सार्वजनिक उपक्रमों का कंपनीकरण वास्तव में निजीकरण की शुरुआत है -सोनिया गांधी

सरकार द्वारा रेलवे की उत्पादन इकाईयों के निगमीकरण के विरोध में संसद में अपना संबोधन प्रस्तुत करते हुए यूपीए की चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी.

सार्वजनिक उद्योगों का उद्देश्य लोक-कल्याण है, निजी पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाना नहीं

रेलवे की ​उत्पादन इकाईयों के निगमीकरण का लोकसभा में सोनिया गांधी ने किया विरोध

राजनीतिक विरोध और चौतरफा अशांति के मद्देनजर निगमीकरण का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में!

सुरेश त्रिपाठी

संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा (यूपीए) की चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी ने मंगलवार, 2 जुलाई को लोकसभा में मोदी सरकार द्वारा रेलवे की उत्पादन इकाईयों के कंपनीकरण अथवा निगमीकरण की योजना का जोरदार शब्दों में विरोध किया. उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष को संबोधित अपने संबोधन में कहा कि ‘वह सदन का ध्यान सरकार की उस योजना की तरफ आकर्षित करना चाहती हैं, जिसमें रेलवे की 6 उत्पादन इकाईयों का कंपनीकरण किया जाने वाला है.’ उन्होंने कहा कि ‘इस योजना के पहले चरण में रायबरेली की मॉडर्न कोच फैक्ट्री को भी रखा गया है.’ श्रीमती गांधी ने स्पष्ट रूप से कहा कि ‘जो लोग कंपनीकरण अथवा कार्पोरेटाईजेशन के असली मायने नहीं जानते, मैं उन्हें यह बताना चाहती हूं कि कंपनीकरण वास्तव में निजीकरण की शुरुआत है.’

‘रेल समाचार’ को प्राप्त सोनिया गांधी के वीडियो में उन्हें यह कहते साफ सुना जा सकता है कि ‘यह कथित कंपनीकरण देश की अमूल्य संपत्ति को कौड़ियों के दाम कुछ निजी हाथों के हवाले करने की पहली प्रक्रिया है. इससे हजारों-हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे. असली चिंता इस बात की है कि सरकार ने इस प्रयोग के लिए रायबरेली स्थित अब तक का सबसे आधुनिक रेल कारखाने (मॉडर्न कोच फैक्ट्री – एमसीएफ) को चुना है, जो कि कई कामयाब परियोजनाओं में से एक है. इन्हें डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने देश के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने यानि ‘मेक इन इंडिया’ के लिए शुरू किया था.’ उन्होंने कहा कि ‘आज इस कारखाने में उसकी बुनियादी क्षमता से काफी ज्यादा उत्पादन हो रहा है.’

श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा कि ‘भारतीय रेल का यह सबसे अधिक आधुनिक कारखाना है और सबसे कम कीमतों पर सबसे बेहतर रेलवे कोच बनाने के लिए मशहूर है.’ उन्होंने कहा कि ‘यह सबसे अच्छी रेलवे इकाईयों में से एक मानी जाती है. इसकी स्थापना के समय से ही सरकारों ने इसमें बहुत-बहुत पैसा लगाया है. अपनी कड़ी मेहनत से यह उपलब्धि हासिल करने वाले दो हजार से ज्यादा मजदूरों और कर्मचारियों को उन्होंने इस मौके पर बधाई भी दी.’ उन्होंने कहा कि ‘लेकिन दुःख की बात यह है कि अब उन सभी का और उनके परिवारों का भविष्य भारी संकट में है और किसी को भी यह समझना अत्यंत मुश्किल हो रहा है कि क्यों यह सरकार ऐसी सफल औद्योगिक इकाई का कंपनीकरण करना चाहती है?’

उन्होंने कहा कि ‘संसद में अलग से रेल बजट पेश करने की 100 साल से अधिक पुरानी मगर सफल परंपरा को इस सरकार ने पता नहीं क्यों खत्म कर दिया? लेकिन क्या अब हम कंपनीकरण के इस तरह के गैरवाजिब कदमों की संसदीय छानबीन की उम्मीद भी न रखें?’ उन्होंने कहा, ‘अब क्या ऐसे मामलों में इस सदन के सामूहिक विवेक के इस्तेमाल की अपेक्षा भी न की जाए?’ उनका कहना था कि ‘सरकार ने हजारों-लाखों मजदूरों, श्रमिकों के जीवन और रोजगार को प्रभावित करने वाले इस फैसले को भी एक गहरा राज बनाकर रखा. सरकार ने कारखानों की मजदूर यूनियनों तक को विश्वास में नहीं लिया और न ही श्रमिकों को विश्वास में लिया गया, जिनके खून-पसीने से यह भारी-भरकम उद्योग खड़े हुए हैं.’

सोनिया गांधी ने कहा कि ‘मैं सरकार को याद दिलाना चाहती हूं कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का बुनियादी उद्देश्य लोक-कल्याण है, निजी पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाना नहीं.’ उन्होंने कहा कि प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हमारे सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्योगों को आधुनिक भारत का मंदिर कहा था. परंतु आज यह देखकर अत्यंत दुःख और अफसोस हो रहा है कि इस तरह के ज्यादातर मंदिर खतरे में हैं. मुनाफे के बावजूद उनके कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दिया जा रहा है और कुछ खास पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए उन्हें संकट में डाल दिया गया है. वास्तव में यह सरकार की विफलता को दर्शाता है.’

उन्होंने अपने संबोधन में बीएसएनएल, एमटीएनएल, भेल और एचएएल का खासतौर पर उल्लेख करते हुए कहा कि ‘इन सार्वजनिक कंपनियों के साथ क्या हो रहा है, यह किसी से भी छिपा नहीं है.’ उन्होंने कहा कि ‘वे इस सदन के माध्यम से सरकार से अनुरोध करना चाहती हैं कि वह रायबरेली की मॉडर्न कोच फैक्ट्री और सार्वजनिक क्षेत्र की सभी संपत्तियों का पूरी तरह से संरक्षण करे और उन्हें इस मंजिल तक पहुंचाने वाले श्रमिकों तथा उनके परिवारों के प्रति सम्मान एवं आदर का भाव रखे.’ उल्लेखनीय है कि इस संदर्भ में श्रीमती सोनिया गांधी ने रेलमंत्री पीयूष गोयल के नाम कांग्रेस पार्टी की तरफ से एक पत्र लिखकर लिखित रूप से भी अपना विरोध दर्ज कराया है.

काली पट्टी बांधकर काम करते हुए रेलकर्मियों का विरोध प्रदर्शन

उधर सरकार के इस तुगलकी निर्णय के विरोध में पूरी भारतीय रेल में ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के आह्वान पर 1 जुलाई से 7 जुलाई तक काली पट्टी बांधकर काम करते हुए विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. इसमें रेलकर्मियों के सभी कैडर संगठन अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर एआईआरएफ के साथ एकजुट हो गए हैं. जाहिर है कि गैर-अनुभवी और मूढ़ सलाहकारों की सलाह पर सरकार के इस अत्यंत अनावश्यक निर्णय से पूरी भारतीय रेल में भारी अशांति का वातावरण बन गया है. विपक्ष सहित करीब 12 लाख रेलकर्मियों के इस तीव्र विरोध को देखकर रेलवे बोर्ड के भी होश ठिकाने आ गए हैं.

लेबर फेडरेशनों के साथ रेलवे बोर्ड की बैठक

इसके परिणामस्वरूप रेलवे बोर्ड ने 2 जुलाई को मान्यताप्राप्त लेबर फेडरेशनों के साथ रेल भवन में एक बैठक का आयोजन किया. बैठक में मेंबर स्टाफ एवं चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) ने उन्हें अपने ‘हंड्रेड डेज ऐक्शन प्लान’ के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए बताया कि भारतीय रेल का यह ‘स्वर्णकाल’ चल रहा है, (हालांकि यह उनकी खुशफहमी है, क्योंकि इससे खराब समय भारतीय रेल का कभी नहीं रहा), क्योंकि सरकार रेलवे के ढ़ांचागत विकास में सहयोग करने के लिए तैयार है, जिससे रेलवे का पर्याप्त विकास हो सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि रेल टिकट की बिक्री 50% की सब्सिडी पर की जा रही है, इसके लिए जो लोग सक्षम हैं, उनसे इसे स्वेच्छा से छोड़ने का अनुरोध किया जाएगा. इसके लिए बाकायदा एक मुहिम चलाई जाएगी.

सीआरबी एवं मेंबर स्टाफ ने फेडरेशनों के पदाधिकारियों को यह भी बताया कि सभी मानवरहित समपारों को जल्दी ही समाप्त कर दिया जाएगा. इस साल कुल 2560 मानवरहित समपारों को खत्म किया जाएगा. उनका कहना था कि ट्रैक के दोनों तरफ फेंसिंग लगाकर और सिग्नलिंग सिस्टम आदि को अपग्रेड करके दिल्ली-कोलकाता एवं दिल्ली-मुंबई रूट पर गाड़ियों की गति बढ़ाकर 160 किमी. प्रतिघंटा की जाएगी. इसके लिए 14,000 करोड़ रुपये के फंड की आवश्यकता होगी. इसके साथ ही 60 रेलवे स्टेशनों को विश्व-स्तरीय स्तर पर विकसित करने के लिए चुना गया है. इसके अलावा सभी लोको में एंटीना लगाया जाएगा, जिससे कंट्रोल को गाड़ियों की ‘रियल टाइम इंफर्मेशन’ प्राप्त होगी.

उन्होंने फेडरेशनों को बताया कि ‘मानव संसाधन प्रबंधन व्यवस्था’ का डिजिटलीकरण किया जा रहा है, जिससे मात्र एक क्लिक पर सभी रेलकर्मियों को उनकी संक्षिप्त व्यक्तिगत जानकारी तुरंत प्राप्त हो जाएगी. उन्होंने ‘यूनिक मेडिकल आइडेंटिटी कार्ड’ बनाए जाने की भी जानकारी दी. उन्होंने आईआरसीटीसी को फिलहाल दो गाड़ियां दिए जाने की जानकारी दी, मगर इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि वर्तमान में चल रही गाड़ियों में से आईआरसीटीसी अथवा अन्य किसी निजी कंपनी को कोई गाड़ी नहीं सौंपी जाएगी, बल्कि यह दोनों ट्रेनें आईआरसीटीसी द्वारा ‘पैलेस ऑन व्हील’, ‘महाराजा’ और ‘डेक्कन ओडिसी’ की तर्ज पर ‘लक्ज़री ट्रेनों’ के तौर पर चलाई जाएंगी.

उत्पादन इकाईयों के निगमीकरण की तो कोई बात ही नहीं हुई

उपरोक्त लंबी-चौड़ी और लोक-लुभावन भूमिका के बाद असली मुद्दे पर आते हुए एमएस और सीआरबी ने फेडरेशनों को बताया कि उन्होंने कहीं भी और कभी भी उत्पादन इकाईयों के निगमीकरण या कार्पोरेटाईजेशन का उल्लेख नहीं किया है. उन्होंने इस बारे में स्पष्टीकरण देते हुए फेडरेशनों को बताया कि इस बारे में अब तक सिर्फ अध्ययन करने का ही प्रस्ताव किया गया है. उनका कहना था कि यूनियनों द्वारा दिए गए आंकड़े और उक्त अध्ययन की रिपोर्ट 15 दिन के अंदर रेलवे बोर्ड को मिल जाएगी. उन्होंने फेडरेशनों को आश्वस्त किया कि अध्ययन रिपोर्ट उनके साथ साझा की जाएगी. रेलवे बोर्ड इस संबंध में यूनियनों और फेडरेशनों से चर्चा करेगा और उनकी पूर्व सहमति के बिना इस विषय में कोई कदम नहीं उठाया जाएगा.

निगमीकरण या निजीकरण किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं होगा

इसके बाद फेडरेशनों के पदाधिकारियों ने एकस्वर में सीआरबी एवं मेंबर स्टाफ, रेलवे बोर्ड को स्पष्ट रूप से बता दिया कि भारतीय रेल के किसी भी हिस्से अथवा रेलवे की उत्पादन इकाईयों के निगमीकरण या निजीकरण को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. तत्पश्चात बैठक में कारखानों और उत्पादन इकाईयों के कर्मचारियों को इंसेंटिव बोनस, एनपीएस, रिक्तियों को अविलंब भरने, काम के घंटे सुनिश्चित किए जाने, स्टाफ की वर्किंग एंड लिविंग कंडीशन और लार्सजेस तथा यूनियन मान्यता के चुनाव इत्यादि मुद्दों पर भी चर्चा हुई. यूनियन मान्यता के चुनाव अगले महीने के अंतिम सप्ताह में 27-28 अगस्त को हो सकते हैं. इसकी मतदाता सूची और मॉडलिटीज दोनों 18 जुलाई तक फाइनल होने की बात कही गई.

अंत में सीआरबी ने फेडरेशनों को बताया कि ‘सेफ्टी से संबंधित रिटायरमेंट स्कीम’ के लिए जल्दी ही एक नई कमेटी का गठन किया जाएगा. कारखानों एवं उत्पादन इकाईयों के कर्मचारियों के लिए इंसेंटिव बोनस का रेट शीघ्र पुनर्निर्धारित किया जाएगा और रेलवे प्रिंटिंग प्रेस को बंद किए जाने के निर्णय की पुनर्समीक्षा की जाएगी. इसके बाद फेडरेशनों ने बोर्ड से कहा कि यात्रियों को टिकट पर दी जा रही सब्सिडी सामान्य बजट से दी जाए, जो कि करीब 40 हजार करोड़ रुपये है. इसके साथ ही रेलकर्मियों की पेंशन (लगभग 42 हजार करोड़ रुपये) का भुगतान भी सामान्य बजट से किया जाना चाहिए. यह दोनों मांगें रेलवे बोर्ड को केंद्र सरकार से करनी चाहिए.

अब लगभग यह तय है कि संसद पटल से यूपीए चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा किए गए उत्पादन इकाईयों के निगमीकरण के विरोध को नजरअंदाज कर पाना सरकार के लिए अत्यंत मुश्किल होगा. इसके अलावा पूरी भारतीय रेल में रेलकर्मियों के विरोध प्रदर्शन एवं चारों तरफ इसे लेकर फैली अशांति तथा रेलवे बोर्ड के साथ हुई फेडरेशनों की उक्त बैठक के निष्कर्ष से ‘रेल समाचार’ को ऐसा लगता है कि सरकार को रेलवे की उत्पादन इकाईयों के निगमीकरण के बहाने निजीकरण करने अथवा कुछ चहेते पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के अपने छिपे एजेंडे को फिलहाल ठंडे बस्ते में डालना पड़ सकता है.