रेलमंत्री जी, देखो, कितने सालों से एक ही पद पर बैठे हैं आपके अधिकारी!

द.पू.म.रे. में डीसीएम/आईटी के पद पर साढ़े सात साल से पदस्थ ए.के.मिश्रा

बिलासपुर : पिछले दिनों रेलमंत्री के आदेश पर रेलवे बोर्ड के प्रमुख कार्यकारी निदेशक, विजिलेंस सुनील माथुर ने सभी जोनल रेलों के महाप्रबंधकों को एक पत्र जारी करके निर्देश दिया था कि तीन-चार सालों से ज्यादा एक ही पद पर पदस्थ अधिकारियों को दर-बदर करके उसकी रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेजी जाए. जबकि दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के अधिकारी ए. के. मिश्रा को उप-मुख्य प्रबंधक, सूचना प्रौद्योगिकी (डीसीएम/आईटी) के पद पर पिछले साढ़े सात सालों (16.11.2011) से लगातार पदस्थ रखा गया है. कम से कम उनके चैम्बर में लगा नामपट तो यही कह रहा है.

हालांकि यहां रेलवे बोर्ड और दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के कदाचारी महाप्रबंधक यह कह सकते हैं कि डीसीएम/आईटी की उक्त पोस्ट संवेदनशील पदों की श्रेणी में नहीं आती है. तथापि लगातार सात-आठ सालों तक एक अधिकारी को एक ही पद पर पदस्थ रखे जाने का क्या औचित्य है? इसका कोई वाजिब जवाब शायद उनके पास नहीं होगा. जानकारों का कहना है कि इसके अलावा इस प्रकार ऐसे अधिकारी को अन्य विभिन्न पदों पर कार्य करने के अनुभव से भी तो वंचित किया जा रहा है, इस दृष्टिकोण से रेल प्रशासन विचार क्यों नहीं करता?

उक्त पद को असंवेदनशील श्रेणी का बताकर भले ही रेल प्रशासन अपनी काहिली से पल्ला झाड़ ले, मगर सच यह है कि तमाम संवेदनशील पदों पर न सिर्फ अधिकारी बल्कि बड़ी संख्या में तृतीय श्रेणी स्टाफ भी लगातार लंबे समय से बैठा हुआ है. इन तमाम पदों में टेंडर डीलिंग, कॉन्ट्रैक्टर्स बिलिंग, स्टेनो, ओएस/चीफ ओएस, एसओ/सीनियर एसओ इत्यादि के अलावा लेखा, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, एसएंडटी, स्टोर्स, मेडिकल, वाणिज्य एवं परिचालन यानि लगभग सभी विभागों के उक्त तृतीय श्रेणी सुपरवाइजरी स्टाफ की सिर्फ कुर्सियां बादली जाती जाती हैं. जबकि सीवीसी और रेलवे विजिलेंस द्वारा यह सभी अत्यंत संवेदनशील श्रेणी के अंतर्गत नामांकित किए गए हैं.

तथापि खुद विजिलेंस आर्गेनाईजेशन समयानुसार इनके तबादलों की मॉनिटरिंग नहीं करता है, जिससे तालाब में जमा होने वाली काई की तरह यहां भ्रष्टाचार अपनी गहरी जड़ें जमाता चला जाता है. जानकारों का कहना है कि प्रशासनिक स्तर पर ऐसी अक्षम्य लापरवाही होने का कारण यह है कि जब प्रशासन में बैठे लोगों की जिम्मेदारी तय करने वाले लोग खुद लापरवाह हों, भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त हों, तब उनसे जिम्मेदारी निभाने की कोई उम्मीद कैसे की जा सकती है?