मंडल रेल अस्पताल कल्याण की कैजुअल्टी बनी मध्य रेल प्रशासन का सिरदर्द
मंडल रेल अस्पताल (#DRH) कल्याण की कैजुअल्टी की वर्तमान लोकेशन ऐसी है कि वह स्टेशन के पास होते हुए भी सीनियर सिटिजन पेशेंट्स के लिए बहुत दूर है, क्योंकि वहाँ पहुँचने के लिए इन पेशेंट्स को, खासतौर से बीमार, अशक्त और वरिष्ठ नागरिकों की मानो शामत ही आ गई है। वरिष्ठ नागरिकों अर्थात् रिटायर्ड रेलकर्मियों का कहना है कि यह आइडिया जिस किसी के दिमाग की उपज है, वह निहायत ही कोई इम्प्रैक्टिकल और हद दर्जे का मूर्ख ही रहा होगा। डीआरएच तक तो पहुँचने में मरीजों को वैसे ही बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। रिक्शा वाले भी काफी पैसा लेते हैं। पूरा डीआरएच ही अगर वर्तमान कैजुअलिटी लोकेशन पर शिफ्ट किया जाता, तो इस आइडिया को फिर भी बेहतर कहा जा सकता था।
बताते हैं कि मुरबाड रोड से सटी वर्तमान लोकेशन पर कैजुअलिटी बनाने का मुख्य आइडिया डीआरएच कल्याण के वर्तमान मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (#CMS) का था। हालाँकि उनके इस विचार का अस्पताल कमेटी के सदस्यों सहित यूनियन पदाधिकारियों द्वारा भी यह कहकर विरोध किया गया था कि जब तक वहाँ सभी मेडिकल सुविधाओं सहित पर्याप्त स्टाफ की व्यवस्था नहीं की जाती तब तक यह प्रैक्टिकल आइडिया नहीं है। सीएमएस को लोगों ने वर्तमान में पेश आ रही सभी परेशानियों से पहले ही आगाह किया था, लेकिन शायद उन्हें विश्वास था कि वे मैनेज कर लेंगे। उनका यह विश्वास ही उनके इम्प्रैक्टिकल होने की निशानी है। अब समस्या यह है कि कैजुअल्टी को मेनटेन करना सीएमएस के लिए सिरदर्द तो बना ही है, साथ ही वरिष्ठ नागरिकों की तो शामत ही आ गई है।
वास्तव में सीएमएस को यह करना था कि रेलवे लाइन को पार करने के लिए लिफ्ट लगवा देनी थी, जिसकी कि रेलकर्मियों ने पहले ही पुरजोर मांग की थी। लेकिन प्रशासन की अनदेखी के चलते लिफ्ट कभी बन ही नहीं पाई। अब समस्या यह है कि कैजुअल्टी में काम करने के लिए न तो पैरामेडिकल स्टाफ की बढ़ोतरी हुई, और न ही डॉक्टरों की संख्या बढ़ाई गई। वरिष्ठ नागरिकों की बीमारी से संबंधित पर्याप्त दवाएं भी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि यदि किसी वरिष्ठ नागरिक को स्पेशलिस्ट को दिखाना है तो वह पहले कैजुअल्टी में आकर लाइन लगाते हैं, और जब डॉक्टर को अपनी समस्या बताते हैं तो डॉक्टर उन्हें डीआरएच में स्पेशलिस्ट के पास जाने की सलाह देते हैं।
ऐसे में वह वरिष्ठ नागरिक यहां से फिर लंबा चक्कर काटकर डीआरएच में जाते हैं। फिर वहां स्पेशलिस्ट की लाइन में लगते हैं, घंटों की प्रतीक्षा के बाद जब उनका चेकअप होता है तो वहां से दवाईयाँ देने को मना कर दिया जाता है। कहा जाता है कि आप कैजुअलटी से ही जाकर दवाई लें। ये कैसी विडंबना है कि अस्पताल एक ही है, परंतु इतना कॉम्प्लिकेशन? ऐसी परिस्थिति बन गई है कि वरिष्ठ नागरिक इधर से उधर भटक रहा है।
अस्पताल के फॉर्मासिस्ट्स की समस्या यह है कि वहां प्रतिदिन 12 से 16 डॉक्टर रहते हैं। वार्ड राउंड के बाद 10:30 से 11 के बीच में जब वे अपने केबिन में पहुंचते हैं, तो सैकड़ों लोगों की भीड़ को प्रिस्क्रिप्शन लिखना चालू होता है। वह दवा लेने के लिए टैबलेट रूम में कतार लगाते हैं। पहले वहां चार काउंटर हुआ करते थे, अब दो काउंटर कैजुअल्टी में शिफ्ट कर दिए हैं, इस तरह डीआरएच में केवल दो काउंटर ही बचे, जिस पर 400 से 500 मरीजों को दवा दे पाना आसान नहीं है। इसीलिए वहां फार्मासिस्ट्स की संख्या बढ़ाकर काउंटर पूर्ववत चालू करने चाहिए, क्योंकि फार्मासिस्ट्स के साथ-साथ मरीजों की भी परेशानी बढ़ रही है।
रेल प्रशासन को अस्पताल की हर व्यवस्था को शुरू करने से पहले अपने दिमाग में भली-भांति यह विचार करना चाहिए कि अस्पताल में स्वस्थ आदमी नहीं आता है, बल्कि अस्वस्थता की स्थिति में 75/80/ 85/ 90 साल के अस्वस्थ लोगों के आने पर उन्हें इस तरह से सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँ कि उनको कम से कम भटकना पड़े और कम से कम परेशानी का सामना करना पड़े। लेकिन कथित सुविधा देने के चक्कर में यहां सब कुछ उल्टा हो गया।
अब इस मूर्खतापूर्ण निर्णय का परिणाम यह है कि इस कैजुअल्टी को बनाने में लाखों रुपये खर्च हो गए हैं, तो इसे बंद भी नहीं किया जा सकता। और यदि चलाते हैं तो डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ से लेकर पेशेंट तक परेशान घूम रहे हैं। सुविधा प्रदान करने की कोशिश की जा रही है, परंतु सीमित संसाधनों और स्टाफ के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा है।
जो भी हो, इस व्यवस्था से सीनियर सिटिजन बेहद परेशान हैं। 80-100 साल पुराने रेलवे आवास के आउट हाउस में केस पेपर रूम और टैबलेट रूम तो बना दिए, लेकिन इतना नहीं सोचा कि एस्बेस्टस शीट की बनी हुई छत के नीचे फाल सीलिंग लगाना आवश्यक था। वैसे ही उसकी ऊँचाई बहुत कम है। टैबलेट रूम के बेहद छोटे-छोटे दो कमरे हैं और दोनों कमरों के बीच में एक दीवार है। इन कमरों में दवाईयाँ रखने के लिए रेक तक उपलब्ध नहीं है।
फार्मासिस्ट्स के एक काउंटर पर यदि दवाई खत्म हो जाए, तो दूसरे फार्मासिस्ट से मरीज दवा नहीं ले सकता, क्योंकि बीच में खड़ी दीवार में न तो दरवाजा है, और न ही कोई खिड़की है। दवा लेने आने वाले पेशेंट के लिए न धूप से बचाव है, न बारिश से। पेशेंट को लाइन में खड़े रहने के लिए कम से कम एक शेड की व्यवस्था करना आवश्यक था, लेकिन बुद्धि हीनता के चलते यह भी नहीं किया गया।
कथित कैजुअली में फीमेल स्टाफ के लिए किसी भी तरह के बाथरूम की व्यवस्था नहीं है। उन्होंने फीमेल पेशेंट के बाथरूम पर कब्जा किया हुआ है। इस तरह की अनेकों छोटी-बड़ी समस्याओं पर पहले ही ध्यान दिया जाना चाहिए था, जो अब दिन प्रतिदिन की समस्याएँ बन चुकी हैं।
नर्स के नाम पर एक मेडिकल डिकैटेगराइज नर्स को कैजुअल्टी में रख दिया गया है। उसे तत्काल प्रभाव से बदला जाना चाहिए। यहाँ ईसीजी की व्यवस्था भी होनी चाहिए। डिजिटल एक्स-रे मशीन में जो एक्स-रे निकल रहे हैं, रेडियोग्राफर बोलता है कि इसका फोटो निकाल कर ले जाओ और डॉक्टर को दिखा दो। यह कहाँ तक उचित है? वह इसे डॉक्टर के कम्प्यूटर पर सीधे क्यों नहीं भेजता है? जिस भी पेशेंट के एक्स-रे में कोई डिफेक्ट आता है, तो रेडियोग्राफर को तत्काल उसका प्रिंट निकालकर निश्चित रूप से पेशेंट को देना चाहिए।
इस दुर्व्यवस्था से पैरामेडिकल स्टाफ और मरीज सब बेहाल हैं। किसी की भी कुछ समझ में नहीं आता कि सुविधा देने के लिए की गई प्लानिंग एक समस्या बनकर खड़ी हो गई है। इस समय डीआरएच में चार फिजिशियन हैं। वर्तमान में तीन फिजिशियन काम कर रहे हैं। तो कम से कम एक फिजिशियन को यदि कैजुअल्टी में बैठाया जाए तो भी कई समस्याओं का निदान हो सकता है।
वैसे भी एक डॉक्टर ने हमेशा ही रेलवे से फोकट की रोटियाँ तोड़ी हैं और अभी भी बिना कोई काम किए अपना पूरा वेतन ले रहा है। सीनियर सिटिजन पेशेंट्स का कहना है कि कम से कम फोकटिए को कैजुअलिटी में बैठाया जाए। हो सकता है अपने अंतिम दिनों में वह कुछ पुण्य कमा ले, या फिर इस कैजुअलिटी में केवल उन्हीं वरिष्ठ नागरिकों को बुलाया जाए, जिन्हें अपनी रेगुलर मेडिसिन लेनी हैं। इसमें यदि कोई समस्या है तो उन्हें सीधे डीआरएच से मेडिसिन दी जाएँ, तो भी काफी हद तक समस्या का हल हो सकता है। इसके अलावा सीएमएस हर डॉक्टर के केबिन में वरिष्ठ नागरिकों की अनिवार्य रूप से अलग एंट्री की व्यवस्था करें।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में मध्य रेलवे के महाप्रबंधक रामकरन यादव ने रेलवे स्कूल और रेलवे अस्पताल कल्याण का दौरा किया था, उस समय न तो डीआरएच प्रबंधन ने, और न ही अस्पताल कमेटी सदस्यों ने, और न ही यूनियन पदाधिकारियों ने इस सीनियर सिटिजन ओपीडी की समस्याओं से उन्हें अवगत कराया। चूँकि सबको अपने-अपने हितों की रक्षा करनी है, इसलिए सबने इस मामले में सीनियर सिटिजन पेशेंट्स का हित साइड लाइन करके चुप रहना ही बेहतर समझा है। क्रमशः