पूजा खेडकर प्रकरण: नौकरशाही पर एक बड़ा काला धब्बा!
इतिहास गवाह है कि इतनी पुरानी समृद्ध सभ्यता के बावजूद समाज के विभाजन ने इसे इतना जर्जर कर दिया था कि हम हजारों साल तक गुलाम बने रहे! लगभग वैसा ही विभाजन जाति-धर्म-क्षेत्र के नाम पर नौकरशाही में प्रवेश कर चुका है और राजनीति एवं नौकरशाही का यह अनैतिक गठजोड़ इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है!
प्रेमपाल शर्मा
#आईएएस ट्रेनी ऑफिसर #पूजाखेडकर प्रकरण ने एक साथ नौकरशाही की कई संस्थाओं के कारनामों को उजागर कर दिया है। पूजा 2023 बैच की हैं और उनकी ट्रेनिंग लाल बहादुर शास्त्री अकादमी, मसूरी में जुलाई 2025 में पूरी होगी। इस बीच में उनको फील्ड ट्रेनिंग के लिए महाराष्ट्र कैडर में असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में पुणे भेजा गया था, जहाँ पहुँचते ही उन्होंने ऐसे गुल खिलाए जो पूरी नौकरशाही के लिए कलंक कहे जा सकते हैं।
उन्होंने पुणे पहुँचते ही माँग की सरकारी गाड़ी की, जिस पर नीली-लाल बत्ती लगी हो; एक अलग ऑफिस हो, घर, चपरासी आदि-इत्यादि। यहां तक कि अपनी निजी गाड़ी पर खुद ही नीली बत्ती भी लगवा ली, जिसके खिलाफ दर्जन भर से अधिक यातायात उल्लंघन करने के मामले हैं और जुर्माना बकाया है। पूजा की यह पारिवारिक दबंगई ही थी कि पुणे के एक और तैनात अफसर का नाम हटाकर उन्होंने अपनी नेम प्लेट लगा दी। भावी आईएएस अफसर नाम के शहंशाह का नशा तो देखिए!
एक मायने में तो यह अच्छा हुआ कि इस प्रकरण से न जाने कितने कुलबुलाते कीड़े सामने आ गए हैं। पहला अपराध, ओबीसी सर्टिफिकेट कैसे मिला? जब उनकी खुद की संपत्ति 17 करोड़ दर्ज है और पिता एक पूर्व अफसर होने के साथ-साथ राजनीति में कदम बढ़ा रहा है, जिसने हाल ही में लोकसभा चुनाव में अपनी संपत्ति 40 करोड़ और वार्षिक आय 43 लाख दिखाई है, और हकीकत में यह है भी।
पूजा खेडकर ओबीसी समुदाय से आती हैं जिसमें 8 लाख से अधिक वार्षिक आय वाले क्रीमी लेयर में आते हैं और इसलिए आरक्षण के हकदार नहीं हैं। पहला अपराध, ओबीसी प्रमाण पत्र देने वाले जिला राज्य के अधिकारियों का है। यहां मुझे याद आ रहा है हाल ही का उत्तर प्रदेश सरकार का एक अनुभव, आर्यन नाम के एक लड़के ने 12वीं के बाद नीट क्लियर किया। उसका शेड्यूल कास्ट का सर्टिफिकेट आगरा से है। दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी ने कहा कि केवल दिल्ली के एससी सर्टिफिकेट वाले ही उसके दाखिले में योग्य माने जाएंगे, इसलिए आपको केंद्र सरकार द्वारा दिया गया फॉर्म जाति के लिए आगरा से सत्यापन करना होगा।
दुनिया जानती है जाटव मां और पिता बेडिया जातियां शेड्यूल कास्ट में आती हैं, लेकिन उस सर्टिफिकेट को जारी करने में कितनी अड़चन लगाई, जबकि आर्यन के मां-बाप दिल्ली में दिहाड़ी मजदूर हैं। पूजा खेडकर के परिवार के पास तो 110 एकड़ जमीन भी बताई जाती है, जो भूमि नियमों के अनुसार भी इतनी जमीन रखना अपराध है। बाकी प्रॉपर्टी का हिसाब तो करोड़ों में है।
अगला अपराध: उन्होंने यूपीएससी (#UPSC) परीक्षा ओबीसी कोटे के साथ-साथ बहु-दिव्यांग उम्मीदवार के रूप में दी है जिस पर दृष्टि बाधित मानसिक रोग आदि के सर्टिफिकेट का हवाला दिया गया है। ऐसे किसी सर्टिफिकेट के मामले में सत्यापन के लिए विशेष मेडिकल परीक्षा होती है, जिसमें अभी तक की रिपोर्ट के अनुसार एम्स द्वारा छह बार बुलाने पर भी वह नहीं गई। हर बार एक नया बहाना। मामला यूपीएससी की तरफ से कोर्ट में भी गया। फिर कौन से अदृश्य दबाव थे कि इनको 30 जुलाई 2023 में ज्वाइन करा लिया गया?
ओबीसी वर्ग में पूजा खेडकर की रैंक 841 थी, यानि कि इनसे ऊपर सैकड़ों मेधावी सक्षम उम्मीदवारों की कीमत पर इन्हें जगह मिली। क्या यह अपने वर्ग के गरीबों और विकलांगों-दिव्यांगों की कीमत पर भ्रष्टाचार बेईमानी अनैतिकता का अनूठा मामला नहीं है? निश्चित रूप से यह सुप्रीम कोर्ट के ओबीसी पैमाने से लेकर सभी संस्थाओं का भी अपमान है जिनका उल्लंघन करते हुए ऐसे अधिकारी सरकार के अंदर सही मेरिट की कीमत पर लगातार जगह बना रहे हैं।
क्रीमी लेयर का मुद्दा तो सुप्रीम कोर्ट में भी कई बार उठ चुका है और सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि सच्चे सामाजिक न्याय के लिए और इन जातियों के अंतिम व्यक्ति तक इस जातिगत आरक्षण का लाभ पहुँचाने के लिए क्रीमी लेयर का नियम एससी/एसटी जातियों पर भी लागू होना चाहिए, लेकिन अभी तक सभी सरकारें इस पर चुप्पी लगाए हुए हैं। पूजा खेडकर ने निजी डॉक्टर से अपनी दिव्यांगता का एक और प्रमाण पत्र भी दे दिया। डॉक्टरी परीक्षा की पूरी पोल!
क्या बिना राजनीतिक-प्रशासनिक साठगांठ के पूजा खेडकर यहां तक पहुँच सकती थी? और इस नशे में वक्त से पहले वह और अधिक अहंकारी हो गई, और उन सुविधाओं की मांग करने लगी जो नौकरशाही में शामिल हुए ज्यादातर अफसर करते हैं। उन्हें पूरा प्रशिक्षण ही जनता की सेवा के बजाए ऐसे अहंमन्य हाकम बनने और राज करने के लिए मिलता है!
ब्रिटिश विरासत की नौकरशाही में ईमानदारी पारदर्शिता कर्तव्यनिष्ठा के गुण तो गायब हो ही गए, लेकिन उपनिवेशी मानसिकता और सामंती अहंकार और अधिक हावी होते जा रहे हैं। अब तो यह नौकरशाह राजनेताओं के लिए भ्रष्टाचार के एजेंट भी बन चुके हैं। पूजा खेडकर ऐसी अकेली नहीं है, चाहे झारखंड की आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल हों, जिनके पास करोड़ों की भ्रष्ट संपत्ति पाई गई और अभी जेल में हैं, या मध्य प्रदेश के दंपती आईएएस अधिकारी।
और याद करें तो अमेरिका में तैनात एक और विदेश सेवा की अधिकारी-खोब्रागडे, जिनकी अमेरिका में तैनाती के दौरान नौकरों पर अत्याचार की कहानी अभी हाल ही में दुनिया भर में फैली थी। नौकरशाही का कोई विभाग इससे अछूता नहीं है।
हाल का ही उदाहरण लें, तो 3 वर्ष पहले जिस आईपीएस अधिकारी ने यूपीएससी के “एथिक्स” यानि “नैतिकता” के पेपर में सबसे ज्यादा नंबर पाए थे, अगले वर्ष की परीक्षा में उसे सरेआम नकल करते गिरफ्तार किया गया था। क्या नैतिक मूल्य जैसे पेपर को यूपीएससी की परीक्षा में शामिल करने का अब भी कोई औचित्य बचा है?
पूजा खेडकर के पूरे प्रकरण में यह बात साबित हो रही है कि इतनी मनमानियों और इतने सारे अपराधों के बाद भी इस भावी नौकरशाह की हिम्मत और हेकड़ी इतनी क्यों है? निश्चित रूप से इसे राजनीतिक प्रश्रय मिला हुआ है। कहीं ऐसा न हो कि इसके राजनीतिक रसूख के आगे और महाराष्ट्र में विधान सभा के चुनाव को देखते हुए सरकार इस पूरे मामले पर लीपापोती ही न कर दे! अगर ऐसा हुआ, तो यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
भारत जैसे विशाल देश को एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था देने वाले स्टील फ्रेम (#UPSC) में लगातार और बहुत तेजी से गिरावट आ रही है। इतिहास गवाह है कि इतनी पुरानी समृद्ध सभ्यता के बावजूद समाज के विभाजन ने इसे इतना जर्जर कर दिया था कि हम हजारों साल तक गुलाम बने रहे। लगभग वैसा ही विभाजन जाति-धर्म-क्षेत्र के नाम पर नौकरशाही में प्रवेश कर चुका है और राजनीति एवं नौकरशाही का यह अनैतिक गठजोड़ इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है! क्या नीट परीक्षा से लेकर देश की अधिकांश समस्याओं के लिए कथित स्टील फ्रेम की कोई जिम्मेदारी नहीं है!
नौकरशाही के मौजूदा स्वरूप को उसकी भर्ती से लेकर ट्रेनिंग और सुविधाओं को अविलंब बदलना होगा। नौकरी की सुरक्षा और शासक होने की अहंमन्यता तथा अकूत सुविधाएँ ही बार-बार खेडकर-सिंघल जैसे अधिकारियों को जन्म देती हैं!
इसलिए देश को यदि कोई संदेश देना है तो पूजा खडेकर को तुरंत बर्खास्त किया जाए। परिवीक्षा (प्रोबेशन) अवधि के दौरान बर्खास्त करने में कोई भी सेवा नियम आड़े नहीं आता। और साथ ही सरकार ने जो एक सदस्य की समिति बनाई है – इस पर भी प्रश्नचिन्ह है कि एक सदस्यीय समिति क्यों-इसी से पूरे प्रकरण पर पानी फेरने की शुरुआत मानी जा रही है – तथापि यह इस समिति का दायित्व है कि खेडकर का मेडिकल सर्टिफिकेट देने से लेकर ओबीसी सर्टिफिकेट देने वाले सभी के खिलाफ तुरंत कार्यवाही सुनिश्चित हो। ऐसे एक अपराधी को किसी भी वजह से छोड़ना ऐसे और सैकड़ों अपराधों को जन्म देना होगा! यह यूपीएससी और केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय के साथ-साथ देश की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था की साख का भी प्रश्न है!
और पूजा ! आप पुनर्मूसको भव! आप सचमुच लोकसेवक बनने के योग्य कतई नहीं हैं!
#प्रेमपालशर्मा, पूर्व संयुक्त सचिव भारत सरकार।
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