आरक्षण: दलितों को दलित बनाए रखने की साजिश-5
‘पदोन्नति में आरक्षण’ के मुद्दे पर भ्रमित और दबाव में है देश का चौथा स्तंभ-प्रेस
‘पदोन्नति में आरक्षण’ के दुष्परिणामों को उजागर नहीं कर पाया राष्ट्रीय मीडिया
मीडिया ने ‘पदोन्नति में आरक्षण’ के मामले को ‘नौकरी में आरक्षण’ से जोड़ दिया
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के निर्णय की एकतरफा रिपोर्टिंग करके भ्रम फैलाया
देश को बांटने की साजिशें रच रहे हैं 1% से कम जातिवादी लोकसेवक और राजनेता
सुरेश त्रिपाठी
‘पदोन्नति में आरक्षण’ के संबंध में ‘समता आंदोलन समिति’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पारासर नारायण शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे अपने पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर देश का राष्ट्रीय प्रेस और मीडिया न सिर्फ दिग्भ्रमित अवस्था में है, बल्कि भारी दबाव में भी है. उन्होंने लिखा है कि ‘पदोन्नति में आरक्षण’ के घातक दुष्परिणामों को उजागर करने में मीडिया सामान्यतः कोई रूचि नहीं लेता है. उन्होंने कहा है कि जयपुर के एक प्रतिष्ठित अखबार समूह ने विगत दिनों जब इस मुद्दे पर एक लेख प्रकाशित किया, तो तमाम जातिवादी लोकसेवकों एवं राजनेताओं ने उक्त समूह के कार्यालय में घुसकर तोड़फोड़ की. इसके परिणामस्वरूप समूह ने इस मुद्दे पर आगे कोई लेख प्रकाशित करने का साहस नहीं दिखाया.
भारतीय प्रेस ‘पदोन्नति में आरक्षण’ एवं ‘नौकरी में आरक्षण’ के अंतर को जनमानस तक पहुंचाने में सफल नहीं रहा है. आम भारतीय नागरिक या अजा/अजजा के वंचित वर्ग को भारतीय प्रेस यह समझा नहीं पा रहा है कि ‘पदोन्नति में आरक्षण’ की व्यवस्था ‘नौकरियों में आरक्षण’ की व्यवस्था से पूरी तरह भिन्न है. जहां ‘नौकरी में आरक्षण’ अजा/अजजा के पिछड़े, वंचित एवं शिक्षित युवकों को सरकारी नौकरी में लाकर इन वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है, उत्थान करता है. वहीं ‘पदोन्नति में आरक्षण’ सरकारी नौकरी प्राप्त अगड़े और संपन्न आरक्षितों पर पिछड़ापन थोपकर उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी आरक्षण का लाभ लेते रहने, वंचितों का आरक्षण लाभ हड़पते/लूटते रहने और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते रहने का लाइसेंस उपलब्ध करवाता है.
फोटो परिचय : वड़ोदरा में एक जन-समूह को संबोधित करते हुए ‘समता आंदोलन समिति’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पारासर नारायण शर्मा एवं उनके साथी.
भारतीय प्रेस/मीडिया ने सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के निर्णय की एकतरफा रिपोर्टिंग करके पूरे देश में भ्रम फैलाया है. वर्ष 2006 में जब सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ का एम. नागराज के प्रकरण में निर्णय आया था, तो देश की पूरी मीडिया ने ‘सर्वोच्च न्यायालय ने पदोन्नति में आरक्षण को सही ठहराया’ शीर्षक से खबरें चलाईं. किसी भी चैनल या अखबार ने यह खबर नहीं चलाई कि ‘सर्वोच्च न्यायालय ने पदोन्नति में आरक्षण संबंधी चारों संविधान संशोधनों को अप्रत्यक्ष रूप से निरस्त कर दिया है’ या ‘सर्वोच्च न्यायालय ने पदोन्नति में आरक्षण संबंधी चारों संविधान संशोधनों को कठोर संवैधानिक शर्तों की पूर्ति के बाद ही प्रभावशील बताया है.’ वास्तविकता भी यही थी, लेकिन प्रेस ने गलत रिपोर्टिंग करके चौतरफा भ्रम पैदा किया. इसीलिए संविधान पीठ द्वारा एम. नागराज के प्रकरण में दिए गए निर्णय को क्रियान्वित करने के लिए केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा आज तक कोई कार्यवाही ही नहीं की गई, क्योंकि पूरे देश में प्रेस रिपोर्टिंग से यह माहौल बन गया था कि पदोन्नति में आरक्षण को तो सर्वोच्च न्यायालय ने भी सही ठहरा दिया है.
प्रेस/मीडिया ने ‘पदोन्नति में आरक्षण’ की खबर को दिग्भ्रमित करके ‘नौकरी में आरक्षण’ से जोड़ दिया. आज भी ‘पदोन्नति में आरक्षण’ के संबंध में कोई निर्णय आता है या कोई भी घटना होती है, तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया द्वारा इसकी खबरों को, बहस को, आलेखों को ‘नौकरी में आरक्षण’ की व्यवस्था पर केंद्रित करके अजा/अजजा के पिछड़ेपन से जोड़ दिया जाता है. जबकि ‘पदोन्नति में आरक्षण’ का लाभ अजा/अजजा के सरकारी नौकरी प्राप्त अगड़े एवं संपन्न लोगों को मिलता है. इसका अजा/अजजा के पिछड़े, दलित एवं वंचित वर्ग से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि उन पर ही इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है.
प्रेस की आजादी पर अघोषित प्रतिबंध है. जातिवादी लोकसेवकों और राजनेताओं की इतनी सशक्त लॉबी है, दबाव या भय है कि कोई भी मीडिया ‘पदोन्नति में आरक्षण’ की अविधिक, अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक व्यवस्था के विरूद्ध खुलकर कुछ लिख नहीं पा रहा है. जयपुर में एक बड़े अखबार ने जब दो-चार स्तंभ इस विषय पर प्रकाशित किए, तो जातिवादी लोकसेवकों और राजनेताओं का झुंड उस अखबार के कार्यालय पर तोड़-फोड़ करने पहुंच गया. उसकी प्रतियां जलाने लगा. राष्ट्रीय अजा/अजजा आयोग में प्रायोजित शिकायतें करके परेशान करने लग गए. इससे उक्त अखबार की बोलती बंद हो गई. पत्रकारों, लेखकों, संपादकों, स्तंभकारों इत्यादि का कोई संगठन अभिव्यक्ति की आजादी पर लगे इस अघोषित प्रतिबंध के खिलाफ आवाज उठाने का साहस नहीं कर पा रहा है.
‘पदोन्नति में आरक्षण’ के घातक दुष्परिणामों को उजागर करने में मीडिया सामान्यतः कोई रूचि नहीं लेता है. लोकतंत्र में प्रेस को चौथा स्तंभ इसीलिए कहा जाता है कि यह अन्याय, अत्याचार, भेदभाव, गैर-कानूनी, असंवैधानिक और अपराधिक गतिविधियों को निर्भिकता से अपनी खोजी पत्रकारिता अथवा सूझबूझ से लगातार उजागर करता है. लेकिन ‘पदोन्नति में आरक्षण’ की वर्तमान अन्यायपूर्ण एवं असंवैधानिक व्यवस्था के बारे में भारतीय प्रेस द्वारा कभी भी खोजी अथवा शोधपरक पत्रकारिता के प्रयास किए जाने की जानकारी नहीं है. किस प्रकार जातिवादी लोकसेवकों और राजनेताओं द्वारा केंद्र एवं राज्य सरकारों को दबाव में लेकर असंवैधानिक संविधान संशोधन करवाए जा रहे हैं. असंवैधानिक कानून बनवाए जा रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को पलटवाया जा रहा है. गलत नियम बनवाए जा रहे हैं. सही नियमों का अनुपालन नहीं करने दिया जा रहा है. हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की क्रियान्विति रोकी जा रही है. केंद्र एवं राज्य सरकारों को अनावश्यक कानूनी विवादों में धकेलकर करोड़ों रुपयों का सार्वजनिक कोष बर्बाद किया जा रहा है.
आरक्षण और सरकारी योजनाओं के लाभ से अजा/अजजा की 95% जनसंख्या को वंचित रखा जा रहा है. अजा/अजजा कानून का सरेआम दुरूपयोग किया जा रहा है. न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका की गरिमा लगातार गिराई जा रही है. लोक प्रशासन में जातिगत वैमनस्य फैलाया जा रहा है. न्यायप्रिय कर्मठ राष्ट्रवादी लोकसेवकों को अकारण नुकसान पहुंचाया जा रहा है. प्रतिशोधात्मक कार्यवाहियां की जा रही हैं. जातिवादी अविधिक कर्मचारी संगठन बनाए जा रहे हैं. अजा/अजजा आयोगों का दुरूपयोग किया जा रहा है. निर्दोष राष्ट्रवादी लोकसेवकों को उनकी वरिष्ठता एवं योग्यतानुसार मिलने वाले पदों से अकारण वंचित करके प्रतिष्ठा और अरबों रुपये का आर्थिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है, इत्यादि ऐसे गम्भीर विषयों पर भारतीय प्रेस का बड़ा भाग कोई शोधपरक पत्रकारिता करता नजर नहीं आया है. निरपराध, निर्दोष राष्ट्रवादी लोकसेवक उनकी वरिष्ठता और पदोन्नति से वंचित होकर लगातार दंडित होने के बावजूद कुंठित, हताश, अपमानित जीवन जीने को मजबूर हैं. उनकी सुनने वाला और उनकी आवाज उठाने वाला तथा उनकी पीड़ा समझने वाला कोई नहीं है. सब जातिवादियों के सामने निस्तेज होते जा रहे हैं.
देश को बांटने की साजिशें रच रहे हैं जातिवादी लोकसेवक और राजनेता
जिस तरह स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले मुठ्ठीभर संपन्न दलित नेता अंग्रेजों के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं को ब्लैकमेल किया करते थे, उसी प्रकार आजादी के बाद दोहरी-तिहरी आरक्षण व्यवस्था के चलते संपन्न हुए मुठ्ठीभर जातिवादी लोकसेवक एवं राजनेता केंद्र और राज्य सरकारों को ब्लैकमेल कर रहे हैं. अजा/अजजा का 95% वंचित वर्ग कहीं उनके खिलाफ न हो जाए, इसके लिए अकारण ही विष-वमन करते रहते हैं. इन जातिवादी लोकसेवकों और राजनेताओं की फेसबुक, ट्विटर, वाट्सऐप आदि सोशल मीडिया की पोस्टों का अवलोकन करें, ऑडियो क्लिप्स सुनें, वीडियो क्लिप्स देखें, तो इनके भड़काऊ बयान, भड़काऊ भाषण, जातिगत जहर फैलाने की टार्गेटेड वीडियो क्लिप्स, सवर्णों का कत्लेआम करने, सवर्णों को विदेशी/आर्यन बताकर देशनिकाला देने और देश के टुकड़े करने का आव्हान, देश की संस्कृति और इतिहास का कलुसित प्रचार इत्यादि इतना कुछ देखने को मिलेगा कि कोई भी यह सोचने को मजबूर हो सकता है कि इस देश में जातिगत गृहयुद्ध बेहद सन्निकट है. इन सबके पीछे पदोन्नति में आरक्षण की अविधिक, अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक व्यवस्था चालू रखने के पक्षधर जातिवादियों का ही प्रमुख हाथ है, क्योंकि वंचित दलित एवं पिछड़े तो इनकी चालें समझ ही नहीं सकते हैं.
सामान्य वर्ग को अछूत मानने लगे हैं भयभीत राजनेता
जातिवादी लोकसेवकों और राजनेताओं से देश के सभी राजनेता इतने भयभीत हैं कि वे राष्ट्रवाद और संविधान की बात करने वाले सामान्य वर्ग के लोगों को अछूत मानने लगे हैं. सभी राजनेता और मंत्रीगण पदोन्नति में आरक्षण की अविधिक, अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक मांग करने वाले अजा/अजजा वर्ग के लोकसेवकों के किसी भी कार्यक्रम में दौड़े चले जाते हैं. इसके विपरीत सामान्य वर्ग के राष्ट्रवादी लोकसवकों के किसी भी कार्यक्रम में बार-बार बुलाने पर भी नहीं आते हैं. जबकि सामान्य वर्ग उनके समक्ष सिर्फ संविधान के प्रावधानों और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुपालन और सभी के साथ न्याय तथा सभी के उत्थान की ही बात करता है. यहां तक की वह सामान्य वर्ग के शिष्ट मंडलों को मिलने तक का भी समय नहीं देते हैं.
‘पदोन्नति में आरक्षण’ के घातक परिणाम
उपरोक्त उल्लेखित तथ्यों से स्पष्ट है कि पदोन्नति में अविधिक, अन्यायपूर्ण एवं असंवैधानिक आरक्षण की मांग करने वाले जातिवादी लोकसेवक और राजनेता किस तरह अजा/अजजा की अधिकांश जनसंख्या को आरक्षण एवं सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रखकर हमेशा दलित और पिछड़ा बनाए रखने की साजिश में लिप्त हैं. किस तरह न्यायिक निर्णयों का अनुपालन जबरन रोककर, उनको संविधान संशोधनों से पलटवाकर, उनकी अवमानना करवाकर, न्यायाधीशों से जातिगत आधार पर पद का दुरूपयोग करवाकर लगातार न्यायपालिका की गरिमा एवं विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा रहे हैं. किस तरह सांसदों और विधायकों को दवाब में लेकर बार-बार अविधिक संविधान संशोधन करवाकर, संविधान को विरूपित करवाकर, सांसदों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगवाकर, संसद एवं सांसदों को बंधक के रूप में कार्य करने को मजबूर किया जा रहा है. कार्यपालिका को जातिगत दबाव में लेकर किस तरह बार-बार असंवैधानिक कानून बनवाए जा रहे हैं. किस तरह जातिवादी सांसद और विधायक पार्टी लाइन से ऊपर उठकर केंद्र एवं राज्य सरकारों को दबाव में लेते हैं. सरकार गिराने की धमकियां देते हैं. चुनी हुई सरकार को अस्थिर करते हैं. किस तरह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को प्रभावित किया जा रहा है. किस तरह जातिवादी लोकसेवक एवं राजनेता देश के टुकड़े करने की साजिशें रच रहे हैं?
अतः देश के करोड़ों वंचित दलितों को आरक्षण और सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने, करोड़ों राष्ट्रवादी कर्मठ लोकसेवकों को न्याय देने, लोकतंत्र के चारों स्तंभों – न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका एवं प्रेस – की गरिमा बनाए रखने, देश को जातिगत संघर्ष से बचाने तथा देश के टुकड़े होने से बचाने के लिए जातिवादी लोकसेवकों एवं राजनेताओं को अलग-थलग किया जाए.
इसके साथ ही कुछ निम्नलिखित सुझाव भी हैं, जिन पर आवश्यक ध्यान दिया जाना जरूरी है-
1. जातिवादी लोकसेवकों और राजनेताओं के विरुद्ध जांच करवाकर उनको पदों से बर्खास्त करते हुए भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आपराधिक मुकदमे दर्ज करवाए जाएं.
2. पदोन्नति में आरक्षण की अविधिक, अन्यायपूर्ण और संवैधानिक व्यवस्था को पुनः चालू करने, संविधान को पुनः विरूपित करने, वंचित दलितों को हमेशा दलित-पिछड़ा बनाए रखने, न्यायपालिका को पुनः अपमानित करने तथा देश के करोड़ों राष्ट्रवादी कर्मठ, निरपराध लोकसेवकों के साथ अन्याय हेतु अब कोई अविधिक संविधान संशोधन नहीं किया जाए.
3. केंद्र एवं राज्य सरकारों के सभी लोकसेवकों की दि. 01.04.1997 के पश्चात से पुनरीक्षित पदोन्नतियां करते हुए उनको योग्यता और वरिष्ठता के अनुसार उचित पदों पर पदस्थापित करके सभी परिलाभ दिए जाएं.
4. अजा/अजजा के आरक्षण का लाभ लेकर अविधिक रुप से पदोन्नत हुए लोकसेवकों द्वारा जो राष्ट्रवादी लोकसेवकों के हक का और वेतन-भत्ते के रूप में हड़पा गया है, इस राशि को किस्तों में वसूल करके एक राष्ट्रीय कल्याण कोष बनाया जाए, जिससे वंचित दलितों के कल्याण की योजनाएं चलाई जाएं.
5. पूरे देश में जातिगत अराजकता फैलाने के दुराशय से सक्रिय अजा/अजजा कर्मचारियों के अविधिक संगठनों पर तत्काल रोक लगाई जाए. इन्हें अब तक दी गई अविधिक सुविधाओं और सहायता राशि को ब्याज सहित वसूल करके उपरोक्त राष्ट्रीय कल्याण कोष में जमा कराया जाए.
6. पदोन्नति में आरक्षण के घातक परिणामों की मुख्य जड़ अनुच्छेद 16(4)(ए) को संविधान संशोधन के जरिए विलोपित किया जाए.
अंत में पारासर नारायण शर्मा ने सरकार को चेतावनी देते हुए लिखा है कि यदि उनकी उपरोक्त तमाम मांगों पर सकारात्मक कार्यवाही नहीं की गई, तो इन्हें पूरा कराने के लिए सशक्त न्यायिक एवं प्रजातांत्रिक तरीके से राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरु किया जाएगा, जिसके परिणाम जातिवादी लोकसेवकों और राजनेताओं सहित सरकार एवं सभी राजनीतिक दलों के लिए अविस्मरणीय होंगे.