IRMS का भूत अभी कितने लोगों की जान लेकर उतरेगा, यह कौन बताएगा?
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रेलवे बोर्ड का पुराना स्ट्रक्चर बहुत ही सोच-समझकर बनाया गया था। जब विभाग विशेष का काम न जानने वाले उस विभाग के बोर्ड मेंबर बनेंगे तो या तो वे सबका समय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में नष्ट करेंगे, या फिर कैडर विशेष के प्रति बदले की भावना में उनका कार्यकाल निकलेगा।
अभी किसी भी महत्वपूर्ण विभाग का अधिकारी उस विभाग का बोर्ड मेंबर नहीं है। सीआरबी अब जो भी बन रहें हैं, वह एक्सटेंशन/रीएंगेजमेंट पर हैं और जमीनी काम करने के बजाय काम करते दिखने-दिखाने की ललक ही उनके पास अधिक होती है।
IRMS का भूत कितने लोगों की जान लेकर उतरेगा, यह या तो रेलमंत्री बतायेंगे या प्रधानमंत्री जी ही बता पाएंगे। अभी बोर्ड की स्थिति ऐसी है जैसे कि गधे के सिर पर घोड़े का सिर और घोड़े के सर पर गधे का सिर।
उसी विभाग का व्यक्ति अगर बोर्ड मेंबर बनता था, तो वह लाख बेकार अथवा गया-गुजरा होता था, लेकिन दूसरे विभाग से बनाए गए सबसे योग्य व्यक्ति से भी हजारों गुना बेहतर होता था।
उसी विभाग का अधिकारी अगर बोर्ड मेंबर होता था, तो वह सधे तरीके से काम करता था और उस विभाग से संबंधित ऊँच-नीच समझता था। वह फील्ड की समस्याओं को समझता था और इसीलिए कुछ भूल-चूक या गलती देखकर उसके पीछे की मूल समस्या के निराकरण का प्रयास करता था, न कि दहशत फैलाकर निरंकुश की तरह बदले की भावना से काम करता था?
दूसरे विभाग का बना IRMS MEMBER हमेशा तुगलकी व्यवहार करेगा और वह ऐसा इसलिए करता है कि उसे उस विभाग की मौलिक समझ ही नहीं होती है, भले ही वह अपने को कितना भी बड़ा ज्ञानी समझता है। पूरी रेल की वास्तविकता यह है कि गैर-विभागीय बोर्ड मेंबर होने के कारण रेल के प्रायः सभी विभाग के अधिकारी-कर्मचारी हतोत्साहित हैं, दहशत में हैं, और कई बार अदने बोर्ड मेंबर से अपमानित होकर बिना किसी उत्साहवर्धन के डर के वातावरण में काम करने के लिए मजबूर हैं।
IRMS के प्रतिफल ये नए प्रकार के दूसरे विभाग से बनाए गए बोर्ड मेंबर कोई कोर-कसर और कोई अवसर नहीं छोड़ रहे हैं अपमानित करने का। पूरी भारतीय रेल में यह चर्चा का विषय हैं कि कुछ बोर्ड मेंबर अछूत की तरह व्यवहार अपने विभाग के दूसरे कैडर के लोगों के साथ कर रहें हैं। मिलने तक की मनाही कर रखी है, और बेइज्जत करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। मिलने पर अपमान या नुकसान दोनों में से कोई एक होना निश्चित है।
ऐसे माहौल में कोई क्या काम कर सकता है? बोर्ड मेंबर या परिवार के मुखिया की भूमिका सहानुभूति के साथ अपने लोगों को समझने की होती है, न्यायपूर्ण बर्ताव और अपनेपन के भाव से काम करने की होती है। पता नहीं कि ऐसे लोग इतिहास से क्यों नहीं सीखते हैं कि जिसने भी बड़े दिल से काम किया, उसने ही व्यवस्था को कुछ दिया है, न कि जो लोग अपने को बहुत सख्त और ज्यादा ज्ञानी समझते थे।
लेकिन जब तक IRMS इसी परिकल्पना के साथ रहेगा, तब तक भारतीय रेल निरंतर गर्त की ओर बढ़ती रहेगी। आज के प्रायः सभी बोर्ड मेंबर अपनी साख अपने अधिकारियों को प्रताड़ित करके बना रहे हैं, लेकिन मजाल है कि इन्होंने कभी ठेकेदारों पर कोई सख्ती दिखाई हो!