‘माफिया यूनियन’ और सीओएम/सीसीएम ने इस्तेमाल किया रेलमंत्री का नाम
सीनियर डीसीएम/त्रिवेंद्रम के ट्रांसफर का मामला, नहीं सफल हुई कोई कुटिल चाल
माफिया यूनियन के हाथ की कठपुतली रहे हैं वर्तमान मेंबर ट्रैफिक और स्टोरकीपर
भ्रष्ट कर्मियों के विरुद्ध की गई प्रत्येक कार्रवाई की फाइल मंत्री के नाम पर बोर्ड मंगाई गई
दक्षिण रेलवे में सुधांशु मणि को उनके कार्यकाल तक स्थाई किया जाए -रेलकर्मियों की मांग
सुरेश त्रिपाठी
आखिर दक्षिण रेलवे की ‘माफिया यूनियन’ के एजेंट मुख्य परिचालन प्रबंधक (सीओएम) और मुख्य वाणिज्य प्रबंधक (सीसीएम) अपनी कुटिल चालों में सफल नहीं हो पाए. उनके द्वारा मात्र 10 महीनों के अंदर 13 सितंबर को असमय किए गए सीनियर डीसीएम/त्रिवेंद्रम वी. सी. सुधीश के ट्रांसफर को कैट/एर्णाकुलम ने रद्द कर दिया और अंततः दक्षिण रेलवे प्रशासन को श्री सुधीश को पूर्ववत उनकी जगह पर पुनः पदस्थ करने का आदेश निकालना पड़ा. दक्षिण रेलवे मुख्यालय द्वारा 24 अक्टूबर को जारी आदेश में कहा गया है कि श्री सुधीश का डिप्टी सीसीएम/पीआरएस, चेन्नई के पद पर 13 सितंबर को किया गया ट्रांसफर रद्द किया जाता है और उन्हें उनके पूर्व स्थान पर पुनर्नियुक्त किया जाता है.
इसके साथ ही उक्त आदेश के अंतर्गत राजेश चंद्रन की पूर्व पोस्टिंग में बदलाव करते हुए उन्हें स्टेशन निदेशक, त्रिवेंद्रम के पद पर पदस्थ किया गया है. इसके लिए डिप्टी सीसीएम/क्लेम्स/मुख्यालय की रेवेन्यु पोस्ट (कोड 3673) का एलीमेंट त्रिवेंद्रम स्टेशन ट्रांसफर किया गया है. इसके अलावा एरिया मैनेजर, एर्णाकुलम की पोस्ट को बतौर स्टेशन निदेशक, एर्णाकुलम ऑपरेट करते हुए इन दोनों पदों का चार्ज देकर आर. हरिकृष्णन को यथास्थान पदस्थ कर दिया गया है. जबकि अटकलें इस बात की लगाई जा रही थीं कि चूंकि सीनियर डीओएम/त्रिवेंद्रम के पद पर पी. एल. अशोक कुमार का कार्यकाल तीन साल से ज्यादा हो चुका है, इसलिए उन्हें स्टेशन निदेशक, त्रिवेंद्रम के पद पर शिफ्ट करके उनकी जगह राजेश चंद्रन को सीनियर डीओएम का पदभार दिया जा सकता है. परंतु सीओएम ने एक बार पुनः अशोक कुमार के प्रति अपना ‘प्रेमभाव’ बरकरार रखते हुए उन्हें अभयदान प्रदान किया है.
दक्षिण रेलवे मुख्यालय स्थित विश्वसनीय सूत्रों ने ‘रेलवे समाचार’ को बताया कि वास्तव में वी. सी. सुधीश, सीनियर डीसीएम/त्रिवेंद्रम और वी. रविचंद्रन, सीनियर डीसीएम/चेन्नई के असमय ट्रांसफर के लिए माफिया यूनियन के दबाव में सीओएम एवं सीसीएम ने रेलमंत्री पीयूष गोयल के नाम का भरपूर इस्तेमाल किया. इसके अलावा माफिया यूनियन द्वारा रेलमंत्री के साथ सदभावना मुलाकात के दौरान लिए गए फोटो अपने बैनर/पोस्टर्स में छापकर रेलकर्मियों और अधिकारियों के बीच यह दर्शाने की कोशिश की गई कि रेलमंत्री के साथ उनकी बहुत अच्छी ट्यूनिंग बन गई है और वह जैसा चाहेंगे वैसा मंत्री से करवा लेंगे. सूत्रों का कहना है कि अपने पोस्टर/बैनर में मंत्री के बड़े-बड़े फोटो छापकर माफिया यूनियन द्वारा झूठा प्रचार किया गया, जिससे रेलकर्मियों और अधिकारियों को पता चल जाए कि मंत्री उसकी मुट्ठी में है.
उल्लेखनीय है कि ऐसा ही कृत्य माफिया यूनियन द्वारा इससे पहले केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और पूर्व रेलमंत्री सुरेश प्रभु के फोटो को लेकर भी किया गया था. हालांकि, यह अलग बात है कि बाद में सुरेश प्रभु वास्तव में उसकी मुट्ठी में आ गए थे. उन्हें पूर्व सीआरबी उर्फ ‘स्टोरकीपर’ के माध्यम से मैनेज किया गया था. सूत्रों ने बताया कि ‘पार्सल पोर्टर’ द्वारा लोगों के बीच खुलेआम यह कहा गया था कि पूर्व सीसीएम को हटवाने के लिए उसने दस करोड़ खर्च किए हैं. (इस राशि में कानूनी गतिविधियों एवं कोर्ट-कचहरी का खर्च शामिल नहीं है.) सूत्रों का कहना है कि इसीलिए वह बोर्ड मेंबर्स (सीआरबी/एमटी) पर चिल्लाता रहता था कि इतना बड़ा खर्च करके और मंत्री-संत्री सबको अपनी जेब में रखने के बावजूद भी वह पूर्व सीसीएम को ट्रांसफर कराने में सफल नहीं हो पाया. सूत्रों ने कहा कि यहीं से वास्तव में उसका भ्रम टूटा था और उसका समस्त हौव्वा खत्म हो गया तथा उसके अंत की शुरुआत हो गई थी. इसके साथ दक्षिण रेलवे के कर्मचारियों का भी भरोसा उससे उठ गया था.
विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेलवे समाचार’ को पता चला है कि डीआरएम/त्रिवेंद्रम ने जब सीनियर डीसीएम सुधीश के असमय ट्रांसफर का विरोध किया था, तब सीओएम और सीसीएम ने डीआरएम से यह स्पष्ट कहा था कि ‘सुधीश को फौरन रिलीव करें, क्योंकि बोर्ड से मंत्री का भारी दबाव है. मंत्री खुद इस ट्रांसफर में रुचि ले रहे हैं और उन्हीं के कहने पर उन्होंने सुधीश का ट्रांसफर किया है.’ इसके साथ ही सूत्रों का यह भी कहना है कि सीओएम/सीसीएम द्वारा कार्यकारी महाप्रबंधक के सामने वी. रविचंद्रन, सीनियर डीसीएम/चेन्नई, के ट्रांसफर प्रस्ताव की फाइल अत्यंत चालाकी और तिकड़म से कुछ इस तरह भेजी गई, जैसे कोई रूटीन फाइल भेजी जाती है और उसी झटके में जीएम उस पर साइन कर देते हैं. तथापि, माफिया यूनियन और उसके इन दोनों एजेंटों की समस्त करतूतों से सतर्क महाप्रबंधक ने उक्त फाइल सामने आते ही उसके पीछे की सारी तिकड़म और चालाकी को समझ लिया. सूत्रों ने बताया कि जीएम ने जब इस ट्रांसफर प्रस्ताव की पृष्ठभूमि पर स्पष्टीकरण मांगा, तो सीओएम/सीसीएम की घिग्घी बंध गई, उनसे कोई वाजिब जवाब देते नहीं बना. अंततः उन्होंने पुनः रेलमंत्री पीयूष गोयल का ही नाम इस्तेमाल किया और कहा कि ‘मंत्री जी का बहुत दबाव है कि यह ट्रांसफर तुरंत किया जाए, वास्तव में वही (मंत्रीजी) चाहते हैं कि उक्त ट्रांसफर पर फौरन ऑर्डर जारी हो.’
सूत्रों ने बताया कि चूंकि जीएम सुधांशु मणि समझदार, अक्लमंद और सर्वसामान्य रेल अधिकारियों से हटकर हैं, अतः वह इन एजेंटों की हकलाहट से पूरी तरह समझ गए कि वह वास्तव में झूठ बोल रहे हैं और माफिया यूनियन के दबाव में काम कर रहे हैं. जीएम ने तत्काल अपने विश्वसनीय सूत्रों, जिसमें दक्षिण रेलवे में काम कर चुके कई पूर्व डीआरएम एवं अन्य उच्च अधिकारी शामिल हैं तथा अपने सेक्रेट्रियेट से सारी जानकारी जुटा ली और बिना कोई राय या मंजूरी दिए ही रविचंद्रन के ट्रांसफर की फाइल लौटा दी. इसके बाद यह दोनों ही एजेंट, जो कि लंबे समय से ‘पार्सल पोर्टर’ के पे-रोल पर रहे हैं, निजी तौर पर अपनी घबराहट छिपाते हुए लोगों से कह रहे हैं कि ‘असल में रविचंद्रन और सुधीश के ट्रांसफर का दबाव मेंबर ट्रैफिक का है, जो कि पर्व सीआरबी के समय पूरी तरह से इस माफिया यूनियन को समस्त सहयोग एवं संरक्षण दे रहे थे. यह अलग बात है कि पिछले एक-डेढ़ साल के दौरान मेंबर ट्रैफिक कुछ खास नहीं कर पाए, लेकिन अब वह माफिया यूनियन को पूरी तरह से ‘ओब्लाइज’ करना चाहते हैं. कारण जो भी हो, मगर मेंबर ट्रैफिक इन दोनों ट्रांसफर के लिए लगातार अपना दबाव उन पर डाल रहे हैं.’
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जब माफिया यूनियन के भारी दबाव और खर्च के बाद भी पूर्व सीसीएम को दक्षिण रेलवे से ट्रांसफर नहीं किया जा सका था, तब मुंबई में पश्चिम रेलवे के सीसीएम की पोस्ट करीब छह महीनों तक खाली रखी गई थी और बार-बार उन्हें यह कहकर इस बात के लिए मनाया जा रहा था कि वह मुंबई चले जाएं, चेन्नई में क्यों वह अपना समय बरबाद कर रहे हैं, उनके लिए ही मुंबई की प्राइम पोस्ट खाली रखी गई है. परंतु उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया था और कहा था कि गद्दारी उनके खून में नहीं है तथा वे अपने लोगों को सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए अधर में नहीं छोड़ सकते हैं.
सूत्रों का कहना है कि उपरोक्त पृष्ठभूमि में जब पीछे मुड़कर देखते हैं, तो सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है और इसमें कहीं कोई शक की गुंजाईश नहीं रह जाती है कि माफिया यूनियन एवं उसके दोनों एजेंटों (सीओएम/सीसीएम) को संरक्षण कहां से मिल रहा था और रेलवे के असली ‘विभीषण’ कहां विराजमान हैं और कहां से ऑपरेट कर रहे हैं? ज्ञातव्य है कि तिरुचिरापल्ली मंडल के सीनियर डीसीएम के चैम्बर में घुसकर उन पर सीधा हमला करने के मामले में पूर्व सीसीएम ने माफिया यूनियन के चार पदाधिकारियों का इंटर डिवीजन ट्रांसफर किया था. तब तत्कालीन सीआरबी उर्फ स्टोरकीपर और संभवतः संबंधित बोर्ड मेंबर को भी मैनेज करके माफिया यूनियन से जुड़े उक्त चारों कर्मचारियों के इंटर डिवीजन ट्रांसफर को मार्च 2017 के अंत तक इस उम्मीद से लंबित करा दिया गया था कि मार्च में तो सीसीएम रिटायर हो ही जाएंगे, तब उन्हें पूर्ववत बहाल कर दिया जाएगा. परिस्थितियां इस बात की गवाह हैं कि यह सारा खेल पैसे की बदौलत खेला गया था.
उल्लेखनीय है कि दक्षिण रेलवे में कामचोर, काहिल, भ्रष्ट और माफिया यूनियन से जुड़े कर्मचारियों के विरुद्ध जब-जब कोई कड़ी कार्रवाई किए जाने का प्रयास किया जाता था, तब-तब उससे संबंधित फाइल को तुरंत रेलवे बोर्ड मंगवा लिया जाता था. अब यह कहना मुश्किल है कि यह कुत्सित कार्य मंत्री के स्तर पर होता था या एमटी द्वारा फाइल मंगवाई जाती थी अथवा तत्कालीन सीआरबी द्वारा ऐसा किया जाता था, मगर यह सही है कि फाइल मंगवाई जाती थी और इससे जहां एक तरफ माफिया यूनियन की बांछें खिल जाती थीं, वहीं दूसरी तरफ दक्षिण रेलवे के सभी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी बुरी तरह डर जाते थे. ऐसा ही तब भी किया गया था जब सीबीआई ने 41 टीटीई के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था, तब भी संबंधित रेलवे बोर्ड मेंबर ने संबंधित फाइल फौरन तलब कर ली थी.
इसी प्रकार सीवीसी के दिशा-निर्देशों के अनुसार जब दक्षिण रेलवे में टिकट चेकिंग स्टाफ सहित समस्त वाणिज्य स्टाफ का पीरियोडिकल/ रोटेशनल ट्रांसफर किया गया था, तब भी मेंबर ट्रैफिक ने न सिर्फ तत्कालीन एडीशनल मेंबर/कमर्शियल एस. सी. जेठी पर संबंधित पालिसी बदलने का दबाव डाला था, बल्कि उक्त रोटेशनल ट्रांसफर से संबंधित फाइल दक्षिण रेलवे से तुरंत रेलवे बोर्ड में मंगवा ली थी. यह अलग बात है की श्री जेठी ने पालिसी बदलने से तत्काल इंकार कर दिया था. इसी तरह पूर्व सीसीएम को उनके चैम्बर में बंधक बनाने, उनके साथ गाली-गलौज और बदसलूकी करने तथा जबरन उनके चैम्बर में घुसने के आरोप में अभी हाल ही में जब सीनियर डीसीएम/चेन्नई द्वारा 9 महिला टीसियों को नौकरी से बर्खास्त किया गया, तब भी खुद मेंबर ट्रैफिक द्वारा दक्षिण रेलवे से सभी संबंधित फाइलें रेलमंत्री के नाम पररेलवे बोर्ड में मंगवाई गई हैं.
ज्ञातव्य है कि सभी प्रकार के डीएआर मामले एवं मंडल स्तरीय समस्त कार्य-कलाप डीआरएम के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. ऐसे मामले डीआरएम के बाद अधिकतम जीएम स्तर पर ही निपटाए जाते हैं. स्पष्टीकरण के लिए जब तक कोई मामला जोनल रेलों द्वारा बोर्ड को खुद नहीं भेजा जाए, तब तक इनमें बोर्ड का न तो कोई हस्तक्षेप होता है, और न ही यह बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. तथापि, अधिकारियों में अपनी दहशत पैदा करने के लिए रेलवे बोर्ड मेंबर्स अक्सर ऐसी कुत्सित हरकतें रेलमंत्री के नाम पर इसलिए करते रहते हैं, क्योंकि कोई भी प्रभावित अधिकारी रेलमंत्री से इस बारे में पूछने नहीं जा सकता है कि उन्होंने संबंधित फाइल किस कारण या किस उद्देश्य से मंगवाई है. उनसे पूछने की तो खैर कोई हिमाकत ही नहीं करता है.
सूत्रों का स्पष्ट कहना है कि चेन्नई और त्रिवेंद्रम के दोनों सीनियर डीसीएम के ट्रांसफर के मामले में हुई फजीहत और इसके पीछे की मंशा तथा रेलवे बोर्ड अथवा मेंबर ट्रैफिक की इस मामले में रही गहरी संलिप्तता शायद कभी उजागर नहीं हो पाती, यदि वहां पार्सल पोर्टर का बड़ा एजेंट एजीएम अथवा उत्तर रेलवे में पदस्थ उसका दूसरा चहेता दक्षिण रेलवे में बतौर जीएम नियुक्त हो जाता. उनका कहना है कि यह तो ईश्वर की कृपा है कि दक्षिण रेलवे में समय पर सुधांशु मणि जैसा एक ईमानदार और समझदार जीएम नियुक्त हो गया, जिसने ट्रांसफर फाइल और उसकी परिस्थितियों को देखकर संज्ञान लिया और इन सभी की कुटिल चालों को असफल किया.
सूत्रों ने कहा कि अब स्थिति यह है कि चूंकि रेलवे बोर्ड स्तर पर बतौर सीआरबी भी एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी आ गया है, इसलिए अब माफिया यूनियन एवं उसके एजेंटों द्वारा मंत्री के नाम का इस्तेमाल किया जाने लगा है, क्योंकि जोनल स्तर का कोई भी अधिकारी मंत्री से पूछने जाने की हिम्मत नहीं कर सकता है. उनका कहना है कि यह खेल कुछ निहितस्वार्थी अधिकारियों द्वारा अपने मन-मुताबिक निर्णय को लागू करवाने के लिए अक्सर खेला जाता रहा है. जबकि मंत्री और बोर्ड मेंबर इससे अनभिज्ञ रहते हैं. परंतु इस मामले में वर्तमान मेंबर ट्रैफिक और पूर्व सीआरबी की भूमिका पूरी तरह से विवस्त्र हुई है. इस मामले में भी मंत्री के नाम का इस्तेमाल खुलकर किया गया, जबकि इसके पीछे पूरा खेल माफिया यूनियन के दबाव में मेंबर ट्रैफिक खेल रहे हैं.
सूत्रों का कहना है कि जाहिर है कि यह खेल वह मुफ्त में तो नहीं ही खेल रहे हैं. इसके पीछे अवश्य पैसे की ताकत काम कर रही है. इस बात को माफिया यूनियन के सीधे एजेंट दक्षिण रेलवे के सीओएम/सीसीएम निजी तौर पर कुछ खास लोगों के बीच स्वीकार भी कर रहे हैं और अपने बचाव में बता भी रहे हैं, क्योंकि वह यह भी जानते हैं कि आज नहीं तो कल, मंत्री के संज्ञान में यह आ ही जाएगा कि कैसे उसके साथ फोटो खिंचवाकर और उन्हें दिखाकर किस प्रकार उनके नाम का दुरुपयोग करने का प्रयास किया गया है.
बहरहाल, इस पूरे प्रकरण का निष्कर्ष यह है कि रेलमंत्री और सीआरबी को इस बात का पूरा ध्यान रखना होगा कि दक्षिण रेलवे में जीएम बाहर का ही होना चाहिए और वह बहुत मजबूत भी होना चाहिए, अथवा किसी निकम्मे और यूनियन परस्त को दक्षिण रेलवे में जीएम बनाए जाने के बजाय सुधांशु मणि को ही वहां स्थाई किया जाना चाहिए, क्योंकि वह ईमानदार और कर्तव्यपरायण होने के साथ ही इतने मजबूत हैं कि एक साथ दक्षिण रेलवे सहित आईसीएफ को भी संभाल सकते हैं. श्री मणि दोनों यूनिट्स को अकेले कई गुना बेहतर चलाएंगे. इसलिए या तो उन्हें दोनों यूनिट्स का दोहरा चार्ज कम से कम एक साल के लिए सौंपा जाए अथवा आईसीएफ में किसी अन्य समझदार जीएम की नियुक्ति करके, यदि दक्षिण रेलवे को बचाना है, तो श्री मणि को उनके कार्यकाल तक के लिए वहां स्थाई किया जाना चाहिए. यह मांग दक्षिण रेलवे के तमाम कर्मचारियों ने भी की है. श्री मणि सिर्फ अपने काम से काम रखते हैं, वह न तो किसी से फालतू बकवास करते हैं, न ही प्रेस तक को अपने पास फटकने देते हैं. वह प्रचार से भी अपनी दूरी बनाए रखते हैं. यह इस बात से भी जाहिर है कि दक्षिण रेलवे का अतिरिक्त चार्ज लेने के बाद उन्होंने जनसंपर्क विभाग को इसकी प्रेस विज्ञप्ति भी जारी नहीं करने दी थी.