उत्तर पश्चिम रेलवे द्वारा कैट और हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना

फ्रेश फेस एवजियों को हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद नहीं दी जा रही नियुक्ति

जयपुर : उत्तर पश्चिम रेलवे के तत्कालीन महाप्रबंधक राकेश मोहन अग्रवाल द्वारा मई-जून 2004 में 181 व्यक्तियों को फ्रेश फेस एवजी (जीएम कोटे) के तहत नियुक्तियां दी गई थीं. इनमें से 97 व्यक्तियों को तुरंत नियुक्तियां दे दी गई थी, मगर 84 व्यक्तियों को बिना कारण बताए नियुक्ति देने से मना कर दिया गया था. इस पर जब कुछ अभ्यर्थियों द्वारा 2006 में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) जोधपुर-जयपुर में रेलवे के विरुद्ध मामला दायर किया गया, तो उत्तर पश्चिम रेलवे के संबंधित अधिकारी अदालत में समुचित ढ़ंग से रेलवे का पक्ष नहीं रख पाए और यह भी नहीं बता पाए कि आखिर संबंधित अभ्यर्थी (वादी) किस आधार पर रेलवे में नियुक्ति पाने के हकदार नहीं हैं. जबकि इन 80 लोगों की नियुक्ति के संबंध में रेलवे बोर्ड सतर्कता विभाग द्वारा किसी भी प्रकार की कोई टिप्पणी नहीं की गई है.

कैट, जोधपुर ने वर्ष 2010 में संबंधित वादियों को नियुक्ति का पात्र माना है. लेकिन उत्तर पश्चिम रेलवे ने राजस्थान हाई कोर्ट, जोधपुर से कैट के आदेश के विरुद्ध स्टे ले लिया. तथापि अदालत में याचिका विचाराधीन होने के बावजूद वर्ष 2007-08 में तत्कालीन महाप्रबंधक/उ.प.रे. अशोक गुप्ता द्वारा विचाराधीन 84 अभ्यर्थियों में से 4 लोगों (आशा भाटी, मनीषा सोलंकी, कपिल शर्मा और एक अन्य) को गुपचुप तरीके से नियुक्ति दे दी गई. बाकी 80 लोगों के बारे में कोई विचार नहीं किया गया. यही नहीं, तत्कालीन महाप्रबंधक अशोक गुप्ता ने भी वर्ष 2006-09 के दौरान गुपचुप तरीके से 186 लोगों को इस कथित जीएम कोटे के तहत नियुक्तियां देकर भारी भ्रष्टाचार किया था.

राजस्थान हाई कोर्ट की जोधपुर खंडपीठ ने (मु. सं. 10603/2010) 3 दिसंबर 2015 को स्थगन आदेश को निरस्त करते हुए उ.प.रे. पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था और कैट के फैसले को सही माना था तथा नियुक्ति करने का आदेश भी दिया था. लेकिन उत्तर पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक और संबंधित अधिकारियों की मनमानी के चलते आज तक उक्त 80 लोगों को नियुक्ति नहीं देकर उनके परिवारों को दर-दर की ठोकरें खाने और भूखों मरने के लिए मजबूर किया जा रहा है. जबकि आज रेलवे कर्मचारियों की भारी कमी से जूझ रही है.

कैट, जोधपुर ने महाप्रबंधक/उ.प.रे. को अदालत की अवमानना के लिए कोर्ट के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश भी दिया हुआ है, लेकिन इसके विपरीत 21 अगस्त 2017 को महाप्रबंधक के मौखिक आदेश से नियुक्ति देने से मना कर दिया गया. इससे साफ जाहिर होता है कि रेलवे के अधिकारियों को न तो उच्च अदालतों के आदेशों का डर है, न ही उनमें कैट के आदेशों का कोई भय रह गया है. इसके चलते रेल अधिकारी अपनी मनमानी करने पर उतारू हैं.

उल्लेखनीय है कि कोर्ट के आदेशानुसार दस हजार रुपये का जुर्माना उ.प.रेलवे ने याचिकाकर्ताओं को दिया है. तथापि राजस्थान हाई कोर्ट, जयपुर-जोधपुर खंडपीठ और कैट, जयपुर-जोधपुर पीठ के आदेशों के बावजूद अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने से अब तक टालमटोल किया जा रहा है. इसके अलावा उ.प.रे द्वारा बार-बार गलत तथ्य पेश करके अदालत को गुमराह किया जा रहा है. कैट, जयपुर-जोधपुर पीठ में रेगुलर डबल बेंच नहीं होने के कारण रेल अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे हैं, जबकि अभ्यर्थियों द्वारा उ.प.रे. के विरुद्ध अदालत की अवमानना का मामला दायर किए हुए डेढ़ साल से भी ज्यादा समय बीत गया है, फिर भी वादियों को नियुक्ति नहीं देने पर संबंधित रेल अधिकारी अड़े हुए हैं.