आईआरसीटीसी के लिए आखिर इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं अनिल गुप्ता?
रेलवे बोर्ड का आदेश दरकिनार करके गुप्ता की पोस्टिंग दिल्ली में किसने की?
लाइसेंसियों से मध्यस्थता के लिए अनिल गुप्ता का उपयोग किए जाने का आरोप
प्रशिक्षित अधिकारी नहीं, बल्कि आईआरसीटीसी को चला रहा है कैटरिंग माफिया!
वर्ष 2014-15 से अब तक जारी सभी लाइसेंसियों के डाक्यूमेंट्स की जांच की मांग
सुरेश त्रिपाठी
भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) अपनी संदिग्ध नीतियों और इस पर काबिज कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की बड़े कैटरिंग माफियाओं के साथ मिलीभगत के कारण हमेशा विवादों में रहता है. इस निगम पर रेलयात्रियों को उचित दरों पर सुरुचिपूर्ण खानपान, जिसके लिए वास्तव में इसका गठन हुआ है, मुहैया न करा पाने का आरोप अक्सर लगता रहता है. ट्वीटर पर इस प्रकार की यात्री शिकायतों की भरमार है. जबकि इसके इचार्ज बहुत स्मार्टली इस तरह के आरोपों को दूसरों पर ढकेलकर साफ बचकर और रेलमंत्री को निगम के खर्च पर हवाई सुविधाएं मुहैया कराकर उनकी आंख का तारा बने हुए हैं.
आईआरसीटीसी के इन्हीं कुछ कदाचारी अधिकारियों की आंख का तारा इनका एक एजीएम स्तर का कर्मचारी अनिल गुप्ता भी है, जो कि बड़े कैटरिंग माफियाओं और उनके बीच की एक मजबूत कड़ी बताया जाता है. इसीलिए कहा जाता है कि अनिल गुप्ता को यह अधिकारी किसी भी स्थिति में अपने आसपास रखने के लिए विवश हैं. और इसीलिए उन्होंने रेलवे बोर्ड के आदेश को दरकिनार करके अनिल गुप्ता की पोस्टिंग पुनः दिल्ली में कर ली है. यही नहीं, गुप्ता की इस पोस्टिंग के खिलाफ केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के ही सांसदों ने लिखित शिकायत रेलमंत्री को दी थी, जिस पर रेलमंत्री ने कोई ध्यान ही नहीं दिया और इसीलिए आईआरसीटीसी के सीएमडी ने भी सांसदों की शिकायतों को बोगस बताकर गुप्ता की दिल्ली में पोस्टिंग को जायज ठहरा दिया है.
इस संबंध में ‘रेल समाचार’ द्वारा दि. 06.08.2018 को “रेलवे बोर्ड से ज्यादा पावरफुल है अनिल गुप्ता का मनी-पावर!” शीर्षक से प्रकाशित खबर से पहले प्रतिक्रिया मांगे जाने पर सीएमडी ने कोई जवाब देना जरूरी नहीं समझा था, परंतु जब इस खबर को ट्वीटर पर शेयर किया गया, तो उन्होंने व्हाट्सऐप पर दो लाइन का जवाब देते हुए कहा कि सांसद का वह पत्र फर्जी है, क्योंकि उसकी छानबीन किए जाने पर सांसद महोदय ने अपने हस्ताक्षर को बोगस बताते हुए उसकी पुष्टि करने से इंकार किया है. ऐसे में जब उनसे प्रत्युत्तर में ‘रेल समाचार’ द्वारा यह पूछा गया कि यदि उनकी बात मान भी ली जाए कि सांसद महोदय का उक्त पत्र फर्जी है, तथापि रेलवे बोर्ड द्वारा 4 मई 2017 को जारी आदेश तो फर्जी नहीं है, जिसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि अनिल गुप्ता को कॉर्पोरेट ऑफिस और दिल्ली एरिया से बाहर पदस्थ किया जाए. इसके अलावा रेलवे बोर्ड द्वारा अपने उक्त पत्र को अब तक खारिज भी नहीं किया गया है. फिर मात्र छह माह के अंदर गुप्ता को पुनः दिल्ली में किस आधार पर पदस्थ किया गया है? इन सवालों का जवाब देने के बजाय सीएमडी महोदय चुप्पी साधे हुए हैं.
ज्ञातव्य है कि उत्तर रेलवे में मामूली गार्ड या बुकिंग क्लर्क के पद पर रहे अनिल गुप्ता को तत्कालीन सीएमडी द्वारा अपना बगलबच्चा बनाकर आईआरसीटीसी में प्रतिनियुक्ति पर सबसे निचले पद पर लिया गया था. बताते हैं कि वर्ष 2004-05 के आसपास हुई अस्सिस्टेंट मैनेजर (एएम) की परीक्षा में गुप्ता फेल हो गया था. परंतु तत्कालीन सीएमडी ने उसे उपकृत करते हुए तमाम निर्धारित नियम-कानूनों और सेवा-शर्तों को ताक पर रखकर गुप्ता को सीधे ‘मैनेजर’ बनाकर कॉर्पोरेट ऑफिस में टेंडर डीलिंग और स्टेशनों पर स्थित खानपान स्टालों पर विभिन्न खानपान सामग्रियों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों/फर्मों को तात्कालिक अनुमति देने का अधिकार देकर महत्वपूर्ण पद पर बैठा दिया था.
उक्त पद पर लंबे समय से रहते हुए गुप्ता धीरे-धीरे आईआरसीटीसी में पदस्थ होने वाले सीएमडी सहित इसके लगभग सभी अधिकारियों का न सिर्फ चहेता बन गया, बल्कि कैटरिंग कॉन्ट्रैक्टर्स और तात्कालिक अनुमति चाहने वाली कंपनियों/फर्मों एवं अधिकारियों के बीच लेनदेन की एक मजबूत कड़ी बन गया. जैसा कि रेलवे बोर्ड के उपरोक्त पत्र में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि गुप्ता के बिना आईआरसीटीसी का कॉर्पोरेट कार्यालय और कामकाज ही नहीं चल सकता है तथा उसके न रहने पर आईआरसीटीसी का संपूर्ण कारोबार ठप हो जाएगा, तो यह बात सही है. बताते हैं कि यहां सीएमडी सहित आईआरसीटीसी के लगभग सभी अधिकारी उसके सरपरस्त इसीलिए बने हुए हैं, क्योंकि उनका समस्त ‘अंडर टेबल’ कारोबार गुप्ता के माध्यम से चलता है?
जानकारों का कहना है कि वर्ष 2015 में जब आईआरसीटीसी ने रेलवे बोर्ड की टेंडर पालिसी को धता बताते हुए ‘एडहाक टेंडर’ शुरू किए थे, तब उनमें इतनी ज्यादा रिलैक्सेशन कर दी गई थी कि इसके चलते तमाम सड़कछाप और गैर-अनुभवी नए कैटरिंग कॉन्ट्रैक्टर्स की भरमार हो गई. उनका कहना है कि सीवीसी अथवा रेलवे बोर्ड विजिलेंस के माध्यम से इस बात का वेरिफिकेशन किया जा सकता है. उनका कहना है कि यह रिलैक्सेशन आईआरसीटीसी के डायरेक्टर कैटरिंग की सहमति से किया गया था. उनका यह भी कहना है कि इस जांच के लिए वर्ष 2015 से अब तक अवार्ड किए गए उन सभी लाइसेंसीज के रिकार्ड्स अथवा डाक्यूमेंट्स मंगाए जाने चाहिए, जो कि उन्हें टेंडर अवार्ड करने के लिए उक्त सभी लाइसेंसीज ने आईआरसीटीसी के पास जमा कराए थे.
जानकारों का कहना है कि उपरोक्त गतिविधि आईआरसीटीसी द्वारा टेंडर अवार्ड करने में हुए भारी भ्रष्टाचार और इसमें बड़े पैमाने पर हुए पैसे के लेनदेन का अपने आप में एक बहुत बड़ा प्रमाण है. उनका यह भी कहना है कि तब इस भ्रष्टाचार की शिकायतें पीएमओ और सीवीसी/सीबीआई सहित रेलमंत्री को भी की गई थीं. इसीलिए गुप्ता को कॉर्पोरेट कार्यालय और दिल्ली एरिया से बाहर ट्रांसफर करने के लिए रेलवे बोर्ड को बाध्य होना पड़ा था. इसके साथ ही उसे टेंडर प्रक्रिया सहित किसी भी कमर्शियल पोस्ट पर नहीं रखे जाने की भी ताकीद की गई थी. इसके बावजूद उसे न सिर्फ दिल्ली ले आया गया है, बल्कि आईआरसीटीसी के दिल्ली स्थित नार्थ जोन कार्यालय में महत्वपूर्ण पद पर इसलिए पदस्थ किया गया है कि जिससे भ्रष्टाचार में प्राप्त उसकी महारत का लाभ कॉर्पोरेट ऑफिस के अधिकारियों को मिल सके.
जानकारों का तो यहां तक कहना है कि नार्थ जोन में गुप्ता की पोस्टिंग मात्र दिखावा है, क्योंकि उसकी सेवाएं कॉर्पोरेट ऑफिस में ली जा रही हैं, जहां नार्थ जोन के पूर्व अधिकारी सहित उसके सभी संरक्षक मौजूद हैं. उनका कहना है कि वर्ष 2015 से लेकर अब तक जितने भी टेंडर या तात्कालिक अनुमतियां आईआरसीटीसी द्वारा प्रदान की गई हैं, उनमें से प्रत्येक लाइसेंसी से न्यूनतम दस लाख रुपये तक की अवैध राशि का लेनदेन हुआ है, जो कि नीचे से लेकर ऊपर तक बंटी है. उनका यह भी कहना है कि इनमें से प्रत्येक टेंडर या अनुमति में कम से कम दो लाख का हिस्सा गुप्ता के खाते में आता रहा है. इन लाइसेंसीज की कुल संख्या 75 के आसपास बताई गई है. उन्होंने कहा कि यदि गंभीरतापूर्वक इन सभी लाइसेंसीज की निष्पक्ष जांच होती है, तो इसके अलावा भी तमाम गड़बड़ियों का खुलासा हो सकता है.
इस संबंध में ‘रेल समाचार’ ने रेलवे बोर्ड के भी संबंधित अधिकारियों से जब पूछताछ की कि उनके आदेश को ताक पर रखकर आईआरसीटीसी ने कैसे अनिल गुप्ता को पुनः दिल्ली में पदस्थ कर दिया और इस पर वह क्या कार्रवाई कर रहे हैं? इसका जवाब देने में रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारी भारी टालमटोल कर रहे हैं. हालांकि प्राप्त जानकारी के अनुसार अब इस मामले से मेंबर ट्रैफिक को अवगत नहीं कराया गया है. जबकि अपने हस्ताक्षर से उक्त आदेश जारी करने वाले एडिशनल मेंबर, कैटरिंग एंड टूरिज्म संजीव गर्ग अभी-भी रेलवे बोर्ड की सेवा में मौजूद हैं. यह सारी जोड़तोड़ रेलमंत्री की नाक के नीचे हो रही है, जो कि न सिर्फ अपनी ही पार्टी के सांसदों की शिकायतों को नजरअंदाज कर रहे हैं, बल्कि रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों पर भारी दबाव बनाकर अपनी कुछ मुम्बईया पार्टियों को बड़े कैटरिंग ठेके दिलाने में लगे हुए हैं, जिसके लिए उन्होंने पीएमओ के मना करने के बावजूद संजीव गर्ग से कैटरिंग छीन ली थी.
आईआरसीटीसी के कॉर्पोरेट ऑफिस में बैठे लगभग सभी अधिकारियों द्वारा अनिल गुप्ता को क्यों प्रोटेक्ट किया जा रहा है, आखिर दिल्ली में उनकी पोस्टिंग किस उद्देश्य को साधने के लिए की गई है, किस तरह फूड लाइसेंस के बिना टेंडर दिए गए हैं, आईआरसीटीसी पर कितना बड़ा कैटरिंग माफिया हावी है और इसके कुछ अधिकारी कितने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, किसी एरिया इंस्पेक्टर द्वारा ईमानदारी से अथवा कॉर्पोरेट ऑफिस के संबंधित अधिकारी को विश्वास में लिए बिना काम करने और किसी लाइसेंसी पर जुर्माना लगाने पर किस तरह उठाकर उसे दूरदराज फेंक दिया जाता है, किस तरह रेलयात्रियों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, किस तरह रेलवे बोर्ड की टेंडर पालिसी को दरकिनार किया जा रहा है, रेलनीर की आपूर्ति में हो रही घपलेबाजी का राज क्या है, इसके प्लांट लगाने के लिए निजी पार्टियों को दी गई अनुमति में कितने बड़े पैमाने पर कदाचार हुआ है, इन सब बातों का खुलासा अब धीरे-धीरे होगा. क्रमशः