उ.म.रे.: तत्काल कार्रवाई से ही लग सकती है भ्रष्टाचार पर लगाम
पीसीसीएम/उ.म.रे. ने भ्रष्ट वाणिज्य निरीक्षक को तत्काल प्रभाव से हटाया
पार्सल लीज होल्डर के माध्यम से वाणिज्य निरीक्षक द्वारा आदेश रद्द कराने का प्रयास
प्रयागराज ब्यूरो : बुधवार, 15 मई को प्रिंसिपल सीसीएम/उ.म.रे. एम. एन. ओझा ने कानपुर सेंट्रल स्टेशन का गहन निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान गुड्स/पार्सल, टिकट बुकिंग इत्यादि में कई खामियां पाई गईं. इसके लिए एक मुख्य वाणिज्य निरीक्षक (सीएमआई) को जिम्मेदार माना गया. इसके परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार के लिए बदनाम इस सीएमआई को तत्काल प्रभाव से उसके मूल कैडर टिकट बुकिंग में भेजने का आदेश शाम को कंट्रोल मैसेज द्वारा दिया गया है. हालांकि फिलहाल इसका अनुपालन सुनिश्चित नहीं हुआ है, जिससे संबंधित सीएमआई पीसीसीएम के उक्त आदेश को रद्द कराने की जोड़ तोड़ में लग गया है.
विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेल समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार यह सीएमआई भी पूर्व डिप्टी सीटीएम के कदाचार की कड़ी का हिस्सा रहा है और यह भी उन्हीं (डिप्टी सीटीएम) की भाषा में ‘रेल समाचार’ को फर्जी (चापलूसी पसंद अधिकारियों के बीच अपनी पकड़ बनाने के लिए) करार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इसे अक्सर यह कहते सुना जाता था कि ऐसे लोगों का होश अरुणेंद्र कुमार जैसों ने ठिकाने लगा दिया था, लेकिन पूर्व सीआरबी जैसे लोगों ने इसे फिर से सिर पर चढ़ा दिया. उनका कहना है कि ‘रेल समाचार’ की कोई भी खबर जब पूर्व डिप्टी सीटीएम, कानपुर के बारे में प्रकाशित होती थी, तो यह यहां कार्यरत कुछ लोगों की तरफ इशारा करके उनके (डिप्टी सीटीएम को) कान भरता था.
बहरहाल, ‘रेल समाचार’ ने हमेशा सच को ही उजागर किया है, लेकिन भ्रष्टाचार के गर्त में समा चुके कुछ रेल अधिकारियों और कर्मचारियों को यह नागवार गुजरता है. तथापि उनके द्वारा लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ को प्रभावित करने के लिए नाना प्रकार के तरीके अपनाए जाते हैं. ‘रेल समाचार’ ने कभी भी रेल प्रशासन की छवि को धूमिल करने का प्रयास नहीं किया, बल्कि इसने हमेशा रेल प्रशासन में व्याप्त कुछ अनियमितताओं के संबंध में उसे आगाह करने का ही प्रयास किया है. इसके साथ ही किसी शिकायत को निष्पक्ष तरीके से जांच करने का आग्रह भी किया है. जब ‘रेल समाचार’ द्वारा ‘राम नाम की लूट है, जो लूट सके सो लूट’ सीरीज के माध्यम से विशेषकर उ.म.रे. के इलाहाबाद मंडल में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करना शुरू किया गया था, तो प्रभावित लोगों ने उच्च अधिकारियों को यह संदेश देने की कोशिश की थी कि यह ‘रेल समाचार’ ऐसी ही फालतू खबरें छापता है.
यही नहीं, ‘रेल समाचार’ से जुड़े कुछ लोगों से संपर्क करके उक्त स्तम्भ को बंद कराने का भी प्रयास किया गया था, लेकिन यह स्तंभ निर्भीकता और निष्पक्ष तरीके से जारी रहा. ‘रेल समाचार’ के पास हर आरोप से संबंधित विभिन्न डॉक्यूमेंट्स उपलब्ध हैं, लेकिन कभी यह उद्देश्य कत्तई नहीं रहा कि उनको सार्वजनिक करके रेल की छवि धूमिल करने का प्रयास किया जाए, बल्कि उद्देश्य हमेशा यही रहा कि प्रशासन इन गंभीर अनियमितताओं को संज्ञान में लेते हुए उन पर उचित कार्रवाई करे.
खैर, अब आगे की बात उसी शीर्षक ‘राम नाम की लूट..’ से पुनः शुरू करते हैं. उक्त सीरीज में विशेष रूप से कानपुर एरिया के पूर्व उप मुख्य यातायात प्रबंधक (डिप्टी सीटीएम) द्वारा विभिन्न स्तर पर किए गए भ्रष्टाचार की परतों को उधेड़ने का प्रयास किया गया था. ऐसा माना जाता है कि सच आज नहीं तो कल उजागर हो ही जाता है. इसकी शुरुआत 09 मई 2019 को उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक राजीव चौधरी द्वारा कानपुर सेंट्रल पर निरीक्षण के दौरान तब की गई, जब उन्होंने निरीक्षण की कड़ी में प्लेटफॉर्म पर ही तत्कालीन डिप्टी सीटीएम जितेन्द्र कुमार को कार्य के प्रति उदासीनता पर जमकर लताड़ लगाई और तत्काल प्रभाव से स्पेयर कराते हुए उन्हें झांसी के लिए कार्यमुक्त करा दिया, जहां पर उनका स्थानांतरण पहले ही किया जा चुका था.
कानपुर एरिया में लंबे समय से जारी भ्रष्टाचार पर महाप्रबंधक द्वारा यह यह पहला और सटीक प्रहार किया गया, जिसकी जरूरत वास्तव में बहुत पहले ही थी. इसी कड़ी में दूसरा प्रहार बुधवार, 15 मई 2019 को प्रिंसिपल सीसीएम/उ.म.रे. महेन्द्र नाथ ओझा द्वारा तब किया गया, जब उन्होंने कानपुर सेंट्रल स्टेशन और गुड्स शेड का बारीकी से निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान ही उन्होंने वाणिज्य निरीक्षक (मूल कैडर बुकिंग सुपरवाइजर) ललित कुमार को तत्काल प्रभाव से बुकिंग कार्यालय में भेजने का लिखित आदेश दिया.
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त विश्वसनीय इनपुट के अनुसार कानपुर एरिया के वाणिज्य विभाग के पार्सल, कैटरिंग, पार्किंग स्टैंड, यहां तक कि पे एंड यूज जैसे हर सेक्शन तक से वाणिज्य निरीक्षक ललित कुमार ने प्रतिमाह मोटा कमीशन बांध लिया था और लोगों को यह संदेश देता था कि उसकी पहुंच केवल डिप्टी सीटीएम तक ही नहीं है, बल्कि पीसीसीएम, सीनियर डीसीएम तक है और प्रतिमाह एक निश्चित रकम उन लोगों तक भी पहुंचाई जाती है.
पार्सल विभाग के कर्मचारियों के साथ ही कुछ पार्सल व्यापारियों का भी कहना है कि ललित कुमार द्वारा केवल अपने कमीशन की बात की जाती थी और जब पार्सल की आय बुरी तरह घटने की बात होती थी, तो उसका कहना होता था कि वो सब छोड़ो हम लोगों की तो आय बढ़ रही है न. उनका कहना है कि ललित कुमार के कदाचारपूर्ण कारनामे यहीं तक सीमित नहीं थे, इसके द्वारा डिप्टी सीटीएम को भरोसे में लेकर अपने कार्यक्षेत्र में टेंडर, कोटेशन तक का भी काम ले लिया गया था और फर्जी कोटेशन के आधार पर बिना काम कराए ठेकेदारों से हफ्ता वसूली तक की बात सामने आई है.
यह भी पता चला है कि ललित कुमार ने अपने कार्यक्षेत्र में पूरे अनवरगंज स्टेशन का कार्य भी तत्कालीन डिप्टी सीटीएम से ऐड करा लिया था और वहां पर भी उनके द्वारा धन उगाही की जा रही है. सफाई विभाग से प्राप्त इनपुट के अनुसार कानपुर सेंट्रल स्टेशन के सिटी साइड में आरवीएनएल द्वारा निर्मित डीलक्स पे एंड यूज टॉयलेट भी अवैध ढंग से इसी ललित कुमार द्वारा कथित रूप से चलवाया जा रहा है, जबकि उसकी कोटेशन के आधार पर वैधता काफी पहले ही समाप्त हो चुकी है. ऐसे सभी प्रकरण तत्कालीन डिप्टी सीटीएम के संज्ञान में भी थे, परंतु उन्होंने इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया, क्योंकि इस बंदरबांट में वह बराबर के भागीदार रहे हैं.
एक कहावत है कि जैसा राजा वैसी प्रजा. इस कहावत को कानपुर के तत्कालीन डिप्टी सीटीएम (राजा) और ललित कुमार जैसे चालू-पुर्जा रेलकर्मी (प्रजा) ने पूरी तरह से साकार किया है. ध्यान देने वाली बात यह है कि भ्रष्टाचार की केवल यही एक कड़ी नहीं है, इस कड़ी में और भी कई लोग शामिल हैं, जिनकी कुंडली ‘रेल समाचार’ द्वारा खंगाली जा रही है. यदि ध्यान से देखा जाए, तो भ्रष्टाचार करने का मौका कई बार प्रशासन की लापरवाह कार्य-प्रणाली से भी मिलता है. कम से कम कानपुर एरिया के मामले में तो यह बात ताल ठोंककर कही जा सकती है.
यहां पर नॉन फेयर रेवेन्यू (एनएफआर) के तहत दो पहिया और चार पहिया वाहन पार्किंग का ठेका खत्म हुए क्रमशः 4 और 2 महीने से ज्यादा समय बीत गया है, लेकिन उनकी टेंडर प्रक्रिया आज तक पूरी नहीं हो पाई है, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि रेलवे को एनएफआर के तहत होने वाली आय बुरी तरह से प्रभावित हुई है, क्योंकि यहां पर पार्किंग का संचालन महीनों से विभागीय आधार किया जा रहा है, और वह भी सिर्फ कागजों में, क्योंकि जमीन पर तो ठेकेदार के ही आदमी काम कर रहे हैं. भ्रष्टाचार का सारा खेल इसी में हो रहा है, क्योंकि जब ठेका था, तो रेल राजस्व में प्रतिदिन लगभग 15 हजार रुपये दो पहिया वाहन (केवल कैंट साइड से) और 40 हजार रुपये चार पहिया वाहन पार्किंग स्टैंड से जमा होते थे.
जबकि प्राप्त जानकारी के अनुसार इस वक्त दो पहिया वाहन पार्किंग से मात्र 1-2 हजार रुपए प्रतिदिन तथा चार पहिया वाहन पार्किंग से लगभग 5-7 हजार रुपये प्रतिदिन रेल राजस्व के रूप में जमा हो रहे हैं. पार्किंग में कार्य कर रहे ठेकेदार के कर्मचारी ने ‘रेल समाचार’ को बताया कि यहां पर टीसी की ड्यूटी लगाई जाती है, लेकिन काम हम लोग ही करते हैं और पैसे का हिसाब वाणिज्य निरीक्षक ललित कुमार करते हैं. उसका यह भी कहना था कि ललित कुमार द्वारा कहा जाता है कि इसमें हिस्सा सीसीएम, सीनियर डीसीएम और डिप्टी सीटीएम का भी होता है. हालांकि बहुत पूछने पर भी उसने अपना नाम नहीं बताया. अतः इस तरह के तमाम इनपुट और फीडबैक के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पीसीसीएम द्वारा मौके पर अत्यंत सटीक और सही कार्यवाही की गई है.
हालांकि अभी-भी सीएमआई ललित कुमार का दंभ और संदेश यह भी है कि वह पीसीसीएम के इस आदेश को आज नहीं तो कल पलटवा देगा. इसकी कुंडली खंगालने पर पता चला है कि इसके विरुद्ध भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की कई शिकायतें पहले भी वाणिज्य मुख्यालय, इलाहबाद को की गई हैं. तथापि आश्चर्य की बात यह है कि इसे डीआरएम, जीएम और सीसीएम अवार्ड तक के लिए नामित किया गया है.
इलाहबाद मंडल से एसीएम के पद से रिटायर एक अधिकारी ने ‘रेल समाचार’ को जानकारी देते हुए बताया कि पूरे इलाहाबाद मंडल में अधिकांश बुकिंग खिड़कियां बुकिंग स्टाफ की कमी के कारण बंद रहती हैं. इसके बावजूद बुकिंग सुपरवाइजर को बुकिंग में न भेजकर सीएमआई के पद पर अस्थाई पोस्ट किया जा रहा है. उन्होंने इन लोगों को टिकट बुकिंग में भेजने का प्रयास किया था, लेकिन मामला इन लोगों के माध्यम से मंडल के अफसरों की चाकरी करने का था, इसलिए इस पर विचार नहीं किया गया और इनकी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए अनेकों पद बिना किसी आधार के बना लिए गए.
सुनने में आया है कि अभी-भी ऑर्डर को बदलवाने का प्रयास जारी है, जबकि यह खबर स्थानीय मीडिया में भी प्रकाशित हो चुकी है. सुनने में तो ये भी आ रहा है कि एक पार्सल लीज होल्डर द्वारा सीधे पीसीसीएम से इस ऑर्डर को बदलवाने का प्रयास किया जा रहा है. बहरहाल इस छोटी और महत्वपूर्ण पहल के लिए जीएम/उ.म.रे. राजीव चौधरी और पीसीसीएम/उ.म.रे. एम. ने. ओझा बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने अपने निरीक्षण के दौरान 70% पार्सल बुकिंग घटने पर सीपीएस वी. के. सिंह को लताड़ लगाई और सुधरने की चेतावनी दी. इसके साथ ही कमाई वाली गाड़ियों में लगातार कुछ खास टिकट चेकिंग स्टाफ की ड्यूटी लगाकर रेल राजस्व को चूना लगाने के लिए सीआईटी विशाल को उनके वर्तमान कार्य से हटा दिया और सीआईटी लाइन डी. टोप्पो को अपना काम सुधारने की चेतावनी दी. एक खानपान स्टाल के स्टोर रूम में कपड़े सूखते देखकर भड़के पीसीसीएम ने स्टाल प्रबंधक रमाशंकर बाजपेई को लाइसेंस रद्द करने की चेतावनी देकर साफ-सफाई बनाए रखने को कहा.
उत्तर मध्य रेलवे की अच्छी खबर
अधिकांशतः अनियमितताओं के लिए मशहूर उत्तर मध्य रेलवे से एक अच्छी खबर भी मिली है. वह यह है कि उ.म.रे. आरपीएफ के आईजी/पीसीएससी एस. एन. पांडेय बहुत ही कड़क और अनुशासित हैं. उन्होंने पूरे उ.म.रे. में आरपीएफ के थाना प्रभारियों को सख्त चेतावनी दी है कि स्टेशन परिसर और इसके आसपास यदि कोई अवैध वेंडर मिलता है, तो सीधे थाना प्रभारी को जिम्मेदार माना जाएगा. इसका प्रारंभिक असर यह हुआ है कि अवैध वेंडिंग के लिए कुख्यात इलाहाबाद, कानपुर, झांसी, ग्वालियर, आगरा जैसे स्टेशनों पर अवैध वेंडिंग पर लगभग लगाम लग चुकी है. हालांकि कुछ इक्का दुक्का या चोरी छिपे यह सब चलता ही रहेगा, लेकिन यदि इतनी भी सख्ती हो जाए, तो इसके परिणाम काफी सुखद होंगे.
खबरें और भी हैं लेकिन क्रमशः…