो सकता है. श्रमिक सनागाथानो के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकार सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारी संगठनों में फूट डालने और उन्हें दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रही है.

उल्लेखनीय है कि सरकार का करीबी माना जाने वाला संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) भी सरकार के उपरोक्त प्रावधान सहित कई अन्य सरकारी मजदूर विरोधी नीतियों का मुखर विरोध कर रहा है. बहरहाल, सरकार के रवैये से देश के पूरे श्रमिक परिदृष्य पर भ्रम की स्थिति बनी हुई है, कोई भी बड़ा संगठन खुलकर सरकारी नीतियों का विरोध करने की स्थिति में नहीं लग रहा है, क्योंकि सरकार ने कुछ श्रमिक संगठनों को अपना बगलबच्चा बना रखा है.


एनपीएस पर हड़ताल करें, हम सब आपके साथ हैं, लेकिन..

उधर भारतीय रेल के मान्यताप्राप्त संगठनों के चुनावों को मद्देनजर रखकर रेलकर्मियों में भारी उथल-पुथल मची हुई है. खासतौर पर नेशनल पेंशन स्कीम अथवा न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) को लेकर रेलकर्मी अत्यंत उद्वेलित हैं. सर्वप्रथम वे एनपीएस का पाप करने के लिए सरकार को नहीं, बल्कि रेलवे सहित सभी केंद्रीय मान्यताप्राप्त संगठनों को इसके लिए जिम्मेदार मान रहे हैं. दूसरे इसके चलते उनके प्रति उनकी नाराजगी उच्च स्तर पर पहुंच गई है. रेलकर्मियों का कहना है कि वे मान्यताप्राप्त रेल संगठनों के साथ हैं, मगर उन्हें उनसे अपने कुछ सवालों का जवाब चाहिए. जैसे-

1. रेल कर्मचारियों की संख्या 22 लाख से घटकर 13 लाख के करीब पहुंच गई है, तब रेलवे में मान्यताप्राप्त संगठन क्या कर रहे थे?

2. जब एनपीएस लागू हुई, तब रेलवे में मान्यताप्राप्त फेडरेशन कौन से थे?

3. रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर 50% से अधिक पद समाप्त कर दिए गए, तब रेलवे में मान्यताप्राप्त फेडरेशन कौन से थे?

4. सहायक लोको पायलट के पद को निम्न स्तर पर ले आया गया, तब रेलवे में मान्यताप्राप्त फेडरेशन कौन से थे?

5. ट्रैकमैनों के लिए अब तक कोई प्रमोशन तो क्या, सम्मानजक नौकरी की स्थिति भी नहीं बन पाई, तब रेलवे में मान्यताप्राप्त संगठन कौन थे?

6. रेलवे के आधे से ज्यादा कार्य निजी क्षेत्र को चले गए और आधी से ज्यादा रेलवे प्राइवेट हो गई, तब रेलवे के मान्यताप्राप्त फेडरेशन क्या कर रहे थे?

7. रेलवे के सबॉर्डिनेट इंजीनियर्स को अब तक ग्रुप ‘बी’ का दर्जा नहीं मिल पाया, तब रेलवे के मान्यताप्राप्त फेडरेशन क्या कर रहे हैं?

8. रेलवे में शत-प्रतिशत एफडीआई आ गई, पीपीपी लागू हो गई, तब रेलवे में मान्यताप्राप्त फेडरेशन कौन से थे?

9. रेलवे हॉस्पिटल इलाज की जगह वसूली के अड्डे बन गए, पूरी रेलवे में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया, तब रेलवे में मान्यताप्राप्त फेडरेशन क्या कर रहे थे?

10. कमर्शियल विभाग और कैश ऑफिस सहित अन्य विभाग खत्म होने पर आ गए, तब रेलवे में मान्यताप्राप्त फेडरेशन क्या कर रहे थे?

11. रेल कर्मचारियों के आवासों की दुर्दशा के लिए, स्पेड के नाम पर लोको पायलटों का बढ़ता उत्पीड़न, एलडीसी ओपन-टू-ऑल के लिए भटकते ट्रैकमेन, 6वें वेतन आयोग के अब तक अनसुलझे पड़े तमाम मुद्दे, कार्य के दौरान बढ़ती अधिकारियों की तानाशाही अब तक रेलकर्मी ही यह सब सहते आए, लेकिन मान्यताप्राप्त रेल संगठनों ने क्या सहा?

रेलकर्मी कहते हैं कि रेल प्रशासन के साथ मान्यताप्राप्त रेल संगठनों की सांठ-गांठ के चलते रेलवे में ऐसे हजारों कारनामे हुए हैं, लेकिन हम चुप रहे, आगे भी रहेंगे, क्योंकि इन मान्यताप्राप्त संगठनों ने हमारे लिए बहुत सी कुर्बानियां दी हैं. यह नहीँ होते, तो हम अभी जो नौकरी कर रहे हैं, वह भी नहीं कर पाते. उनका कहना है कि हम यह भी नहीं जानना चाहते हैं कि 1974 की हड़ताल के बाद रेल कर्मचारियों से बोनस के चंदे, जिसे स्ट्रगल फंड का नाम दिया गया था, उसमें आए करोड़ों रुपयों मे से कितने ऐसे रेल कर्मचारियों या उनके परिवार को सहायता दी गई, जिन्होंने 1974 की हड़ताल में अपना सब कुछ गंवा दिया था.

रेलकर्मियों का यह भी कहना है कि वे यह भी नहीं जानना चाहते हैं कि पूंजीवाद का विरोध करने वाले मान्यताप्राप्त रेल संगठन रतन टाटा के साथ रेलवे का कौन सा कायाकल्प कर रहे हैं? रेल मंत्रालय की कई समितियों में शामिल होकर यह क्या कर रहे हैं, इस पर भी उन्हें कुछ नहीं कहना है. परंतु उन्हें इतना अवश्य समझ लेना चाहिए कि अब उनकी कलई खुल चुकी है. कौन सरकार के साथ है, यह अब सभी कर्मचारी बखूबी समझ रहे हैं. उनका कहना है कि सरकारी सुविधाओं पर नेतागीरी कर रहे इन नेताओं के साथ हड़ताल में हम भी शामिल हैं, क्योंकि हम उनका नहीं रेलवे का भला चाहते हैं.