Delhi Stampede: क्षमता से अधिक क्यों बेचे टिकट? दिल्ली हाईकोर्ट ने रेलवे को लगाई कड़ी फटकार!
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Supreme Court of India
नई दिल्ली: बुधवार, 19 फरवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार, भारतीय रेल और रेलवे बोर्ड से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर शनिवार, 15 फरवरी को हुई भगदड़ जैसी घटनाओं को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय करने के मुद्दे पर जवाब मांगा है। ज्ञातव्य है कि नई दिल्ली स्टेशन पर हुई भगदड़ में 18 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 25 से अधिक लोग घायल हुए थे।
मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने ‘अर्थ विधि’ द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान रेलवे से एक कोच में यात्रियों की क्षमता से अधिक टिकट बेचने पर प्रश्न उठाया। पीठ ने रेलवे से कहा, यदि आप कोच में यात्रियों की संख्या तय करते हैं, तो आप उस संख्या से अधिक टिकट क्यों बेचते हैं? बेचे गए टिकटों की संख्या कोच की सीटों की संख्या से अधिक क्यों होती है? यह एक बड़ी समस्या है।
हाईकोर्ट ने विशेष रूप से रेलवे अधिनियम की धारा 57 का हवाला दिया, जिसके अनुसार रेल प्रशासन ने एक डिब्बे में ले जाए जाने वाले यात्रियों की अधिकतम संख्या तय की हुई है।
पीठ ने टिप्पणी की कि यदि आप एक साधारण सी बात को सकारात्मक रूप से अक्षरशः लागू करते हैं, तो ऐसी स्थिति से बचा जा सकता है। भीड़भाड़ वाले दिनों में आप भीड़ को समायोजित करने के लिए उस संख्या को बढ़ा सकते हैं, जो समय-समय पर आने वाली आवश्यकताओं के आधार पर तय होती है। लेकिन कोच में बैठने वाले यात्रियों की संख्या तय न करके इस प्रावधान की हमेशा से उपेक्षा की गई है।
वकीलों, उद्यमियों और अन्य पेशेवरों के एक समूह के संगठन ‘अर्थ विधि’ द्वारा शनिवार, 15 फरवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ की पृष्ठभूमि में दायर याचिका पर हाईकोर्ट द्वारा सुनवाई की जा रही थी, जिसमें कम से कम 18 लोगों की मौत हो गई थी। प्रयागराज, महाकुंभ में भाग लेने के लिए लोगों की भीड़ के कारण स्टेशन पर भीड़भाड़ मची थी।
वकील आदित्य त्रिवेदी के माध्यम से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए रेलवे अधिनियम के तहत विभिन्न कानूनी प्रावधानों और नियमों को ठीक से लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने पीठ को बताया, यह याचिका कुप्रबंधन, घोर लापरवाही और सिस्टम की पूरी विफलता को उजागर करती है, जिसके कारण 15 फरवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मच गई।
हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने मुद्दे की गंभीरता पर जोर दिया और रेलवे की विफलताओं को उजागर करते हुए कहा गया कि हम रेलवे अधिनियम की धारा 57 और 157 का उल्लेख करते हैं। हवाई अड्डों पर यह जानने के लिए तंत्र हैं कि कितने लोग हैं। भारतीय रेल के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है। अनारक्षित वर्ग के लिए कोई अधिसूचना या परिपत्र नहीं है। अगर रेल प्रशासन अपने नियमों का पालन नहीं कर रहा है, तो हम सुरक्षा की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय ने याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों से सहमत होते हुए टिप्पणी की कि जनहित याचिका का कोई विरोध नहीं होना चाहिए। भारतीय रेल की ओर से प्रस्तुत सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह कोई प्रतिकूल रुख नहीं अपना रहे हैं। यह कानून है, और हम इससे बंधे हैं। इसके लिए किसी आदेश की आवश्यकता नहीं है। मेहता ने आगे कहा कि रेलवे याचिका में उठाए गए मुद्दों पर विचार करेगा। मामले की अगली सुनवाई 26 मार्च को होगी।
#साभार: IndiaNewsCentre.in